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  • 11 Jul, 2019
  • 20 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

अंतरिक्ष दौड़, इसके आर्थिक आयाम तथा भारत की संभावनाएँ

इस Editorial में The Hindu, Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल हैं। इस आलेख में भारत की अंतरिक्ष के क्षेत्र में क्षमता तथा इसके वाणिज्यिक उपयोग की चर्चा भी शामिल है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान का आरंभ 60 के दशक में हुआ तथा वर्ष 1969 में इसरो (Indian Space and Reaserch Oganisation) की स्थापना हुई। भारत ने पिछले 50 वर्षों में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में कई कीर्तिमान बनाए हैं। मौज़ूदा समय में विभिन्न देश तथा निजी कंपनियाँ अंतरिक्ष के वाणिज्यिक उपयोग के लिये प्रयास कर रही है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2025 तक वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार बढ़कर 550 बिलियन डॉलर हो जाएगा। इस संदर्भ में भारत भी अंतरिक्ष का उपयोग वाणिज्यक लाभ के लिये करने पर विचार कर रहा है। ज्ञात हो कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने ऐसी क्षमता विकसित कर ली है जिसके बल पर वह अंतरिक्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर ही भारत की नवनिर्वाचित सरकार ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited) नामक संस्था स्थापित करने की घोषणा की है।

इसरो (ISRO)

  • वर्ष 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) की स्थापना हुई। यह भारत सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी है और इसका मुख्यालय बंगलुरू में है।
  • इसे अंतरिक्ष अनुसंधान के लिये देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके करीबी सहयोगी और वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से स्थापित किया गया।
  • इसे भारत सरकार के ‘स्पेस डिपार्टमेंट’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
  • इसरो अपने विभिन्न केंद्रों के देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से संचालित होता है।

भारत के लिये इसरो का महत्त्व

स्थापना के पश्चात् भारत के लिये इसरो ने कई कार्यक्रमों एवं अनुसंधानों को सफल बनाया है। इसने न सिर्फ भारत के कल्याण के लिये बल्कि भारत को विश्व के समक्ष सॉफ्ट पॉवर के रूप में स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतरिक्ष कार्यक्रम के आरंभिक काल में भारत ने अपनी आवश्यकता के लिये इसका उपयोग आरंभ किया।

  • देश में दूरसंचार, प्रसारण और ब्रॉडबैंड अवसंरचना के क्षेत्र में विकास के लिये इसरो ने उपग्रह संचार के माध्यम से कार्यक्रमों को चलाया। इसमें प्रमुख भूमिका INSAT और GSAT उपग्रहों की रही। वर्तमान में भारत संचार सेवाओं के लिये 200 से अधिक ट्रांसपोंडरों (Transponders) का उपयोग हो रहा है। इन उपग्रहों के माध्यम से भारत में दूरसंचार, टेलीमेडिसिन, टेलीविज़न, ब्रॉडबैंड, रेडियो, आपदा प्रबंधन, खोज और बचाव अभियान जैसी सेवाएँ प्रदान कर पाना संभव हुआ है।
  • भारत में इसरो की दूसरी महत्त्वपूर्ण भूमिका भू-पर्यवेक्षण (Earth Observation) के क्षेत्र में रही है। भारत में मौसम पूर्वानुमान, आपदा प्रबंधन, संसाधनों की मैपिंग करना तथा भू-पर्यवेक्षण के माध्यम से नियोजन करना आदि के लिये भू-पर्यवेक्षण तकनीक की आवश्यकता होती है। मौसम की सटीक जानकारी के द्वारा कृषि और जल प्रबंधन तथा आपदा के समय वक्त रहते बचाव कार्य इसी तकनीक के द्वारा संभव हो सका। भारत में वन सर्वेक्षण रिपोर्ट भी इसी तकनीक द्वारा तैयार होती है। भारत में 1980 के दशक में दूर-संवेदी उपग्रह (Indian Remote Sensing-IRS) का उपयोग हो रहा था किंतु वर्तमान में भारत में अधिक उच्च क्षमता वाले उपग्रह RISAT, कार्टोसेट (Cartosat), रिसोर्ससेट (Resourcesat) आदि श्रृंखला के उपग्रहों का उपयोग किया जा रहा है। इन उपग्रहों ने भारत को प्राकृतिक कारकों से बचाव के प्रति अधिक सक्षम बनाया है।
  • तीसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र उपग्रह आधारित नौवहन (Navigation) है। नौवहन तकनीक का उपयोग भारत में वायु सेवाओं को मज़बूत बनाने तथा इसकी गुणवत्ता को सुधारने के लिये होता है। साथ ही वर्तमान समय में वायु आधरित सुरक्षा चुनौतियाँ भी कम नही है। इनको ध्यान में रखकर भारत ने गगन (GPS-aided GEO augmented-GAGAN) कार्यक्रम की शुरुआत की। भारत ने कुछ समय पूर्व ही इस कार्यक्रम से आगे बढ़ते हुए IRNSS (Indian Regional Navigation Satellite System) लॉन्च किया है जो 7 उपग्रहों पर आधारित है। ये उपग्रह भू-तुल्यकालिक (Geostationary) भू-संक्रमणकारी (Geosynchronous) कक्षा में स्थापित किये गए हैं। IRNSS भारत को वस्तुओं की सटीक स्थिति का आभास कराने में सहायक है। यह न सिर्फ नौवहन बल्कि रक्षा के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण रूप से उपयोगी है। यह ध्यान देने योग्य है कि इस तरह की तकनीक सिर्फ कुछ ही देशों के पास उपलब्ध है भारत IRNSS के निर्माण से पूर्व अमेरिकी जीपीएस (Global Positioning System) पर निर्भर था। भारत ने वर्ष 2016 में IRNSS के नाम में परिवर्तन करके इसे नाविक (Navigation with Indian Constellation-NavIC) कर दिया है।

इसरो के उपर्युक्त प्रयास एक सक्षम प्रमोचन यान तकनीक (Launch-vehicle Technology) के होने से ही संभव हो सके हैं। भारत ने इस तकनीक की शुरुआत SLV (Satellite Launch Vehicle) तथा ASLV (Augmented Satellite Launch Vehicle) से की। आगे चलकर भारत ने PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) तकनीक का विकास किया और यह तकनीक भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिये एक मील का पत्थर साबित हुई है। PSLV द्वारा भारत अब तक 46 अभियानों को सफल बना चुका है। भारत अब GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle) के मार्क III वैरिएंट पर कार्य कर रहा है। GSLV का मार्क III 3.5 MT के पेलोड को जियोसिंक्रोनस कक्षा (Geosynchronous Orbit) में स्थापित कर सकता है। इसकी तुलना फ्राँसीसी प्रमोचन यान एरियन-5 (Ariane-5) से की जा रही है एरियन-5 की क्षमता 5 MT तक के पेलोड ले जाने की है। भारत में PSLV तथा GSLV की सफलता ने अतीत में चंद्रयान-1 तथा मंगल मिशन को सफल बनाया है। अब भारत चंद्रयान-2 तथा गगनयान कार्यक्रम पर कार्य कर रहा है। गगनयान कार्यक्रम को वर्ष 2022 में अंजाम दिया जाना है। इस मिशन के माध्यम से भारत मानव को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रहा है। उपर्युक्त कार्यक्रम भारत की सफल प्रमोचन यान तकनीक के माध्यम से ही संभव हो सके हैं।

पिछले कई वर्षों में इसरो ने विभिन्न कंपनियों से साझेदारी की है। ये कंपनियाँ विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र से संबंधित होती हैं, जैसे- HAL (Hindustan Aeronautics Limited), MSDL, BEL (Bharat Electronics Limited) आदि। कुछ कंपनियाँ निजी क्षेत्र से भी जुड़ी हुईं हैं जैसे L&T, गोदरेज, वालचंदनगर इंडस्ट्री आदि। किंतु निजी क्षेत्र की कंपनियाँ सिर्फ कलपुर्जे एवं द्वितीयक और तृतीयक स्तर की सेवाएँ ही उपलब्ध कराती हैं। कुल मिलाकर भारत में अंतरिक्ष तकनीक के संदर्भ में निजी क्षेत्र की भागीदारी नगण्य बनी हुई है।

अंतरिक्ष के आर्थिक उपयोग की संभावनाएँ

मौज़ूदा समय में विश्व की कई कंपनियाँ अंतरिक्ष की वाणिज्यक दौड़ में शामिल हुई हैं। इन कंपनियों ने विश्व को अंतरिक्ष के आर्थिक उपयोग के लिये सोचने को प्रोत्साहित किया है। वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार 350 बिलियन डॉलर है। इसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 550 बिलियन डॉलर होने की संभावना है। इस प्रकार अंतरिक्ष एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार के रूप में विकसित हो रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं किंतु भारत का अंतरिक्ष उद्योग 7 बिलियन डॉलर के आस-पास है, जो वैश्विक बाजार का केवल 2 प्रतिशत ही है। भारत के अंतरिक्ष उद्योग के इस आकार में ब्रॉडबैंड तथा DTH सेवाओं का हिस्सा करीब दो-तिहाई है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत द्वारा उपयोग किये जा रहे एक तिहाई ट्रांसपोंडर विदेशी उपग्रहों से लीज़ पर लिये गए हैं तथा भारत में जैसे-जैसे संचार के क्षेत्र की मांग में वृद्धि होगी, उसी अनुपात में विदेशी ट्रांसपोंडरों की संख्या में वृद्धि होगी। उपर्युक्त परिस्थिति से ऐसा आभास होता है कि भारत अंतरिक्ष के वाणिज्यिक उपयोग में अभी काफी पीछे है तथा इस क्षेत्र में अधिक विकास करने की आवश्यकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने हालिया बजट में NSIL (New Space India Limited) की वाणिज्यिक प्रतिबद्धता को दोहराया है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 17 हज़ार छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा। इसके लिये इसरो SSLV (Small Satellite Launch Vehicle) के निर्माण की योजना पर कार्य कर रहा है। PSLV तथा SSLV मिलकर भविष्य में उपलब्ध होने वाले बाज़ार के लिये कम लागत पर लोजिस्टिक उपलब्ध करा सकते हैं।

न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड

  • हाल ही में न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited-NSIL) का आधिकारिक रूप से बंगलूरु में उद्घाटन किया गया है। गौरतलब है कि न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड इसरो की एक वाणिज्यिक शाखा है।
  • अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो द्वारा की गई अनुसंधान और विकास गतिविधियों के व्यावसायिक उपयोग हेतु न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड को 100 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी (पेड-अप कैपिटल 10 करोड़ रुपए) के साथ 6 मार्च, 2019 को लॉन्च किया गया था।
  • यह ‘एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन’ के बाद इसरो की दूसरी व्यावसायिक शाखा है। एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन को मुख्य रूप से वर्ष 1992 में इसरो के विदेशी उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण की सुविधा हेतु स्थापित किया गया था।

उद्देश्य

  • NSIL का उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उद्योग की भागीदारी को बढ़ाना है।
  • NSIL अंतरिक्ष से संबंधित सभी गतिविधियों को एक साथ लाएगा और संबंधित प्रौद्योगिकियों में निजी उद्यमशीलता का विकास करेगा।
  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर मैकेनिज्म के माध्यम से SSLV और PSLV का निर्माण और उत्पादन।
  • यह उभरती हुई वैश्विक वाणिज्यिक SSLV बाज़ार की मांग को भी पूरा करेगा, जिसमें उपग्रह निर्माण और उपग्रह-आधारित सेवाएँ प्रदान करना शामिल हैं।

नवीन अंतरिक्ष की अवधारणा एवं उपयोगिता

नवीन अंतरिक्ष न्यू स्पेस (New Space) का हिंदी रूपांतरण है। न्यू स्पेस शब्द पिछले कुछ वर्षों में अधिक चर्चा में रहा है। आरंभिक दौर में न्यू स्पेस का अर्थ गहन अंतरिक्ष के संदर्भ में लिया जाता रहा है। किंतु वर्तमान समय में न्यू स्पेस अवधारणा का उपयोग निजी क्षेत्र की कंपनियों का अंतरिक्ष के क्षेत्र मे शामिल होने के लिये किया जा रहा है। कुछ विद्वानों के विचार इससे भिन्न हैं, इनका मानना है कि न्यू स्पेस का अर्थ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का ऐसे क्षेत्रों में उपयोग जहाँ अभी तक इसका उपयोग संभव नही हुआ है किंतु उपयोग की प्रबल संभावनाएँ है, के रूप में है। भारत ने NSIL का गठन भी निजी क्षेत्र के साथ मिलकर अंतरिक्ष के वाणिज्यिक उपयोग को ध्यान में रखकर किया है।

निजी क्षेत्र की सहभागिता

भारत में अंतरिक्ष के लिये निजी क्षेत्र की भूमिका को सीमित रखा गया है। सिर्फ कम महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिये ही निजी क्षेत्र की सेवाएँ ली जाती रहीं हैं। उपकरणों को बनाना और जोड़ना तथा परीक्षण ( Assembly, Integration and Testing-AIT) जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य अभी भी इसरो ही करता है। यह ध्यान देने योग्य है कि विश्व का सबसे बड़ा अंतरिक्ष क्षेत्र का संस्थान नासा (NASA) भी निजी क्षेत्र की सहायता लेता रहा है। मौजूदा समय में भारत में नवीन अंतरिक्ष से संबंधित 20 से अधिक स्टार्ट-अप मौज़ूद हैं। इन उद्यमों का दृष्टिकोण पारंपरिक विक्रेता/आपूर्तिकर्त्ता मॉडल से भिन्न है। ये स्टार्ट-अप सीधे व्यापार से जुड़कर या सीधे उपभोक्ता से जुड़कर व्यापार की संभावनाएँ तलाश रहे हैं। जिस प्रकार विभिन्न स्वतंत्र एप्प निर्माताओं को सीधे एंड्राइड और एप्पल प्लेटफार्म में प्रवेश की अनुमति दी गई उसने स्मार्ट फ़ोन के उपयोग में क्रांति को जन्म दिया। इसी प्रकार अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को स्थान देकर इस क्षेत्र की संभावनाओं में वृद्धि की जा सकती है तथा यह भारत के दृष्टिकोण से भी लाभकारी होगा।

भारत में पहले से ही डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम तथा स्मार्ट सिटी जैसे मिशन चलाए जा रहे हैं। यह कार्यक्रम भारत में न्यू स्पेस स्टार्टअप को सहयोग प्रदान कर सकते हैं। ऐसे स्टार्टअप विभिन्न तकनीकों और सेवाओं का निर्माण कर सकते हैं तथा इसरो वैश्विक उपभोक्ता वर्ग (देश तथा निजी संस्थान) को आकर्षित कर सकता है। इस प्रकार इसरो और स्टार्टअप तथा विभिन्न निजी कंपनियाँ भागीदारी करके आर्थिक लाभ कमा सकते हैं।

किंतु भारत में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देने वाली सरकारी नीतियों की कमी रही है। वर्ष 2017 में संसद में एक विधेयक पेश किया गया था, जिसमें निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने वाले प्रावधानों की कमी थी। हालाँकि यह विधेयक निरस्त हो गया है। देश की सेटकॉम (SatCom) नीति से सबक लेते हुए सरकार को इस क्षेत्र के लिये नीति बनानी चाहिये तथा निजी क्षेत्र भी सरकार से विधि निर्माण के माध्यम से प्रोत्साहन देने की उम्मीद कर रहा है। यदि भारत में भी न्यू स्पेस की अवधारणा को लागू कर उसके लाभ प्राप्त करने हैं तो सरकार को निजी क्षेत्र को नीतिगत प्रोत्साहन देना होगा।

निष्कर्ष

भारत का अतीत अंतरिक्ष के क्षेत्र में कामयाबी भरा रहा है। किंतु वर्तमान में अंतरिक्ष नवीन संभावनाओं को जन्म दे रहा है। इन संभावनाओं का भागी बनने के लिये भारत को भी महत्त्वपूर्ण प्रयास करने होंगे। इसके लिये पिछले कुछ वर्षों में इसरो के बजट में भी वृद्धि की गई है। लेकिन इसरो की क्षमता मांग के अनुपात में अभी भी कम बनी हुई है। इस क्षमता में वृद्धि करने के लिये निजी क्षेत्र को भी भागीदार बनाना होगा। इसके लिये विधान और नीतियों द्वारा प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। भारत पहले ही अंतरिक्ष की उपयोगिता और महत्त्व को समझते हुए डिफेंस स्पेस एजेंसी तथा अंतरिक्ष प्रतिरक्षा तथा अनुसंधान संगठन के गठन की योजना पर कार्य कर रहा है। अतः इसरो को अपनी असैन्य पहचान को बल देना चाहिये साथ ही स्वयं को वाणिज्यिक क्षेत्र से भी जोड़ने की योजना बनानी चाहिये। सरकार को भी विधान और नीति के ज़रिये अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये। विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की अगले दशक तक 10 प्रतिशत तक भागीदारी बढ़ाने के प्रयास करना चाहिये। इसके लिये इसरो को निजी क्षेत्र तथा न्यू स्पेस उद्यमों को भी अपने साथ एक प्लेटफार्म पर लाकर प्रयास करना होगा।

प्रश्न: न्यू स्पेस से आप क्या समझते हैं? विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत को अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए कौन से प्रयास करने होंगे?


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