अवसंरचना परियोजनाओं को सरकार द्वारा प्रोत्साहन | 07 Aug 2024
प्रिलिम्स के लिये:अवसंरचना परियोजना, पूंजीगत व्यय, डिजिटल डिवाइड, निवेश मॉडल के प्रकार, साइबर सुरक्षा, डिजिटल और सामाजिक अवसंरचना, डिजिटल इंडिया मुख्य परीक्षा के लिये:अवसंरचना विकास के लिये सरकारी पहल, भारत में अवसंरचना विकास की चुनौतियाँ, भारत में अवसंरचना विकास के लिये उठाए जा सकने वाले कदम। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत आठ राष्ट्रीय हाई स्पीड कॉरिडोर परियोजनाओं को मंजूरी दी है।
- इन परियोजनाओं से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 4.42 करोड़ दैनिक रोजगार सृजित होने की उम्मीद है।
स्वीकृत आठ राष्ट्रीय हाई स्पीड कॉरिडोर परियोजनाएँ कौन-सी हैं?
कॉरिडोर परियोजनाएँ |
निवेश मॉडल |
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बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT) |
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हाइब्रिड ऐन्युइटी मॉडल (HAM) |
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इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC) मॉडल |
PPP मॉडल के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) मॉडल: PPP सार्वजनिक परिसंपत्तियों और/या सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान के लिये सरकार एवं निजी क्षेत्र के बीच एक व्यवस्था है। PPP बड़े पैमाने पर सरकारी परियोजनाओं, जैसे कि सड़क, पुल या अस्पताल को निजी वित्तपोषण से आपूर्ति करने की अनुमति देता है।
- PPP मॉडल के प्रकार:
मॉडल |
विवरण |
निर्माण-संचालन-हस्तांतरण (BOT) |
एक निजी भागीदार डिज़ाइन करता है, बनाता है, संचालित (अनुबंधित अवधि के दौरान) करता है, और सुविधा को सार्वजनिक क्षेत्र में वापस स्थानांतरित करता है। निजी क्षेत्र उपयोगकर्त्ताओं से राजस्व एकत्र करते हुए परियोजना का वित्तपोषण, निर्माण और रखरखाव करता है। NHAI द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएँ BOT मॉडल का एक प्रमुख उदाहरण हैं। |
बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO) |
इस मॉडल में, नवनिर्मित सुविधा का स्वामित्व निजी पक्ष के पास होता है। पारस्परिक रूप से सहमत नियमों और शर्तों पर, सार्वजनिक क्षेत्र का भागीदार परियोजना द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं को ‘खरीदने’ के लिये सहमत होता है। |
बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOOT) |
BOT के इस प्रकार में, समझौता की गई समयावधि के बाद, परियोजना को सरकार या निजी ऑपरेटर को हस्तांतरित कर दिया जाता है। BOOT मॉडल का प्रयोग राजमार्गों और बंदरगाहों के विकास के लिये किया जाता है। |
बिल्ड-ओन-लीज़-ट्रांसफर (BOLT) |
इस दृष्टिकोण में, सरकार एक निजी इकाई को एक सुविधा बनाने (और संभवतः इसे डिज़ाइन करने), सुविधा का स्वामित्व लेने, सार्वजनिक क्षेत्र को सुविधा पट्टे पर देने और पुनः पट्टे की अवधि के अंत में सुविधा का स्वामित्व सरकार को हस्तांतरित करने की रियायत देती है। |
डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट (DBFO) |
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लीज़-डेवलप-ऑपरेट (LDO) |
सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई नव निर्मित अवसंरचना सुविधा का स्वामित्व बरकरार रखती है और निजी प्रमोटर के साथ लीज़ समझौते के अनुसार भुगतान प्राप्त करती है। इसका पालन अधिकतर हवाई अड्डे की अवसंरचना विकास में किया जाता है। |
हाइब्रिड ऐन्युटी मॉडल (HAM) |
यह EPC और BOT-ऐन्युटी मॉडल का मिश्रण है। डिज़ाइन के अनुसार, सरकार पहले पाँच वर्षों में वार्षिक भुगतान (ऐन्युटी) के माध्यम से परियोजना लागत का 40% योगदान देगी। शेष भुगतान निर्मित परिसंपत्तियों और डेवलपर के प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा। |
इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC) मॉडल |
इस मॉडल के तहत, सरकार सामग्री की खरीद और निर्माण सहित सभी लागतों को वहन करती है। निजी क्षेत्र की भागीदारी इंजीनियरिंग विशेषज्ञता प्रदान करने तक सीमित है। इस मॉडल की एक प्रमुख चुनौती सरकार पर उच्च वित्तीय बोझ है। |
अवसंरचना विकास के लिये सरकार का रोडमैप क्या है?
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) पर ध्यान: सरकार ने PPP निवेश मॉडल के माध्यम से परियोजना विकास पर ज़ोर दिया है।
- यह मॉडल निजी भागीदारों को निवेश जोखिम उठाने और राजमार्गों के निर्माण एवं रखरखाव का प्रबंधन करने की अनुमति देता है।
- रियायत समझौतों में संशोधन: सरकार ने निजी निवेशकों के लिये इसे और अधिक आकर्षक बनाने हेतु मॉडल रियायत समझौते में संशोधन किया है, जिसमें उदार मुआवज़ा (Liberal compensation), विस्तारित रियायत अवधि व समापन भुगतान शामिल हैं।
- पहले की रियायत समझौता प्रणाली में निश्चित मुआवज़ा, छोटी रियायत अवधि, कम समापन भुगतान और सख्त नियामक निरीक्षण शामिल थे, जिससे यह निजी निवेशकों के लिये कम आकर्षक हो गया था।
- निर्माण सहायता की शुरूआत: एक नवीन 'निर्माण सहायता' तंत्र भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को भौतिक प्रगति के आधार पर दस किस्तों में कुल परियोजना लागत का 40% तक भुगतान करने में सक्षम करेगा, जिससे निजी डेवलपर्स के लिये वित्तीय व्यवहार्यता में वृद्धि होगी।
- इससे पहले NHAI केवल इक्विटी सहायता प्रदान करता था, जिसके परिणामस्वरूप नकदी प्रवाह की चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं क्योंकि डेवलपर्स को परियोजना पूरी होने से पहले अपनी स्वयं की निधि पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता था।
- हाई स्पीड कॉरिडोर परियोजनाओं का आर्थिक प्रभाव: इन परियोजनाओं का उद्देश्य कनेक्टिविटी में सुधार तथा परिवहन लागत में कमी द्वारा क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना है (विशेष रूप से पश्चिम बंगाल एवं पूर्वोत्तर राज्यों में)।
- भारत में राजमार्ग निर्माण के क्षेत्र में प्रगति:
- राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई वर्ष 2013-14 के 0.91 लाख किमी. से बढ़कर वर्ष 2024 में 1.46 लाख किमी. हो गई है।
- राष्ट्रीय राजमार्गों का औसत वार्षिक निर्माण वर्ष 2004-14 के लगभग 4,000 किमी. से लगभग 2.4 गुना बढ़कर वर्ष 2014-24 में लगभग 9,600 किमी. हो गया है।
- निजी निवेश सहित राष्ट्रीय राजमार्गों में कुल पूंजी निवेश वर्ष 2013-14 के 50,000 करोड़ रुपए से 6 गुना बढ़कर वर्ष 2023-24 में लगभग 3.1 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
- सरकार ने सुसंगत मानकों, उपयोगकर्त्ता सुविधा और रसद/लॉजिस्टिक्स दक्षता पर ध्यान केंद्रित करते हुए कॉरिडोर-आधारित राजमार्ग अवसंरचना विकास दृष्टिकोण अपनाया है।
संबंधित बुनियादी अवसंरचना विकास योजनाएँ
- पीएम गति शक्ति योजना: इसका उद्देश्य बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की एकीकृत योजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित करना है, जिसमें ज़मीनी स्तर पर कार्यों में तेज़ी लाना, लागत बचाना और रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना है।
- भारतमाला योजना: यह सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के तहत शुरू किया गया एक व्यापक कार्यक्रम है।
- भारतमाला के प्रथम चरण की घोषणा वर्ष 2017 में की गई थी और इसे वर्ष 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब इसकी समयसीमा बढ़ाकर वर्ष 2027-28 तक कर दी गई है।
- इसमें पहले से निर्मित बुनियादी अवसंरचना की बढ़ी हुई प्रभावशीलता, बहुविध एकीकरण, निर्बाध आवागमन के लिये बुनियादी अवसंरचना की कमियों को दूर करने एवं राष्ट्रीय व आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP): यह पूरे देश में विश्व स्तरीय आधारिक संरचना उपलब्ध कराने तथा सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं का एक समूह है।
- सागरमाला परियोजना: इसे वर्ष 2015 में स्वीकृति दी गई थी जिसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा के साथ बंदरगाह की बुनियादी अवसंरचना का विकास करना है।
- उड़े देश का आम नागरिक (UDAN): इस योजना का उद्देश्य भारत के दूरस्थ और स्थानीय क्षेत्रों में हवाई संपर्क में सुधार करना, आम लोगों को सस्ती दरों पर हवाई यात्रा करने में सक्षम बनाना और विमानन क्षेत्र में रोज़गार सृजन करना है।
भारत में बुनियादी अवसंरचना विकास की चुनौतियाँ क्या हैं?
- भौतिक अवसंरचना: भारत को भौतिक अवसंरचना के निर्माण में भूमि अधिग्रहण सहित कई महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें अक्सर जटिल पुनर्वास और मुआवजे के मुद्दे शामिल होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, सीमित सरकारी संसाधनों तथा आर्थिक एवं नियामक बाधाओं के कारण निजी निवेश में बाधा उत्पन्न होने के कारण ऐसी बड़े पैमाने की परियोजनाओं का वित्तपोषण कठिन है।
- इसके अलावा, जटिल बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता का भी अभाव है।
- राजनीतिक और विनियामक जोखिम: इसमें परियोजना चक्र के दौरान आवश्यक विभिन्न अनुमोदन, सामुदायिक विरोध, विनियमों में परिवर्तन और अनुबंध शर्तों का उल्लंघन शामिल हैं।
- भारत में, संविदात्मक समझौतों के तहत सरकारी भुगतान से इंकार करने से भविष्य के निवेश निर्णयों पर असर पड़ने की संभावना देखी जाती है।
- भौगोलिक चुनौतियाँ: भारत की विविध स्थलाकृति जिसमें पहाड़, नदियाँ और तटीय क्षेत्र शामिल हैं, अद्वितीय इंजीनियरिंग चुनौतियाँ प्रस्तुत करती हैं। इसके अतिरिक्त, चक्रवात और बाढ़ जैसी चरम मौसम की स्थितियाँ परियोजनाओं को बाधित कर सकती हैं तथा लागत बढ़ा सकती हैं।
- भ्रष्टाचार और अकुशलता: नौकरशाही की लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी अक्सर परियोजनाओं में देरी, लागत में वृद्धि तथा परियोजनाओं की खराब गुणवत्ता का कारण बनती है।
- नीतिगत असंगतियाँ: परस्पर विरोधी नीतियाँ और विनियमन अक्सर निवेशकों व डेवलपर्स के लिये अनिश्चित वातावरण बनाते हैं, जिससे निजी भागीदारी हतोत्साहित होती है।
- डिजिटल डिवाइड: भारत को अपनी डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को विकसित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक सीमित पहुँच के कारण डिजिटल डिवाइड काफी अधिक है।
- प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग से साइबर सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं, जिसके लिये मज़बूत विनियमन और बुनियादी अवसंरचना की आवश्यकता होती है।
- इसके अतिरिक्त, डिजिटल अवसंरचना क्षेत्र में विभिन्न हितधारकों के बीच मानकीकरण और समन्वय का अभाव उपयोगकर्त्ता के अनुभव को बाधित कर सकता है साथ ही विकास एवं नवाचार को बाधित कर सकता है।
भारत में बुनियादी अवसंरचना विकास हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- सामाजिक बुनियादी अवसंरचना में निवेश:
- शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे सामाजिक बुनियादी अवसंरचना में निवेश से कार्यबल की उत्पादकता बढ़ सकती है, मृत्यु दर एवं कुपोषण की दर कम हो सकती है, सामाजिक गतिशीलता बढ़ सकती है तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
- ये निवेश अधिक मज़बूत, अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था और समग्र विकास को समर्थन प्रदान करते हैं।
- शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे सामाजिक बुनियादी अवसंरचना में निवेश से कार्यबल की उत्पादकता बढ़ सकती है, मृत्यु दर एवं कुपोषण की दर कम हो सकती है, सामाजिक गतिशीलता बढ़ सकती है तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) में वृद्धि:
- सरकार बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण, डिज़ाइन, निर्माण और संचालन के लिये निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी कर सकती है।
- बेहतर परियोजना नियोजन और कार्यान्वयन:
- सरकार परियोजना नियोजन एवं कार्यान्वयन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परियोजनाएँ समय पर और बजट के भीतर पूरी हो जाएं।
- नवीन वित्तपोषण समाधानों का कार्यान्वयन:
- सरकार बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये अतिरिक्त धन जुटाने हेतु बुनियादी अवसंरचना बाॅण्ड जैसे नवीन वित्तपोषण समाधानों पर विचार कर सकती है।
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहित करना:
- सरकार नियमों को आसान बना सकती है और बुनियादी अवसंरचना के विकास में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान कर सकती है।
- मानव पूंजी का निर्माण:
- बुनियादी अवसंरचना के विकास को आगे बढ़ाने के लिये सरकार को रोज़गार प्रशिक्षण और प्रशिक्षुता में निवेश के माध्यम से मानव पूंजी के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये, बुनियादी अवसंरचना के अनुसंधान एवं नवाचार का समर्थन करना चाहिये तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिये। इन पहलों का समर्थन करने वाली प्रमुख योजनाओं में स्किल इंडिया, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) शामिल हैं।
- प्रभावी विनियमन:
- सरकार बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की गुणवत्ता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी नियम स्थापित और लागू कर सकती है।
- विनियमन सामग्री की गुणवत्ता और कार्यकुशलता के लिये मानक स्थापित कर सकते हैं। वे परियोजना में शामिल जनता और श्रमिकों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अग्नि सुरक्षा, निकासी योजनाओं एवं पहुँच मानकों सहित सुरक्षा आवश्यकताओं को भी अनिवार्य कर सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, स्वतंत्र निरीक्षण और परीक्षण से बुनियादी अवसंरचना के उपयोग में आने से पहले किसी भी समस्या की पहचान करने तथा उसका समाधान करने में सहायता मिल सकती है।
- सरकार बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की गुणवत्ता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी नियम स्थापित और लागू कर सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में बुनियादी अवसंरचना के विकास में क्या बाधाएँ हैं और इसके समाधान के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न 1. 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न 2. भारत में ‘पब्लिक की इंफ्रास्ट्रक्चर’ पदबंध किसके प्रसंग में प्रयुक्त किया जाता है? (2020) (a) डिजिटल सुरक्षा अवसंरचना उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (2021) |