आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25: अर्थव्यवस्था की स्थिति | 31 Jan 2025
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स्रोत: पीआईबी
चर्चा में क्यों?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 प्रस्तुत किया। इसमें सुधारों एवं विकास के लिये रोडमैप निर्धारित किया गया, जो केंद्रीय बजट 2025 का आधार है।
आर्थिक सर्वेक्षण
- आर्थिक सर्वेक्षण, भारत की आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिये केंद्रीय बजट से पहले सरकार द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली एक वार्षिक रिपोर्ट है।
- मुख्य आर्थिक सलाहकार की देखरेख में वित्त मंत्रालय के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार की गई यह रिपोर्ट केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाती है।
- इस सर्वेक्षण में आर्थिक प्रदर्शन का आकलन किया जाता है, जिससे क्षेत्रीय विकास पर प्रकाश पड़ने के साथ संबंधित चुनौतियों की रूपरेखा और आगामी वर्ष के लिये आर्थिक दृष्टिकोण मिलता है।
- आर्थिक सर्वेक्षण को पहली बार वर्ष 1950-51 में बजट के एक भाग के रूप में प्रस्तुत किया गया था और वर्ष 1964 में यह केंद्रीय बजट से अलग दस्तावेज़ बन गया, जिसे बजट से एक दिन पहले प्रस्तुत किया जाता है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25: अर्थव्यवस्था की स्थिति
- वैश्विक अर्थव्यवस्था: वर्ष 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में मध्यम लेकिन असमान वृद्धि देखी गई। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने इस वर्ष के लिये 3.2% की वृद्धि का अनुमान लगाया, जिसमें आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के कारण विनिर्माण में मंदी के साथ सेवा क्षेत्र की मज़बूती पर प्रकाश डाला गया।
- वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति कम रहने एवं सेवा क्षेत्र में मुद्रास्फीति स्थिर रहने के कारण केंद्रीय बैंकों की मौद्रिक नीतियाँ अलग-अलग रहीं।
- भारत की अर्थव्यवस्था: भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वित्त वर्ष 26 (2025-26) में 6.3-6.8% तक बढ़ने का अनुमान है।
- वित्त वर्ष 2025 (2024-25) में भारत की वास्तविक GDP 6.4% रहने का अनुमान है, जिसमें कृषि और सेवाओं की प्रमुख भूमिका के साथ विनिर्माण क्षेत्र में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- क्षेत्रवार प्रदर्शन:
- कृषि: रिकॉर्ड खरीफ उत्पादन और मज़बूत ग्रामीण मांग के कारण वित्त वर्ष 2025 में 3.8% की वृद्धि देखी गई।
- उद्योग और विनिर्माण: वित्त वर्ष 2025 में 6.2% की वृद्धि के साथ कम वैश्विक मांग के कारण विनिर्माण की प्रगति धीमी रही।
- सेवाएँ: यह वित्त वर्ष 2025 में 7.2% की दर के साथ सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाला क्षेत्र है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त तथा हॉस्पिटलिटी की प्रमुख भूमिका रही।
- बाह्य क्षेत्र: निर्यात में 1.6% तथा आयात में 5.2% की वृद्धि होने से व्यापार घाटा को बढ़ावा मिला।
- भारत विश्व में धन प्रेषण के मामले में शीर्ष प्राप्तकर्त्ता बना रहा, जिससे चालू खाता घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 1.2% पर बनाए रखने में मदद मिली।
- कुल मिलाकर, भारत का आर्थिक परिदृश्य सकारात्मक बना हुआ है, जो घरेलू अनुकूलन और संरचनात्मक सुधारों से प्रेरित है, हालाँकि इसमें वैश्विक अनिश्चितताओं का जोखिम अभी भी बना हुआ है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ: रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़रायल-हमास संघर्ष ने व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा और मुद्रास्फीति को प्रभावित किया है।
- स्वेज नहर में व्यवधान के कारण जहाज़ों को केप ऑफ गुड होप के मार्ग से होकर जाना पड़ता है, जिससे माल ढुलाई की लागत और डिलीवरी का समय बढ़ जाता है।
- प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार नीति जोखिम और संरक्षणवाद भारत के निर्यात और आपूर्ति शृंखलाओं को प्रभावित करते हैं।
- मुद्रास्फीति और निवेश: वैश्विक मुद्रास्फीति में कमी आ रही है, फिर भी समकालिक मूल्य वृद्धि का जोखिम बना हुआ है।
- मौसम संबंधी असंतुलन और आपूर्ति शृंखला में व्यवधानों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति चिंता का विषय बनी हुई है।
- कमज़ोर वैश्विक विनिर्माण मांग से भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है, जिससे निजी निवेश में कमी आई है।
- वित्तीय जोखिम: बढ़ती सब्सिडी, कम कर संग्रह और केंद्रीय हस्तांतरण पर निर्भरता के कारण राज्य के राजकोषीय घाटा में वृद्धि हुई है।
आगे की राह:
- भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं का प्रबंधन: संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों पर निर्भरता कम करने के लिये व्यापार मार्गों और साझेदारों में विविधता लाना।
- घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाकर और दीर्घकालिक आयात समझौते सुनिश्चित करके ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करना।
- द्विपक्षीय समझौतों और वैश्विक आपूर्ति शृंखला विविधीकरण में भागीदारी के माध्यम से व्यापार में अनुकूलता सुनिश्चित करना।
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: खाद्य कीमतों को स्थिर करने के लिये खाद्य बफर स्टॉक का विस्तार करना तथा आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करना।
- मौसम संबंधी मूल्य को कम करने के लिये जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देना।
- प्रोत्साहनों, कर सुधारों और व्यापार को आसान बनाने संबंधी पहलों के माध्यम से निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करना।
- वित्तीय सुदृढ़ीकरण: राज्य के राजस्व को बढ़ाने और केंद्रीय स्थानान्तरण पर निर्भरता कम करने के लिये कर संग्रह तंत्र में सुधार करना।
- राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिये सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना तथा लक्षित कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना।
- दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिये राज्यों को राजकोषीय उत्तरदायित्व उपायों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न.1 "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न 2. क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुनरुत्थान का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (2021) |