डीप टेक के लिये भारत का महत्त्वाकांक्षी प्रयास | 09 Feb 2024
प्रिलिम्स के लिये:डीप टेक स्टार्टअप्स, डीप टेक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग मेन्स के लिये:डीप टेक स्टार्टअप्स और भारत |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
अंतरिम बजट प्रस्तुत करने के दौरान वित्तमंत्री ने अनुसंधान और विकास क्षेत्र की पहलों के लिये दीर्घावधि, अल्प लागत अथवा शून्य-ब्याज़ ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से 1 लाख करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की।
- उन्होंने रक्षा क्षेत्र में डीप-टेक क्षमताओं का विस्तार करने के लिये एक नए कार्यक्रम के शुभारंभ का आश्वासन दिया जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में डीप-टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक नीति तैयार की जाएगी। इस कार्यक्रम का शुभारंभ वर्षांत में किया जा सकता है।
डीप टेक क्या है?
- परिचय:
- डीप टेक अथवा डीप टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स व्यवसायों के एक वर्ग को संदर्भित करती है जो भौतिक इंजीनियरिंग नवाचार अथवा वैज्ञानिक खोजों व प्रगति के आधार पर नए उत्पाद विकसित करती हैं।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता, उन्नत सामग्री, ब्लॉकचेन, जैव-प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, ड्रोन, फोटोनिक्स तथा क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे गहन प्रौद्योगिकी क्षेत्र प्रारंभिक अनुसंधान से व्यावसायिक अनुप्रयोगों की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।
- डीप टेक की विशेषताएँ:
- प्रभाव: डीप टेक नवाचार बहुत मौलिक हैं और मौजूदा बाज़ार को बाधित करते हैं तथा एक नवीन विकास करते हैं। डीप टेक पर आधारित नवाचार अक्सर जीवन, अर्थव्यवस्था और समाज में व्यापक परिवर्तन लाते हैं।
- समयावधि और स्तर: प्रौद्योगिकी को विकसित करने और बाज़ार में उपलब्धता के लिये डीप टेक की आवश्यक समयावधि सतही प्रौद्योगिकी विकास (जैसे मोबाइल एप एवं वेबसाइट) से कहीं अधिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित होने में दशकों लग गए और यह अभी भी पूर्ण नहीं है।
- पूंजी: डीप टेक को अक्सर अनुसंधान और विकास, प्रोटोटाइप, परिकल्पना को मान्य करने एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिये प्रारंभिक चरणों में पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है।
डीप टेक क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना: डीप टेक जलवायु परिवर्तन, भुखमरी, महामारी, ऊर्जा तक पहुँच, सतत् आवागमन और साइबर सुरक्षा सहित जटिल वैश्विक मुद्दों का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ये नवाचार गंभीर सामाजिक तथा पर्यावरणीय चुनौतियों का आशाजनक समाधान प्रदान करते हैं।
- वैज्ञानिक उन्नति: डीप टेक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव-प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और अन्य क्षेत्रों के अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी संबंधी विकास शामिल है। इन क्षेत्रों में प्रगति मानव ज्ञान तथा समझ की सीमाओं में विस्तार करती है जिससे समग्र रूप से समाज को लाभ होता है।
- आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता: डीप टेक में निवेश के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा, अत्यधिक मूल्य वाली नौकरियों के सृजन तथा उद्यमशीलता को प्रोत्सहान प्रदान कर आर्थिक विकास की वृद्धि को गति प्रदान की जा सकती है। डीप टेक नवाचार में अग्रणी देश तथा उद्यम अन्य देशों से निवेश, प्रतिभा एवं सहयोग के अवसरों को आकर्षित कर वैश्विक बाज़ार में अपनी स्थिति को सशक्त करते हैं।
- आपदा प्रबंधन: डीप टेक समाधान आपदा के दौरान बचाव और तत्परता प्रयासों में योगदान करते हैं। उदाहरण के लिये AI-संचालित प्रिडिक्टिव मॉडल अधिक सटीकता के साथ तूफान तथा भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान करने में सहायता कर सकते हैं जिससे जोखिम की स्थिति में लोगों का बचाव करने तथा संसाधनों के अधिक कुशल उपयोग को सक्षम बनाया जा सकता है।
- आतंकवाद की रोकथाम: डीप टेक उन्नत अनुवीक्षण प्रणाली, बायोमेट्रिक पहचान तकनीक और पूर्वानुमानित विश्लेषण उपकरण के विकास को सक्षम बनाती है जो आतंकवाद से निपटने में सहायक हैं।
- ये प्रौद्योगिकियाँ विधिविरुद्ध गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने तथा उनको ट्रैक करने, आतंकवादी नेटवर्क को बाधित करने और भविष्य में होने वाले हमलों की रोकथाम करने में मदद करती हैं।
भारत के डीप टेक स्टार्टअप्स की स्थिति क्या है?
- बल और अवसर:
- भारत में एक बढ़ती प्रौद्योगिकी संस्कृति और अत्यधिक कुशल वैज्ञानिकों तथा निपुण अभियंताओं का एक बड़ा समूह मौजूद है। यह देश को डीप टेक समाधानों के विकास और व्यापक उपयोग में सहायता प्रदान करता है।
- वर्ष 2021 के अंत में भारत में 3,000 से अधिक डीप-टेक स्टार्टअप्स मौजूद थे जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग (ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स आदि जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों से संबंधित थे।
- NASSCOM के अनुसार भारत में डीप-टेक स्टार्टअप्स ने वर्ष 2021 में उद्यम क्षेत्र में 2.7 बिलियन अमरीकी डालर अर्जित किये तथा वर्तमान में देश के समग्र स्टार्टअप इकोसिस्टम में इनकी हिस्सेदारी 12% से अधिक है।
- पिछले दशक में भारत का डीप टेक इकोसिस्टम 53% बढ़ा है और वर्तमान में यह अमेरिका, चीन, इज़राइल व यूरोप जैसे विकसित बाज़ारों के समान है।
- भारत के डीप टेक स्टार्ट-अप में बंगलुरू का योगदान 25-30% है, इसके बाद दिल्ली-NCR (15-20%) और मुंबई (10-12%) का स्थान है।
- संभावित योगदान:
- भारत में डीप टेक की उन्नति, शीघ्र अपनाने, बौद्धिक संपदा साझा करने, स्वदेशी ज्ञान विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है।
- इससे प्रौद्योगिकियों, कुशल कार्यबल विकास, उद्यमशीलता और प्रौद्योगिकी निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
- डीप-टेक स्टार्ट-अप ड्रोन डिलीवरी एवं कोल्ड चेन मैनेजमेंट से लेकर जलवायु कार्रवाई और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
- भारत में डीप टेक की उन्नति, शीघ्र अपनाने, बौद्धिक संपदा साझा करने, स्वदेशी ज्ञान विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है।
सरकार डीप टेक स्टार्टअप्स के लिये पारिस्थितिकी तंत्र कैसे स्थापित कर रही है?
- सरकार परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी क्षेत्रों जैसे गतिशीलता, बैटरी भंडारण तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और नवाचार को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है।
- नेशनल मिशन ऑन ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज और राष्ट्रीय क्वांटम मिशन जैसी पहल इन प्रयासों के उदाहरण हैं।
- नीति रूपरेखा का विकास:
- डीप टेक्नोलॉजी में लगे व्यवसायों के लिये एक सहायक वातावरण बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए नियमों का एक सेट वर्ष 2023 में पूरा किया गया था। वर्तमान में सरकार की मंजूरी के लिये नेशनल डीप टेक स्टार्टअप पॉलिसी (NDTSP) की मांग की जा रही है।
- यह नीति उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग तथा प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है।
- नीति के उद्देश्य: NDTSP को प्रौद्योगिकी स्टार्टअप के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने और उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग करने के लिये एक अनुकूल मंच प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- प्रमुख फोकस क्षेत्रः NDTSP कई प्रमुख क्षेत्रों की रूपरेखा तैयार करता है जिन पर इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये ध्यान देने की आवश्यकता है:
- दीर्घकालिक वित्तपोषण के अवसर: डीप टेक स्टार्टअप्स को फलने-फूलने में सक्षम बनाने के लिये निरंतर वित्तीय सहायता हेतु तंत्र बनाना।
- बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था: डीप टेक्नोलॉजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये कर लाभ प्रदान करना।
- कर प्रोत्साहन: डीप टेक्नोलॉजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये कर लाभ प्रदान करना।
- अनुकूल नियामक ढाँचा: ऐसे नियम विकसित करना जो अनुपालन तथा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए गहन तकनीकी स्टार्टअप के विकास का समर्थन एवं सुविधा प्रदान करते हैं।
- मानक और प्रमाणपत्र: डीप टेक्नोलॉजी उत्पादों एवं सेवाओं में गुणवत्ता तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये उद्योग मानक और प्रमाणन निर्धारित करना।
- प्रतिभा पोषण: कुशल पेशेवरों के विकास में निवेश करना तथा गहन प्रौद्योगिकी नवाचार के लिये अनुकूल प्रतिभा को बढ़ावा देना।
- उद्योग-शिक्षा सहयोग: ज्ञान के आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये उद्योग, अनुसंधान संस्थानों एवं शैक्षिक प्रतिष्ठानों के बीच संबंधों को सुविधाजनक बनाना।
- इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को संबोधित करके NDTSP का लक्ष्य एक मज़बूत और टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र के लिये आधार तैयार करना है जो गहन तकनीकी स्टार्टअप परिदृश्य में नवाचार एवं विकास को बढ़ावा देता है।
- डीप टेक्नोलॉजी में लगे व्यवसायों के लिये एक सहायक वातावरण बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए नियमों का एक सेट वर्ष 2023 में पूरा किया गया था। वर्तमान में सरकार की मंजूरी के लिये नेशनल डीप टेक स्टार्टअप पॉलिसी (NDTSP) की मांग की जा रही है।
- राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) कार्यान्वयन: सरकार ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान उन्नति के लिये विभिन्न क्षेत्रों के बीच तालमेल स्थापित करना है।
- यह अनुमान लगाया गया है कि निजी क्षेत्र से प्राप्त NRF के बजट का लगभग 70% प्रदान करेगा, जो पाँच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपए होगा।
डीप टेक परियोजनाओं के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?
- निवेश पर उच्च जोखिम और दीर्घकालिक रिटर्न: डीप टेक परियोजनाओं को प्राय: अनुसंधान और विकास में महत्त्वपूर्ण अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है, साथ ही बाज़ार तक पहुँचने एवं राजस्व अर्जित करने में वर्षों या दशकों का समय लग सकता है। यह उन्हें पारंपरिक निवेशकों के लिये कम आकर्षक बनाता है,परिणामस्वरूप यह कम जोखिम वाले और कम अवधि वाले उद्यम के रूप में निर्मित होते हैं।
- विशिष्ट प्रतिभा की कमी: डीप टेक परियोजनाओं के लिये अत्यधिक कुशल और अनुभवी शोधकर्त्ताओं, इंजीनियरों एवं उद्यमियों की आवश्यकता होती है, जिनकी आपूर्ति कम है तथा मांग अधिक है। विशेष रूप से उभरते बाज़ारों में डीप टेक स्टार्टअप के लिये ऐसी प्रतिभा को ढूँढना और बनाए रखना कठिन तथा महँगा हो सकता है।
- बाज़ार की तैयारी का अभाव: डीप टेक परियोजनाओं को नियामक, नैतिक, सामाजिक या पर्यावरणीय बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जो उनकी स्वीकार्यता और स्केलेबिलिटी को सीमित करते हैं। उन्हें संभावित ग्राहकों तथा हितधारकों को उनके समाधानों के मूल्य एवं व्यवहार्यता के बारे में शिक्षित व समझाने की भी आवश्यकता हो सकती है, जो जटिल और अपरिचित हो सकते हैं।
- भारत में अपर्याप्त अनुसंधान निधि: 2% GDP आवंटन के लक्ष्य के बावजूद भारत में अपर्याप्त अनुसंधान निधि बनी हुई है। जबकि अनुसंधान एवं विकास पर पूर्ण खर्च बढ़ गया है, सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष अनुपात में गिरावट आई है, जो वर्तमान में 0.65% है, जो वैश्विक औसत 1.8% से काफी कम है।
- यह वित्तीय कमी वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों के साथ भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बाधित करती है, जो महत्त्वपूर्ण अनुसंधान गतिविधियों के लिये समर्थन में कमी की चिंताजनक प्रवृत्ति का संकेत देती है।
- वैज्ञानिक समुदाय के भीतर संदेह: सरकार के प्रयासों के बावजूद, वैज्ञानिक समुदाय के भीतर संदेह बरकरार है। कई लोग अनुसंधान के वित्तपोषण के लिये केवल निजी क्षेत्र पर निर्भर रहने की प्रभावशीलता पर संदेह करते हैं। उनका तर्क है कि सरकारी फंडिंग महत्त्वपूर्ण बनी हुई है और निजी निवेश की उम्मीदें अत्यधिक आशावादी हो सकती हैं।
- वित्तीय अपर्याप्तता: नवाचार पर सरकार के फोकस के बावजूद, प्रमुख विभागों के लिये बजटीय वृद्धि मामूली है। उदाहरणतः वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और अंतरिक्ष विभाग में मामूली वृद्धि देखी जा रही है, जबकि अन्य को बजट में कटौती का सामना करना पड़ रहा है।
- नौकरशाही बाधाएँ: धन उपलब्ध होने पर भी, देरी और नौकरशाही बाधाएँ अक्सर उनके प्रभावी वितरण में बाधा बनती हैं। जटिल प्रक्रियाएँ परियोजना के वित्तपोषण में रुकावट उत्पन्न करती हैं, जिससे अनुसंधान प्रशासनिक प्रगति में बाधित होती है।
आगे की राह
- अनुसंधान निधि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका में वृद्धि: हाल की सरकारी पहल अनुसंधान एवं विकास निवेश को बढ़ावा देने के लिये निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने की दिशा में बदलाव का सुझाव देती है। सिर्फ सार्वजनिक वित्त पोषण की सीमाओं को स्वीकार करते हुए, उद्योग, अनुसंधान संस्थानों और शैक्षिक निकायों के बीच सहयोग बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं।
- निधियों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना: 1 लाख करोड़ रुपए के कोष का उद्देश्य अनुसंधान और विकास में लगे स्टार्टअप तथा निजी क्षेत्र के उद्यमों के लिये प्रारंभिक वित्त पोषण प्रदान करना है।
- हालाँकि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि आवंटित निधि का उचित उपयोग हो, समय पर धनराशि जारी करने का भार भी उठाया जाना चाहिये।
- बौद्धिक संपदा अधिकारों को सुदृढ़ बनाना: डीप टेक स्टार्टअप अपने नवाचारों की रक्षा करने और प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिये अपनी बौद्धिक संपदा (IP) पर विश्वास करते हैं। सरकार IP पंजीकरण तथा प्रवर्तन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित एवं सरल बना सकती है व IP से संबंधित मामलों पर गहन तकनीकी स्टार्टअप को अधिक जागरूकता और सहायता प्रदान कर सकती है।
- निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत भी गहन तकनीकी स्टार्टअप के बीच IP निर्माण तथा व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत कर सकते हैं।
- मानव पूंजी और प्रतिभा पाइपलाइन का निर्माण: सरकार, निजी क्षेत्र तथा शिक्षा जगत गहन तकनीकी शिक्षा एवं प्रशिक्षण की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं, एवं गहन तकनीकी प्रतिभाओं हेतु एक-दूसरे से जुड़ने, सहयोग करने व सीखने के अधिक अवसर उत्पन्न कर सकते हैं।
- सरकार भारत में विदेशी तकनीकी प्रतिभाओं की गतिशीलता और आप्रवासन की सुविधा भी प्रदान कर सकती है, तथा उन्हें भारत में काम करने व रहने के लिये अधिक आर्थिक प्रोत्साहन एवं लाभ भी प्रदान कर सकती है।
निष्कर्ष:
अनुसंधान एवं विकास के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के फंड की सरकार की घोषणा, साथ ही डीप टेक क्षमताओं को मज़बूत करने की पहल, भारत की नवाचार यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण समय का संकेत देती है। हालाँकि राह में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं जिन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है।
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अटल नवप्रवर्तक (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019) (a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. कोविड-19 महामारी ने विश्वभर में अभूतपूर्व तबाही उत्पन्न की है। तथापि, इस संकट पर विजय पाने के लिये प्रौद्योगिकीय प्रगति का लाभ स्वेच्छा से लिया जा रहा है। इस महामारी के प्रबंधन के सहायतार्थ प्रौद्योगिकी की खोज कैसे की गई, उसका एक विवरण दीजिये। (2020) |