परिसीमन और दक्षिणी राज्यों की चिंताएँ | 28 Feb 2025

प्रिलिम्स के लिये:

परिसीमन प्रक्रिया, लोकसभा, विधान सभा, मुख्य चुनाव आयुक्त, विशेष दर्जा, वित्त आयोग।      

मेन्स के लिये:

परिसीमन की मुख्य विशेषताएँ। आगामी परिसीमन के संबंध में दक्षिणी राज्यों की संबंधित चिंताएँ और आगे की राह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्री ने आश्वासन दिया कि आगामी परिसीमन प्रक्रिया से दक्षिणी राज्यों को कोई नुकसान नहीं होगा तथा सीटों में वृद्धि होने पर उन्हें उचित हिस्सा दिया जायेगा।

परिसीमन क्या है?

  • परिसीमन: परिसीमन का तात्पर्य लोक सभा और विधान सभाओं के लिये प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया से है।
    • यह 'परिसीमन प्रक्रिया' संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित 'परिसीमन आयोग' द्वारा संचालित की जाती है।
  • परिसीमन आयोग: यह एक उच्चस्तरीय तीन सदस्यीय निकाय है, जिसके आदेश कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं तथा किसी भी न्यायालय के समक्ष उन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।
    • इसमें सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीश शामिल होते हैं, जिनमें से एक को केंद्र सरकार द्वारा अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, तथा मुख्य चुनाव आयुक्त पदेन सदस्य होते हैं।
    • इसके आदेश लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में प्रस्तुत किये जाते हैं, लेकिन उन्हें संशोधित नहीं किया जा सकता।
    • इन्हें सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं ।
    • फरवरी 2024 तक इसे चार बार अर्थात् 1952, 1963, 1973 और 2002 में स्थापित किया जा चुका है।
  • परिसीमन के तर्क: प्रत्येक राज्य में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र का पुनर्निर्धारण इस प्रकार किया जाता है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या और आवंटित सीटों की संख्या पूरे राज्य में समान हो।
    • इससे विभिन्न राज्यों के बीच तथा एक ही राज्य के निर्वाचन क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है।
  • संवैधानिक प्रावधान: 
    • अनुच्छेद 82: इसमें प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोक सभा में राज्यों के लिये सीटों के पुनः समायोजन तथा प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित करने का प्रावधान है।
    • अनुच्छेद 170: इसमें विधान सभाओं की संरचना के बारे में प्रावधान किया गया है।
  • संबंधित संशोधन: जनसंख्या आधारित सीट आवंटन से उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों को लाभ मिलता है, इसलिये असंतुलन को रोकने और जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों को पारितोषिक करने के लिये संशोधन किये गए।
    • 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976: इसके माध्यम से लोकसभा सीट आवंटन और निर्वाचन क्षेत्र विभाजन को वर्ष 2000 की अवधि तक वर्ष 1971 के स्तर पर स्थिर कर दिया गया।
    • 84वाँ संशोधन अधिनियम, 2001: पुनः समायोजन पर रोक लगाने के उद्देश्य से इसमें वर्ष 2026 तक आगामी 25 वर्षों के लिये विस्तार कर दिया गया।
    • 87वाँ संशोधन अधिनियम, 2003: इसके अंतर्गत सीटों अथवा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में परिवर्तन किये बिना 2001 की जनगणना के आधार पर परिसीमन की अनुमति दी गई। 
  • न्यायिक समीक्षा: किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ केस, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि परिसीमन आयोग के आदेश की समीक्षा की जा सकती है यदि यह स्पष्ट रूप से मनमाना है और इससे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन होता है। 

नोट: अनुच्छेद 329 के अंतर्गत निर्वाचन संबंधी मामलों (परिसीमन अथवा सीट आवंटन) में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन किया गया है। 

  • 31वाँ संशोधन अधिनियम, 1973: 60 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्यों को जनसंख्या आधारित परिसीमन प्रक्रिया से अपवर्जित रखा गया।

आगामी परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्य चिंतित क्यों हैं?

  • प्रतिनिधित्व खोने का भय: यदि परिसीमन केवल जनसंख्या के आधार पर किया गया तो उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों की कम जनसंख्या के कारण दक्षिणी राज्यों में लोकसभा की सीटें कम हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, केरल में सीटों की संख्या में 0% की वृद्धि, तमिलनाडु में केवल 26% की वृद्धि, लेकिन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों के लिये सीटों की संख्या में 79% की वृद्धि होगी।
  • गेरीमैंडरिंग: दक्षिणी राज्य गेरीमैंडरिंग के बारे में चिंतित हैं, जो किसी पार्टी या समूह को अनुचित रूप से लाभ पहुँचाने के लिये चुनावी सीमाओं में हेरफेर करने की एक प्रथा है, जो निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को विकृत करती है।
    • उदाहरण के लिये, नेपाल के नए संविधान (2015) के तहत, नेपाल के तराई क्षेत्र, जिसमें 50% आबादी है, को पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में कम सीटें मिलीं, क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र का सीमांकन जनसंख्या की तुलना में भूगोल पर आधारित था, जिससे पहाड़ी अभिजात वर्ग को लाभ हुआ। 
  • संघवाद के लिये खतरा: परिसीमन से दक्षिणी राज्यों पर राजकोषीय बोझ बढ़ सकता है क्योंकि उत्तर के लिये अधिक सीटों का मतलब प्रति प्रतिनिधि उच्च केंद्रीय आवंटन हो सकता है।
    • उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिणी राज्यों का कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व उन पर ऐसी नीतियों को स्वीकार करने के लिये दबाव डाल सकता है जिन्हें वे अनुचित मानते हैं।
  • सुशासन को हतोत्साहित करना: दक्षिणी राज्यों के जनसंख्या नियंत्रण प्रयासों के कारण परिसीमन में सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उच्च प्रजनन क्षमता वाले राज्यों को अनुचित लाभ होगा और सुशासन को हतोत्साहित किया जा सकता है।
    • इससे अच्छी नीतियों की आलोचना होती है और यह प्रतिकूल भी साबित हो सकता है। उदाहरण के लिये, कुछ राजनेताओं ने बड़े परिवारों के लिये प्रोत्साहन पर विचार किया।
  • उत्तर-दक्षिण विभाजन: राजनीतिक और आर्थिक असंतुलन की भावना अधिक स्वायत्तता या विशेष दर्जे की मांग को बढ़ावा दे सकती है, जिससे राष्ट्रीय एकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और उत्तर-दक्षिण विभाजन गहरा सकता है ।
  • संसाधनों का असमान आवंटन: उत्तरी राज्यों को अधिक संसदीय प्रभाव के कारण अधिक केंद्रीय निधियाँ और कल्याणकारी योजनाएँ प्राप्त हो सकती हैं, जबकि दक्षिणी राज्यों को बेहतर प्रशासन के बावजूद कम संसाधनों का जोखिम उठाना पड़ सकता है।
    • वित्त आयोग (FC) राज्यों को धन आवंटित करने के लिये जनसंख्या को एक मानदंड के रूप में उपयोग करता है, जो दक्षिणी राज्यों के लिये नुकसानदेह हो सकता है।
  • क्षेत्रीय दलों का कमजोर होना: कई लोगों को डर है कि परिसीमन से उत्तरी क्षेत्र में मज़बूत आधार वाले दलों को लाभ हो सकता है जिससे राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव आने के साथ दक्षिणी क्षेत्रीय दल कमज़ोर हो सकते हैं।

आगे की राह

  • संतुलित प्रतिनिधित्व: यह सुनिश्चित करना कि किसी भी राज्य की मौजूदा हिस्सेदारी में कमी न हो, इसके लिये एक भारित सूत्र का उपयोग करना चाहिये जिसमें निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के क्रम में जनसंख्या, विकास सूचकांक, आर्थिक योगदान तथा शासन की गुणवत्ता को ध्यान में रखा जाए।
  • संसाधन आवंटन में समानता: दक्षिणी राज्यों को वित्तीय नुकसान से बचाने के लिये वित्त आयोग के हस्तांतरण फार्मूले को संशोधित करने के साथ संतुलित नीति निर्माण के क्रम में अंतर-राज्यीय परिषदों को मज़बूत करना चाहिये।
  • आम सहमति बनाना: परिसीमन संबंधी चिंताओं को दूर करने के क्रम में एक संवैधानिक समीक्षा पैनल की स्थापना करना तथा क्षेत्रीय असंतोष को रोकने हेतु जनसंख्या के आकार से परे प्रतिनिधित्व कारकों के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।
  • द्विसदनीय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना: लोकसभा में सीटों में आने वाली कमी की भरपाई के लिये राज्यसभा में दक्षिणी राज्यों को अधिक प्रतिनिधित्व प्रदान करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: आगामी परिसीमन प्रक्रिया के संबंध में दक्षिणी राज्यों की चिंताओं का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये तथा राष्ट्रीय एकता बनाए रखते हुए निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के उपाय बताइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. परिसीमन आयोग के आदेश को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
  2.  जब परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


प्रश्न: भारत सरकार ने दिसंबर 2023 तक कितने परिसीमन आयोग गठित किये हैं? (2024)

(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार  

उत्तर: (D)