भारत को आंतरिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता | 19 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 355, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो,राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, अनुच्छेद 370,भारतीय तटरक्षक बल, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी

मेन्स के लिये:

आंतरिक सुरक्षा ढाँचा, भारत के समक्ष प्रमुख सुरक्षा चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

जैसे-जैसे भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहा है, वैसे-वैसे एक व्यापक आंतरिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता तेजी से स्पष्ट होती जा रही है। हाल के घटनाक्रम राष्ट्रीय एकता और स्थिरता को बनाए रखने के लिये आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की आवश्यकता को उजागर करते हैं।

भारत के लिये आंतरिक सुरक्षा योजना की आवश्यकता और आगे की राह क्या है?

  • राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत (NSD): देश में आंतरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिये एक NSD होना चाहिये। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड ने इन प्रारूपों पर कार्य किया है, लेकिन उन्हें कभी स्वीकृति नहीं मिली।
    • आंतरिक सुरक्षा के लिये एक सुसंगत दृष्टिकोण, मूलतः सरकार में बदलाव के दौरान, रखना महत्त्वपूर्ण है।
    • यह नीतिगत निर्णयों और रणनीतिक कार्रवाइयों का मार्गदर्शन करेगा, तदर्थ प्रतिक्रियाओं को कम करेगा तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दों से निपटने हेतु सामंजस्य में सुधार करेगा। 
  • मंत्रालय की आंतरिक सुरक्षा: गृह मंत्रालय गलत तरीके से कार्य करता है, जिससे आंतरिक सुरक्षा मामलों में विलंब होता है और उस पर कम ही ध्यान दिया जाता है। आंतरिक सुरक्षा को स्वतंत्र रूप से संचालित करने के लिये एक युवा, कनिष्ठ मंत्री को नियुक्त करने की आवश्यकता है।
    • भारत के संविधान में अनुच्छेद 355 के अनुसार, संघ प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के अनुसार कार्य करे।
  • जम्मू-कश्मीर में हालिया मुद्दे: गृह मंत्री का दावा है कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के पश्चात् से आतंकवादी घटनाओं में 66% की कमी आई है, लेकिन जम्मू में हुए हालिया हमलों से पता चलता है कि परिस्थितियाँ अभी सामान्य से दूर है।
    • सरकार को सुरक्षा ग्रिड को पुनर्गठित करने, जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने और पाकिस्तानी डीप स्टेट के उद्देश्यों को संबोधित करने के लिये विधानसभा चुनाव कराने की आवश्यकता है।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र को स्थिर करना: प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर को "हमारे दिल का टुकड़ा" कहकर संबोधित किया है, हालाँकि इस क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना जारी है।
    • नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- इसाक-मुइवा (NSCN-IM) की अलग ध्वज और संविधान की मांग के कारण विद्रोही नागाओं के साथ वर्ष 2015 का फ्रेमवर्क समझौता पूरी तरह से साकार नहीं हो पाया है।
    • सरकार को युद्धविराम समझौते का सख्ती से क्रियान्वयन सुनिश्चित करने और जबरन वसूली तथा जबरन भर्ती जैसी विद्रोही गतिविधियों को रोकने की आवश्यकता है।
    • गृह मंत्रालय द्वारा बहुल-जातीय शांति समिति के गठन के बावजूद मणिपुर अभी भी जातीय संघर्षों और कतिपय हिंसा से जूझ रहा है।
      • अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से इन मुद्दों पर ध्यान दें।
    • इसके अतिरिक्त अवैध प्रवास, मादक पदार्थों की तस्करी और हथियारों की तस्करी जैसी समस्याओं से निपटने के लिये व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी।
  • नक्सल समस्या: गृह राज्य मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि "राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना" के कारण वामपंथी उग्रवाद (LWE  हिंसा तथा उसके भौगोलिक प्रभाव में उल्लेखनीय कमी आई है।
    • वर्ष 2010 से हिंसा और मौतों में 73% की कमी आई है, LWE से संबंधित हिंसा की रिपोर्ट करने वाले पुलिस स्टेशनों की संख्या में भी कमी आई है।
    • नक्सलियों के पीछे हटने के बाद सरकार के लिये यह समय है कि वह उन्हें एकतरफा युद्धविराम की पेशकश करे, उन्हें बातचीत के लिये राजी करे, उनकी शिकायतों का समाधान करे और उन्हें सामाजिक मुख्यधारा में एकीकृत करने का प्रयास करे।
    • नक्सलवाद से निपटने की रणनीतियों में सुरक्षा उपाय, विकास परियोजनाएँ और कल्याणकारी पहल शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप संबंधित घटनाओं में कमी आई है।
  • आसूचना और अन्वेषण अभिकरण: आसूचना ब्यूरो (IB) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के पुनर्गठन की आवश्यकता है। आसूचना ब्यूरो की स्थापना वर्ष 1887 में एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से की गई थी। राजनीतिक लाभ हेतु आसूचना के दुरुपयोग की रोकथाम करने के लिये इसे एक सांविधिक दर्जा दिये जाने का उचित समय है। 
    • CBI की स्थापना वर्ष 1963 में एक प्रस्ताव के माध्यम से की गई थी और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के अंतर्गत इसे जाँच करने की शक्ति प्रदान की गई है। 
      • यह एक असंगत व्यवस्था है और संसदीय समिति की 24वीं रिपोर्ट में विधिक अधिदेश, बुनियादी ढाँचे तथा संसाधनों के संदर्भ में CBI को सुदृढ़ करने की अनुशंसा की गई थी।
  • राज्य पुलिस बलों में सुधार: औपनिवेशिक युग के पुलिस मॉडल की सभी समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिये और साथ समुदाय की ज़रूरतों के अनुरूप इसमें सुधार करने की आवश्यकता है।
    • लोगों के विश्वास और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये राज्य पुलिस की छवि को "शासक की पुलिस" से "जनमानस की पुलिस" में परिवर्तित की जानी चाहिये।
    • संबद्ध विषय में विश्व में किये गए सुधारों से सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने से पुलिसिंग मानकों का आधुनिकीकरण और सुधार हो सकता है।
  • केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल: दस लाख से अधिक कर्मियों वाले केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) को अनियोजित विस्तार, अव्यवस्थित तैनाती, अपर्याप्त प्रशिक्षण, अनुशासन मानकों का घटता स्तर, शीर्ष अधिकारी चयन हेतु अस्पष्ट मानदंड और कैडर एवं अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के बीच संघर्ष जैसी आंतरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
    • सरकार को इन समस्याओं के दीर्घकालिक समाधान के लिये एक उच्चस्तरीय आयोग की नियुक्ति करनी चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी: उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग से देश में पुलिस बल को मदद मिल सकती है। वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये नवीनतम प्रौद्योगिकी की सिफारिश करने के लिये एक उच्चस्तरीय प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना करना महत्त्वपूर्ण है।
    • आंतरिक संसक्ति को सुव्यवस्थित कर और सुरक्षा मुद्दों को संबोधित कर, देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना शक्ति प्रदर्शन कर सकता है।

आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये राज्य ने क्या उपाय किये हैं?

  • आतंकवाद निरोधक प्रयास: 2008 के मुंबई हमलों के बाद, आतंकवाद-रोधी अभियानों पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिसमें अनुच्छेद 370 को समाप्त करना और जम्मू-कश्मीर में रणनीतिक अभियान शामिल हैं।
  • पूर्वोत्तर उग्रवाद प्रबंधन: विकास और कूटनीति के संयोजन के माध्यम से सरकार ने पूर्वोत्तर में उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिये काम किया है।
  • वामपंथी उग्रवाद से निपटना: उन्नत रणनीति और समन्वय से नक्सलवाद और संबंधित गतिविधियों से निपटने में सुधार हुआ है।
    • CAPF को उग्रवाद से अधिक प्रभावी ढंग से निपटने के लिये सुसज्जित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
  • सीमा प्रबंधन: सीमावर्ती क्षेत्रों में बाड़ लगाने और विकास सहित सीमा सुरक्षा को बेहतर बनाने में महत्त्वपूर्ण संसाधनों का निवेश किया गया है।
    • न केवल सीमाओं को सुरक्षित करने के प्रयास किये जा रहे हैं, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास और संपर्क को बेहतर बनाने के लिये भी प्रयास किये जा रहे हैं। विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के साथ मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी की आशंका वाली सीमाओं के प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
  • संस्थागत ढाँचे का समर्थन: आंतरिक सुरक्षा से जुड़े संस्थानों, जैसे पुलिस बल और CAPF को बेहतर संसाधन, तकनीक और प्रशिक्षण दिया गया है। साइबर अपराध, महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को रोकने और नए युग के अपराधों से निपटने सहित उभरते खतरों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
    • गृह मंत्रालय, 2023-24 के लिये लगभग 200,000 करोड़ रुपए के बजट के साथ, आंतरिक सुरक्षा के लिये नोडल एजेंसी के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो लगभग दस लाख CAPF कर्मियों की देखरेख करता है और राज्य पुलिस बलों के माध्यम से राष्ट्रीय सुरक्षा प्रयासों का समर्थन करता है।

आंतरिक सुरक्षा में शामिल प्रमुख अधिनियम और संस्थाएँ क्या हैं?

  • वैधानिक ढाँचा: प्रमुख अधिनियमों में दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियम (1973), गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) (1967), राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (1980), धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) (2002) और सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के उद्देश्य से बनाए गए विभिन्न अन्य कानून शामिल हैं।
  • संस्थाएँ एवं एजेंसियाँ: 
    • गृह मंत्रालय: आंतरिक सुरक्षा के लिये जिम्मेदार केंद्रीय एजेंसी जिसके पास पर्याप्त बजट और अनेक विभाग हैं।
    • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA): राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम 2008 के तहत स्थापित। यह भारत में आतंकवाद और संबंधित अपराधों की जाँच करने वाली प्राथमिक संघीय एजेंसी है।
      • यह राज्य-पार संबंधों वाले आतंकवाद, अवैध तस्करी और अन्य गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों को संभालता है।
      • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (संशोधन) अधिनियम 2019 ने मानव तस्करी, नकली मुद्रा, प्रतिबंधित हथियार, विस्फोटक पदार्थ और साइबर आतंकवाद को शामिल करने के लिये इसके अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया।
    • आसूचना ब्यूरो: इसकी स्थापना 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा की गई थी, खुफिया ब्यूरो (Director of Intelligence Bureau - DIB) का निदेशक आमतौर पर देश का सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी होता है और गृह मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक उसकी सीधी पहुँच होती है।
    • बहु-एजेंसी केंद्र (MAC): गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा इसे सुरक्षा संबंधी जानकारी एकत्र करने और साझा करने के लिये 24x7 संचालित करने हेतु सशक्त बनाया गया है।
    • राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड: NATGRID एक आईटी प्लेटफॉर्म है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आतंकवाद का मुकाबला करने में सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता के लिए बनाया गया है।
      • यह आतंकवादी गतिविधियों पर नजर रखने और राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की पूर्ति के लिये रेलवे, पुलिस, चोरी के वाहन, आव्रजन, एयरलाइंस, पासपोर्ट, वाहन स्वामित्व, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन डेटा आदि जैसे विभिन्न डेटाबेस को जोड़ता है।
    • आतंकवाद के वित्तपोषण का प्रतिरोध (CFT) सेल: गृह मंत्रालय का CFT प्रकोष्ठ आतंकवाद के वित्तपोषण और जाली भारतीय मुद्रा नोटों से निपटने संबंधी नीतिगत मामलों को संभालता है।
      • राज्यों ने आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिये विशेष बल, आतंकवाद निरोधक दस्ते (Anti-Terrorism Squad - ATS) का गठन किया है तथा राज्यों की सहायता के लिये विभिन्न स्थानों पर केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (National Security Guards - NSG) को भी तैनात किया गया है।

निष्कर्ष:

आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये, भारत को एकीकृत राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत अपनाना चाहिये, अपने सुरक्षा संस्थानों को सुव्यवस्थित करना चाहिये और उन्नत प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करना चाहिये। क्षेत्रीय स्थिरता को मजबूत करना और कानून प्रवर्तन को आधुनिक बनाना उभरते खतरों के लिये एक व्यापक तथा अनुकूल प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेगा। एक सुरक्षित और लचीले राष्ट्र के लिये बेहतर समन्वय तथा रणनीतिक योजना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के आंतरिक सुरक्षा ढाँचे की वर्तमान स्थिति का आकलन कीजिये। आंतरिक सुरक्षा के प्रभावी प्रबंधन के लिये किन प्रमुख चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिये?

और पढ़ें: NSA कार्यालय एवं देश के सुरक्षा ढाँचे का पुनर्गठन

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत के समक्ष आने वाली आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियुक्त केंद्रीय खुफिया और जाँच एजेंसियों की भूमिका बताइये। (2023)

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत के पूर्वी भाग में वामपंथी उग्रवाद के निर्धारक क्या हैं? प्रभावित क्षेत्रों में खतरों के प्रतिकारार्थ भारत सरकार, नागरिक प्रशासन और सुरक्षा बलों को किस सामरिकी को अपनाना चाहिये? (2020)