अंतर्राष्ट्रीय संबंध
शांति स्थापक के रूप में ग्लोबल साउथ
- 07 Apr 2025
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:रूस-यूक्रेन संघर्ष, ग्लोबल साउथ की भूमिका, ब्रांट लाइन, NATO, संयुक्त राष्ट्र, शांति मिशन, ग्लोबल नॉर्थ, अफ्रीकी संघ, BRICS, सुरक्षा परिषद मेन्स के लिये:शांति स्थापना में ग्लोबल साउथ का महत्त्व, अग्रणी देश के रूप में भारत का उदय |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल की कूटनीतिक सफलताएँ, जिनमें रियाद द्वारा मध्यस्थता से किये गए युद्धविराम समझौते भी शामिल हैं, ग्लोबल साउथ की एक विश्वसनीय शांति स्थापक के रूप में बढ़ती भूमिका को उजागर करती हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र समर्थित मिशन यूक्रेन में पश्चिमी नेतृत्व वाली पहलों के लिये एक तटस्थ विकल्प है।
ग्लोबल साउथ क्या है?
- "ग्लोबल साउथ" अमेरिकी विद्वान कार्ल ओग्लेसबी द्वारा वर्ष 1969 में सृष्ट पद है, जिसका प्रयोग राजनीतिक और आर्थिक संदोहन के माध्यम से ग्लोबल नॉर्थ के "प्रभुत्व" से घिरे देशों के समूह को दर्शाने के लिये किया गया था।
- "ग्लोबल साउथ" वाक्यांश मुख्य रूप से लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो ब्रांट रेखा द्वारा अलग किये गए हैं।
- यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाह्य क्षेत्रों को दर्शाता है, जो अधिकतर निम्न आय वाले और सामान्यतः राजनीतिक या सांस्कृतिक रूप से हाशिये पर हैं।
- चीन और भारत ग्लोबल साउथ के अग्रणी समर्थक हैं।
- ब्रांट लाइन प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर, संपन्न नॉर्थ और निर्धन साउथ के बीच विश्व के आर्थिक विभाजन का दृश्यात्मक प्रतिनिधित्व है।
- इसे 1970 के दशक में विली ब्रांट द्वारा प्रस्तावित किया गया था और यह लगभग 30° उत्तरी अक्षांश पर विश्व को घेरे हुए है।

शांति स्थापक के रूप में ग्लोबल साउथ की क्या भूमिका हो सकती है?
- तटस्थ मध्यस्थ: ग्लोबल साउथ को, अपनी गुटनिरपेक्षता की परंपरा के कारण, प्रायः एक विश्वसनीय और निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में देखा जाता है।
- उदाहरण: रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत के संतुलित कूटनीतिक रुख ने उसे दोनों पक्षों के साथ वार्ता करने में सक्षम बनाया है।
- शांति स्थापना योगदानकर्त्ता: ग्लोबल साउथ के देश संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशनों में सबसे बड़े योगदानकर्त्ताओं में से हैं, जो संघर्ष-पश्चात क्षेत्रों में स्थिरता प्रदान करते हैं।
- उदाहरण: कांगो में भारत की उपस्थिति और सोमालिया में अफ्रीकी संघ का शांति अभियान।
- कूटनीतिक संयोजक: ग्लोबल साउथ मंच पश्चिमी-प्रभुत्व वाली संस्थाओं से स्वतंत्र होकर संवाद और तनाव कम करने के लिये वैकल्पिक मंच के रूप में कार्य करते हैं।
- उदाहरण: BRICS राष्ट्रों द्वारा यूक्रेन युद्ध में युद्ध विराम और वार्ता का आह्वान।
- न्याय के लिये नैतिक आवाज़: साझी औपनिवेशिक विरासत ग्लोबल साउथ के देशों को संप्रभुता, समानता और गैर-हस्तक्षेप की वकालत करने के लिये मानक वैधता प्रदान करती है। (अफ्रीकी देश वैश्विक शासन में संप्रभु समानता पर ज़ोर देते हैं)।
- समावेशी शांति निर्माण: लैंगिक-संतुलित शांति पहल को बढ़ावा देकर, ग्लोबल साउथ अधिक समावेशी और सतत् शांति प्रक्रियाओं में योगदान देता है।
- उदाहरण: भारत द्वारा लाइबेरिया में एक पूर्ण महिला संयुक्त राष्ट्र पुलिस इकाई की तैनाती।
शांति रक्षक के रूप में ग्लोबल साउथ के लिये विवाद के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं?
- नाजुक युद्ध विराम गतिशीलता: ग्लोबल साउथ के नेतृत्व वाले मिशन के लिये पहले से मौजूद और लागू करने योग्य युद्धविराम की आवश्यकता होती है, जिसके बिना शांति प्रयासों के सक्रिय संघर्ष क्षेत्रों में उलझने का जोखिम हो सकता है।
- प्रादेशिक सीमाओं पर अस्पष्टता: विवादित सीमाओं पर आम सहमति का अभाव, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन जैसे संघर्षों में, परिचालन तैनाती को जटिल बनाता है और नए सिरे से शत्रुता का खतरा बढ़ाता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अधिदेश पर निर्भरता: अपनी नैतिक स्थिति के बावजूद, ग्लोबल साउथ देशों को कानूनी अधिकार और वैश्विक वैधता हासिल करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के अधिदेश की आवश्यकता है - जो कि ध्रुवीकृत सुरक्षा परिषद में चुनौतीपूर्ण है।
- तटस्थता की वकालत करते हुए भी, इन मिशनों को अभी भी पश्चिमी सैन्य, वित्तीय और तकनीकी सहायता की आवश्यकता है, जो स्वतंत्रता के दावों को जटिल बना सकती है।
- क्षमता और समन्वय संबंधी बाधाएँ: शांति स्थापना के अनुभव में समृद्ध होने के बावजूद, कई ग्लोबल साउथ देशों को समन्वय, प्रशिक्षण, वित्तपोषण और तीव्र तैनाती क्षमता में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
और पढ़ें: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना विरोधाभास
निष्कर्ष
यूक्रेन संघर्ष ग्लोबल साउथ के लिये अपनी कूटनीतिक परिपक्वता दिखाने का करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। संयुक्त राष्ट्र समर्थित शांति मिशन का नेतृत्व करने से इसकी विश्वसनीयता और वैश्विक प्रभाव बढ़ेगा। भारत के लिये, यह तटस्थता को नेतृत्व में परिवर्तित करने का अवसर प्रदान करता है। इस अवसर का लाभ उठाने से आने वाले दशकों में वैश्विक शक्ति गतिशीलता को फिर से परिभाषित किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में शक्ति गतिशीलता और मानदंडों को पुनः निर्धारित करने के लिये ग्लोबल साउथ के नेतृत्व वाले मिशन की क्षमता का आकलन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त में से कितने देशों की सीमाएँ यूक्रेन सीमा के साथ साझी हैं? (a) केवल दो मेन्स:प्रश्न: “यदि विगत कुछ दशक एशिया के विकास की कहानी के रहे, तो परवर्ती कुछ दशक अफ्रीका के हो सकते हैं।” इस कथन के आलोक में, हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारत के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। (2021) |