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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 25 May, 2023
  • 17 min read
प्रारंभिक परीक्षा

एक्सोलॉटल और अंग पुनर्योजन

सैलामैंडर (छिपकली जैसे उभयचर) की एक प्रजाति एक्सोलॉटल में खोए हुए शरीर के अंगों को पुन: उत्पन्न करने की असाधारण क्षमता होती है, जो शोधकर्त्ताओं को इस अनूठी पुनर्योजी शक्ति के रहस्यों को जानने के लिये प्रेरित करती है।

  • उनकी जाँच उसके रहस्यमयी o (ओवा की कमी) जीन को समझने पर केंद्रित है, जो एक्सोलॉटल की पुनर्योजन प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

एक्सोलॉटल:

  • परिचय:  
    • एक्सोलॉटल उभयचर हैं जो अपना पूरा जीवन जल में व्यतीत करते हैं। वे केवल एक ही स्थान पर (मेक्सिको सिटी के पास ज़ोचिमिल्को झील में) पाए जाते हैं। यह झील कृत्रिम धाराओं, छोटी झीलों और अस्थायी आर्द्रभूमियों का एक नेटवर्क है जो मेक्सिको सिटी के 18 मिलियन निवासियों को जल की आपूर्ति करने में मदद करती है।
    • मनुष्यों की तरह एक्सोलॉटल में प्रत्येक जीन की दो प्रतियाँ होती हैं- एक पिता से विरासत में प्राप्त होती है और दूसरी माँ से।
  • शिकार:  
    • वे मोलस्क, कीड़े, कीट लार्वा, क्रस्टेशियंस और कुछ मछलियों को खाते हैं। 
  • प्रमुख विशेषताएँ:  
    • इसने अपने खोए हुए शरीर के अंगों को पुन: उत्पन्न करने की क्षमता और चिरभ्रूणता के दुर्लभ गुणों के चलते वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है, जिसका अर्थ है कि ये जीवन भर लार्वा सुविधाओं को बनाए रखते हैं।   
      • कैंसर शोधकर्त्ताओं द्वारा कैंसरयुक्त ऊतकों के अद्वितीय प्रतिरोध विकास की विशेषताओं के लिये भी इनका अध्ययन किया जाता है।
    • प्राकृतिक रूप से ये उभयचर हैं लेकिन जीवन भर अक्षतंतु (एक्सोलॉटल) जल में रहते हैं तथा अब ये लगभग विलुप्त हो चुके हैं।
  • खतरा:  
    • आवास की हानि (मेक्सिको सिटी का व्यापक स्तर पर निरंतर शहरीकरण), जल प्रदूषण और आक्रामक मछली प्रजातियों (जैसे कार्प एवं तिलापिया, जो भोजन के लिये एक्सोलॉटल के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं तथा उनका शिकार करते हैं) के संयोजन के कारण एक्सोलॉटल की आबादी में काफी गिरावट आई है। 
  • सुरक्षा की स्थिति:  

अंग पुनर्योजन:

  • परिचय:  
    • अंग पुनर्योजन जीवित जीवों में क्षतिग्रस्त या नष्ट हुए अंगों या ऊतकों को बहाल करने या बदलने की प्रक्रिया है। यह एक आकर्षक घटना है जो पौधों से लेकर जानवरों तक विभिन्न प्रजातियों में व्यापक रूप से भिन्न होती है।  
    • अंग पुनर्जनन में चिकित्सा अनुप्रयोगों के लिये बहुत अधिक संभावनाएँ हैं, जैसे कि मानव अंगों को प्रभावित करने वाली चोटों और बीमारियों का इलाज करना।
  • प्रमुख प्रक्रियाएँ:  
    • रीमॉडलिंग: इसमें नई संरचनाओं को बनाने के लिये मौजूदा ऊतकों को फिर से आकार देना और पुनर्गठित करना शामिल है।
      • उदाहरण के लिये पौधे और कुछ समुद्री जीव, जैसे- जेलिफिश अपने शेष ऊतकों को बड़े पैमाने पर रीमॉडलिंग करके नष्ट हुए हिस्सों  को बहाल कर सकते हैं।
    • ब्लास्टेमा गठन: इसमें चोट के स्थान पर अविभाजित कोशिकाओं का एक समूह विकसित करना शामिल है जो विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में अंतर कर सकते हैं और नए ऊतकों एवं अंगों का निर्माण कर सकते हैं।
      • उदाहरण के लिये सैलामैंडर जैसे कुछ जीव पहले एक ब्लास्टेमा का गठन कर नष्ट हुए हिस्सों  को पुन: उत्पन्न कर सकते हैं।
    • प्रतिपूरक अतिवृद्धि: इसमें एक अंग के शेष भाग के आकार और कार्य को बढ़ाना शामिल है ताकि दूसरे भाग के नुकसान की भरपाई की जा सके।
      • उदाहरण के लिये इंसानों में अगर एक किडनी निकाल दी जाती है, तो दूसरी बड़ी हो जाती है।
    • जीवों के अन्य उदाहरण जो अंगों को पुनर्योजी कर सकते हैं:
    • प्लेनेरियन, ज़ेब्राफिश और समुद्री खीरा (Sea Cucumber)।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

सोडियम-आयन बैटरियों के क्षेत्र में प्रगति

हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने उच्च प्रदर्शन, लागत-प्रभावशीलता और पर्यावरणीय स्थिरता प्रदान करने वाली नई कैथोड सामग्री निर्मित कर सोडियम-आयन बैटरी (Na-ion Battery) के विकास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। 

  • यह प्रगति सोडियम-ट्रांज़ीशन-मेटल-ऑक्साइड (Na-TM-ऑक्साइड) आधारित कैथोड सामग्री में वायु या जल-अस्थिरता तथा संरचनात्मक-सह-विद्युत-रासायनिक अस्थिरता संबंधी बाधाओं का समाधान करती है, जो कि स्थिर एवं कुशल ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के निर्माण में सहायक होगी।

नवीनतम विकसित कैथोड सामग्री: 

  • परिचय: 
    • कैथोड सामग्री वह इलेक्ट्रोड है जहाँ बैटरी के अनावेशित/डिस्चार्ज होने की प्रक्रिया के दौरान सोडियम आयनों को संग्रहीत किया जाता है
      • यह विद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं हेतु उत्तरदायी है जिनके परिणामस्वरूप विद्युत धारा का प्रवाह होता है।
    • नवीनतम विकसित कैथोड सामग्री वायु/जल-स्थिरता और उच्च-प्रदर्शन के लिये जानी जाती है।
      • वे हवा/पानी के संपर्क में आने पर उच्च विद्युत रासायनिक चक्रीय स्थिरता प्रदर्शित करते हैं।
  • महत्त्व: 
    • सोडियम-आयन बैटरी के लिये नवीनतम विकसित कैथोड सामग्री उच्च प्रदर्शन, लागत-प्रभावशीलता और पर्यावरण अनुकूलता प्रदान करती है।
      • ये सामग्रियाँ उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, ग्रिड ऊर्जा भंडारण, नवीकरणीय ऊर्जा भंडारण और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये कुशल और टिकाऊ ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं।

सोडियम-आयन (Na-आयन) बैटरी: 

  • परिचय: 
    • सोडियम-आयन बैटरी एक प्रकार की रिचार्जेबल बैटरी है जिसकी तुलना सर्वव्यापी लिथियम-आयन बैटरी से की जा सकती है, लेकिन यह लिथियम आयन (Li+) के बजाय चार्ज वाहक के रूप में सोडियम आयन (Na+) का उपयोग करती है।
      • सोडियम-आयन बैटरी के पीछे काम करने वाले सिद्धांत और सेल निर्माण लगभग लिथियम-आयन बैटरी के समान हैं, लेकिन लिथियम यौगिकों के बजाय सोडियम यौगिकों का उपयोग किया जाता है।
    • सोडियम-आयन बैटरी अपनी कम लागत, उच्च उपलब्धता और पर्यावरण पर कम प्रभाव के कारण वर्तमान लिथियम-आयन बैटरी तकनीक के संभावित विकल्प के रूप में उभर रही है। 
  • महत्त्व: 
    • जलवायु और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने में बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता महत्त्व परंपरागत लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी के बदले लागत प्रभावी, संसाधन-अनुकूल, सुरक्षित और टिकाऊ क्षार धातु-आयन बैटरी प्रणाली के विकास की आवश्यकता है। 
    • भारत में सोडियम स्रोतों की प्रचुरता सोडियम-आयन (Na-ion) बैटरी प्रणाली को स्थानीय संदर्भ में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण बनाती है, जो सोडियम-आयन (Na-ion) बैटरी उत्पादन हेतु सरलता से प्रचुर मात्रा में संसाधन प्रदान करती है।
  • चुनौतियाँ: 
    • सोडियम-आयन (Na-ion) बैटरी का प्रदर्शन इलेक्ट्रोड की संरचनात्मक और विद्युत रासायनिक स्थिरता, सोडियम-आयन परिवहन गतिज और विभिन्न गतिशील प्रतिरोधों पर निर्भर करता है।
    • हालाँकि सोडियम-आयन बैटरी प्रणाली में सोडियम आधारित कैथोड सामग्री के इलेक्ट्रोकेमिकल व्यवहार और स्थिरता के व्यापक उपयोग में महत्त्वपूर्ण सुधार की आवश्यकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 25 मई, 2023

महिला सशक्तीकरण के लिये भारत के भ्रष्टाचार विरोधी प्रयास 

ऋषिकेश में आगामी G20 भ्रष्टाचार विरोधी कार्य समूह की बैठक में भारत अपने अनुभवों पर प्रकाश डालेगा जहाँ भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों ने महिला सशक्तीकरण पर सकारात्मक प्रभाव डाला है। बैठक में महिलाओं पर भ्रष्टाचार के प्रभाव, लेखांकन संस्थानों की भूमिका और आर्थिक अपराधियों की एक सामान्य परिभाषा की स्थापना सहित कई विषयों को शामिल किया जाएगा। बैठक के दौरान एक अलग कार्यक्रम में लैंगिक संवेदनशीलता तथा भ्रष्टाचार विरोधी रणनीतियों के प्रतिच्छेदन का पता लगाने की भारत की पहल पर प्रकाश डाला जाएगा। भारत का लक्ष्य विश्व स्तर पर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने और आर्थिक अपराधियों को उदार कानूनों वाले देशों में शरण लेने से रोकने में G20 देशों की प्रतिबद्धता को मज़बूती प्रदान करना है। वर्ष 2018 में अर्जेंटीना की G20 प्रेसीडेंसी के दौरान भगोड़े आर्थिक अपराधों और परिसंपत्ति की वसूली के खिलाफ कार्रवाई के लिये भारतीय प्रधानमंत्री का नौ सूत्री मसौदा, सभी G20 देशों की चिंताओं के साथ प्रतिध्वनित होता है। भारत सार्वजनिक वित्त में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ाने के लिये सर्वोच्च लेखापरीक्षा प्राधिकरणों तथा भ्रष्टाचार विरोधी निकायों के बीच सहयोग पर बल देते हुए भ्रष्टाचार का सामना करने में लेखापरीक्षा की भूमिका के संबंध में उच्च प्रथाओं का एक सार-संग्रह भी संकलित कर रहा है। यह व्यापक दृष्टिकोण भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई को मज़बूत करने में भारत की प्राथमिकता को प्रदर्शित करता है।

और पढ़ें…G-20 और बहुपक्षवाद की आवश्यकता

स्थानीय जनजातियों द्वारा मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को अलग करने की मांग

स्थानीय जनजातीय नेताओं का फोरम (Indigenous Tribal Leaders' Forum- ITLF) मणिपुर में जनजातीय नेताओं का मंच है जो खुद को मणिपुर के चुराचाँदपुर में मान्यता प्राप्त जनजातियों के समूह के रूप में वर्णित करता है। इसने राज्य के अन्य हिस्सों से मुख्य रूप से कुकी-चिन-ज़ोमी-मिज़ो समूह की स्थानीय जनजातियों द्वारा बसे पहाड़ी क्षेत्रों को पूरी तरह से अलग करने का आह्वान किया है। मणिपुर के चुराचाँदपुर ज़िले में मान्यता प्राप्त जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले ITLF ने CRPF के पूर्व प्रमुख को याचिका सौंपी, जिन्हें हालिया जातीय संघर्षों के बाद मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था। इस मंच ने प्रमुख मैतेई लोगों के साथ सह-अस्तित्व पर असमर्थता व्यक्त की, उन पर अंतहीन अत्याचार करने और आदिवासी लोगों के प्रति घृणा प्रदर्शित करने का आरोप लगाया।

और पढ़ें… मणिपुर में हिंसा, मैतेई  द्वारा ST दर्जे की मांग

असम और मेघालय सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास  

हाल ही में असम और मेघालय के बीच मुख्यमंत्री स्तर की बैठक में दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को हल करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया। असम और मेघालय 884 किमी. लंबी सीमा साझा करते हैं, यह बैठक शेष छह विवादित क्षेत्रों के लिये संकल्प प्रक्रिया की "शुरुआत" थी। जुलाई 2021 से वे विवादों को निपटाने के लिये चर्चा में लगे हुए हैं और पिछले मार्च, 2022 में उन्होंने बारह विवादित क्षेत्रों में से छह को संबोधित करने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। जिन छह क्षेत्रों में विवाद बना हुआ है, वे लंगपीह, बोरदुआर, नोंगवाह-मावतामुर, देशडूमरिया, ब्लॉक 1 और ब्लॉक II तथा सियार-खंडुली हैं। इसके अतिरिक्त बैठक में दोनों राज्यों द्वारा पूर्व में गठित तीन पैनलों द्वारा विवादित क्षेत्रों का दौरा शुरू करने का निर्णय लिया गया। ये घटनाक्रम सीमा मुद्दों को हल करने और क्षेत्र में शांति तथा स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये नए सिरे से प्रतिबद्धता का संकेत देते हैं।

और पढ़ें: असम-मेघालय सीमा विवाद 

चांगथी परियोजना 

मलयालम परीक्षा में प्रवासी श्रमिकों की उपलब्धि केरल साक्षरता मिशन के तहत चांगथी परियोजना की सफलता पर प्रकाश डालती है। समाज में प्रवासी मज़दूरों द्वारा सामना किये जाने वाले बहिष्कार को संबोधित करने हेतु डिज़ाइन किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य उन्हें मलयालम तथा हिंदी में पढ़ना-लिखना सिखाना है। सामाजिक-सांस्कृतिक एकीकरण के महत्त्व को स्वीकार करते हुए साक्षरता मिशन प्रवासी श्रमिकों को उनके राज्य की बारीकियों को समझने के लिये आवश्यक कौशल से युक्त करना चाहता है। यह कार्यक्रम पहली बार 15 अगस्त, 2017 को पेरुम्बवूर, केरल में शुरू किया गया था। चांगथी जैसी पहलों के माध्यम से प्रवासी श्रमिकों को सशक्त बनाया जा रहा है। यह बाधाओं को तोड़कर और समाज में अधिक समावेशिता को बढ़ावा दे रहा है।

और पढ़ें… प्रवासी मुद्दे और सुरक्षा उपाय


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