अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत की विदेश नीति
- 27 Dec 2022
- 14 min read
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), मानवाधिकार आयोग मेन्स के लिये:भारत की विदेश नीति की वर्तमान चुनौतियाँ और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
भू-राजनीतिक और कूटनीतिक मंच के संदर्भ में वर्ष 2022 विशेष रूप से यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद एक कठिन वर्ष रहा है।
यूक्रेन संकट और भारत:
- गुटनिरपेक्षता नीति का पालन:
- यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने "गुटनिरपेक्षता" के अपने संस्करण को परिभाषित किया, साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ते ध्रुवीकरण एवं रूस के संदर्भ में संतुलन बनाने की मांग की।
- एक तरफ भारतीय प्रधानमंत्री ने यह कहकर कि "यह युग युद्ध का नहीं है", रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से युद्ध को लेकर अपनी चिंता स्पष्ट कर दी और दूसरी ओर रूस के साथ बढ़ते सैन्य एवं तेल व्यापार पर पश्चिमी प्रतिबंधों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, साथ ही उन्हें सुविधाजनक बनाने के लिये रुपया आधारित भुगतान तंत्र की मांग की।
- प्रस्ताव पर वोट देने से इनकार करना:
- सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council- UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA), मानवाधिकार आयोग और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर एक दर्जन से अधिक प्रस्तावों में आक्रमण एवं मानवीय संकट के लिये रूस की निंदा करने की मांग की गई तो भारत ने मामले से दूर रहने का विकल्प चुना।
- भारतीय विदेश नीति का दावा है कि भारत की नीति राष्ट्रीय हितों पर निर्धारित की गई थी, भले ही देशों ने भारत से पक्ष लेने की उम्मीद की थी लेकिन भारत की नीतियाँ उन देशों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं करती हैं।
- सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nation Security Council- UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency- IAEA), मानवाधिकार आयोग और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर एक दर्जन से अधिक प्रस्तावों में आक्रमण एवं मानवीय संकट के लिये रूस की निंदा करने की मांग की गई तो भारत ने मामले से दूर रहने का विकल्प चुना।
विदेश नीति 2022 की अन्य प्रमुख विशेषताएँ:
- मुक्त व्यापार समझौतों (Free Trade Agreements- FTAs) को अपनाना:
- कई वर्षों के अंतराल के बाद सभी द्विपक्षीय निवेश संधियों ( Bilateral Investment Treaties- BITs) को रद्द करने और 15 देशों की एशियाई क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से हटने के बाद सभी मुक्त व्यापार समझौतों की समीक्षा करने के पश्चात् वर्ष 2022 में भारत पुनः FTA में शामिल हो गया।
- वर्ष 2022 में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये एवं इस संदर्भ में यूरोपीय संघ, खाड़ी सहयोग परिषद तथा कनाडा के साथ बातचीत पर प्रगति की उम्मीद है।
- अमेरिकी नेतृत्त्व वाले IPEF में शामिल:
- भारत, अमेरिका के नेतृत्त्व वाले हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा ( Indo-Pacific Economic Forum- IPEF) में भी शामिल है, हालाँकि बाद में उसने व्यापार वार्ता से बाहर रहने का फैसला किया।
पड़ोसियों के साथ संबंध:
- श्रीलंका:
- भारत ने अपनी विदेश नीति के तहत श्रीलंका के पतन के दौरान उसे आर्थिक सहायता प्रदान की।
- बांग्लादेश, भूटान और नेपाल:
- भारत की विदेश नीति को बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ क्षेत्रीय व्यापार एवं ऊर्जा समझौतों द्वारा चिह्नित किया गया है, जिससे दक्षिण एशियाई ऊर्जा ग्रिड का विकास संभव हो सकेगा।
- मध्य एशियाई देश:
- कनेक्टिविटी को लेकर भारत ने मध्य एशियाई देशों के साथ भी संबंध मज़बूत किये हैं।
- भारत ने बहुप्रतीक्षित तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन परियोजना को पुनर्स्थापित करने के प्रयासों को फिर से शुरू कर दिया है।
- भारत ने इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (International North-South Transport Corridor- INSTC) के बेहतरीन इस्तेमाल पर भी चर्चा की।
- ईरान में चाबहार बंदरगाह को शुरू करने के लिये भी कदम उठाए गए हैं जो मध्य एशियाई देशों के लिये समुद्र तक एक सुरक्षित, व्यवहार्य और अबाध पहुँच प्रदान कर सकता है।
- कनेक्टिविटी को लेकर भारत ने मध्य एशियाई देशों के साथ भी संबंध मज़बूत किये हैं।
- अफगानिस्तान और म्याँमार:
- सरकार ने अफगानिस्तान के तालिबान और म्याँमार में जुंटा जैसे दमनकारी शासनों के लिये बातचीत के रास्ते खुले रखे, काबुल में "तकनीकी मिशन" शुरू किया एवं सीमा सहयोग पर चर्चा करने के लिये विदेश सचिव को म्याँमार भेजा गया।
- इससे पहले दिसंबर 2022 में म्याँमार में हिंसा को समाप्त करने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिये की गई UNSC वोटिंग में भारत ने भाग नहीं लिया था।
- ईरान और पाकिस्तान:
- ईरान में भी एक कार्यकर्त्ता की हत्या के विरोध में जब हज़ारों लोग सड़कों पर उतरे, भारत ने किसी भी तरह की आलोचना करने से परहेज किया।
- हालाँकि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच दिसंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र में एक बड़े शक्ति-परीक्षण के बाद पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य बने हुए हैं।
LAC-चीन गतिरोध में वृद्धि:
- चीन के विदेश मंत्री की दिल्ली यात्रा एवं वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर कुछ गतिरोध बिंदुओं पर उसके पीछे हटने के बावजूद तनाव बना रहा और अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से में भारतीय चौकियों पर कब्ज़ा करने के चीनी PLA के असफल प्रयास के साथ इस वर्ष की समाप्ति हुई, यह वर्ष 2023 में चीन के साथ और अधिक हिंसक झड़प होने का संकेत है।
- संबंधों की कठिन स्थितियों के बावजूद भारत वर्ष 2023 में दो बार जी-20 और SCO शिखर सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति की उपस्थिति में मेज़बानी करने वाला है, इससे गतिरोध समाप्त करने के लिये वार्ता की राह खुलने की संभावना है।
भारत की विदेश नीति की वर्तमान चुनौतियाँ:
- पाकिस्तान-चीन सामरिक गठजोड़:
- आज भारत जिस सबसे विकट खतरे का सामना कर रहा है, वह है पाकिस्तान-चीन सामरिक गठजोड़, जो विवादित सीमाओं पर यथास्थिति को बदलना चाहता है और भारत की सामरिक सुरक्षा को कमज़ोर करना चाहता है।
- वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति को बदलने के लिये मई 2020 से चीन की आक्रामक कार्रवाइयों ने चीन-भारत संबंधों को गंभीर नुकसान पहूँचाया है।
- चीन की विस्तारवादी नीति:
- दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को संतुलित करने का मुद्दा, भारत के लिये एक और चिंता का विषय है।
- चीन के बहुप्रतीक्षित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत यह पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) विकसित कर रहा है (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भारतीय क्षेत्र पर), यह चीन-नेपाल आर्थिक गलियारा, चीन-म्यॉमार आर्थिक गलियारा का निर्माण हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों में दोहरे उपयोग के लिये कर रहा है।
- शक्तिशाली देशो के साथ शक्ति संतुलन:
- भारत की रणनीतिक स्वायत्तता भारत को उस किसी भी सैन्य गठबंधन या रणनीतिक साझेदारी में शामिल होने से रोकती है जो किसी अन्य देश या देशों के समूह के लिये शत्रुतापूर्ण है।
- परंपरागत रूप से पश्चिम ने भारत को सोवियत संघ/रूस के करीब माना है। इस धारणा को भारत द्वारा SCO, BRICS और रूस-भारत-चीन (RIC) फोरम में सक्रिय रूप से भाग लेने से बल मिला है।
- भारत को हठधर्मी चीन को संतुलित करने, पाकिस्तान-चीन हाइब्रिड खतरों से उत्पन्न सुरक्षा दुविधाओं को दूर करने के लिये भारत-प्रशांत क्षेत्र में बाह्य संतुलन पर निर्भर रहना होगा।
- अमेरिका, जापान, फ्राँस, ब्रिटेन और इंडोनेशिया के साथ मूलभूत समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले QUAD में भारत की भागीदारी को भी इस नज़रिये से देखा जाना चाहिये।
- शरणार्थी संकट: वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद विश्व में भारत में शरणार्थियों की बहुत बड़ी संख्या निवास करती है।
- यहाँ चुनौती मानवाधिकारों के संरक्षण और राष्ट्रीय हित में संतुलन बनाने की है। जैसे कि रोहिंग्या संकट मुद्दे पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना है, इस स्थिति में भारत को दीर्घकालिक समाधान खोजने की आवश्यकता है।
- भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति को निर्धारित करने में मानवाधिकारों के मुद्दे पर की गई कार्रवाइयाँ महत्त्वपूर्ण होंगी।
आगे की राह
- भारत को एक ऐसा वातावरण बनाने के लिये आगे आना चाहिये जो भारत के समावेशी विकास के लिये अनुकूल हो ताकि विकास का लाभ देश के गरीब-से-गरीब व्यक्ति तक पहुँच सके।
- यह सुनिश्चित करना चाहिये कि वैश्विक मंचों पर भारत की आवाज़ सुनी जाए एवं आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, निरस्त्रीकरण, वैश्विक शासन की संस्थाओं में सुधार जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत विश्व जनमत को प्रभावित करने में सक्षम हो।
- जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा है कि सिद्धांतों और नैतिकता के बिना राजनीति विनाशकारी होगी। भारत को बड़े पैमाने पर दुनिया में अपने नैतिक नेतृत्व को पुनः प्राप्त करते हुए एक नैतिक अनुनय के साथ सामूहिक विकास की ओर बढ़ना चाहिये।
- अतः भारत की विदेश नीति बदलती परिस्थितियों के अनुसार तेज़ी से प्रतिक्रिया करने के लिये सक्रिय, लचीली व व्यावहारिक होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध अन्य राष्ट्रों के हितों की परवाह किये बिना अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित को बढ़ावा देने की नीति पर संचालित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच संघर्ष और तनाव पैदा होता है। नैतिक विचार ऐसे तनावों को हल करने में कैसे मदद कर सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न. भारत-श्रीलंका संबंधों के संदर्भ में चर्चा करें कि घरेलू कारक विदेश नीति को कैसे प्रभावित करते हैं। (2013) प्रश्न. ‘उत्पीड़ित और उपेक्षित राष्ट्रों के नेता के रूप में भारत की लंबे समय से चली आ रही छवि, उभरती वैश्विक व्यवस्था में इसकी नई भूमिका के कारण गायब हो गई है। ' विस्तृत व्याख्या कीजिये।(2019) |