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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 27 Jun, 2023
  • 19 min read
प्रारंभिक परीक्षा

प्रोकैरियोट्स से यूकैरियोट्स का विकास

हाल ही में प्रोकैरियोट्स (Prokaryotes) से यूकैरियोट्स (Eukaryotes) के विकास को समझने में काफी रुचि देखी गई है, जो इस महत्त्वपूर्ण सवाल पर प्रकाश डालता है कि केंद्रक (Nuclei) और कोशिकांगों (Organelles) से युक्त जटिल कोशिकाओं का विकास कैसे हुआ है।

  • एंडोसिम्बायोसिस के प्रचलित सिद्धांत से पता चलता है कि यूकैरियोट्स एक प्राचीन आर्कियन (सूक्ष्मजीवों का एक आदिम समूह जो चरम स्थितियों वाले आवास में पनपते हैं) और एक जीवाणु के बीच सहजीवी संबंध से विकसित हुए हैं।

यूकैरियोट्स और प्रोकैरियोट्स:

  • पृथ्वी पर जीवों को मोटे तौर पर कोशिकाओं के प्रकार के आधार पर प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स में विभाजित किया जाता है।
प्रोकैरियोट्स: यूकैरियोट्स:
प्रोकैरियोट्स उन जीवों को कहते हैं जिनमें एक वास्तविक नाभिक और झिल्ली से बँधे कोशिकांग का अभाव होता है। उनकी आनुवंशिक सामग्री आमतौर पर एक गोलाकार DNA अणु, एक परमाणु झिल्ली के अंदर बंद हुए बिना साइटोप्लाज़्म में मौजूद होती है। यूकैरियोट्स ऐसे जीव हैं जिनकी कोशिकाएँ स्पष्ट रूप से एक झिल्ली के अंदर केंद्रक से युक्त होती हैं।
प्रोकैरियोट्स में बैक्टीरिया और आर्किया शामिल हैं। यूकैरियोटिक कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के झिल्ली से बँधे कोशिकांग होते हैं जैसे माइटोकॉन्ड्रिया, एंडोप्लाज़्मिक रेटिकुलम, गॉल्जीकाय तथा आंतरिक झिल्ली का एक जटिल नेटवर्क। ये कोशिकांग कोशिका के अंदर विशेष कार्य करते हैं।
इसकी मुख्य विशेषताओं में केंद्रक या कोशिकांग के बिना छोटी, सरल कोशिकाएँ शामिल होना है। इसकी मुख्य विशेषताओं में केंद्रक वाली बड़ी जटिल कोशिकाएँ और विभिन्न कोशिकांग शामिल हैं।

एंडोसिंबायोसिस द्वारा यूकैरियोट्स की उत्पत्ति:

  • एंडोसिंबायोसिस एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ एक जीव दूसरे जीव के अंदर रहता है और दोनों को इस संबंध से लाभ होता है।
  • एंडोसिंबायोटिक सिद्धांत से पता चलता है कि यूकैरियोट्स, जीवाणु को निगलने वाले एक छोटे आर्कियोन से विकसित हुए हैं।
    • आर्कियोन जीवाणु की रक्षा कर एक स्थिर वातावरण प्रदान करता है तथा जीवाणु, आर्कियोन को ऊर्जा की आपूर्ति करता है।
  • समय के साथ-साथ ये एक-दूसरे पर निर्भर हो गए तथा इन्होंने एक नए प्रकार की कोशिका का निर्माण किया जिसे यूकैरियोट्स कहा जाता है।
    • अंत में यह जीवाणु माइटोकॉन्ड्रिया बन गया जो कोशिका के लिये ऊर्जा उत्पन्न करता है।
  • पौधों में एक अन्य एंडोसिंबायोटिक प्रक्रिया होती है जिसमें सायनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) क्लोरोप्लास्ट (हरित लवक) बन जाता है जो प्रकाश संश्लेषण का संचालन करता है।
    • इस सहजीवी संबंध ने यूकैरियोट्स को विकसित होने, अधिक जटिल और विभिन्न वातावरणों के अनुकूल होने की अनुमति प्रदान की है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अक्सर समाचारों में रहने वाले 'स्टेम सेल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)

  1. स्टेम कोशिकाएँ केवल स्तनधारियों से प्राप्त की जा सकती हैं
  2. स्टेम कोशिकाओं का उपयोग नई दवाओं की जाँच के लिये किया जा सकता है
  3. स्टेम कोशिकाओं का उपयोग चिकित्सा उपचारों के लिये किया जा सकता है

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • स्टेम कोशिकाएँ अविभाजित या "रिक्त" कोशिकाएँ होती हैं जो कोशिकाओं में विकसित होने में सक्षम होती हैं यह शरीर के विभिन्न भागों में कई कार्य करती हैं। शरीर की अधिकांश कोशिकाएँ विभेदित कोशिकाएँ ही हैं। ये कोशिकाएँ किसी विशेष अंग में केवल एक विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति कर सकती हैं। उदाहरण के लिये लाल रक्त कोशिकाओं को विशेष रूप से रक्त के माध्यम से ऑक्सीजन के परिसंचरण के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • स्टेम कोशिकाएँ न केवल स्तनधारियों, बल्कि पौधों और अन्य जीवों में भी पाई जाती हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • चूँकि स्टेम कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में परिवर्तित होने की क्षमता होती है, इसलिये वैज्ञानिकों का मानना है कि ये बीमारियों के बारे में समझने और उनके इलाज़ के लिये उपयोगी हो सकती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, स्टेम कोशिकाओं का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिये किया जा सकता है:
    • क्षतिग्रस्त अंगों अथवा ऊतकों को प्रतिस्थापित करने के लिये प्रयोगशाला में नई कोशिकाएँ विकसित करने में।
    • ठीक से काम नहीं कर रहे अंगों के हिस्सों को ठीक करने में।
    • कोशिकाओं में व्याप्त आनुवंशिक दोषों के कारणों पर शोध करने में।
    • बीमारियों की उत्पत्ति अथवा कुछ कोशिकाओं के कैंसर कोशिकाओं में बदल जाने के कारण का पता लगाने संबंधी शोध करने में।
    • सुरक्षा और प्रभावशीलता के लिये नई दवाओं का परीक्षण करने में। अतः कथन 2 सही है।
    • चिकित्सीय उपचार करने में। अतः कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

रेडियो टेलीस्कोप

टेलीस्कोप खगोलविदों के लिये एक अपरिहार्य उपकरण हैं जो आकाशीय पिंडों का निरीक्षण एवं अध्ययन करने में उनकी सहायता करता है।

  • रेडियो टेलीस्कोप विभिन्न प्रकार के टेलीस्कोपों में से एक है जो रेडियो तरंगों की खोज कर ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्यों से पर्दा उठाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

रेडियो टेलीस्कोप:

  • परिचय:
    • रेडियो टेलीस्कोप एक उपकरण है जो आकाश में खगोलीय पिंडों से रेडियो तरंगों का पता लगाता है तथा उनका विश्लेषण करता है।
    • रेडियो तरंगें एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय विकिरण हैं जिनकी तरंग दैर्ध्य लगभग 1 मिलीमीटर से 10 मीटर तक होती है।
      • वे दृश्य प्रकाश को अवरुद्ध करने वाले धूल और गैस के बादलों को भेद सकते हैं, इसलिये रेडियो दूरबीन ब्रह्मांड में अदृश्य संरचनाओं और घटनाओं को प्रकट कर सकते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • वे अपने बड़े आकार के कारण आमतौर पर कक्षा के स्थान पर आधार में स्थित होते हैं।
    • इसमें दो मुख्य घटक होते हैं: एक बड़ा एंटीना और एक संवेदनशील रिसीवर।
      • एंटीना आमतौर पर एक परवलयिक डिश होती है जो आने वाली रेडियो तरंगों को एक केंद्र बिंदु पर प्रतिबिंबित और केंद्रित करती है।
      • रिसीवर रेडियो संकेतों को प्रवर्धित और विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है जिन्हें कंप्यूटर द्वारा रिकॉर्ड और विश्लेषित किया जा सकता है।
  • महत्त्व:
    • यह दिन और रात दोनों में कार्य कर सकता है, ऑप्टिकल दूरबीनों के विपरीत, जिन्हें स्पष्ट और अंधेरे आसमान की आवश्यकता होती है।
    • यह उन वस्तुओं का निरीक्षण कर सकता है जो ऑप्टिकल दूरबीनों द्वारा देखे जाने पर बहुत धुँधली दिखाई देती हैं या बहुत दूर हैं, जैसे कि कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (CMB) विकिरण, पल्सर, क्वासर और ब्लैक होल
    • यह विभिन्न परमाणुओं और अणुओं की वर्णक्रमीय रेखाओं का पता लगाकर अंतर-तारकीय गैस और धूल के बादलों की रासायनिक संरचना तथा भौतिक स्थितियों का अध्ययन कर सकता है।
    • यह रेडियो तरंगों के ध्रुवीकरण का पता लगाकर तारों और आकाशगंगाओं के चुंबकीय क्षेत्र तथा घूर्णन दर को माप सकता है।

नोट:

  • पल्सर (Pulsating Radio Sources) एक अत्यधिक चुंबकीय घूर्णन करने वाला न्यूट्रॉन तारा है जो अपने चुंबकीय ध्रुवों से विद्युत चुंबकीय विकिरण उत्सर्जित करता है।
    • अधिकांश न्यूट्रॉन तारे पल्सर के रूप में देखे जाते हैं।
  • क्वासर (Quasar), दूर स्थित आकाशगंगा (Galaxy) का सबसे चमकदार पिंड है, जिससे रेडियो आवृत्ति पर धारा (Jet) का उत्सर्जन होता है।
    • क्वासर (Quasar) ब्रह्मांड की सबसे चमकीली वस्तुओं में से एक है, इसकी रोशनी इसके आसपास की आकाशगंगा के सभी तारों की तुलना में अधिक होती है। इसकी धारा और हवाएँ उस आकाशगंगा को आकार देने में भी मदद करती हैं जिसमें यह स्थित है।
  • रेडियो टेलीस्कोप के उदाहरण:

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये (2008):

कथन (A): रेडियो तरंगें चुंबकीय क्षेत्र में झुकती हैं।

कारण (R): रेडियो तरंगें विद्युत चुंबकीय प्रकृति की होती हैं। (2008)

निम्नलिखित में से कौन-सा सही है?

(a) A और R दोनों व्यक्तिगत रूप से सही हैं और R, A की सही व्याख्या करता है।
(b) A और R दोनों व्यक्तिगत रूप से सही हैं परंतु R, A की सही व्याख्या नहीं करता है।
(c) A सही है परंतु R गलत है।
(d) A गलत है परंतु R सही है।

उत्तर: (a)

प्रश्न. आयनमंडल नामक पृथ्वी के वायुमंडल में एक परत रेडियो संचार की सुविधा प्रदान करती है। क्यों? (2011)

  1. ओज़ोन की उपस्थिति पृथ्वी पर रेडियो तरंगों के प्रतिबिंब का कारण बनती है।
  2. रेडियो तरंगों में बहुत लंबी तरंग दैर्ध्य होती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन- सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 27 जून, 2023

मशरूम की खेती से असम के कोकराझार ज़िले में उल्लेखनीय प्रगति

'एक ज़िला एक उत्पाद' पहल और वर्ष 2021 में शुरू किये गए मशरूम मिशन को संरेखित करने तथा मध्याह्न भोजन योजना में मशरूम की शुरुआत के कारण मशरूम उत्पादन में काफी वृद्धि देखने को मिली है। असम के कोकराझार ज़िले ने इस संदर्भ में उल्लेखनीय प्रगति की है। बच्चों के भोजन में पोषक तत्त्वों से भरपूर मशरूम को शामिल करने से कम वज़न वाले, कमज़ोर और एनीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या में क्रमशः 56%, 55% तथा 76% की कमी आई है। इस ज़िले में मातृ मृत्यु दर में भी 72.37% और शिशु मृत्यु दर में 30.56% की कमी आई है। मशरूम अत्यधिक पौष्टिक होता है और इसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। इसमें कैलोरी और वसा की मात्रा कम होती है जिस कारण यह वज़न प्रबंधन के लिये एक बेहतर विकल्प के रूप में मान जाता है। मशरूम विटामिन एवं खनिजों का एक समृद्ध स्रोत है, जिनमें विटामिन बी, तांबा, सेलेनियम और पोटेशियम शामिल हैं। मशरूम पाचन तंत्र को बेहतर बनाने और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूती प्रदान करने वाले डायट्री फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त मशरूम हड्डियों के स्वास्थ्य के लिये आवश्यक विटामिन डी के कुछ गैर-पशु स्रोतों में से एक है।


DPCGC ने OTT प्लेटफॉर्म पर अश्लील सामग्री के खिलाफ कार्रवाई की

हाल ही में भारत में ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट प्रदाताओं (OCCPs) के लिये एक स्व-नियामक निकाय, डिजिटल प्रकाशक सामग्री शिकायत परिषद (DPCGC) ने स्पष्ट और अश्लील सामग्री प्रसारित करने हेतु ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म ULLU के खिलाफ कार्रवाई की है। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी की अध्यक्षता में परिषद ने सूचना प्रौद्योगिकी नियमों (2021) के उल्लंघन तथा एक असंतुष्ट दर्शक द्वारा उठाई गई शिकायतों का हवाला देते हुए 15 दिनों के भीतर ऐसी सामग्री को हटाने की मांग करते हुए एक आदेश जारी किया। DPCGC उपभोक्ता शिकायतों और सामग्री से संबंधित मुद्दों का समाधान करता है। यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत काम करता है तथा सरकार द्वारा निर्धारित आचार संहिता व नियमों को लागू करता है। DPCGC में एक OCCP परिषद और एक शिकायत निवारण बोर्ड शामिल है।

और पढ़ें… ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म, ओवर-द-टॉप की चुनौतियाँ


पौधों में मिला फाइबोनैचि सर्पिल

एक हालिया अध्ययन ने आम धारणा पर प्रश्न उठाया है कि पौधे प्राचीन एवं सुसंगत प्रारूप को प्रदर्शित करते हैं जिन्हें फाइबोनैचि सर्पिल के रूप में जाना जाता है। इन सर्पिलों को पत्तियों एवं प्रजनन संरचनाओं सहित पौधों के विभिन्न भागों में देखा जा सकता है। हालाँकि 407 मिलियन वर्ष प्राचीन जीवाश्म पौधों का अध्ययन करने वाले शोधकर्त्ताओं ने पाया कि इस विशेष प्रजाति में सर्पिल फाइबोनैचि अनुक्रम के अनुरूप नहीं थी। फाइबोनैचि अनुक्रम संख्याओं की एक शृंखला है जिसमें प्रत्येक संख्या दो पूर्ववर्ती संख्याओं का योग होती है। यह अनुक्रम 0 और 1 से शुरू होता है तथा प्रत्येक बाद की संख्या उसके ठीक पहले की दो संख्याओं को जोड़कर प्राप्त की जाती है। यह अनुक्रम इस प्रकार शुरू होता है: 0, 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89 इत्यादि। नई खोज से पता चलता है कि शुरुआती पौधों में सर्पिल व्यवस्था का एक भिन्न प्रारूप था जिसमें गैर-फाइबोनैचि सर्पिल अधिक प्रचलित थे। यह दर्शाता है कि पत्ती व्यवस्था वाले और फाइबोनैचि सर्पिल के विकास का कुछ पौधों के समूहों में एक अलग इतिहास रहा है जैसे कि क्लबमॉस जो फर्न (सुंदर बारीक पत्तियों वाला एक पौधा) तथा फूल वाले पौधों जैसे अन्य जीवित पौधों के समूहों से भिन्न है। यह शोध खोज कार्य या गतिविधि के नए रास्ते खोलता है तथा प्रकृति में मौजूद इन प्रारूपों की व्यापकता के रहस्य को जानने में सहायता कर सकता है।


चंद्रयान-3 में चंद्रयान-2 के लैंडर और रोवर के नाम बरकरार रहेंगे

चंद्रयान-2 मिशन के दुर्भाग्यपूर्ण परिणामों, जिसमें विक्रम नाम का लैंडर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अगले चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर और रोवर के लिये समान नामों का उपयोग करने के अपने निर्णय की घोषणा की है। चंद्रयान-3 के लैंडर का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख व्यक्ति विक्रम साराभाई के सम्मान में 'विक्रम' रखा जाएगा, जबकि रोवर को 'प्रज्ञान' कहा जाएगा। लॉन्च जुलाई 2023 के मध्य में निर्धारित है और मिशन लैंडर, रोवर एवं प्रोपल्शन मॉड्यूल पर विभिन्न पेलोड के माध्यम से प्रयोग करेगा तथा डेटा एकत्र करेगा।

और पढ़ें… भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, चंद्रयान-3 मिशन


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