फ्रीबीज़ और कल्याण के बीच संतुलन | 10 Feb 2025

प्रिलिम्स के लिये:

सब्सिडी, RBI, स्वास्थ्य बीमा, क्रय शक्ति, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSP), राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003, ऑफ-बजट देयताएँ

मेन्स के लिये:

फ्रीबीज़ और कल्याणकारी योजनाओं पर बहस तथा अर्थव्यवस्था पर उनका प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

राजनीतिक दलों के बीच मतदाताओं को लुभाने के लिये फ्रीबीज़ या सब्सिडी का वादा करने का प्रचलन (जैसा कि 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में देखा गया है) बढ़ रहा है। 

  • फ्रीबीज़ या "रेवड़ी संस्कृति" पर बहस होती रहती है - कुछ लोग इन्हें विकास के लिये हानिकारक मानते हैं जबकि अन्य इन्हें सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिये आवश्यक मानते हैं।
  • RBI द्वारा 'फ्रीबीज़' को "निःशुल्क प्रदान किये जाने वाले सार्वजनिक कल्याणकारी उपाय" के रूप में परिभाषित किया गया है।

फ्रीबीज़ सामाजिक-आर्थिक प्रगति में किस प्रकार सहायक है?

  • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं को नकद हस्तांतरण से वित्तीय स्वतंत्रता, निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि के साथ तत्काल आवश्यकताओं के लिये परिवार के सदस्यों पर निर्भरता कम होती है।
  • मानव क्षमताओं में वृद्धि: निःशुल्क भोजन एवं स्वास्थ्य बीमा जैसी कल्याणकारी योजनाएँ अमर्त्य सेन के "क्षमता दृष्टिकोण" के अनुरूप हैं जिससे गरिमा, प्रतिरक्षा में वृद्धि होने के साथ स्वास्थ्य देखभाल का बोझ कम होता है।
  • उपभोक्ता व्यय को बढ़ावा मिलना: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से मांग को बढ़ावा मिलता है तथा क्रय शक्ति में वृद्धि होती है और व्यय में वृद्धि के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
  • गरीबी उन्मूलन: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और मध्याह्न भोजन जैसी खाद्य सुरक्षा योजनाएँ बुनियादी जीविका सुनिश्चित करने के साथ गरीबी को कम करने में भूमिका निभाती हैं।
    • लक्षित कल्याणकारी उपाय अमीर और गरीब के बीच अंतराल को कम करने के साथ समावेशी विकास को बढ़ावा देते हैं।
  • दीर्घकालिक लाभ: खराब स्वास्थ्य, व्यक्तिगत पीड़ा का कारण बनता है एवं स्वास्थ्य सेवा की मांग में वृद्धि से लोक संसाधनों पर दबाव पड़ता है। पोषण में शुरुआती निवेश से व्यक्तियों तथा समाज को दीर्घकालिक लाभ होता है।

फ्रीबीज़ विकास के लिये किस प्रकार अहितकर हो सकती हैं?

  • राजस्व घाटे में उतरोत्तर बढ़ोतरी: फ्रीबीज़ अथवा नि:शुल्क सुविधाओं पर आधारित व्यय से राजकोषीय बोझ बढ़ता है, जिससे राज्यों के राजस्व अधिशेष में कमी आती है।
  • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022-23 और वर्ष 2024-25 की अवधि में दिल्ली का राजस्व अधिशेष 35% कम हो गया।
  • उच्च सब्सिडी व्यय: RBI ने चेतावनी दी है कि अनियंत्रित सब्सिडी के कारण बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की निधि अन्य क्षेत्रों में उपयोजित होती है तथा नई नि:शुल्क सुविधाओं के कारण वार्षिक लागत में 10,000 से 12,000 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होती है।
  • कर का बढ़ता बोझ: सरकारें बढ़ते सरकारी व्यय को पूरा करने के लिये करों में वृद्धि कर सकती हैं, जिससे संभावित रूप से प्रयोज्य आय कम हो सकती है और मध्यम वर्ग की खपत प्रभावित हो सकती है।
  • निवेश में कमी: नि:शुल्क सुविधाओं पर अत्यधिक व्यय से उपलब्ध संसाधन प्रभावित हो सकते हैं तथा राज्यों की महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक अवसंरचना के निर्माण की क्षमता में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • संभाव्य ऋण चूक जोखिम: प्रभावित राजकोषीय स्थिति से राज्यों की उधार लेने की क्षमता प्रभावित होती है तथा ऋण चुकौती की उच्च लागत से ऋण चूक जोखिम बढ़ सकता है।
    • इससे मांग में वृद्धि नहीं हो सकती, क्योंकि लोग इस आशय के साथ वर्तमान में अधिक बचत करते हैं भविष्य के करों से सरकारी उधारी की लागत की भरपाई हो जाएगी (रिकार्डियन समतुल्यता)
  • निर्णय लेने की प्रक्रिया का विकृत होना: कुछ व्यक्ति का यह तर्क है कि नि:शुल्क सुविधाएँ रिश्वतखोरी के समान होती हैं और मतदाताओं को उचित निर्णय लेने से हतोत्साहित करती हैं।

 फ्रीबीज़ से संबंधित न्यायिक निर्णय क्या है?

  • एस. सुब्रमण्यम बालाजी केस, 2013: सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि निःशुल्क सुविधाएँ विधायी नीति के अंतर्गत आती हैं और न्यायिक जाँच से बाहर हैं। इसमें इस तथ्य पर ज़ोर दिया कि कुछ निःशुल्क वस्तुएँ/सुविधाएँ राज्य की नीति के निदेशक तत्त्वों (DPSP) के अनुरूप हैं।
  • निःशुल्क सुविधाओं पर विशेषज्ञ पैनल: वर्ष 2022 में, एक लोकहित वाद में दावा किया गया कि निःशुल्क सुविधाओं से स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन प्रभावित होते हैं तथा हितधारकों की सिफारिशें एकत्र करने हेतु एक विशेषज्ञ पैनल का प्रस्ताव रखा गया।

निःशुल्क सुविधाएँ कल्याणकारी योजनाओं से किस प्रकार भिन्न हैं?

मानदंड

निःशुल्क सुविधाएँ

कल्याणकारी योजनाएँ

संकल्पनात्मक भेद

प्रायः राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से निःशुल्क प्रदान की जाने वाली वस्तुएँ या सेवाएँ।

सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिये सरकारी पहल।

मेरिट बनाम नॉन-मेरिट गुड्स

नॉन-मेरिट गुड्स जैसे टीवी, लैपटॉप, मिक्सर ग्राइंडर और नकद सहायता।

शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण रोज़गार जैसी मेरिट गुड्स।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

इससे अल्पावधि लाभ मिलता है, लेकिन संरचनात्मक आर्थिक सुधार का अभाव होता है।

गरीबी कम होती है, जीवन स्तर में सुधार होता है, और उत्पादकता बढ़ती है।

राजकोषीय स्थिरता

इससे अत्यधिक उधारी और राजस्व घाटा हो सकता है।

आर्थिक समावेशन के लिये नीतिगत समर्थन के साथ बजट तैयार किया गया।

राजनीतिक प्रेरणाएँ

प्रायः मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये चुनाव से पहले वितरित किया जाता है।

दीर्घकालिक नीति नियोजन के साथ संरचनात्मक विकास पर लक्ष्य।

कार्यान्वयन चुनौतियाँ

अविवेकपूर्ण तरीके से वितरित किया जाता है, जिससे कभी-कभी गैर-जरूरतमंद वर्ग को भी लाभ पहुँचता है।

असमानताओं को दूर करने के लिये आवश्यक।

जवाबदेही और शासन

पारदर्शिता का अभाव, जिसके कारण वित्तीय कुप्रबंधन होता है।

राजकोषीय योजना, समन्वय और निरीक्षण के अधीन।

नोट: 

  • मेरिट गुड्स वे वस्तुएँ और सेवाएँ हैं जिनके सकारात्मक बाह्यताएँ होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे न केवल व्यक्तियों को बल्कि पूरे समाज को लाभ पहुँचाती हैं। जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, खाद्य सुरक्षा आदि।
  • डिमेरिट गुड्स वे वस्तुएँ और सेवाएँ हैं जिनके उपभोग से उपभोक्ता और समाज के अन्य लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ, शराब।

आगे की राह

  • राजकोषीय सुधार: अनियंत्रित राजकोषीय व्यय को रोकने के लिये राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003 को मज़बूत बनाया जाएगा।
    • स्थायी सामाजिक कल्याण सुनिश्चित करने के लिये समयबद्ध एवं लक्षित सब्सिडी लागू करना।
  • कल्याण और फ्रीबीज़ सुविधाओं को परिभाषित करना: सामाजिक उपयोगिता, दीर्घकालिक प्रभाव और राजकोषीय स्थिरता को मानदंड के रूप में उपयोग करते हुए, आवश्यक कल्याण को चुनावी फ्रीबीज़ सुविधाओं से अलग करने के लिये नीतिगत दिशा-निर्देशों को परिभाषित करना।
  • संस्थागत तंत्र को मज़बूत करना: सार्वजनिक व्यय की निगरानी के लिये वित्तीय नियामकों को मज़बूत करना तथा ऑफ-बजट उधारी और प्रच्छन्न सब्सिडी (जैसे, विद्युत् की कम कीमत) पर नज़र रखना।
  • कल्याण और राजकोषीय विवेक में संतुलन: आर्थिक स्थिरता के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना, यह सुनिश्चित करना कि सब्सिडी और सामाजिक योजनाएँ निर्भरता के बजाय क्षमता निर्माण को बढ़ावा दें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में चुनावी फ्रीबीज़ योजनाओं के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर चर्चा कीजिये। वे कल्याणकारी योजनाओं से किस प्रकार भिन्न हैं?