भारत का फार्मा उद्योग | 12 Mar 2025

प्रिलिम्स के लिये:

फार्मास्युटिकल, धारा 3 (d), पेटेंट अधिनियम, 1970, जेनेरिक दवा, जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API), उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना, बल्क ड्रग पार्क योजना का प्रचार, गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP), आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM), mRNA वैक्सीन 

मेन्स के लिये:

भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग में अवसर और चुनौतियाँ। 

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) ने रेसिप्रोकल अमेरिकी टैरिफ को रोकने और अमेरिकी फार्मास्युटिकल बाज़ार में भारत का प्रभुत्त्व बनाए रखने के लिये अमेरिकी दवा आयात पर शून्य सीमा शुल्क का प्रस्ताव दिया है।

IPA शून्य आयात शुल्क की वकालत क्यों कर रहा है?

  • अमेरिकी बाज़ार का महत्त्व: अमेरिका भारत से प्रतिवर्ष 9 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के फार्मास्युटिकल फॉर्मूलेशन का आयात करता है, जो भारत के कुल फार्मा निर्यात का एक तिहाई है।
  • शून्य आयात शुल्क: भारत ने जीवन रक्षक दवाओं पर आयात शुल्क को कम कर दिया है। शून्य शुल्क नीति रेसिप्रोकल अमेरिकी टैरिफ का मुकाबला करने और निर्यात की सुरक्षा करने में मदद करती है।
    • न्यूनतम शुल्क से व्यापार संबंध मज़बूत होंगे और भारतीय फार्मा कंपनियों के खिलाफ अमेरिका के सख्त उपायों को रोका जा सकेगा, जैसे भारत के पेटेंट अधिनियम, 1970 में संशोधन कर उसकी धारा 3(d) को सरलीकृत करना। 
  • पेटेंट अधिनियम, 1970 में संशोधन: अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने भारत से पेटेंट अधिनियम, 1970 की धारा 3(d) को हटाने या सरलीकृत करने का आग्रह किया है, जो पेटेंटों की एवरग्रीनिंग को रोकता है।
    • संशोधित औषधियों के पेटेंट को आसान बनाने के लिये धारा 3(d) में संशोधन (पेटेंट की एवरग्रीनिंग) से भारतीय फार्मा कंपनियों को रिवर्स इंजीनियरिंग पर प्रतिबंध लगने और जेनेरिक दवाओं उत्पादन में विलंब होने का खतरा हो सकता है।

भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग की स्थिति क्या है?

  • परिचय: भारत विश्व स्तर पर औषधि उत्पादन में मात्रा के आधार पर तीसरे स्थान पर है तथा मूल्य के आधार पर 14वें स्थान पर है, तथा वैश्विक वैक्सीन मांग का 50% से अधिक तथा अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की 40% आपूर्ति करता है।
  • आकार: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये भारत का फार्मास्युटिकल बाज़ार 50 बिलियन अमरीकी डॉलर का है, जो सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.72% का योगदान देता है, और वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र, जिसका मूल्य वर्ष 2022 में 137 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है, का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचना है।
  • प्रमुख खंड:
    • जेनेरिक दवाइयाँ: भारत विश्व का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है, जो वैश्विक मांग का 20% पूरा करता है।
    • सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (API): भारत 500 से अधिक API का उत्पादन करता है, जो वैश्विक API बाजार में 8% का योगदान देता है।
    • चिकित्सा उपकरण: अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह बाज़ार 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगा।
  • विकास चालक: 
    • कम कीमत: भारतीय औषधियाँ पश्चिमी दवाओं की तुलना में काफी सस्ती हैं।
    • सरकारी सहायता : उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी नीतियाँ घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देती हैं।
    • मज़बूत अनुसंधान एवं विकास आधार: भारत में नवाचार को बढ़ावा देने वाले वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का एक बड़ा समूह है, उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में 64,480 पेटेंट फाइलिंग के साथ भारत अब पेटेंट आवेदनों के मामले में विश्व स्तर पर 6 वें स्थान पर है।
    • बढ़ती वैश्विक मांग: बढ़ती चिरकालिक बीमारियाँ और वृद्ध होती वैश्विक जनसंख्या, लागत प्रभावी औषधियों की मांग को बढ़ा रही हैं।
  • निर्यात: भारत 200 से अधिक देशों को दवाइयों का निर्यात करता है। वित्त वर्ष 24 में निर्यात 27.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • बायोसिमिलर और विशेष दवाओं की बढ़ती मांग के कारण भारत चिकित्सा उपकरणों के निर्यात में विश्व स्तर पर 12वें स्थान पर है।
  • सरकारी पहल: उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLI), बल्क ड्रग पार्क योजना, राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2023

नोट: API किसी दवा में मौजूद जैविक रूप से सक्रिय घटक होते हैं जिससे इच्छित चिकित्सीय लाभ मिलते हैं। ये किसी चिकित्सा स्थिति के उपचार या प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार प्रमुख तत्त्व होते हैं।

फार्मा उद्योग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

  • गुणवत्ता संबंधी मुद्दे: वर्ष 2022 में गाम्बिया में भारतीय कफ सिरप से हुई मौतों जैसी घटनाओं के कारण भारतीय दवाओं की गुणवत्ता पर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • नियामक बाधाएँ: विकसित हो रहे गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) एवं गुणवत्ता नियंत्रण विनियमों का अनुपालन महंगा है।
  • API आयात पर निर्भरता: भारत 70% API का आयात (मुख्य रूप से चीन से) करता है जिससे आपूर्ति शृंखला संबंधी कमज़ोरियाँ पैदा होती हैं।
  • मूल्य निर्धारण दबाव: आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) के अंतर्गत मूल्य नियंत्रण से फार्मा कंपनियों की लाभप्रदता प्रभावित होती है, जिससे उद्योग के नवाचार प्रोत्साहन में बाधा उत्पन्न होती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ (अत्यधिक परिष्कृत और अच्छी तरह से शोध किये गए उत्पाद) से प्रतिस्पर्द्धा बढ़ रही है जबकि वियतनाम एवं इंडोनेशिया विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहे हैं।
  • कौशल की कमी: जैव प्रौद्योगिकी, बायोसिमिलर और दवा संबंधी रिसर्च में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है।
    • उदाहरण के लिये, नवीन फार्मूलों के बजाय जेनरिक दवाओं पर निर्भरता से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित होती है।

आगे की राह

  • घरेलू API विनिर्माण: PLI 2.0, बल्क ड्रग पार्क, किण्वन-आधारित API एवं ग्रीन केमिस्ट्री से API उत्पादन में मज़बूती आने के साथ आत्मनिर्भरता और आपूर्ति स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है। 
  • उच्च मूल्य वाली दवा बाज़ारों का विस्तार: भारतीय कंपनियों को बढ़ते विशिष्ट चिकित्सा अवसरों का लाभ उठाने के क्रम में जीन थेरेपी, व्यक्तिगत चिकित्सा तथा mRNA और अगली पीढ़ी के टीकों में अनुसंधान एवं विकास का विस्तार करना चाहिये।
  • अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना: कर लाभ, अनुसंधान अनुदान, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), AI-संचालित औषधि नवाचार, नैदानिक ​​परीक्षणों में बिग डेटा तथा टेलीमेडिसिन के माध्यम से अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन मिलने के साथ नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
  • विनियामक एवं गुणवत्ता अनुपालन: बायोसिमिलर, नवीन औषधियों तथा सफल उपचारों के तीव्र अनुमोदन से बाज़ार में इनकी उपलब्धता में सुधार होगा।
    • दवा सुरक्षा निगरानी बढ़ाने से उपभोक्ता विश्वास एवं नियामक विश्वसनीयता बढ़ेगी।
  • वैश्विक बाज़ार में प्रवेश: व्यापार सौदों तथा विदेशी विनिर्माण के माध्यम से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका एवं आसियान को निर्यात का विस्तार करने से व्यापार बाधाएँ दूर होंगी तथा विकास को बढ़ावा मिलेगा।

निष्कर्ष

भारत के दवा उद्योग में निर्यात, सामर्थ्य और सरकारी सहायता के माध्यम से विकास की व्यापक संभावनाएँ हैं। हालांकि, इसमें API निर्भरता, विनियामक बाधाओं और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा जैसी चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये। अनुसंधान एवं विकास, घरेलू API उत्पादन एवं वैश्विक बाज़ार में उपस्थिति को मज़बूत करने से वैश्विक दवा क्षेत्र में भारत का निरंतर नेतृत्व सुनिश्चित होगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: 'विश्व की फार्मेसी' के रूप में भारत की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। इसमें योगदान देने वाले कारकों को बताते हुए इस क्षेत्र से संबंधित चुनौतियों पर प्रकाश डालिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)

  1. कुछ व्यक्तियों में आनुवंशिक पूर्ववृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोज़ीशन) का होना।
  2.   रोगों के उपचार के लिये वैज्ञानिकों (एंटिबॉयोटिक्स) की गलत खुराकें लेना।
  3.   पशुधन फार्मिंग प्रतिजैविकों का इस्तेमाल करना।
  4.   कुछ व्यक्तियों में चिरकालिक रोगों की बहुलता होना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स

Q. भारत सरकार दवा कंपनियों द्वारा दवा के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से कैसे बचाव कर रही है?  (2019)