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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल नॉर्थ एंड साउथ के बीच सेतु के रूप में भारत

  • 17 Feb 2025
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल साउथ, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, समूह-77, अफ्रीकी संघ, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, मिशन लाइफ 

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति और वैश्विक शासन में इसकी भूमिका, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ग्लोबल साउथ (वैश्विक दक्षिण) की भागीदारी को बढ़ाना तथा समावेशी वैश्विक शासन सुधारों का नेतृत्व करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला, जिसका उद्देश्य ग्लोबल नॉर्थ एंड साउथ के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना है।

Global_North_and_South

ग्लोबल नॉर्थ एंड साउथ के बीच सेतु के रूप में भारत कैसे उभर रहा है:

  • ग्लोबल नॉर्थ-साउथ: कई विकासशील राष्ट्र ऋण संकट और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रतिबंधात्मक शर्तों के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
    • भारत, पश्चिमी या चीनी दृष्टिकोणों के विपरीत, एक सहयोगात्मक विकास मॉडल प्रस्तुत करता है, तथा इसका प्रस्तावित "वैश्विक विकास समझौता" एक वैकल्पिक, बिना शर्त विकास सहयोग ढाँचा प्रदान करता है।
  • शीत युद्ध युग की कूटनीति के विपरीत, भारत पश्चिम (अमेरिका, यूरोप) के साथ संबंधों को गहरा कर रहा है, जबकि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया की भागीदारी का विस्तार कर रहा है।
    • भारत ग्लोबल साउथ के हितों के अनुरूप एक अधिक न्यायसंगत वैश्विक आर्थिक प्रणाली की समर्थन करता है।
  • भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) सुधार की समर्थन करता है तथा तर्क देता है कि विकासशील देशों को वैश्विक निर्णय प्रक्रिया में अधिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये।
    • भारत ग्लोबल साउथ देशों के लिये वित्तपोषण को अधिक सुलभ बनाने के लिये IMF और विश्व बैंक के सुधारों का समर्थन करता है।
  • ग्लोबल साउथ में भारत की प्रारंभिक भूमिका: भारत ने विकासशील देशों के लिये आत्मनिर्णय को बढ़ावा देने हेतु गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में भारत ने जलवायु न्याय का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व (CBDR) का सिद्धांत सामने आया।
  • विदेश नीति: गुटनिरपेक्ष आंदोलन के विपरीत, भारत अब निष्क्रिय पर्यवेक्षक नहीं है, बल्कि वैश्विक शासन को नया स्वरूप देने में सक्रिय भागीदार है।
  • भारत की अध्यक्षता में G-20 (2023) में अफ्रीकी संघ को शामिल करना इसकी कूटनीतिक क्षमता को प्रदर्शित करता है।
  • भारत के वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन ने विकासशील देशों को सामूहिक रूप से सुधारों के लिये प्रयास करने हेतु एक मंच प्रदान किया है।
  • भारत विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) संधि जैसी पहलों के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान के संरक्षण का समर्थन करता है तथा G-20 जैसे मंचों में ग्लोबल साउथ का समर्थन करता है।
  • महामारी के दौरान लाखों वैक्सीन खुराक उपलब्ध कराने वाली भारत की वैक्सीन मैत्री पहल, विकासशील देशों के कल्याण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
    • भारत ने हानि एवं क्षति कोष की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे कमज़ोर देशों के लिये जलवायु वित्तपोषण सुनिश्चित हुआ।
    • विकासशील देशों में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की सह-स्थापना की।
  • सामरिक स्वायत्तता: भारत वैश्विक मुद्दों पर स्वतंत्र रहता है, जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध, दक्षिण-दक्षिण संबंधों को मज़बूत करता है। 
    • भारत पूरी तरह से पश्चिम विरोधी नहीं है, बल्कि वह किसी भी गुट से जुड़े बिना विकसित और विकासशील दोनों देशों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है।
  • चीन का मुकाबला: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) ने कई ग्लोबल साउथ देशों को ऋण संकट में डाल दिया है।
    • भारत स्वयं को एक वैकल्पिक विकास साझेदार के रूप में स्थापित तथा ऋण-चालित अवसंरचना परियोजनाओं के बजाय पारदर्शी, सतत् सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
    • भारत क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के समुद्री विस्तार का मुकाबला कर रहा है।

ग्लोबल साउथ, ग्लोबल नॉर्थ क्या है?

और पढ़ें: ग्लोबल साउथ, ग्लोबल नॉर्थ

भारत के ग्लोबल साउथ नेतृत्व के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • चीन के प्रभाव का प्रबंधन: चीन की वित्तीय शक्ति और ग्लोबल साउथ देशों में बड़े पैमाने पर निवेश प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न करते हैं
    • भारत की अपनी आर्थिक और बुनियादी ढाँचागत चुनौतियाँ, चीन की तुलना में बड़े पैमाने पर सहायता देने की उसकी क्षमता को सीमित कर सकती हैं।
  • परियोजना कार्यान्वयन में विलंब भारत की बुनियादी संरचना और विकास परियोजनाएँ अक्सर विलंब और अकुशलता से ग्रस्त रहती हैं।
  • कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट परियोजना (म्याँमार) दो दशक बाद भी अधूरी है।
  • जापान-भारत पहल, एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) ने चीन की BRI की तुलना में धीमी प्रगति की है।
  • संस्थागत एवं नीतिगत अंतराल: भारत में वैश्विक विकास सहायता के लिये एक सुपरिभाषित संस्थागत ढाँचे का अभाव है।
    • इसके लिये चीन के BRI के समान एक संरचित दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की दावेदारी का प्रतिद्वंद्वी ग्लोबल साउथ देशों (जैसे, पाकिस्तान) द्वारा विरोध किया जा रहा है।
  • निरंतर सहभागिता का अभाव: NAM और G-77 जैसे पारंपरिक ग्लोबल साउथ मंचों के साथ भारत की सीमित सहभागिता, तथा वर्ष 2015 से भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की अनुपस्थिति ने कूटनीतिक अंतराल उत्पन्न कर दिया है तथा विकासशील देशों में इसके प्रभाव में बाधा उत्पन्न की है।
  • ग्लोबल नॉर्थ के साथ संबंधों को संतुलित करना: अमेरिका और यूरोप के साथ भारत के गहरे होते संबंधों से ग्लोबल साउथ के सहयोगियों को अलग-थलग नहीं होना चाहिये। अमेरिका, यूरोपीय संघ और विकासशील देशों की अपेक्षाओं को संतुलित करना एक कूटनीतिक चुनौती बनी हुई है।
  • बड़े भाई जैसा रवैया: मालदीव में "इंडिया आउट" अभियान ने भारत पर घरेलू मुद्दों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया, जिससे यह प्रदर्शित हुआ कि कुछ वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) देश भारत को क्षेत्रीय राजनीति में अत्यधिक प्रभावशाली और अविश्वास को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।

भारत एक प्रभावी वैश्विक विकास साझेदार कैसे बन सकता है?

  • विकास कूटनीति को संस्थागत बनाना: भारत को चीन की BRI और जापान की आधिकारिक विकास सहायता (ODA) के समान एक स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीय विकास सहायता नीति निर्धारित करनी चाहिये।
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी की स्थापना से विदेशी सहायता का समन्वय हो सकता है, जबकि जापान के साथ AAGC बीआरआई के लिये एक व्यवहार्य विकल्प प्रस्तुत करता है। 
    • भारत के नेतृत्व में ग्लोबल साउथ डेवलपमेंट फंड सतत् बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित कर सकता है।
  • उत्तर-दक्षिण सहयोग: भारत को अपना प्रभाव बढ़ाने के लिये ग्लोबल साउथ एंड नॉर्थ (जैसे, भारत-अमेरिका-अफ्रीका, भारत-रूस-आसियान) दोनों को शामिल करते हुए त्रिपक्षीय साझेदारी करनी चाहिये।
  • दक्षिण-दक्षिण सहयोग को गहरा करना: IBSA (भारत-ब्राज़ील-दक्षिण अफ्रीका) और ब्रिक्स जैसे क्षेत्रीय समझौतों को मज़बूत करना, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और आसियान के साथ व्यापार को प्राथमिकता देना तथा बुनियादी ढाँचे के लिये ग्लोबल साउथ देशों को कम लागत वाली ऋण लाइनें प्रदान करना है। 
  • मानव-केन्द्रित विकास: भारत के मिशन LiFE (पर्यावरण के लिये जीवन शैली) का विस्तार किया जाना चाहिये, ताकि कौशल भारत, महिला उद्यमिता और ITEC (भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग) जैसी पहलों के माध्यम से ग्लोबल साउथ देशों में मानव पूंजी विकास को शामिल किया जा सके, साथ ही  सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में निवेश भी किया जा सके।
  • सॉफ्ट पावर में वृद्धि: तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रमों और छात्रवृत्तियों के माध्यम से, अनुसंधान और शैक्षिक संबंधों को मज़बूत करते हुए दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में प्रवासी भागीदारी को बढ़ाना।

निष्कर्ष

समावेशी विकास को प्रोत्साहित करके, विश्व दक्षिण में भारत का नेतृत्व विश्व शासन को बदलने की दिशा में एक सुनियोजित कदम है। भारत में अपने आंतरिक मुद्दों से निपटने और ठोस, खुली साझेदारी विकसित करके वैश्विक निष्पक्षता और सतत् प्रगति के पीछे एक प्रमुख शक्ति बनने की क्षमता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत ग्लोबल साउथ की 'आवाज़' बनने की आकांक्षा रखता है, लेकिन एक अच्छा नेतृत्वकर्त्ता बनने के लिये उसे 'सुनना' भी होगा।" वैश्विक शासन को नया स्वरूप देने में भारत की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। (2016)

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