भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक | 26 Nov 2024
प्रिलिम्स के लिये:नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, भारत के राष्ट्रपति, भारत की संचित निधि, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, मेंस के लिये:भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का महत्त्व, वित्तीय अखंडता और जवाबदेही। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
के. संजय मूर्ति को भारत का नया नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) नियुक्त किया गया है, वे गिरिश चंद्र मुर्मू की जगह लेंगे।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- भारत के CAG के बारे में: संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार, भारत का CAG भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (IA-AD) का प्रमुख होता है। वह सार्वजनिक निधि की सुरक्षा और केंद्र एवं राज्य दोनों स्तरों पर वित्तीय प्रणाली की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार होता है।
- CAG वित्तीय प्रशासन में संविधान और संसदीय कानूनों को कायम रखता है और इसे सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग और संघ लोक सेवा आयोग के साथ भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है।
- भारत का CAG नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियां और सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1971 द्वारा शासित होता है, जिसमें वर्ष 1976, 1984 और 1987 में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गए।
- नियुक्ति और कार्यकाल: भारत के CAG की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित एक अधिकार पत्र (Warrant) द्वारा की जाती है। CAG छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर कार्य करता है।
- CAG संविधान की रक्षा करने तथा बिना किसी भय या पक्षपात के निष्पक्षतापूर्वक अपने कर्त्तव्यों का पालन करने की शपथ ग्रहण करता है।
- राष्ट्रपति द्वारा CAG को पद से केवल उसी रीति से और उन्ही आधारों पर हटाया जाएगा जिस रीति से और जिन आधारों पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।, तथा इसके लिये सिद्ध दुर्व्यवहार या अक्षमता हेतु संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत प्रस्ताव की आवश्यकता होती है।
- CAG किसी भी समय राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र देकर अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।
- स्वतंत्रता: CAG को केवल संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति द्वारा (न की राष्ट्रपति के विवेक अधिकार पर) हटाया जा सकता है।
- पद छोड़ने के बाद CAG भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी भी अन्य पद के लिये पात्र नही हैं।
- CAG का वेतन संसद निर्धारित करती है, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के वेतन के बराबर होते है।
- राष्ट्रपति, CAG के परामर्श से CAG के कर्मचारियों के लिये सेवा शर्तें और प्रशासनिक शक्तियाँ निर्धारित करता हैं।
- CAG के प्रशासनिक व्यय, जिनमें वेतन, भत्ते और पेंशन शामिल हैं, भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं, जो संसदीय मतदान के अधीन नहीं होते हैं।
- कोई भी मंत्री संसद में CAG का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता या उसके कार्यों की ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता।
- कर्त्तव्य एवं शक्तियाँ: CAG भारत की संचित निधि और राज्य निधि से व्यय से संबंधित खातों का लेखा-परीक्षण करता है।
- यह सरकारी निगमों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकार द्वारा वित्तपोषित निकायों के खातों का भी लेखा-परीक्षण करता है।
- CAG करों और शुल्कों की शुद्ध आय पर प्रमाणपत्र प्रदान करता है, तथा ऋण, अग्रिम और सस्पेंस खातों से संबंधित लेनदेन का ऑडिट करता है।
- CAG ऑडिट रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जो उन्हें संसद के समक्ष रखता है। इन रिपोर्टों की जाँच लोक लेखा समिति द्वारा की जाती है।
- भूमिका: CAG संसद के एजेंट के रूप में कार्य करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक वित्त का उपयोग कानूनी और कुशलतापूर्वक किया जाए।
- यह समीक्षा करता है कि वितरित धनराशि कानूनी के अनुसार था और उसका सही ढंग से उपयोग किया गया था तथा व्यय शासकीय प्राधिकरण के अनुरूप है या नहीं।
- CAG करदाताओं के धन की सुरक्षा करने तथा यह सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार है कि उसका व्यय कानून के अनुसार तथा लक्षित उद्देश्यों के लिये किया जाए।
- कानूनी और नियामक लेखापरीक्षाओं के अतिरिक्त, CAG औचित्य संबंधी लेखापरीक्षा भी कर सकता है, अर्थात् वह सरकारी व्यय की बुद्धिमत्ता, विश्वसनीयता और मितव्ययिता का आकलन कर सकता है, साथ ही अपव्यय और फिजूलखर्चा पर टिप्पणी कर सकता है।
- अनिवार्य कानूनी और विनियामक ऑडिट के विपरीत, स्वामित्व संबंधी ऑडिट वैकल्पिक हैं।
- भारत में CAG का धन जारी करने पर नियंत्रण नहीं है तथा वह केवल महालेखा परीक्षक की भूमिका निभाता है, जबकि ब्रिटेन में CAG नियंत्रक के रूप में भी कार्य करता है।
- यह समीक्षा करता है कि वितरित धनराशि कानूनी के अनुसार था और उसका सही ढंग से उपयोग किया गया था तथा व्यय शासकीय प्राधिकरण के अनुरूप है या नहीं।
- अंतर्राष्ट्रीय लेखा परीक्षा:
- IAEA (2022-2027): CAG अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का बाह्य लेखा परीक्षक है, जो परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित उपयोग को बढ़ावा देता है।
- FAO (2020-2025): CAG वैश्विक खाद्य सुरक्षा की दिशा में काम करने वाले खाद्य और कृषि संगठन का ऑडिट करता है।
भारत के CAG के संबंध में संवैधानिक प्रावधान
प्रावधान |
विवरण |
अनुच्छेद 148 |
यह विधेयक भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति, शपथ और सेवा की शर्तों से संबंधित है। |
अनुच्छेद 149 |
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्यों एवं शक्तियों को निर्दिष्ट करता है। |
अनुच्छेद 150 |
इसमें कहा गया है कि संघ और राज्यों के खातों को CAG की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित प्रारूप में रखा जाना चाहिये। |
अनुच्छेद 151 |
संघीय लेखाओं पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाएगी तथा संसद के समक्ष रखी जाएगी; राज्य की रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जाएगी तथा राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी जाएगी। |
अनुच्छेद 279 |
इसमें प्रावधान है कि CAG "शुद्ध आगम" की गणना को प्रमाणित करता है और उसका प्रमाणपत्र अंतिम होता है। |
तीसरी अनुसूची |
धारा IV में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और CAG द्वारा पद ग्रहण करने पर ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान का प्रावधान है। |
छठी अनुसूची |
यह निर्दिष्ट करता है कि जिला या क्षेत्रीय परिषदों के खातों को CAG द्वारा निर्धारित प्रारूप में रखा जाना चाहिये और तदनुसार उनका ऑडिट किया जाना चाहिये। परिषद के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जानी चाहिये। |
CAG लोकतंत्र को कैसे मज़बूत करता है?
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे के प्रमुख सिद्धांत जवाबदेही, नागरिक सहभागिता और विकेंद्रीकरण हैं। जैसे-जैसे शासन अधिक जटिल होता जाता है, इन सिद्धांतों को मज़बूत तंत्रों के माध्यम से बनाए रखा जाना चाहिये।
- भारत का CAG सार्वजनिक धन के उपयोग में सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करता है, करदाताओं के धन के दुरुपयोग को रोकता है और नागरिकों के सर्वोत्तम हितों में शासन को बढ़ावा देता है, जो लोकतंत्र में आवश्यक है।
- स्थानीय शासन को सुदृढ़ बनाना: CAG क्षमता निर्माण और मार्गदर्शन के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों को सहायता प्रदान करता है।
- वार्षिक तकनीकी निरीक्षण रिपोर्ट (ATIR) के माध्यम से, यह सेवा वितरण में स्थानीय सरकार के प्रदर्शन का आकलन करता है। कुशल लेखाकारों की कमी को दूर करने के लिये, CAG, भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंट्स संस्थान (ICAI) के सहयोग से ऑनलाइन पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
- शक्तियों के पृथक्करण की सुरक्षा: लेखापरीक्षा यह सुनिश्चित करती है कि कार्यपालिका की वित्तीय गतिविधियां विधायी मंशा के अनुरूप हों, तथा शक्ति संतुलन बना रहे।
- नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण: नागरिकों को लेखापरीक्षा प्रक्रियाओं के केंद्र में रखकर, CAG यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी कार्यक्रमों का कार्यान्वयन लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे।
- नागरिक फीडबैक से CAG को उच्च ज़ोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने में मदद मिलती है, जहाँ कुप्रबंधन हो सकता है, जिससे लेखापरीक्षा का फोकस और प्रभावशीलता में सुधार होता है।
CAG ने कौन से बड़े घोटाले उज़ागर किये हैं?
- भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं के कई हाई-प्रोफाइल मामलों को उज़ागर करने में CAG की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
- 2G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला: CAG ने 1.76 लाख करोड़ रुपए के नुकसान को उज़ागर किया।
- भारत के CAG की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत सरकार ने स्वतंत्र और निष्पक्ष नीलामी को दरकिनार करते हुए, 2G स्पेक्ट्रम लाइसेंसों को काफी कम कीमत पर आवंटित किया।
- कोयला खदान आवंटन घोटाला: CAG ने 1.85 लाख करोड़ रुपए के गलत लाभ का अनुमान लगाया।
- कोयला घोटाला, जिसे कोलगेट के नाम से जाना जाता है, वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक कोयला ब्लॉकों के अनियमित और संभावित रूप से अवैध आवंटन से संबंधित है, जिसमें सरकार के पास ऐसा करने का अधिकार होने के बावजूद प्रतिस्पर्द्धी बोली को दरकिनार कर दिया गया।
- चारा घोटाला: CAG ने 940 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी से निकासी का खुलासा किया।
- चारा घोटाला, वर्ष 1985 से वर्ष 1995 के बीच बिहार के पशुपालन विभाग में हुई वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ा था।
- 2G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला: CAG ने 1.76 लाख करोड़ रुपए के नुकसान को उज़ागर किया।
भारत में CAG की कार्यप्रणाली के संबंध में क्या आलोचनाएँ हैं?
- संसद में प्रस्तुत रिपोर्टों की संख्या में कमी: संसद में CAG द्वारा प्रस्तुत लेखापरीक्षा रिपोर्टों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, जो वर्ष 2015 में 53 से घटकर वर्ष 2023 में मात्र 18 रह गई है, जिससे सरकारी व्यय में निगरानी और पारदर्शिता में कमी की चिंता उत्पन्न होती है, जिससे वित्तीय अनियमितताओं की पहचान में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- इसके अतिरिक्त, CAG कई फर्मों और सरकारी निकायों का प्रत्यक्ष रूप से ऑडिट करता है, लेकिन प्रत्येक वर्ष केवल कुछ का ही मूल्यांकन करता है, जिससे कई ऑडिट लंबित रह जाते हैं।
- कार्योत्तर लेखापरीक्षा: CAG का लेखापरीक्षा कार्य काफी हद तक कार्योत्तर होता है, जिसका अर्थ है कि लेखापरीक्षा सरकारी व्यय किये जाने के बाद होती है, न कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल होने के बाद।
- इससे वित्तीय कुप्रबंधन या अनियमितताओं को घटित होने से पहले रोकने की CAG की क्षमता सीमित होती है।
- CAG द्वारा वित्तीय लेन-देन का परीक्षण तो किया जाता है लेकिन सक्रिय वित्तीय निगरानी में इसका योगदान सीमित होता है।
- CAG के कार्य का सीमित महत्त्व: लेखा परीक्षक प्रशासन पर नहीं बल्कि लेखापरीक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिससे उनका कार्य आवश्यक तो होता है लेकिन परिप्रेक्ष्य और उपयोगिता में सीमित होता है। इसके अतिरिक्त बजट जारी करने से पहले पूर्व-लेखापरीक्षा में CAG की कोई भूमिका नहीं होती है।
- अपर्याप्त आर्थिक विशेषज्ञता: आलोचकों का तर्क है कि CAG के पास पर्याप्त आर्थिक विशेषज्ञता का अभाव (विशेषकर प्राकृतिक संसाधनों जैसे जटिल क्षेत्रों का लेखा-परीक्षण करते समय) रहता है।
- भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग (IA&AD) में कर्मचारियों की संख्या में उल्लेखनीय कमी (जो वर्ष 2013-14 के 48,253 से घटकर वर्ष 2021-22 में 41,675 हो गई है) आई है। यह कमी CAG की ऑडिट करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है, जिससे परीक्षण प्रणाली सीमित होने के साथ इसकी पारदर्शिता और जवाबदेहिता में बाधा आ सकती है।
- रिपोर्टिंग में देरी: CAG को दस्तावेज प्रस्तुत करने और संसद में रिपोर्ट प्रस्तुत करने में अक्सर देरी होती है, जिससे समय पर जवाबदेही तय करने में बाधा उत्पन्न होती है।
CAG में कौन से सुधार आवश्यक हैं?
- CAG अधिनियम में संशोधन: आधुनिक शासन आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित करने के साथ जवाबदेहिता में सुधार हेतु वर्ष 1971 के CAG अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिये।
- चयन प्रक्रिया: CAG की नियुक्ति के लिये राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता को शामिल करते हुए एक कॉलेजियम का गठन होना चाहिये।
- यह दृष्टिकोण अधिक निष्पक्ष एवं वैध चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के साथ निष्पक्षता एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- नई चुनौतियों हेतु अनुकूलन: CAG को जलवायु परिवर्तन एवं महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों जैसे नए क्षेत्रों की लेखापरीक्षा के क्रम में अनुकूलन करने की आवश्यकता है। इन उभरते क्षेत्रों में व्यापक निगरानी तथा जवाबदेहिता सुनिश्चित करने के लिये यह अनुकूलन महत्त्वपूर्ण है।
- क्षमता निर्माण: लेखापरीक्षा की गुणवत्ता में सुधार (विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों, प्रौद्योगिकी और जटिल आर्थिक क्षेत्रों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में) हेतु CAG कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ इनकी क्षमता में वृद्धि करना चाहिये।
- फीडबैक तंत्र: विभिन्न संस्थाओं की चिंताओं के साथ सुझावों पर ध्यान रखने हेतु मज़बूत फीडबैक तंत्र स्थापित करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लेखापरीक्षा रचनात्मक एवं सुधारात्मक हो।
निष्कर्ष
CAG वित्तीय औचित्य का प्रहरी एवं लोकतांत्रिक जवाबदेहिता का संरक्षक है। हालाँकि इसने शासन को मज़बूत करने एवं भ्रष्टाचार को सामने लाने में काफी प्रगति की है लेकिन तीव्रता से विकसित हो रहे आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करने हेतु और भी सुधारों की गुंजाइश है। अपने अधिदेश को मज़बूत कर और अपने कार्यों को आधुनिक बनाकर, CAG भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: सार्वजनिक वित्तीय जवाबदेही की सुरक्षा में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका का परीक्षण कीजिये। संवैधानिक प्रावधान CAG को किस प्रकार सशक्त बनाते हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्र. लोक निधि के फलोत्पादक और आशायित प्रयोग को सुरक्षित करने के साथ-साथ भारत में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (CAG) के कार्यालय का महत्त्व क्या है? (2012) 1- CAG संसद की ओर से राजकोष पर नियंत्रण रखता है जब भारत का राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात/वित्तीय आपात घोषित करता है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1, 3 ओर 4 उत्तर: c मेन्स:प्रश्न. “नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।” समझाएँ कि यह उसकी नियुक्ति की पद्धति और शर्तों के साथ-साथ उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की सीमा में कैसे परिलक्षित होती है? (2018) प्रश्न. संघ एवं राज्यों की लेखाओं के संबध में नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तिओं का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिये कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या नहीं। (2016) |