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भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ

  • 22 Jul 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ और संचालित प्रमुख जल परियोजनाएंँ

मेन्स के लिये:

जल संकट संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एसोसिएशन ऑफ जियोस्पेशियल इंडस्ट्रीज़ ने "भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की क्षमता" (Potential of Geospatial Technologies for the Water Sector in India) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में जल क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों का उल्लेख किया गया है जो भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग से लाभान्वित कर सकते हैं।

  • प्रत्येक वर्ष जैसे-जैसे भारत में जल संकट की गंभीरता बढ़ रही है, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियांँ जल संकट से निपटने के लिये तरह-तरह के संसाधनों का इस्तेमाल कर रही हैं। उनमें से एक भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों को अपनाना भी है।

प्रमुख बिंदु:

भारत में जल क्षेत्र का अवलोकन:

  • मांग-आपूर्ति असंतुलन: भारत में विश्व की आबादी का लगभग 17% हिस्सा है, लेकिन विश्व के ताज़े जल के भंडार का केवल 4% है और भारत वर्तमान में एक गंभीर जल चुनौती का सामना कर रहा है।
    • इसके अलावा भारत के जलाशयों की कुल क्षमता 250 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) है, जबकि सतह पर इसकी कुल जल धारण क्षमता लगभग 320 bcm है।
  • जल संग्रहण की कम दर: भारत को प्रत्येक वर्ष वर्षा या अन्य स्रोतों जैसे- ग्लेशियरों के माध्यम से 3,000 bcm जल प्राप्त होता है; इसमें से केवल 8% का ही संग्रहण किया जाता है।
  • भूजल का अति-निष्कर्षण और अति-निर्भरता: भारत में प्रतिवर्ष 458 bcm की दर से भूजल का निष्कर्षण होता है, जबकि यह पृथ्वी से लगभग 650 bcm जल का निष्कर्षण करता है।
    • भारत के 89% जल संसाधनों का उपयोग कृषि के लिये किया जाता है, जिसमें से 65% की आपूर्ति भूजल निष्कर्षण से की जाती है।
    • इस प्रकार भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक भूजल संरक्षण है।
  • जल संकट: नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत के 12 प्रमुख नदी घाटियों में लगभग 820 मिलियन लोग अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं।
  • गुणात्मक मुद्दा: जल उपलब्धता की कमी का मुद्दा जल की गुणवत्ता से जुड़ा मुद्दा है।
    • भारत के 600 ज़िलों में से एक-तिहाई में भूजल मुख्य रूप से फ्लोराइड और आर्सेनिक के माध्यम से दूषित है।
    • इसके अलावा भारत की पर्यावरण रिपोर्ट, 2019 के अनुसार, 2011-2018 के बीच सकल प्रदूषणकारी उद्योगों की संख्या में 136 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

Water-Sector

जल संरक्षण की आवश्यकता:

  • जनसंख्या घनत्व और कृषि के लिये जल की आवश्यकता को देखते हुए भारत भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है और जहाँ तक ​​जल संकट का संबंध है, यह सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों में से एक है।
  • व्यक्तिगत, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिये सभी को स्वच्छ पानी की उपलब्धता न केवल यह सुनिश्चित करेगी कि भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने दृष्टिकोण तक पहुँचे बल्कि यह इसे संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सक्षम बनाएगा।

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के बारे में:

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग पृथ्वी और मानव समाज के भौगोलिक मानचित्रण एवं विश्लेषण में योगदान करने वाले आधुनिक उपकरणों की श्रेणी का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
  • 'भू-स्थानिक' शब्द एक एकल तकनीक को नहीं, बल्कि उन प्रौद्योगिकियों के संग्रह को संदर्भित करता है जो भौगोलिक जानकारी एकत्र करने, उनका विश्लेषण, संग्रहण, प्रबंधन, वितरण, एकीकरण और प्रस्तुत करने में मदद करते हैं।
  • मोटे तौर पर इसमें निम्नलिखित प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं:
    • रिमोट सेंसिंग
    • जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली)
    • GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)
    • सर्वेक्षण
    • 3डी मॉडलिंग
  • लाभ: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी बेहतर माप, प्रबंधन और परिसंपत्तियों के रखरखाव, संसाधनों की निगरानी एवं यहाँ तक ​​कि पूर्वानुमान तथा नियोजित हस्तक्षेप के लिये निर्देशात्मक विश्लेषण प्रदान करने में सक्षम बनाती है।

जल क्षेत्र हेतु भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:

Aspects-of-water-sector

भारत में संचालित प्रमुख जल परियोजनाएंँ:

डिजिटल ट्विन

  • यह भौतिक दुनिया की एक आभासी प्रतिकृति है। इसकी गतिशीलता और प्रक्रियाएँ हमें वास्तविक जीवन स्थितियों का अनुकरण करने तथा इसके प्रभाव का विश्लेषण करने की अनुमति देती हैं।
  • डिजिटल ट्विन तीन भागों से बने होते हैं:
    • भौतिक दुनिया में भौतिक संस्थाओं।
    • आभासी दुनिया में आभासी मॉडल।
    • जुड़ा हुआ डेटा जो दो विश्व को जोड़ता है।
  • डिजिटल ट्विन्स न केवल भौतिक संपत्तियों (पाइप, पंप, वाल्व, टैंक आदि) के डिजिटल भाग को एकीकृत करते हैं, बल्कि मौसम संबंधी रिकॉर्ड जैसे ऐतिहासिक डेटा सेट को भी शामिल करते हैं, जो उन्हें कई विश्लेषणों के लिये उपयोग करने की अनुमति देता है।

आगे की राह

  • दीर्घकालिक भू-स्थानिक दृष्टि: विभिन्न कार्यक्रमों में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिये उपयोगकर्त्ता विभागों को भू-स्थानिक कार्यान्वयन के परिणामों हेतु दीर्घकालिक दृष्टि से अपनाने की आवश्यकता है।
  • एकीकृत भू-स्थानिक मंच: विभिन्न संगठनों द्वारा उपयोग किये जाने वाले डेटा और प्रौद्योगिकी को जोड़ने हेतु एक एकीकृत सहयोगी मंच को स्थानीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर सूचना तक निर्बाध पहुँच हेतु विकसित करने एवं निर्णय लेने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
  • डेटा और सिस्टम एकीकरण: जनसांख्यिकी, सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य मापदंडों सहित विभिन्न डेटासेट को जल से संबंधित स्थानिक एवं गैर-स्थानिक डेटा के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है, जैसे- मिट्टी की नमी, वार्षिक वर्षा, नदियाँ, जलभृत, भूजल स्तर, जल की गुणवत्ता आदि।
  • जल उपयोग दक्षता में सुधार: भारत में कृषि क्षेत्र जल संसाधनों का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है।
    • यह 80-85% जल संसाधनों का उपयोग करता है, जबकि जल ​के उपयोग की केवल 30-35% दक्षता है।
    • जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा सकता है, ताकि इसे कम-से-कम 50% तक बढ़ाया जा सके।
  • सर्वोत्तम उपायों को साझा करना: राज्य सरकारों के साथ या जल क्षेत्र से संबंधित कार्यक्रमों के अंतर्गत स्थापित क्षेत्रों में सर्वाधिक अच्छे कार्य हुए है।
    • इस संदर्भ में अत्यधिक ज्ञान/जानकारी उपलब्ध है, जो हितधारकों को लाभ उठाने में मदद कर सकती है तथा इससे कार्य का दोहराव भी नहीं होगा।
    • जल शक्ति मंत्रालय द्वारा ज्ञान (Knowledge) पोर्टल के रूप में इस तरह के ज्ञान आधारित संरचना का एक केंद्रीय भंडार बनाए रखा जा सकता है जिसमें केस स्टडी, सर्वोत्तम उपाय, उपकरण, डेटा स्रोतों पर जानकारी आदि शामिल हैं।

स्रोत : पी.आई.बी.

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