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शासन व्यवस्था

मैतेई द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग

  • 06 May 2023
  • 19 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मैतेई समुदाय, अनुसूचित जनजाति, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, कोई कुकी और नगा जनजाति।

मेन्स के लिये:

ST की स्थिति हेतु मैतेई की मांग। 371 के तहत विशेष प्रावधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ऑल-ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने मैतेई समुदाय को राज्य की अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूची में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिये एकजुटता मार्च निकाला है।

  • यह मार्च मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद हिंसक झड़पों में बदल गया, जिसमें राज्य को गैर-आदिवासी मैतेई समुदाय को ST का दर्जा देने की 10 वर्ष पुरानी सिफारिश को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया गया था।

मैतेई समुदाय को ST दर्जा क्यों चाहता है?

  • मणिपुर की अनुसूचित जनजाति मांग समिति (STDCM) के नेतृत्व में मैतेई समुदाय वर्ष 2012 से ST स्थिति की मांग कर रहा है, उन्हें अपनी संस्कृति, भाषा और पहचान को संरक्षित करने हेतु संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये कह रहा है।
  • मैतेई का तर्क है कि 1949 में मणिपुर के भारत में विलय से पहले उन्हें एक जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी, लेकिन भारत में विलय के बाद उनकी पहचान समाप्त हो गई।
  • अनुसूचित जनजाति की सूची से बाहर रहने के परिणामस्वरूप, मैतेई समुदाय बिना किसी संवैधानिक संरक्षण के स्वयं को हाशिए पर महसूस करता है।
    • STDCM के अनुसार मैतेई/मीतेई धीरे-धीरे अपनी पुश्तैनी जमीन पर ही हाशिये पर आ गए हैं।
    • उनकी जनसंख्या, जो वर्ष 1951 में मणिपुर की कुल जनसंख्या का 59% थी, अब 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार घटकर 44% रह गई है।
  • उनका मानना है कि ST का दर्जा देने से उनकी पैतृक भूमि, परंपरा, संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने में मदद मिलेगी और बाहरी लोगों से उनकी रक्षा होगी।

ST सूची में शामिल करने की प्रक्रिया:

  • ST की सूची में एक समुदाय को शामिल करने की प्रक्रिया वर्ष 1999 में स्थापित तौर-तरीकों के एक सेट का अनुसरण करती है।
  • संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश सरकार को समावेशन के प्रस्ताव को शुरू करना चाहिये, जो तब केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय और बाद में भारत के रजिस्ट्रार जनरल (ORGI) के कार्यालय में जाता है।
  • यदि ORGI समावेशन को मंजूरी देता है, तो प्रस्ताव को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजा जाता है, और यदि वे सहमत होते हैं, तो प्रस्ताव संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन के लिये कैबिनेट को भेजा जाता है।
  • सितंबर 2022 में, सरकार ने अनुसूचित जनजातियों की सूची में कुछ समुदायों को शामिल करने की मंजूरी दी। इसमे शामिल है:
    • छत्तीसगढ़ में बिंझिअ
    • तमिलनाडु में नारिकोरावण एंड कुरीविक्कारन
    • कर्नाटक में ‘बेट्टा-कुरुबा’
    • हिमाचल प्रदेश से हत्ती
    • उत्तर प्रदेश में गोंड समुदाय

मणिपुर में अन्य जनजातीय समूह मैतेई की मांग का विरोध:

  • मैतेई पहले से ही बहुमत में: इसका एक कारण यह है कि जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व के मामले में मैतेई समुदाय पहले से ही प्रभावी है, क्योंकि अधिकांश विधानसभा क्षेत्र घाटी में हैं जहाँ मैतेई रहते हैं।
    • अनुसूचित जनजाति समुदायों को डर है कि मैतेई लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से उन्हें नौकरी के अवसर और अनुसूचित जनजातियों के लिये अन्य सकारात्मक कार्यों से हाथ धोना पड़ेगा।
  • मैतेई संस्कृति की मान्यता है: मैतेई भाषा पहले से ही संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल है, और मैतेई समुदाय के कुछ वर्गों को पहले से ही अनुसूचित जाति (SC) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत वर्गीकृत किया गया है, जो उन्हें कुछ अवसरों तक पहुँच प्रदान करता है।
  • अधिक राजनीतिक प्रभाव: वे यह भी सोचते हैं कि अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग घाटी क्षेत्र के प्रमुख मैतेई समुदाय हेतु कुकी एवं नगा जैसे अन्य आदिवासी समूहों की राजनीतिक मांगों से ध्यान हटाकर राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों पर राजनीतिक प्रभाव तथा नियंत्रण हासिल करने का एक तरीका है।
    • कुकी एक जातीय समूह है जिसमें मूल रूप से मणिपुर, मिज़ोरम और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाली कई जनजातियाँ शामिल हैं; बर्मा (अब म्याँमार) के कुछ हिस्से और सिलहट ज़िला एवं बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी इलाके।
    • इन क्षेत्रों में व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के प्रयास में कुकी एवं नगाओं ने अक्सर हिंसक गतिरोध में भाग लिया, जिसमें गाँवों को आग लगा दी गई, नागरिकों को मार दिया गया, साथ ही ऐसी अन्य घटनाएँ हुईं।
  • जनजातीय समूहों का निष्कासन: अगस्त 2022 से राज्य सरकार की चेतावनियों में कहा गया है कि चूराचंदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र के 38 गाँव "अवैध बस्तियाँ" हैं एवं इसमें रहने वाले "अतिक्रमणकारी" हैं, जो अशांति के अन्य कारणों में से एक है।
    • इसके बाद सरकार ने एक बेदखली अभियान शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप झड़पें हुईं।
    • कुकी समूहों ने दावा किया है कि सर्वेक्षण और निष्कासन अनुच्छेद 371C का उल्लंघन है, जो मणिपुर के आदिवासी बहुल पहाड़ी क्षेत्रों को कुछ प्रशासनिक स्वायत्तता प्रदान करता है।

मणिपुर की जातीय संरचना:

  • परिचय:
    • मैतेई मणिपुर में सबसे बड़ा समुदाय है और वहाँ 34 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ हैं जिन्हें प्रमुख रूप से 'एनी कुकी ट्राइब्स' और 'एनी नगा ट्राइब्स' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • मैतेई और मैतेई पंगल, जो राज्य की आबादी का लगभग 64.6% हैं, मुख्य रूप से इम्फाल घाटी में रहते हैं, जो मणिपुर के भूभाग के लगभग 10% हिस्से पर पाए जाते हैं।
      • राज्य के शेष 90% भौगोलिक क्षेत्र में घाटी के आसपास की पहाड़ियाँ शामिल हैं जो चिह्नित्त जनजातियों का आवास है, ये जनजातियाँ राज्य की आबादी का लगभग 35.4% हैं।
    • अधिकांश मैतेई हिंदू हैं, इनके बाद मुस्लिम (8%) हैं, 33 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ है, बड़े पैमाने पर ईसाईयों को 'अन्य नगा जनजाति' और 'अन्य कुकी जनजाति' में वर्गीकृत किया गया है।
    • नगालैंड के दीमापुर ज़िले के साथ मणिपुर को दिसंबर 2019 में ILP प्रणाली के दायरे में लाया गया था। ILP एक विशेष परमिट है जो देश के अन्य क्षेत्रों से "बाहरी लोगों" द्वारा अधिसूचित राज्यों में प्रवेश करने के लिये अनिवार्य रूप से आवश्यक है।
  • मैतेई समुदाय से संबंधित प्रमुख बिंदु:
    • मैतेई लोगों को मणिपुरी लोग भी कहा जाता है।
    • उनकी प्राथमिक भाषा मैतेई है, जिसे मणिपुरी भी कहा जाता है और मणिपुर की एकमात्र आधिकारिक भाषा है।
    • वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में बसे हुए हैं, हालाँकि एक बड़ी आबादी अन्य भारतीय राज्यों, जैसे- असम, त्रिपुरा, नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम में निवास करती है।
    • म्याँमार और बांग्लादेश के पड़ोसी देशों में भी पर्याप्त मैतेई निवास करते हैं।
    • मैतेई लोग गोत्रों में विभाजित हैं, और एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं करते हैं।

अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान:

  • संविधान का अनुच्छेद 371 पूर्वोत्तर के छह राज्यों (त्रिपुरा और मेघालय को छोड़कर) सहित 11 राज्यों के लिये "विशेष प्रावधान" प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 369-392 (कुछ हटाए गए अनुच्छेद सहित) संविधान के भाग XXI में है, जिसका शीर्षक 'अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान' है।
    • अनुच्छेद 370 'जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी प्रावधान' से संबंधित है;
  • अनुच्छेद 371 और 371A-371J दूसरे राज्य (या राज्यों) के संबंध में विशेष प्रावधानों को परिभाषित करते हैं।
    • अनुच्छेद 371I गोवा से संबंधित है, लेकिन इसमें ऐसा कोई प्रावधान शामिल नहीं है जिसे 'विशेष' माना जा सके।
अनुच्छेद (संशोधन) संबंधित राज्य प्रावधान
अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र और गुजरात राज्यपाल के पास "विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र" तथा गुजरात में सौराष्ट्र और कच्छ के लिये "अलग विकास बोर्ड" स्थापित करने की "विशेष ज़िम्मेदारी" है।
अनुच्छेद 371A (तेरहवाँ संशोधन अधिनियम, 1962) नगालैंड नगा धर्म या सामाजिक प्रथाओं, नगा प्रथागत कानून एवं प्रक्रिया, नगा प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में संसद कानून नहीं बना सकती है।
अनुच्छेद 371B (22वाँ संशोधन अधिनियम, 1969) असम इसके अंतर्गत भारत का राष्ट्रपति राज्य विधानसभा के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों से या ऐसे सदस्यों से जिन्हें वह उचित समझता है, एक समिति का गठन कर सकता है।
अनुच्छेद 371C (27वाँ संशोधन अधिनियम, 1971) मणिपुर राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से मणिपुर विधानसभा के लिये चुने गए सदस्यों से एक समिति का गठन कर सकता है एवं इस समिति का उचित संचालन सुनिश्चित करने हेतु राज्यपाल को विशेष उत्तरदायित्व सौंप सकता है।
अनुच्छेद 371D (32वाँ संशोधन अधिनियम, 1973; आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 द्वारा प्रतिस्थापित) आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

राष्ट्रपति को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के लिये शिक्षा एवं रोज़गार के समान अवसर सुनिश्चित करने होंगे।

राष्ट्रपति को राज्य सरकार के सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे राज्य के विभिन्न भागों में स्थानीय काडर के लिये लोक सेवाओं को संगठित किया जा सके तथा किसी भी स्थानीय काडर में आवश्यकतानुसार सीधी भर्ती की जा सके।

किसी भी शैक्षिक संस्थान में राज्य के किस भाग के छात्रों को प्रवेश में वरीयता दी जाएगी, यह निर्धारित करने की शक्ति भी राष्ट्रपति के पास है।

राष्ट्रपति, राज्य में सिविल सेवा के पदों पर कार्यरत अधिकारियों की शिकायतों एवं विवादों के निपटान हेतु विशेष प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना कर सकता है। यह अधिकरण लोक सेवाओं में भर्ती, आवंटन, पदोन्नति आदि से संबंधित शिकायतों एवं विवादों की सुनवाई करेगा।

अनुच्छेद 371E संसद को आंध्र प्रदेश राज्य में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करने का अधिकार देता है लेकिन वास्तव में यह संविधान के इस भाग में अन्य उपबंधों के अर्थ में एक 'विशेष उपबंध' नहीं है।

अनुच्छेद 371F (36वाँ संशोधन अधिनियम, 1975) सिक्किम

सिक्किम विधानसभा के सदस्य लोकसभा में सिक्किम के प्रतिनिधियों का चयन करेंगे।

सिक्किम की जनसंख्या के विभिन्न अनुभागों के अधिकार एवं हितों की रक्षा के लिये संसद को यह अधिकार दिया गया है कि सिक्किम विधानसभा में कुछ सीटें इन्हीं अनुभागों से आने वाले व्यक्तियों द्वारा भरी जाएँ, ऐसा प्रावधान कर सके।

राज्य के राज्यपाल का विशेष दायित्व है कि वह सिक्किम में शांति स्थापित करने की व्यवस्था करे तथा राज्य की जनसंख्या के समान सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये संसाधनों एवं अवसरों का उचित आवंटन सुनिश्चित करे।

पूर्व के सभी कानून जिनसे सिक्किम का गठन हुआ, जो जारी रहेंगे और किसी भी अदालत में किसी भी रूपांतरण या संशोधन के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे।

अनुच्छेद 371G (53वाँ संशोधन अधिनियम, 1986) मिज़ोरम

इस प्रावधान के अनुसार, संसद ‘मिज़ो’, मिज़ो प्रथागत कानून और प्रक्रिया, धार्मिक एवं सामाजिक न्याय के कानून, मिज़ो प्रथागत कानून के अनुसार दीवानी और आपराधिक न्यायिक प्रशासन के निर्णयों के मामलों में भूमि के स्वामित्व एवं हस्तांतरण संबंधी मुद्दों पर कानून नहीं बना सकती जब तक कि राज्य विधानसभा ऐसा करने हेतु प्रस्ताव न दे।

अनुच्छेद 371H (55वाँ संशोधन अधिनियम, 1986) अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल पर राज्य में कानून एवं व्यवस्था सुनिश्चित करने का विशेष दायित्व है। अपने इस दायित्व का निर्वहन करने में राज्यपाल, राज्य मंत्री परिषद से परामर्श कर व्यक्तिगत निर्णय ले सकता है तथा उसका निर्णय ही अंतिम निर्णय माना जाएगा और इसके प्रति वह जवाबदेह नहीं होगा।

अनुच्छेद 371J (98वाँ संशोधन अधिनियम, 2012) कर्नाटक

हैदरबाद-कर्नाटक क्षेत्र हेतु पृथक् विकास बोर्ड की स्थापना करने का प्रावधान है, जिसकी कार्यप्रणाली से संबंधित रिपोर्ट प्रतिवर्ष राज्य विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत की जाएगी।

उक्त क्षेत्रों में विकासात्मक व्यय हेतु समान मात्रा में धन आवंटित किया जाएगा और सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में इस क्षेत्र के लोगों को समान अवसर तथा सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।

हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नौकरियों और शैक्षिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों तथा राज्य सरकार के संगठनों में संबंधित व्यक्तियों के लिये जो जन्म या मूल-निवास के संदर्भ में उस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, आनुपातिक आधार पर सीटें आरक्षित करने हेतु एक आदेश दिया जा सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के उपबंध निम्नलिखित में से किसके लिये किये गए हैं?

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों के संरक्षण के लिये
(b) राज्यों के बीच सीमाओं के निर्धारण के लिये
(c) पंचायतों की शक्तियों, प्राधिकारों और उत्तरदायित्त्वों के निर्धारण के लिये
(d) सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों के संरक्षण के लिये

उत्तर: (a)


प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (मुख्य परीक्षा- 2017)

प्रश्न. भारत में आदिवासियों को 'अनुसूचित जनजाति' क्यों कहा जाता है? उनके उत्थान के लिये भारत के संविधान में निहित प्रमुख प्रावधानों को इंगित करें। (मुख्य परीक्षा- 2016)

स्रोत : द हिंदू

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