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भारतीय राजव्यवस्था

सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी

  • 09 Jan 2025
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005, सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, CEC, निर्वाचन आयुक्त, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019, वैधानिक निकाय, विपक्ष का नेता, लाभ का पद, सहकारिता

मेन्स के लिये:

RTI की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाले मुद्दे और आगे की राह 

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI अधिनियम, 2005) के तहत सूचना आयुक्तों (IC) की नियुक्ति में केंद्र तथा राज्यों द्वारा की जा रही लगातार देरी की निंदा की है। 

  • सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी से नागरिकों की सूचना के अधिकार का प्रयोग करने की क्षमता सीमित होने के साथ मामले लंबित रहते हैं।

RTI अधिनियम, 2005 के संबंध में क्या चिंताएँ हैं?

  • नियुक्ति में देरी: वर्ष 2024 तक केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में IC के 8 पद रिक्त थे तथा नागरिकों द्वारा दायर 23,000 अपीलें लंबित थीं।
    • राज्यों में कई सूचना आयोग वर्ष 2020 से निष्क्रिय हो गए हैं और कुछ ने RTI अधिनियम, 2005 के तहत याचिकाएँ स्वीकार करना बंद कर दिया है।
    • लोक सूचना प्राधिकारियों (PIO) से प्राप्त RTI की प्रतिक्रियाओं से असंतुष्ट होकर नागरिक प्रायः नामित अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष प्रथम अपील दायर करने के लिये प्रेरित होते हैं।
  • अधीनस्थ नियम: अलग-अलग नियमों के कारण RTI अधिनियम का क्रियान्वयन राज्यों में अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिये, कुछ राज्यों में ऑनलाइन पोर्टल की कमी है या पंजीकरण में असंगतता है, जिससे संबंधित प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
  • पारदर्शिता का अभाव: सूचना आयुक्तों के पद पर नियुक्त अधिकांश लोग पूर्व नौकरशाह हैं, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता तथा पारदर्शिता के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • अंजलि भारद्वाज एवं अन्य बनाम भारत संघ मामला, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने विविध पृष्ठभूमि से लोगों की नियुक्ति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करना: RTI अधिनियम, 2005 में सार्वजनिक हित होने पर सरकार को व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने की अनुमति दी गई। हालाँकि, DPDP अधिनियम, 2023 द्वारा इसे पूर्ण प्रतिबंध में बदल दिया गया, जिससे शक्तिशाली लोक प्राधिकारियों की जवाबदेहिता कम होगी।
  • एकतरफा संशोधन: RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 द्वारा केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल एवं वेतन का निर्धारण करने का एकमात्र अधिकार प्रदान किया गया, जिससे संभावित रूप से इनकी स्वायत्तता से समझौता हो सकता है। 

नोट: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 द्वारा व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे सार्वजनिक ऑडिट एवं जवाबदेहिता में बाधा आ सकती है। इससे पहले, सार्वजनिक हित न होने पर सरकार को नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने से प्रतिबंधित किया गया था।

RTI अधिनियम, 2005 से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों से  सूचना प्राप्त करने के अधिकार से सशक्त बनाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • इसका उद्देश्य सरकारी निकायों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के कामकाज़ में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देना है।
  • उत्पत्ति: RTI अधिनियम की उत्पत्ति 1980 के दशक में राजस्थान में हुए एक ज़मीनी आंदोलन से हुई, जहाँ ग्रामीणों ने जवाबदेही और अभिलेखों तक पहुँच की मांग की थी।
  • प्रमुख प्रावधान: 
    • यह अधिनियम केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों समेत सरकार के सभी स्तरों पर लागू होता है।
    • धारा 8(2) सूचना के प्रकटीकरण की अनुमति देती है जब सार्वजनिक हित सूचना की गोपनीयता से अधिक महत्त्वपूर्ण हो।
    • धारा 22 यह सुनिश्चित करती है कि RTI अधिनियम को अन्य कानूनों के साथ किसी भी विसंगति पर प्राथमिकता दी जाएगी।
  • छूट: आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA), 1923 नौकरशाहों को आधिकारिक दस्तावेज़ों की गोपनीयता बनाए रखने के लिये जानकारी रोकने की अनुमति देता है।
  • RTI अधिनियम, 2005 में प्रमुख संशोधन: 
    • सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और IC का कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, निर्धारित किया गया है। सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 के बाद कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है।
      • मूल रूप से, सीआईसी का वेतन और सेवा की शर्तें CEC के साथ और IC का चुनाव आयुक्त के साथ संरेखित होती हैं। संशोधनों के बाद, सीआईसी और आईसी दोनों के लिये वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती हैं।

केंद्रीय सूचना आयोग क्या है?

  • स्थापना: इसकी स्थापना RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय (संवैधानिक निकाय नहीं) के रूप में की गई थी।
  • संरचना: इस अधिनियम के अनुसार केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और 10 से अधिक नहीं, जितनी आवश्यक समझी जाए, केंद्रीय सूचना आयुक्तों की संख्या शामिल होगी।
  • नियुक्ति: सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं:
    • प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)।
    • लोकसभा में विपक्ष के नेता 
    • प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
  • पात्रता और छूट: विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता या शासन में अनुभव वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति।
    • सांसद, विधायक नहीं होना चाहिये, या किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिये।
    • कोई राजनीतिक संबद्धता, व्यवसाय या पेशेवर जुड़ाव नहीं।
    • ये पुनर्नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।
  • CIC की शक्तियाँ: गवाहों को बुलाना, दस्तावेज़ों का निरीक्षण करना, सार्वजनिक अभिलेखों की मांग करना, तथा जाँच के लिये समन जारी करना।
  • कार्य: इसकी प्राथमिक भूमिका RTI अधिनियम, 2005 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना और नागरिकों के सूचना के अधिकार को बनाए रखना है।
    • यह न्यायालय केंद्र सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों के कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य संस्थाओं से जुड़े मामलों का समाधान करता है।

आगे की राह

  • रिक्तियों पर ध्यान देना: समय पर अपीलों के समाधान हेतु सूचना आयोगों में रिक्तियों की पूर्ति के लिये नियुक्तियों में तीव्रता लाना तथा RTI के ढाँचे में नागरिकों का विश्वास बनाए रखना।
    • उच्चतम न्यायालय की सिफारिश के अनुसार विविध क्षेत्रों के पेशेवरों को शामिल करने के लिये चयननात्मक मानदंडों को व्यापक बनाया जाना चाहिये।
  • उन्नत कवरेज़: सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (PPP), खेल निकायों और सहकारी समितियों को RTI अधिनियम, 2005 के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिये, ताकि विशेष रूप से सार्वजनिक धन के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
    • वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के अंतर्गत लाया जाए।
  • डिज़िटल एकीकरण: सभी डाकघरों को डाक-मुक्त RTI आवेदन स्वीकार करने की अनुमति दी जाए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों के लिये।
  • जवाबदेही: सार्वजनिक प्राधिकरणों को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह होना चाहिये तथा उन्हें नियमित रूप से जानकारी देनी चाहिये तथा रिपोर्ट देनी चाहिये कि वे RTI याचिकाओं को किस प्रकार संभाल रहे हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के वर्तमान मुद्दों पर चर्चा कीजिये और बेहतर प्रशासन के लिये इसे सुदृढ़ करने के उपाय सुझाइये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स

प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018)

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