पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2024 | 19 Jun 2024
प्रिलिम्स के लिये:पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2024, वायु गुणवत्ता, उत्सर्जन और जैवविविधता संरक्षण, जलवायु परिवर्तन श्रेणी, वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन, अतिरिक्त कार्बन सिंक, भारत के वन, आर्द्रभूमि, कृषि-जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि। मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2024 का महत्त्व। |
स्रोत: पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक
चर्चा में क्यों?
येल सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल लॉ एंड पॉलिसी और कोलंबिया सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क ने वर्ष 2024 के लिये पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (Environmental Performance Index- EPI) जारी किया।
EPI 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- वैश्विक परिदृश्य: एस्टोनिया वर्ष 1990 के स्तर से अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 59% की कमी लाकर सूचकांक में शीर्ष पर है।
- रिपोर्ट से पता चलता है कि केवल पाँच देशों एस्टोनिया, फिनलैंड, ग्रीस, तिमोर-लेस्ते और यूनाइटेड किंगडम ने वर्ष 2050 तक नेट ज़ीरो तक पहुँचने के लिये आवश्यक दर पर अपने GHG उत्सर्जन में कटौती की है।
- इसके विपरीत उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिणी एशिया, मूल्यांकन किये गए आठ क्षेत्रों में सबसे निचले स्थान पर हैं।
- यूनाइटेड किंगडम के अलावा वर्ष 2022 पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (Environmental Performance Index- EPI) रिपोर्ट में पहचाने गए सभी देश वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के ट्रैक पर हैं और या तो धीमी प्रगति देखी गई है, जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका में है, या उनका उत्सर्जन अभी भी बढ़ रहा है, जैसा कि चीन, भारत तथा रूस में देखा गया है।
- भारत का प्रदर्शन: भारत 27.6 अंकों के साथ 180 देशों में 176वें स्थान पर है, जो केवल पाकिस्तान, वियतनाम, लाओस और म्याँमार से ऊपर है।
- वायु गुणवत्ता, उत्सर्जन और जैवविविधता संरक्षण के मामले में इसका प्रदर्शन खराब है, जिसका मुख्य कारण कोयले पर इसकी भारी निर्भरता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा वायु प्रदूषण के स्तर में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- विशेष रूप से भारत वायु गुणवत्ता में 177वें स्थान पर है तथा वर्ष 2025 तक अनुमानित उत्सर्जन में 172वें स्थान पर होगा।
- वायु गुणवत्ता, उत्सर्जन और जैवविविधता संरक्षण के मामले में इसका प्रदर्शन खराब है, जिसका मुख्य कारण कोयले पर इसकी भारी निर्भरता है, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा वायु प्रदूषण के स्तर में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- सीमापार प्रदूषण का सबसे बड़ा उत्सर्जक: दक्षिण एशिया में, भारत को सीमापार प्रदूषण के सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में पहचाना जाता है, जिसका असर पड़ोसी बांग्लादेश पर पड़ता है और वहाँ के निवासियों की खुशहाली पर भी असर पड़ता है।
- अपनी निम्न समग्र रैंकिंग के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता के कारण, भारत जलवायु परिवर्तन श्रेणी में अपेक्षाकृत बेहतर (133वें स्थान पर) है।
- हालाँकि इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये जलवायु परिवर्तन शमन निवेश में प्रतिवर्ष अतिरिक्त 160 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।
- अपनी निम्न समग्र रैंकिंग के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता के कारण, भारत जलवायु परिवर्तन श्रेणी में अपेक्षाकृत बेहतर (133वें स्थान पर) है।
- नए मेट्रिक्स प्रस्तुत किये गए: वर्ष 2024 EPI संरक्षित क्षेत्रों की प्रभावशीलता और कठोरता को मापने के लिये पायलट संकेतक प्रस्तुत करता है।
EPI पर भारत की प्रतिक्रिया क्या है?
- अनुमानित GHG उत्सर्जन गणना: भारत का तर्क है कि गणना में लंबी अवधि (10 से 20 वर्ष), नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता एवं उसका उपयोग, अतिरिक्त कार्बन सिंक तथा संबंधित देशों द्वारा कार्यान्वित ऊर्जा दक्षता उपायों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
- वर्ष 2050 तक अनुमानित GHG उत्सर्जन की गणना पिछले 10 वर्षों में उत्सर्जन में परिवर्तन की औसत दर पर आधारित है, जिसे भारत अपर्याप्त मानता है।
- कार्बन सिंक बहिष्करण: EPI 2024 में वर्ष 2050 तक अनुमानित GHG उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र की गणना में भारत के महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक, आर्द्रभूमि एवं वनों को शामिल नहीं किया गया है।
- पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति की अनदेखी: जबकि सूचकांक पारिस्थितिक तंत्र की सीमा की गणना करता है, यह उनकी स्थिति या उत्पादकता का मूल्यांकन नहीं करता है।
- प्रासंगिक संकेतकों का अभाव: सूचकांक में कृषि-जैवविविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि एवं अपशिष्ट जैसे संकेतक शामिल नहीं हैं, जो अधिक कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक क्या है?
- परिचय: पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) एक द्विवार्षिक सूचकांक है, जिसे सर्वप्रथम वर्ष 2002 में विश्व आर्थिक मंच द्वारा पर्यावरण स्थिरता सूचकांक (ESI) के नाम से शुरू किया गया था।
- मूल्यांकन लक्ष्य: यह संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों, पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते (2015) एवं कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क जैसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण नीति लक्ष्यों को पूरा करने के लिये देशों के प्रयासों का मूल्यांकन करता है।
- फ्रेमवर्क: EPI 2024, 3 नीतिगत उद्देश्यों के साथ 11 श्रेणियों में समूहीकृत 58 प्रदर्शन संकेतकों का लाभ उठाता है:
- पर्यावरणीय स्वास्थ्य
- पारिस्थितिकी तंत्र जीवन शक्ति
- जलवायु परिवर्तन
- EPI टीम पर्यावरणीय आँकड़ों से 0 से 100 तक के संकेतक बनाती है, जो उच्चतम एवं निम्नतम प्रदर्शन करने वाले देशों को दर्शाते हैं।
EPI का महत्त्व क्या है?
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: EPI पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित एव न्यायसंगत भविष्य की दिशा में सामूहिक प्रयास को बढ़ावा देते हुए, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा ज्ञान साझा करने को प्रोत्साहित करता है।
- सुशासन: EPI में वर्णित मज़बूत शासन ढाँचे, जैसे पारदर्शिता, जवाबदेही के साथ-साथ प्रभावी नीति निर्माण, पर्यावरणीय नियमों एवं नीतियों को बढ़ावा देने और लागू करने के लिये आवश्यक हैं।
- वित्तीय संसाधन: पर्याप्त वित्तीय संसाधन पर्यावरणीय पहलों को लागू करने और साथ ही उन्हें बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे देशों को सतत् विकास और बुनियादी ढाँचे में निवेश करने हेतु सक्षम बनाया जाता है।
- मानव विकास: शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल के साथ-साथ समग्र कल्याण जैसे कारकों सहित मानव विकास के उच्च स्तर वाले देश पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं और प्रभावी उपायों को लागू कर सकते हैं।
- नियामक गुणवत्ता: प्रभावी प्रवर्तन तंत्र के साथ मज़बूत और अच्छी तरह से डिज़ाइन किये गए पर्यावरण विनियम, पर्यावरणीय गिरावट को कम करने तथा स्थिरता मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
EPI से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?
- माप जटिलताएँ: इसमें शामिल जटिल गतिशीलता के साथ सभी क्षेत्रों में मानकीकृत पद्धतियों की कमी के कारण जैवविविधता हानि या पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य को मापना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- डेटा की उपलब्धता एवं विश्वसनीयता: कुछ विकासशील देशों में मज़बूत निगरानी प्रणालियों की कमी हो सकती है अथवा व्यापक पर्यावरणीय आँकड़े एकत्रित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, परिणामस्वरूप अपूर्ण छवि प्राप्त हो सकती है।
- राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में संतुलन: देश पर्यावरण संरक्षण की अपेक्षा आर्थिक विकास को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप EPI अनुशंसाओं के क्रियान्वयन में संभावित संघर्ष या प्रतिरोध उत्पन्न हो सकता है।
- संसाधन निष्कर्षण या जीवाश्म ईंधन आधारित उद्योगों पर अत्यधिक निर्भर देशों को अधिक सतत् प्रथाओं को अपनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- वित्तपोषण और संसाधन संबंधी बाधाएँ: विकासशील देशों को पर्यावरणीय परियोजनाओं के लिये पर्याप्त धनराशि या विशेषज्ञता आवंटित करने में कठिनाई हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रगति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। हालाँकि विकसित देशों ने विकासशील देशों के शमन के लिये पर्याप्त धनराशि आवंटित नहीं की है।
- सीमा पार पर्यावरणीय प्रभाव: वायु प्रदूषण, जल प्रबंधन या वन्यजीव संरक्षण जैसे सीमा पार मुद्दों के समाधान के लिये बहुपक्षीय समझौतों और संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता हो सकती है।
भारत में पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम क्या हैं?
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना
- मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्य कार्यक्रम
- प्रदूषण नियंत्रण: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
- पर्यावरण प्रभाव आकलन: पर्यावरण प्रबंधन योजना
- वन संरक्षण: राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम
- प्रजाति संरक्षण: प्रोजेक्ट एलीफेंट, प्रोजेक्ट टाइगर
आगे की राह
- बेहतर कार्यप्रणाली और कार्बन सिंक लाना: विगत 10 वर्षों में परिवर्तन की औसत दर पर पूर्ण रूप से निर्भर रहने के बजाय, अनुमानित GHG उत्सर्जन प्रक्षेप पथ की गणना करने के लिये एक लंबी समय-सीमा (जैसे- 20-30 वर्ष) को शामिल करना।
- प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA) जैसी पहलों के माध्यम से कार्बन पृथक्करण को बढ़ाने के प्रयासों को मान्यता दी जानी चाहिये।
- संकेतकों के समूह का विस्तार करना: ऐसे संकेतक शामिल करना, जो बड़ी कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिये प्रासंगिक हों, जैसे कि कृषि-जैवविविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि और अपशिष्ट प्रबंधन।
- भारत के लिये, EPI में जैविक खेती के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र, फसल विविधीकरण और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के उपायों जैसे संकेतक शामिल किये जा सकते हैं, जो सतत् कृषि की दिशा में देश के प्रयासों को दर्शाते हैं।
- संकेतकों के भार सहित वित्तपोषण में पारदर्शिता: इसके संकेतकों के भार में किसी भी परिवर्तन हेतु स्पष्ट एवं पारदर्शी स्पष्टीकरण प्रदान करने के साथ भारत जैसे देशों द्वारा उठाई गई चिंताओं का समाधान करने पर ध्यान देना चाहिये।
- सरकारी प्रतिनिधियों एवं विशेषज्ञों सहित हितधारकों के बीच परामर्श पर बल दिया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संकेतकों का भार वैश्विक प्राथमिकताओं एवं राष्ट्रीय संदर्भों के साथ समन्वित हो।
दृष्टि मेन्स प्रश्न; पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI), 2024 के प्रमुख निष्कर्षों पर चर्चा कीजिये। इसके अनुसार नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में से संबंधित कौन-सी वैश्विक चुनौतियाँ विद्यमान हैं? |
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