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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

भारत में स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं का सकारात्मक प्रभाव और चुनौतियाँ

"ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया:।"

अर्थात 'सभी सुखी रहें, सभी रोगमुक्त रहें', प्राचीन काल से ही यह श्लोक भारत के कल्याणकारी राज्य में स्वाथ्य देखभाल क्षेत्र का मूल बना हुआ है।

स्वास्थ्य जैविक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं से मिलकर बने होने के कारण यह एक बहुआयामी संकल्पना है। स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों का न होना ही नहीं है बल्कि यह भोजन, सुरक्षा, शुद्ध जलापूर्ति, आवास, साफ-सफाई तथा चयनित जीवनशैली आदि से भी प्रभावित होता है और आकार प्राप्त करता है।

इस संदर्भ में WHO भी स्वास्थ्य को पूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति के रूप में परिभाषित करता है, न कि केवल रुग्णता या बीमारी की अनुपस्थित के रूप में।

वर्तमान में भारत ने कई स्वास्थ्य संकेतकों में पर्याप्त प्रगति की है। जैसे- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्युदार व अशोधित मृत्यूदार में कमी, स्माल पॉक्स, पोलियों, गिनी वर्म जैसे रोगों का उन्मूलन तथा कुष्ठ रोग (leprosy), टीबी जैसी बीमारियां भी लगभग समाप्ति की ओर हैं। और यह इस बात का प्रमाण है कि हमारा देश सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है।

भारत में स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं/कार्यक्रम एवं उनका सकारात्मक प्रभाव-

स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूर्ववर्ती एवं वर्तमान भारत सरकार ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से व्यापक सुधार लाने का प्रयास किया है, जो निम्नलिखित है-

  • जननी सुरक्षा योजना (2005)-
    • भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा माताओं एवं नवजात शिशुओं की मृत्यु दर को कम करने हेतु चलाया गया है। इस योजना का उद्देश्य गरीब गर्भवती महिलाओं को पंजीकृत स्वास्थ्य संस्थाओं में प्रसव हेतु प्रोत्साहित करना है। जिससे स्वास्थ्य केंद्रों में प्रजनन कराने से माता के साथ-साथ शिशु की भी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • मिशन इंद्रधनुष-2014 -
    • भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा इसे शुरू किया गया। इसका उद्देश्य उन बच्चों के टीकाकरण से है जिन्हे टीके नहीं लगे हैं या डिफ्थीरिया, बलगम, टिटनस, पोलियो, तपेदिक, खसरा, तथा हेपिटाटिस-बी रोकने जैसे सात टीके आंशिक रूप से लगे हैं।
    • इस मिशन के अंर्तगत भारत का टीकाकरण कवरेज लगभग 87% तक बढ़ गया है।
  • PM- सुरक्षित मातृत्व अभियान-2016 -
    • इस योजना के तहत 'प्रत्येक माह की 9 तारीख' को सभी गर्भवती महिलाओं को सार्वभौमिक तौर पर सुनिश्चित, व्यापक एवं उच्च गुणवत्ता युक्त प्रसव-पूर्व देखभाल प्रदान किए जाने का प्रावधान है।
    • जिससे गर्भावस्था के दौरान और बच्चों को जन्म देते समय माता और शिशु की मृत्युदर को कम किया जा सके और बच्चे के जन्म को एक सुरक्षित प्रक्रिया बनाई जा सके।
    • यह कार्यक्रम भारत के दुर्गम और दूर दराज के क्षेत्रों में पहुंचने में सफल रहा है। देश भर में की गई 1 करोड़ से अधिक जांच में से 25 लाख से अधिक जांच उच्च प्राथमिकता वाले जिलों में आयोजित की गई।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम-
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य 0 से 18 वर्ष के 27 करोड़ से भी अधिक बच्चों में चार प्रकार की परेशानियों, जैसे- विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता सहित विकास में रूकावट की जांच शामिल है।
    • इन कमियों से प्रभावित बच्चों को राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत तृतीयक स्तर पर निःसुल्क सर्जरी सहित प्रभावी उपचार प्रदान किया जाता है।
  • पोषण अभियान 2018-
  • इसके तहत बालिग बालिकाओं, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं में पोषण की कमी को सुधारना है।
  • इसका उद्देश्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) तथा जन्म के समय वजन में कमी को क्रमशः 2%,2%,3% तथा 2% प्रतिवर्ष कम करना है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना-
    • इस योजना के तहत सरकार द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले जीवित जन्म के लिए 6000 रु की आर्थिक मदद प्रदान करना है।
    • इसके तहत लाभार्थी को दी जाने वाली नकद राशि का हस्तांतरण सीधे उनके बैंक खाते में किया जाता है। जिससे वे अपने पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा कर सकें और इनकी आर्थिक निर्भरता को भी आंशिक रूप से कम किया जा सके।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन-
    • इस मिशन को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2013 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन-2005, और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन-2013 को मिलाकर शुरू किया गया।
    • इसके तहत शिशु मृत्युदर, मातृत्व मृत्युदर, संचारी व गैर-संचारी रोग पर नियंत्रण तथा जनसांख्यकी संतुलन को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।
    • इस मिशन के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक सुधार देखने को मिलें है। जैसे- स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि, समान विकास को बढ़ावा, राष्ट्रीय एंबुलेंस सेवा में व्यापक वृद्धि, मानव संसाधन में वृद्धि (आशा कार्यकर्ता) आदि।
  • आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन अरोग्य योजना-
    • यह एक पात्रता आधारित योजना है जो नवीनतम सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) डेटा द्वारा पहचाने गए लाभार्थियों को लक्षित करती है।
    • इस योजना के माध्यम से देश के गरीब व निम्न आय वाले नागरिक भी अच्छी स्वास्थ्य सेवा प्राप्त कर सकेंगे। इस योजना के क्रियान्वयन के पहले 200 दिनों में pm-jay के तहत 20.8 लाख से अधिक गरीब और वंचित लोग लाभान्वित हुए हैं। तथा इसके तहत 5000 करोड़ रु से अधिक का मुफ्त इलाज कराया गया है।
  • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन-
    • इसका लक्ष्य एक निर्बाध ऑनलाइन प्लेटफार्म का निर्माण करना है। यह प्लेटफार्म डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर "अंतर- संचालनीयता" को सक्षम करेगा।
    • इस प्रकार, यह डिजिटल हाईवे के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल इकोसिस्टम के विभिन्न हितधारकों के बीच मौजूदा अंतराल को कम करने में सहायक सिद्ध हुई है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति -2017
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2002 के लागू होने के 15 वर्ष पश्चात् गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य-देखभाल (Health care) सुविधाओं को सर्वसुलभ बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने ‘भारतीय स्वास्थ्य नीति-2017’ को अनुमोदित किया है।
    • नई स्वास्थ्य नीति के व्‍यापक सिद्धांत- व्‍यावसायिकता, सत्‍यनिष्‍ठा और नैतिकता, निष्‍पक्षता, सामर्थ्‍य, सार्वभौमिकता, रोगी केन्‍द्रित तथा परिचर्या गुणवत्‍ता, जवाबदेही और बहुलवाद पर आधारित हैं।
    • इस नीति का उद्देश्य सभी लोगों विशेषकर अल्पसेवित और उपेक्षित लोगों को सुनिश्चित स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराना है तथा योग को प्रभावी रूप से स्कूलों, कार्यस्थलों पर लागू करना, 2025 तक स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्चे को GDP का 2.5% तक करना, वित्तीय सुरक्षा के माध्यम से सभी सार्वजनिक अस्पतालों में निःशुल्क दवाएं, निदान, आपात तथा अनिवार्य स्वास्थ्य देखभाल जैसी सेवाओं को प्रदान करनें का प्रयास किया गया है जिससे हमारे देश में मानव पूंजी को बेहतर तरीके से सुदृढ़ व विकसित किया जा सके।

खराब स्वास्थ्य का राष्ट्र पर पड़ने वाला प्रभाव-

स्वास्थ्य किसी भी राष्ट्र के लिए जरूरी विषय होता है। बिना स्वस्थ समाज के किसी भी देश का आर्थिक, औद्योगिक व सांस्कृतिक विकास संभव नहीं है। खराब स्वास्थ्य के चलते शारीरिक क्षमता में कमी आती है जो हमारे उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है और उसी के अनुरूप हमारी आर्थिक व सामाजिक स्थिति भी प्रभावित होने लगती है।

इस प्रकार स्वास्थ्य की महत्ता के कारण ही हमारे संविधान में भी स्वास्थ्य को स्थान दिया गया है। हमारा संविधान राज्य से राज्य की नीति निदेशक सिद्धांतों के विभिन्न अनुच्छेदों के अंतर्गत इसके कर्तव्य के रूप में सभी लोगों के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी कल्याण को सुनिश्चित करने की अपेक्षा करता है। जैसे-

अनुच्छेद 39(e)- महिला और पुरुषों के स्वास्थ्य की सुरक्षा।

अनुच्छेद 41- बीमार और निःशक्त लोगों के लिए लोक सहायता।

अनुच्छेद 42- मातृत्व लाभ द्वारा शिशु और मां के स्वास्थ्य की रक्षा।

अनुच्छेद 47- पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करना तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करना।

इसी प्रकार पंचायतों और नगरपालिकाओं में भी स्वास्थ्य से संबंधित कुछ प्रावधान हैं। जैसे- पीने योग्य पानी, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास और सामाजिक कल्याण क्षेत्र शामिल हैं।

इस प्रकार उपर्युक्त प्रावधानों एवं योजनाओं के माध्यम से भारतीय स्वास्थ्य देखभाल परिदृश्य ने जीवन प्रत्याशा और मातृ तथा बाल मृत्यु दर जैसी कई स्वास्थ्य संकेतकों में आशातीत प्रगति प्रदर्शित की है। जैसे- 2014 में who द्वारा भारत को पोलियो मुक्त राष्ट्र घोषित करना, शिशु मृत्युदर (imr) 2014 में 57 प्रति हजार जीवित जन्म थी जो आज 34 रह गई है (NFHS-5) , इसी अवधि के दौरान जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 63.80 वर्ष से बढ़कर 68.35 वर्ष हो गई है। Who ने 2030 तक TB मुक्त विश्व बनाने का लक्ष्य रखा है, जबकि भारत ने 2025 में ही इसे प्राप्त करने का लक्ष्य सुनिश्चित किया है।

भारत में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली द्वारा की गई इस महत्वपूर्ण प्रगति के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास उत्तरदाई है।

उपर्युक्त सफलताओं के बावजूद भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। जैसे -

  • स्वास्थ्य पर कम खर्चा-
    • भारत विश्व में दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, जो अपनी GDP का मात्र 1 से 1.5% ही स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करता है। जो किसी भी रूप में तर्कसंगत नहीं है।
  • खर्चीला इलाज-
    • लगभग 72% ग्रामीण आबादी को प्राइवेट हेल्थकेयर सेवाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है जबकि शहरी क्षेत्रों में भी लगभग 80% लोग निजी स्वास्थ्य सुवधाओं का उपयोग करते हैं।
    • भारत में स्वास्थ्य देखभाल पर कुल निजी व्यय का 94% "आउट ऑफ पॉकेट" व्यय है, जो विश्व में सबसे ज्यादा है।
  • बुनियादी ढांचे की समस्या -
    • भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढाँचे का विकास अधिकांश विकसित देशों की तुलना में बहुत कम और यहाँ तक ​​कि वैश्विक औसत से भी काफी कम है। आँकड़ों के अनुसार, देश के अस्पतालों में उपलब्ध बेडों (Beds) का घनत्व प्रति 1,000 जनसंख्या पर 0.7 है, जो कि वैश्विक औसत 2.6 और WHO द्वारा निर्धारित 3.5 से काफी कम है।
  • क्षेत्रीय असमानता की समस्या-
    • Kpmg रिपोर्ट के अनुसार 74%भारतीय डॉक्टर शहरी जनसंख्या के एक तिहाई भाग की आवश्यकता को पूरा करते हैं। जिसके चलते भारत के ग्रामीण सामुदायिक केंद्रों में 81% विशेषज्ञों की कमी है।
  • मानव पूंजी की कमी -
    • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में औसतन एक डॉक्टर पर क़रीब 11 हज़ार की जनसंख्या निर्भर हैं। WHO के तय मानकों के अनुसार डॉक्टर-जनसंख्या का अनुपात 1: 1,000 होना चाहिए। ऐसे में ये आंकड़ा 10 गुना अधिक है।
  • स्वास्थ्य बीमा-
    • वार्षिक संवृद्धि में वृद्धि के बावजूद, 80% से अधिक आबादी के पास अभी भी स्वास्थ्य बीमा कवरेज नहीं है।
  • केंद्र- राज्य संबंध-
    • चूंकि स्वास्थ्य राज्य सरकार का विषय है, ऐसे में राज्य सरकारों का सहयोग जब केंद्र सरकार को नहीं मिलता तो स्वास्थ्य सेवाएं बाधित होती हैं।
  • खाद्य असुरक्षा-
    • Global hunger index-2022 के अनुसार भारत, 121 देशों की सूची में 107 वें स्थान पर है, जबकि food security index-2022 के अनुसार भारत,113 देशों की सूची में 68वें स्थान पर है।
    • जो हमें इस दिशा में गंभीर रूप से सार्थक प्रयास करने की ओर इंगित करता है।

आगे की राह -

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देकर, जैसे- 2025 तक स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय को GDP का 2.5% के लक्ष्य को प्राप्त करके।
  • उपचारात्मक चिकित्सा (curative care) की अपेक्षा निवारक स्वास्थ्य (preventive health) उपायों पर बल दिया जाए।
  • मानव संसाधन की समस्या का उचित समाधान किया जाए। जैसे- इस क्षेत्र में रिक्तियों को भरकर, प्रदर्शन मूल्यांकन तंत्र, ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में सेवा शर्तों को लागू करके आदि।
  • जिला अस्पतालों के सुदृढ़ीकरण को बढ़ावा दिया जाए।
  • एक पूर्णतः कार्यात्मक स्वास्थ्य सूचना प्रणाली का निर्माण किया जाए, जिसमे किसी भी व्यक्ति के जन्म, मृत्यु एवं इसके कारणों का सार्वभौमिक पंजीकरण शामिल हो।
  • सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं को सशक्त राजनीतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति के साथ क्रियान्वित किया जाए।
  • शिक्षा एवं जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए।

किसी भी देश के लिए उसके नागरिकों का स्वास्थ्य एक बड़ी पूंजी होता है। यदि देश के निवासी स्वस्थ हैं तो वहां की सरकार देश की सुरक्षा, शिक्षा समेत अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश और प्रगति पर ध्यान दे सकती है।

इस प्रकार भारत में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम हुआ है परन्तु अभी और बहुत काम होना बाकी है। देश में स्वास्थ्य संरचना, उपचार, परीक्षण व शोध पर निरंतर कार्य करने की आवश्यकता है ताकि सबके स्वास्थ्य का सपना साकार हो सके और हमारे देश को इस मानव पूंजी का सार्वभौमिक लाभ प्राप्त हो सके।


  अंकित सिंह  

अंकित सिंह उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले से हैं। उन्होंने UPTU से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में स्नातक तथा हिंदी साहित्य व अर्थशास्त्र में परास्नातक किया है। वर्तमान में वे दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क (DU) से सोशल वर्क में परास्नातक कर रहे हैं तथा सिविल सर्विसेज की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइटों के लिए ब्लॉग लिखते हैं।

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