भारतीय इतिहास
वैदिक युग में पाइथागोरस ज्यामिति
- 20 Jul 2022
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प्रिलिम्स के लिये:भारतीय प्राचीन इतिहास, वैदिक युग, वेद प्रणाली मेन्स के लिये:वेद प्रणाली का महत्त्व , वैदिक युग का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 पर एक ‘स्थिति पत्र’ (Position Paper) में पाइथागोरस प्रमेय को "फर्जी समाचार" के रूप में वर्णित किया गया है।
- इसने बौधायन सुल्बसूत्र नामक पाठ का उल्लेख किया है, जिसमें विशिष्ट श्लोक प्रमेय को संदर्भित करता है।
पाइथागोरस:
- परिचय:
- साक्ष्य के आधार पर यूनानी दार्शनिक की मौजूदगी लगभग 570-490 ईसा पूर्व में मानी जाती है।
- माना जाता है कि उनके चारों ओर रहस्यमयी तत्त्व मौजूद थे क्योकि उन्होंने इटली में रहस्यात्मक या गुप्त प्रकृति के स्कूल/समाज की स्थापना की।
- उनकी गणितीय उपलब्धियों के बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी है, क्योंकि वर्तमान में उनके लेखन के बारे में कुछ भी उपलब्ध नहीं है।
- पाइथागोरस प्रमेय:
- पाइथागोरस प्रमेय एक समकोण त्रिभुज की तीन भुजाओं को जोड़ने वाले संबंध का वर्णन करता है (जिसमें एक कोण 90° का होता है)।
- a2 + b2 = c2
- यदि एक समकोण त्रिभुज की कोई दो भुजाएँ ज्ञात हैं, तो प्रमेय आपको तीसरी भुजा की गणना करने में मदद करता है।
वैदिक भारतीय गणितज्ञ के स्रोत:
- सुल्बसूत्रों में पाइथागोरस के संदर्भ बताया गया है, जो वैदिक भारतीयों द्वारा किये गए अग्नि अनुष्ठानों (यजनों) से संबंधित ग्रंथ हैं।
- इनमें से सबसे पुराना बौधायन शुल्बसूत्र है।
- बौधायन शुल्बसूत्र का काल अनिश्चित है। इसका अनुमान भाषायी और अन्य दूसरे ऐतिहासिक विचारों के आधार पर लगाया गया है।
- वर्तमान साहित्य में बौधायन शुल्बसूत्र का काल लगभग 800 ईसा पूर्व माना जाता है।
- बौधायन शुल्बसूत्र में एक तथ्य है जिसे पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है (इसे एक ज्यामितीय तथ्य के रूप में जाना जाता था, न कि 'प्रमेय' के रूप में)।
- यज्ञ अनुष्ठानों में विभिन्न आकारों में अनुष्ठानों और अग्निवेदियों का निर्माण शामिल था जैसे कि समद्विबाहु त्रिभुज, सममित ट्रेपेज़िया और आयत।
- शुल्बसूत्र इन वेदियों के निर्धारित आकार के निर्माण की दिशा में उठाए गए कदमों का वर्णन करते हैं।
- शुल्बसूत्र इन वेदियों के निर्धारित आकार के निर्माण की दिशा में उठाए गए कदमों का वर्णन करते हैं।
समीकरण का ज्ञान:
- प्राचीनतम प्रमाण पुरानी बेबीलोनियन सभ्यता (1900-1600 ईसा पूर्व) के हैं।
- उन्होंने इसे विकर्ण नियम के रूप में संदर्भित किया।
- इस संबंध में सबसे पहला प्रमाण शुल्बसूत्रों के बाद के काल में मिलता है।
- प्रमेय का सबसे पुराना स्वयंसिद्ध प्रमाण लगभग 300 ईसा पूर्व के यूक्लिड के तत्त्वों में निहित है।
वेद
- वेद शब्द ज्ञान का प्रतीक है और यह ग्रंथ वास्तव में मानव जाति को पृथ्वी पर और उसके बाहर अपने पूरे जीवन का संचालन करने के लिये ज्ञान प्रदान करने के बारे में हैं।
- चार प्रमुख वेद हैं:
- ऋग्वेद:
- यह चारों में सबसे पुराना विद्यमान वेद है।
- इसमें सांसारिक समृद्धि और प्राकृतिक सुंदरता पर ध्यान दिया गया है।
- वेद 10 पुस्तकों में व्यवस्थित है जिन्हें मंडल के नाम से जाना जाता है।
- ऋग्वेद में वर्णित प्रमुख देवता:
- भगवान इंद्र, अग्नि, वरुण, रुद्र, आदित्य आदि।
- यजुर्वेद:
- यजु नाम त्याग का प्रतीक है।
- यह विभिन्न प्रकार के यज्ञों के संस्कारों और मंत्रों पर केंद्रित है।
- इसके दो प्रमुख संशोधन (संहिताएँ) हैं:
- शुक्ल यजुर्वेद जिसे वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है।
- कृष्ण यजुर्वेद जिसे तैत्तिरीय संहिता भी कहा जाता है।
- सामवेद:
- इसका नाम समन (गान) के नाम पर रखा गया है।
- यह गीत-संगीत प्रधान है।
- इसे मंत्रों की पुस्तक भी कहा जाता है।
- अथर्ववेद:
- इसे ब्रह्मवेद के रूप में भी जाना जाता है
- इसकी रचना‘अथर्बन' तथा 'आंगिरस' ऋषियों द्वारा की गई है। इसीलिये इसे‘अथर्वांगिरस वेद'भी कहा जाता है।
- यह मानव समाज में शांति और समृद्धि लाने पर केंद्रित है।
- इसके दो प्रमुख संशोधन (शाखा) हैं:
- पैप्पलाद
- शौनकीय
- ऋग्वेद: