भारतीय विनिर्माण में उत्पाद परिष्कृतता की आवश्यकता | 23 May 2024
प्रिलिम्स लिये:सकल घरेलू उत्पाद (GDP), मेक इन इंडिया, इंडस्ट्री 4.0, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI), PM गति शक्ति-नेशनल मास्टर प्लान, भारतमाला प्रोजेक्ट, सागरमाला परियोजना। मेन्स के लिये:भारत में विनिर्माण क्षेत्र के विकास चालक, भारत के विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये सरकार की हालिया पहल। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्तमंत्री ने कहा कि भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को अधिक परिष्कृत उत्पाद विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये और सरकार इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये नीतिगत सहायता प्रदान करने के लिये तैयार है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति क्या है?
- विनिर्माण क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 17% योगदान देता है और 27.3 मिलियन से अधिक श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है, जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत सरकार का लक्ष्य (मेक इन इंडिया का लक्ष्य) वर्ष 2025 तक अर्थव्यवस्था के उत्पादन में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को 25% तक बढ़ाना है।
- विनिर्माण का बढ़ता महत्त्व ऑटोमोटिव, इंजीनियरिंग, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के मज़बूत प्रदर्शन से प्रेरित है।
- वित्त वर्ष 2023 में विनिर्माण निर्यात 447.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो पिछले वर्ष (FY22) की तुलना में 6.03% की वृद्धि दर्शाता है जब निर्यात 422 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- भारत के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (8 प्रमुख उद्योग) में जनवरी 2024 के दौरान मंदी देखी गई, जोकि अंतिम 15 महीनों में सबसे धीमी थी। देश में विकास दर घटकर 3.6% रह गई, जो दिसंबर 2023 (4.9%) और जनवरी 2023 (9.7%) से काफी कम है।
- अप्रैल-अक्तूबर, 2023 तक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) 143.5 रहा, जो आधार वर्ष (2011-12) की तुलना में 43.5% की वृद्धि दर्शाता है।
- IIP अर्थव्यवस्था में औद्योगिक गतिविधि के सामान्य स्तर का एक समग्र संकेतक है। इसकी गणना और प्रकाशन हर महीने केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा किया जाता है।
- कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में मंदी के कारण विनिर्माण क्षेत्र के लिये क्षमता उपयोग पिछली तिमाही के 60.0% से बढ़कर दूसरी तिमाही (2021-22) में 68.3% हो गया।
- क्षमता उपयोग से तात्पर्य उन विनिर्माण और उत्पादन क्षमताओं से है जिनका उपयोग किसी देश या उद्यम द्वारा किसी भी समय किया जा रहा है।
- ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स (+46%), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (+26%), और मेडिकल उपकरण (+91%) जैसे क्षेत्रों में FDI अंतर्वाह में वृद्धि देखी गई।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार, कोविड-संबंधित व्यवधानों के बावजूद, विनिर्माण क्षेत्र से संबंधित सकल मूल्य संवर्धन (GVA) में समग्र रूप से सकारात्मक वृद्धि देखी गई है।
- इस क्षेत्र में कुल रोज़गार वर्ष 2017-18 में 57 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 62.4 मिलियन हो गया है।
भारत में विनिर्माण क्षेत्र की क्या संभावनाएँ हैं?
- व्यापक घरेलू बाज़ार और मांग: भारत में विनिर्माण क्षेत्र ने अपने उत्पादों के लिये स्थानीय और विदेशी दोनों ग्राहकों द्वारा अत्यधिक मांग देखी है।
- मई 2024 में PMI (58.8), भारत के विनिर्माण क्षेत्र में विस्तार को दर्शाता है।
- क्षेत्रीय लाभ: भारत में रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी और कपड़ा जैसे प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों ने हाल के वर्षों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि का अनुभव किया है।
- भारत में फार्मास्युटिकल विनिर्माण लागत अमेरिका और यूरोप की तुलना में लगभग 30%-35% कम है।
- ग्लोबल साउथ के बाज़ार तक पहुँच: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, भारतीय विनिर्माण वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chains- GVC) में यूरोप से एशिया की ओर स्थानांतरित हो रहा है। ग्लोबल साउदर्न पार्टनर्स से भारत की घरेलू मांग में विदेशी मूल्य वर्द्धित (Foreign Value-added- FVA) की हिस्सेदारी वर्ष 2005 में 27% से बढ़कर वर्ष 2015 में 45% तक पहुँची।
- यह परिवर्तन भारतीय कंपनियों के लिये अपने स्वयं के GVC स्थापित करने और भारत को क्षेत्रीय विकास का मुख्य केंद्र बनने का अवसर प्रदान करता है।
- MSME का उदय: वर्तमान में देश के सकल घरेलू उत्पाद में MSME का लगभग 30% योगदान है और आर्थिक विकास को गति देने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने के साथ भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% की हिस्सेदारी है।
- मांग में वृद्धि: भारत के विनिर्माण उत्पादों की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग में वृद्धि हो रही है।
- भारत के विनिर्माण क्षेत्र में वर्ष 2025 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ: बढ़ती उत्पादन क्षमता, लागत लाभ, निजी निवेश और सरकारी नीतियों को प्रोत्साहित करना, भारत के विनिर्माण क्षेत्र के विकास को गति दे रहे हैं, जो आने वाले वर्षों में दीर्घकालिक आर्थिक विस्तार का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।
विनिर्माण क्षेत्र हेतु सरकार की नीतियाँ:
- मेक इन इंडिया 2.0
- उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना
- उदारीकृत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI)
- स्टार्टअप इंडिया
- आत्मनिर्भर भारत अभियान
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones- SEZ)
- MSME इनोवेटिव स्कीम
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease Of Doing Business- EoDB)
- वस्तु एवं सेवा कर (Goods And Services Tax-GST) और कॉर्पोरेट कर में कटौती
भारत में विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ क्या हैं?
- पुरानी तकनीकें और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे पर निर्भरता से भारतीय निर्माताओं की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने तथा अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है।
- कुशल कार्यबल की कमी: विश्व बैंक के अनुसार, भारत के केवल 24% कार्यबल के पास जटिल विनिर्माण रोज़गारों के लिये आवश्यक कौशल है, जबकि अमेरिका में 52% और दक्षिण कोरिया में 96% कार्यबल के पास यह कौशल है।
- उच्च इनपुट लागत: भारतीय रिज़र्व बैंक [Reserve Bank Of India- RBI (2022)] के अनुसार, भारत में लॉजिस्टिक्स लागत वैश्विक औसत की तुलना में 14% अधिक है जो भारतीय विनिर्माण उद्योग की समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करती है।
- जटिल विनियामक वातावरण: यह भारत में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के इच्छुक व्यवसायों के लिये निवारक के रूप में कार्य करता है।
- भारत में भूमि अधिग्रहण एक जटिल प्रक्रिया है, नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम को वर्तमान तक विधायिका द्वारा पारित नहीं किया गया है।
- चीन से प्रतिस्पर्द्धा और आयात निर्भरता: चीन ने वर्ष 2023-2024 में भारत के परिधान और वस्त्रों के कुल आयात के लगभग 42%, मशीनरी के 40% तथा इलेक्ट्रॉनिक्स के 38.4% से अधिक की आपूर्ति की।
- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) के अनुसार, चीन विश्व का अग्रणी निर्माता बना हुआ है, जिसने वर्ष 2022 में वैश्विक विनिर्माण का लगभग 30% उत्पादन किया।
आगे की राह
- भारतीय विनिर्माण में उद्योग 4.0 की आवश्यकता: रिपोर्ट के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों (Industry 4.0 Technologies) के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में 25% हिस्सेदारी प्रदान कर सकता है।
- भारतीय निर्माता प्रौद्योगिकी में अपने परिचालन बजट का 35% निवेश करके डिजिटल परिवर्तन को तेज़ी से अपना रहे हैं तथा भविष्य में इसका और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता है।
- बुनियादी ढाँचे में निवेशः बुनियादी ढाँचे के मानक और पहुँच को बढ़ाने तथा लॉजिस्टिक्स में कमी से विनिर्माण उद्योग में निवेश एवं व्यावसायिक रुचि बढ़ सकती है।
- इसमें नए बाज़ारों में प्रवेश करने के इच्छुक व्यवसायों के लिये सहायता प्रदान करना या निर्यात-उन्मुख विनिर्माण (Export-Oriented Manufacturing) को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को लागू करना शामिल हो सकता है।
- निर्यातोन्मुख विनिर्माण को बढ़ावा देना: निर्यात-उन्मुख विनिर्माण के विकास को प्रोत्साहित करने से भारतीय व्यवसायों को नए बाज़ारों में प्रवेश करने और उनकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
- वित्तीय सहायता: अधिकांश MSME को निर्यात-संबंधित गतिविधियों हेतु ऋण प्राप्त करने के लिये अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। विनिर्माण क्षेत्र में SME की वित्त तक पहुँच बढ़ाने से उनकी वृद्धि और विकास में सहायता मिल सकती है।
- विनियमों को सुव्यवस्थित करना: विनियमों को सरल एवं सुव्यवस्थित करने से व्यवसायों पर बोझ कम करने और विनिर्माण क्षेत्र में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करने में सहायता मिल सकती है।
- कौशल विकास को प्रोत्साहन: प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिये अधिक अवसर प्रदान करने से विनिर्माण क्षेत्र में कुशल श्रम के अभाव को दूर करके, इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है।
- वियतनाम अपनी अपेक्षाकृत विस्तृत, सुशिक्षित और कुशल श्रम शक्ति के कारण वर्तमान में एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदल गया है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत हुई प्रगति के साथ-साथ भारत के विनिर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति का आकलन कीजिये। भारत के विनिर्माण क्षेत्र में होने वाली वृद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'आठ प्रमुख उद्योगों के सूचकांक' (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़) में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) प्रश्न. हाल ही में भारत में प्रथम 'राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र' का गठन कहाँ किये जाने के लिये प्रस्ताव दिया गया था? (2016) (a) आंध्र प्रदेश उत्तर: (a) प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल/पहलें की है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न.1 "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न. 2 सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |