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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 27 Aug, 2024
  • 31 min read
रैपिड फायर

शास्त्रीय भाषा केंद्रों द्वारा स्वायत्तता की मांग

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में शास्त्रीय भाषाओं के लिये विशेष केंद्रों की स्वायत्तता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं तथा तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओड़िया को प्रभावी रूप से बढ़ावा देने हेतु उनकी स्वतंत्रता की मांग की जा रही है।

  • भारत छह शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता देता है: तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, संस्कृत और ओडिया, जिनमें से प्रत्येक के लिये निर्दिष्ट केंद्र हैं, हालाँकि केवल तमिल केंद्र को स्वायत्तता प्राप्त है।
  • मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) के अंतर्गत तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया के केंद्र संचालित होते हैं, जिन्हें CIIL पर वित्तीय निर्भरता के कारण कार्यक्रमों के आयोजन और योजना बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • इन केंद्रों के निदेशकों ने स्वायत्तता की मांग की तथा रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन उन्हें केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से कोई अतिरिक्त मार्गदर्शन नहीं मिला।
  • तमिल और संस्कृत को पर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त है। तमिल स्वायत्त है तथा संस्कृत के लिये समर्पित विश्वविद्यालय हैं, जबकि अन्य शास्त्रीय भाषाएँ सीमित वित्त पोषण व रिक्त पदों के कारण संघर्ष कर रही हैं।
    • उदाहरण के लिये, नेल्लोर स्थित तेलुगु केंद्र और भुवनेश्वर स्थित ओडिया केंद्र में कर्मचारियों की भारी कमी है तथा सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण उनका संचालन प्रभावित हो रहा है।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2004 में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्य वाली भाषाओं को मान्यता देते हुए उन्हें "भारत में शास्त्रीय भाषा" का दर्जा दिया।

        क्रम.

                  भाषा

घोषित करने का वर्ष 

          1.

                  तमिल

        2004

          2.

                  संस्कृत

        2005

          3.

                  तेलुगु

        2008

          4.

                  कन्नड़

        2008

          5.

                  मलयालम

        2013

          6.

                ओड़िया

        2014 

और पढ़ें: शास्त्रीय भाषा


रैपिड फायर

मुतमिज़ मुरुगन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 2024

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में पलानी में मुतमिज़ मुरुगन अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न हुआ, जो तमिल संस्कृति और आध्यात्मिकता को परिलक्षित करता है। इसमें समग्र विश्व से एक लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए।

  • सम्मेलन आयोजन के उद्देश्यों में मुरुगन उपासना के मूल सिद्धांतों का प्रसार करना, उनके दार्शनिक सिद्धांतों को प्राप्य बनाना, विश्व में व्याप्त सभी श्रद्धालुओं को एकजुट करना एवं पुराणों व तिरुमुरै की शिक्षाओं का प्रचार करना शामिल है।
    • भगवान मुरुगन, जिन्हें कार्तिकेय, स्कंद या सुब्रह्मण्य के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू देवता हैं। वह भगवान शिव और देवी पार्वती की संतान हैं, जिन्हें षट्मुखी और मोर को सवारी के रूप में धारण किये दर्शाया जाता है।
  • मुरुगन तमिलनाडु में प्रमुख हिंदू देवता हैं। उनकी भारत के अन्य क्षेत्रों एवं मलेशिया, सिंगापुर, मॉरीशस, रीयूनियन द्वीप व श्रीलंका में भी उपासना की जाती है।

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8वाँ धर्म धम्म सम्मेलन, 2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

  • हाल ही में इंडिया फाउंडेशन द्वारा गुजरात विश्वविद्यालय के सहयोग से अहमदाबाद में 8वें धर्म धम्म सम्मेलन का आयोजन किया गया।
  • इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ थे
  • वर्ष 2024 के सम्मेलन की थीम है "धर्म और धम्म में ब्रह्मांड विज्ञान (Cosmology in Dharma and Dhamma)" 
  • भारतीय परंपराओं में अद्वितीय धार्मिक ब्रह्मांड विज्ञान लोगों को मृत्यु के भय से मुक्त करता है।  यह इस दृष्टिकोण को उजागर करता है कि जीवन संक्षिप्त है और इसका कोई निश्चित अर्थ नहीं हो सकता है।
    • वेद धार्मिक ब्रह्मांड विज्ञान के लिये आधार प्रदान करते हैं, जिसे इतिहास-पुराण एवं ब्राह्मण जैसे साहित्य के साथ-साथ बौद्ध निकायों तथा जैन कारिकाओं व सूत्रों में और अधिक विकसित किया गया है।
  • यह सम्मेलन इंडिया फाउंडेशन की एक पहल है, जिसका उद्देश्य धर्म (हिंदू) और धम्म (बौद्ध) दृष्टिकोणों के बीच आवश्यक पहचान को उजागर करना है।
    • इंडिया फाउंडेशन एक स्वतंत्र अनुसंधान केंद्र है, जो भारतीय राजनीति के मुद्दों, चुनौतियों और अवसरों पर केंद्रित है।
  • सम्मेलन का उद्देश्य विचारों के आदान-प्रदान को सुगम बनाना तथा हिंदू व बौद्ध सभ्यताओं के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना है और सहस्राब्दियों से उनकी प्रासंगिकता पर ज़ोर देना है।

और पढ़ें: भारत में बौद्ध धर्म


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स्वदेशी ज़िंक-आयन बैटरी प्रौद्योगिकियाँ

स्रोत: पी. आई. बी

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के स्वायत्त संस्थान जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (JNCASR) ने हिंदुस्तान ज़िंक लिमिटेड (HZL) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • समझौता ज्ञापन का उद्देश्य ज़िंक सामग्री के नए प्रकार विकसित करना और ज़िंक आधारित बैटरियों के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना है।
  • ज़िंक-आयन बैटरी: ज़िंक -आयन बैटरी एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी है, जो लिथियम और सोडियम आयनों के स्थान पर ज़िंक आयनों को चार्ज वाहक के रूप में उपयोग करती है।
  • जिंक एक ब्लू-ग्रे रंग का धात्विक तत्त्व है तथा विद्युत का अच्छा सुचालक है।
    • स्फैलेराइट, स्मिथसोनाइट, विलेमाइट आदि ज़िंक के अयस्क हैं।
    • सबसे आम मिश्र धातु पीतल है, जो ज़िंक और ताँबे का मिश्रण है।
  • जिंक-आयन बैटरी का महत्त्व:
    • लागत दक्षता: यह महँगी लिथियम-आयन बैटरियों का कम लागत वाला विकल्प है।
    • प्रचुर मात्रा में सामग्री: यह पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
    • सुरक्षा और प्रदर्शन: ज़िंक-आयन बैटरियाँ अधिक सुरक्षित मानी जाती हैं और विभिन्न तापमान श्रेणियों में बेहतर प्रदर्शन प्रदान करती हैं।
  • ज़िंक के व्यावसायीकरण के लिये आवश्यक संशोधन: ज़िंक जल-आधारित घोल के साथ ऊष्मागतिकीय रूप से अस्थिर है और इसलिये इलेक्ट्रोड, इलेक्ट्रोलाइट तथा इंटरफेस पर उपयुक्त संशोधन की आवश्यकता होती है।
  • अपेक्षित परिणाम: शोधकर्त्ता ज़िंक-आयन बैटरियों में एनोड के रूप में उपयोग के लिये नए ज़िंक मिश्र धातु और रिचार्जेबल बैटरियों में उनके अनुप्रयोग हेतु इलेक्ट्रोलाइट्स के विकास की संभावना तलाशना।
  • जिंक-आयन बैटरियों का उत्पादन और उपयोग सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) जैसे SDG 7 और SDG 13 के अनुरूप है।

और पढ़ें: महत्त्वपूर्ण खनिज


रैपिड फायर

विज्ञान धारा योजना को मंजूरी

स्रोत: पी.आई.बी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की विभिन्न योजनाओं को ज़ारी रखने और उन्हें 'विज्ञान धारा' नामक एकीकृत केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत तीन प्रमुख घटकों में विलय करने को मंजूरी दी।

  • घटक: इस योजना के तीन व्यापक घटक हैं।
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (S&T) से संबंधित संस्थागत तथा मानव क्षमता निर्माण,
    • अनुसंधान एवं विकास
    • नवाचार, प्रौद्योगिकी विकास तथा तैनाती
  • INSPIRE कार्यक्रम जैसी मौजूदा योजनाएँ इन तीन घटकों में से एक के अंतर्गत आएंगी।
  • अवधि: यह योजना 15वें वित्त आयोग की अवधि 2021-22 से 2025-26 के लिये प्रस्तावित की गई है।
  • प्राथमिक उद्देश्य: विज्ञान धारा’ योजना का प्राथमिक उद्देश्य देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से संबंधित इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने की दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी क्षमता निर्माण के साथ-साथ अनुसंधान, नवाचार तथा प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना है।
  • लैंगिक समानता: इस योजना में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये लक्षित क्रियाकलाप किये जाएंगे, जिसका अंतिम लक्ष्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार में लैंगिक समानता लाना है।
  •  विकसित भारत 2047: ‘विज्ञान धारा’ योजना के तहत प्रस्तावित सभी कार्यक्रम विकसित भारत 2047 के विज़न को साकार करने की दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के 5 वर्षीय लक्ष्यों के अनुरूप होंगे।
  • अनुसंधान एवं विकास: योजना के अनुसंधान और विकास घटक को अनुसंधान राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन (ANRF) के अनुरूप बनाया जाएगा। इस योजना का कार्यान्वयन राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप वैश्विक रूप से प्रचलित मानदंडों का पालन करते हुए किया जाएगा।

और पढ़ें: विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति


प्रारंभिक परीक्षा

शीत युद्ध और वर्तमान जलवायु मॉडल की सटीकता

 स्रोत: द हिंदू

हाल ही में साइंस जर्नल में प्रकाशित शोधकर्त्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया अध्ययन वर्तमान जलवायु मॉडल की सटीकता पर जानकारी प्रदान करता है। वैज्ञानिकों ने शीत युद्ध के दौरान किये गए परमाणु परीक्षणों के डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि इन मॉडलों में पादपों की कार्बन प्रतिधारण क्षमता का वास्तविकता से अधिक आकलन किया गया है।

  • कार्बन चक्र को समझने तथा जलवायु परिवर्तन शमन प्रयासों में इसकी भूमिका को जानने हेतु इस अध्ययन के महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं।

अध्ययन से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • रेडियोकार्बन डेटा का उपयोग: शीत युद्ध के परमाणु परीक्षण विध्वंसकारी थे किंतु इनके कारण जलवायु अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त हुआ। इन परीक्षणों के दौरान निर्मुक्त कार्बन-14 जैसे रेडियोधर्मी समस्थानिकों का उपयोग वायुमंडल में कार्बन की गति को ट्रैक करने के लिये किया गया।
    • 1963 में सीमित परीक्षण प्रतिबंध संधि (LTBT) के फलस्वरूप थल, वायु और जल के नीचे परमाणु परीक्षण प्रतिबंधित कर दिया गया, जिससे वायुमंडल में रेडियोकार्बन की सांद्रता निरंतर कम हुई।
    • अध्ययन में वायुमंडल में कार्बन के स्तर और पादपों द्वारा कार्बन के प्रतिधारण क्षमता में परिवर्तन का निरीक्षण करने के लिये 1963 से 1967 की अवधि के रेडियोकार्बन डेटा का उपयोग किया।
      • रेडियोकार्बन ऑक्सीजन के साथ आबंध बनाकर CO2 का निर्माण करते हैं, जिसे पौधे और वनस्पतियाँ प्रकाश संश्लेषण के दौरान भोजन व ऊर्जा का उत्पादन करने के लिये अवशोषित करते हैं, जैसा कि मॉडल द्वारा भी सुझाया गया है।
    • इस डेटा से पता चला कि पौधे पूर्व में किये गए अनुमान से कहीं अधिक तेज़ी से कार्बन का  प्रतिधारण और उन्हें मुक्त कर रहे हैं।
  • पौधों में कार्बन भंडारण: शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान वायुमंडल से पहले के अनुमान से अधिक CO2 अवशोषित करते हैं, लेकिन इसे अधिक तेज़ी से पर्यावरण में वापस छोड़ देते हैं
    • पिछले अनुमानों से पता चला था कि विश्व भर में वनस्पतियाँ प्रतिवर्ष 43-76 बिलियन टन कार्बन संग्रहित करती हैं, लेकिन नए अध्ययन के अनुसार यह लगभग 80 बिलियन टन हो सकता है।
    • पौधों और वायुमंडल के बीच कार्बन का तेज़ी से चक्रण यह संकेत देता है कि वर्तमान जलवायु मॉडल में समायोजन की आवश्यकता हो सकती है, जिससे कार्बन अवशोषण के पुराने मॉडल को चुनौती मिल सकती है।
  • जलवायु मॉडल के लिये निहितार्थ: निष्कर्ष दर्शाते हैं कि वर्तमान जलवायु मॉडल यह अनुमान बढ़ा-चढ़ाकर लगा सकते हैं कि पौधे कितनी देर तक कार्बन को धारण करते हैं, जिससे सटीकता में सुधार हेतु समायोजन की आवश्यकता होगी।
    • अध्ययन में बताया गया है कि अनेक जलवायु मॉडलों में, जिनमें विश्व जलवायु अनुसंधान कार्यक्रम द्वारा युग्मित मॉडल अन्तर-तुलना परियोजना (Coupled Model Intercomparison Project- CMIP) में प्रयुक्त मॉडल भी शामिल हैं, रेडियोकार्बन डेटा को पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है।
      • डेटा एकीकरण की कमी से कार्बन भंडारण और जलवायु अनुमानों में अशुद्धि हो सकती है।
    • अमेरिका में विकसित 'कम्युनिटी अर्थ सिस्टम मॉडल 2' एकमात्र ऐसा मॉडल था, जिसने अपने सिमुलेशन में रेडियोकार्बन को शामिल किया था, लेकिन इसने पूर्वानुमान लगाया कि पौधों ने जितना रेडियोकार्बन अवशोषित किया था, उससे कहीं कम अवशोषित किया था।
  • भविष्य के निहितार्थ: अध्ययन में अधिक सटीक भविष्यवाणियों के लिए रेडियोकार्बन जैसे समस्थानिकों के बेहतर प्रतिनिधित्व के साथ बेहतर जलवायु मॉडल की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है, जो भविष्य के जलवायु आकलन को परिष्कृत करने और मॉडल की सटीकता को बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

कार्बन चक्र क्या है और इसका जलवायु पर प्रभाव क्या है?

  • परिचय: कार्बन चक्र पृथ्वी पर विभिन्न जलाशयों जैसे वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल के माध्यम से कार्बन के प्रवाह का वर्णन करता है।
  • जलवायु पर कार्बन चक्र का प्रभाव: कार्बन चक्र वायुमंडलीय CO₂ स्तर को विनियमित करने में मदद करता है, तथा कार्बन स्रोतों (जैसे, श्वसन, दहन) और कार्बन सिंक (जैसे, वन, महासागर) के बीच संतुलन बनाए रखता है।
    • CO2 के स्तर में उतार-चढ़ाव ग्रीनहाउस प्रभाव को प्रभावित करता है, जो वैश्विक तापमान और जलवायु प्रतिरूप को प्रभावित करता है।
    • महासागर वायुमंडलीय CO2 का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अवशोषित करते हैं। CO2 के बढ़े हुए स्तर से कार्बोनिक एसिड की सांद्रता बढ़ जाती है, जिससे महासागरों का अम्लीकरण होता है।
    • निर्वनीकरण जैसी गतिविधियाँ भूमि की कार्बन पृथक्करण की क्षमता को कम करती हैं, जिससे वायुमंडलीय CO2 का स्तर बढ़ जाता है।
    • तापमान में वृद्धि से पर्माफ्रॉस्ट पिघलते है, जिससे संग्रहित ग्रीनहाउस गैस मीथेन उत्सर्जित   करती है, जिसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन में वृद्धि होती है।

जलवायु मॉडल क्या हैं?

  • परिचय: जलवायु मॉडल जलवायु परिवर्तन को समझने और पूर्वानुमान लगाने के लिये आवश्यक उपकरण हैं। वे पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का अनुकरण करने हेतु गणितीय समीकरणों का उपयोग करते हैं, जिसमें वायुमंडल, महासागर, भूमि की सतह और बर्फ के बीच की अंतःक्रियाएँ शामिल हैं।
    • ये मॉडल वैज्ञानिकों को विभिन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्यों के आधार पर भविष्य की जलवायु स्थितियों का अनुमान लगाने तथा मौसम के पैटर्न, समुद्र के स्तर और पारिस्थितिकी तंत्र पर संभावित प्रभावों का आकलन करने में सहायता करते हैं।
    • जलवायु मॉडल जल संसाधन प्रबंधन, कृषि, परिवहन और शहरी नियोजन पर निर्णय लेने के लिये आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं।
  • जलवायु मॉडल और मौसम पूर्वानुमान मॉडल: मौसम पूर्वानुमानों के विपरीत, जो विशिष्ट दैनिक स्थितियों की भविष्यवाणी करते हैं, जलवायु मॉडल दीर्घकालिक जलवायु प्रतिरूप और प्रवृत्तियों के संभाव्य अनुमान प्रदान करते हैं।
    • जलवायु मॉडल अल्पकालिक भविष्यवाणियों के बजाय समान परिस्थितियों में वैश्विक प्रतिरूप और ऐतिहासिक मौसम रिकॉर्ड पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. कार्बन डाइऑक्साइड के मानवोद्भवी उत्सर्जनों के कारण आसन्न भूमंडलीय तापन के न्यूनीकरण के संदर्भ में कार्बन प्रच्छादन हेतु निम्नलिखित में से कौन-सा/से संभावित स्थान हो सकता/सकते है/हैं ? (2017)

  1. परित्यक्त एवं गैर-लाभकारी कोयला संस्तर
  2. निःशेष तेल एवं गैस भण्डार
  3. भूमिगत गभीर लवणीय शैलसमूह

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (d)


रैपिड फायर

मलेशिया की ओरंगुटान कूटनीति

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में मलेशिया ने चीन की "पांडा कूटनीति" से प्रेरित होकर मलेशियाई पाम ऑयल का आयात करने वाले देशों को ओरांगुटान (वानर प्रजाति) उपहार में देने के अपने पूर्व के प्रस्ताव को वापस ले लिया।

  • इसके स्थान पर नई योजना बनाई गई, जिसमें आयातकों को ओरंगुटान को "प्रायोजित" करने हेतु आमंत्रित किया गया, जिससे प्राप्त धनराशि को मलेशिया में उनके संरक्षण के लिये उपयोग किया जाएगा।
  • मलेशिया विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑयल उत्पादक (इंडोनेशिया के बाद) देश है, जहाँ  निर्वनीकरण ज़ारी है, जिससे ओरंगुटान के पर्यावासों को खतरा है। इसके चलते इसे पाम ऑयल उद्योग को अधिक संधारणीय बनाने के लिये दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
  • ओरंगुटान (पोंगो): मलय शब्द ओरंगुटान का अर्थ "पर्सन ऑफ द फॉरेस्ट" है।
    • ये अत्यधिक बुद्धिमान, लंबे बालों वाले, नारंगी रंग के प्राइमेट हैं, जो केवल बोर्नियो और सुमात्रा में पाए जाते हैं।
    • इनकी 3 प्रजातियाँ हैं: बोर्नियन, सुमात्रान और तपानुली
    • इनकी भुजाएँ लंबी होती हैं और वृक्षों पर विचरण करने, फल खाने तथ बीज फैलाने में सहायता के लिये इनके हाथ एवं पैर की पकड़ प्रबल होती है।
    • अन्य प्रजातियों के विपरीत ये अधिक एकाकी होते हैं और मुख्य रूप से मुखाकृतिक तथा कायिक स्वभाव (हाव-भाव) के माध्यम से संप्रेषण करते हैं। तेज़ी से हो रही वनों की कटाई, जो प्रमुखतः पाम ऑयल के बागानों के कारण होती है, ने इस प्रजाति को संकटग्रस्त बना दिया है।
    • IUCN में स्थिति: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
  • हाल ही में भारत और मलेशिया ने अपने संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत करके इसे आगे बढ़ाने हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।

और पढ़ें: भारत और मलेशिया के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी


प्रारंभिक परीक्षा

हॉर्सशू क्रैब

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) और ओडिशा वन विभाग ने इस प्राचीन प्रजाति के संरक्षण के लिये हॉर्सशू क्रैब को टैग करना शुरू कर दिया है।

  • ZSI ने सैकड़ों क्रैब्स/केकड़ों को टैग करने की योजना बनाई थी ताकि उनकी आबादी और उनके समक्ष विद्यमान खतरों का पता लगाया जा सके

हॉर्सशू क्रैब के विषय में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय:
    • हॉर्सशू क्रैब लिमुलिडे कुल के समुद्री और लवणीय जल के आर्थ्रोपोड हैं तथा ज़िफोसुरा गण के एकमात्र जीवित प्रजाति है।
    • ये पृथ्वी पर सबसे पुराने (250 मिलियन वर्ष पहले उत्पन्न हुए) जीवित प्राणियों में से एक हैं, जिन्हें जीवित जीवाश्म भी कहा जाता है।
  • प्रजातियाँ और स्थान: हॉर्सशू क्रैब की 4 प्रजातियाँ मौजूद हैं।
    • भारत में हॉर्सशू क्रैब की 2 प्रजातियाँ पाई जाती हैं: टैचीप्लस गिगास (ओडिशा व पश्चिम बंगाल में पाई जाती है) और कार्सिनोस्कॉर्पियस रोटुंडिकाडा (पश्चिम बंगाल के सुंदरबन मैंग्रोव में पाई जाती है)।
    • अमेरिकी हॉर्सशू क्रैब (Limulus polyphemus): संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्वी तट और मैक्सिको की खाड़ी में पाया जाती है।
    • ट्राई- स्पाइन हॉर्सशू क्रैब (Tachypleus Tridentatus): हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पाया जाती है।
  • संकट
    • विघटनकारी फिशिंग (Destructive Fishing) की पद्धतियाँ और अवैध तस्करी।
  • संरक्षण की स्थिति:
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972: भारतीय प्रजातियों को WPA, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित किया गया है।
    • IUCN स्थिति
      • अमेरिकन हॉर्सशू  क्रैब : संवेदनशील
      • ट्राई- स्पाइन हॉर्सशू  क्रैब: लुप्तप्राय।
  • ट्राई- स्पाइन हॉर्सशू  क्रैब
    • अन्य दो प्रजातियाँ अभी सूचीबद्ध नहीं हैं।
  • औषधीय उपयोग:
    • इसका कवच (कठोर बाहरी आवरण) घाव पर लगाया जाता है।
    • हॉर्सशू  क्रैब का रक्त चमकीला नीला होता है और इसमें प्रतिरक्षा कोशिकाएँ होती हैं, जो विषैले बैक्टीरिया के प्रति संवेदनशील होती हैं।
      • ये कोशिकाएँ आक्रमणकारी बैक्टीरिया के चारों ओर जम जाती हैं तथा हॉर्सशू  क्रैब के शरीर की रक्षा करती हैं।
    • वैज्ञानिकों ने इन कोशिकाओं का उपयोग लिमुलस एमेबोसाइट लाइसेट (LAL) नामक एक परीक्षण विकसित करने के लिये किया, जो नए टीकों में संदूषण की जाँच करता है तथा हानिकारक बैक्टीरिया वाले टीकों के वितरण को रोकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय हॉर्सशू क्रैब दिवस (International Horseshoe Crab Day) प्रतिवर्ष 20 जून को हॉर्सशू क्रैब के सामूहिक संरक्षण प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिये मनाया जाता है।

जीवित जीवाश्म

  • जीवित जीवाश्म वे प्रजातियाँ हैं, जो लाखों वर्षों से जीवित हैं तथा अपने प्राचीन पूर्वजों के समान गुणधर्म बनाए हुए हैं।
  • ये जीव पृथ्वी के विकासवादी इतिहास और प्राचीन पारिस्थितिक परिदृश्यों के बारे में अमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।
  • जीवित जीवाश्मों के अन्य उदाहरण:
    • कोइलाकैंथ: दक्षिण अफ्रीका के तट पर 1938 में पुनः खोजी गई यह गहरे समुद्र में पाई जाने वाली मछली अपने खंडित पंखों के लिये प्रसिद्ध है, जो अंगों के समान कार्य करते हैं।
    • जिन्कगो बिलोबा: यह पौधों के एक प्राचीन समूह का एकमात्र जीवित सदस्य है, इसकी विशिष्ट पंखे के आकार की पत्तियाँ हैं, जो लाखों वर्षों से अपरिवर्तित बनी हुई हैं।
    • वोलेमी पाइन: 1994 में ऑस्ट्रेलिया में खोजा गया एक दुर्लभ पौधा, जो अपनी प्राचीन वंशक्रम के लिये जाना जाता है।
    • तुतारा: न्यूजीलैंड में पाई जाने वाली सरीसृप की अनूठी प्रजाति, जिसका संबंध प्राचीन सरीसृपों से है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में हमारे वैज्ञानिकों ने केले के पौधे की एक नई और भिन्न जाति की खोज की है जिसकी ऊँचाई लगभग 11 मीटर तक जाती है तथा उसके फल का गूदा नारंगी रंग का है। यह भारत के किस भाग में खोजी गई है? (2016)

(a) अंडमान द्वीप
(b) अन्नामलाई वन
(c) मैकल पहाड़ियाँ
(d) पूर्वोत्तर उष्णकटिबंधीय वर्षावन

उत्तर: (a)


प्रश्न. जैवविविधता निम्नलिखित तरीकों से मानव अस्तित्व के लिये आधार बनाती है: (2011

  1. मृदा का
  2. मृदा क्षरण की
  3. अपशिष्ट का
  4. फसलों का परागण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये

(a) केवल 1, 2 और
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


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