प्रारंभिक परीक्षा
सौर कोरोनल छिद्र
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही के अध्ययन में भारतीय खगोलविदों ने सौर कोरोनाल छिद्रों (Solar Coronal Holes- SCH) की तापीय और चुंबकीय क्षेत्र संरचनाओं का सटीक अनुमान लगाया है।
सौर कोरोनल छिद्र क्या हैं?
- परिचय: कोरोनाल छिद्र सूर्य के विशाल, अदीप्त क्षेत्र हैं जिनकी शीतलता आस-पास के प्लाज़्मा की तुलना में अधिक और सघनता कम होती है। इसकी खोज सर्वप्रथम 1970 के दशक में एक्स-रे उपग्रहों द्वारा की गई थी।
- उपस्थिति:
- ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र अंतराग्रहीय अंतरिक्ष के लिये विवृत अथवा मुक्त होता है, जिससे उच्च चाल सौर वात (भूचुंबकीय झंझावात) बच जाती है।
- मुक्त चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ वे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ होती हैं जो संवृत पाश (Closed Loop) नहीं बनातीं, बल्कि अपने उद्गम पर वापस आए बिना अंतरिक्ष में बाहर की ओर विस्तारित होती हैं।
- कोरोनल छिद्र् सौर चक्र के घटते चरण के दौरान सर्वाधिक पाए जाते हैं तथा आमतौर पर सूर्य के ध्रुवों के पास पाए जाते हैं।
- ये उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र अंतराग्रहीय अंतरिक्ष के लिये विवृत अथवा मुक्त होता है, जिससे उच्च चाल सौर वात (भूचुंबकीय झंझावात) बच जाती है।
- कोरोनल छिद्र के गुण::
- एकसमान तापमान: कोरोनल छिद्र सभी अक्षांशों पर एकसमान तापमान बनाए रखते हैं, जो सूर्य के भीतर एक गहरी उत्पत्ति का संकेत देता है।
- चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन: सौर भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति बढ़ जाती है, जो संभवतः अल्फवेन तरंग विक्षोभ से प्रभावित होती है।
- अल्फवेन तरंग विक्षोभ चुंबकीय क्षेत्र और प्लाज्मा आयनों में होने वाले निम्न आवृत्ति के दोलन हैं, जो सौर वायु और जियोस्पेस में अस्थिरता का कारण बन सकते हैं।
- SCH के प्रभाव:
- अंतरिक्ष मौसम पर प्रभाव: कोरोनल छिद्रों से निकलने वाली उच्च गति वाली सौर वायु पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ संपर्क करती है, जिससे भू-चुंबकीय तूफान उत्पन्न होते हैं जो उपग्रहों, GPS और संचार नेटवर्क को बाधित कर सकते हैं।
- भारतीय मानसून पर प्रभाव: अध्ययन से पता चलता है कि, सनस्पॉट के साथ-साथ, कोरोनल छिद्र के विकिरण संबंधी प्रभाव भारतीय मानसून वर्षा परिवर्तनशीलता को प्रभावित करते हैं।
- आयनमंडलीय विक्षोभ: कोरोनल छिद्र की गतिविधि पृथ्वी के आयनमंडल को प्रभावित करती है, जिससे रेडियो तरंग प्रसार और दूरसंचार प्रणालियों पर असर पड़ता है।
सनस्पॉट
- सनस्पॉट का आशय सूर्य की सतह पर काले क्षेत्र का होना है जिसका कारण मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र होता है। इनका तापमान सूर्य के आस-पास के क्षेत्रों की तुलना में कम होता है जिससे ये सूर्य की सतह (फोटोस्फीयर) पर स्पष्ट दिखाई देते हैं।
- कोरोनाल होल और सनस्पॉट में स्थान, चुंबकीय क्षेत्र तथा दृश्यता के स्तर पर भिन्नता होती है।
और पढ़ें: भू-चुंबकीय तूफान
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न: यदि कोई मुख्य सौर तूफान (सौर प्रज्वाल) पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पृथ्वी पर निम्नलिखित में से कौन-से संभव प्रभाव होंगे? (2022)
नीचे दिये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) |
रैपिड फायर
ट्राइनेशन बौद्ध मोटरसाइकिल अभियान
स्रोत: पी.आई.बी.
हार्टफुलनेस लॉर्ड बुद्धा ट्राइनेशन ट्राई-सर्विसेज मोटरसाइकिल अभियान फरवरी 2025 में लुंबिनी (भगवान बुद्ध की जन्मस्थली), नेपाल में शुरू हुआ।
- यह नेपाल, भारत और श्रीलंका को उनकी साझा बौद्ध विरासत के माध्यम से एकजुट करने वाली एक ऐतिहासिक पहल है।
- इस यात्रा के मार्ग में निम्नवत प्रमुख भारतीय बौद्ध स्थल शामिल हैं:
- इस अभियान का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC), भारतीय भूमि पत्तन प्राधिकरण (गृह मंत्रालय) और नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर के सहयोग से किया जा रहा है।
- श्रीलंका में प्रमुख बौद्ध स्थलों में अनुराधापुरा, पोलोन्नारुवा, दांबुला आदि शामिल हैं।
और पढ़ें: भारत में बौद्ध धर्म
रैपिड फायर
DBT का पूर्वोत्तर कार्यक्रम
स्रोत: पी.आई.बी
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) का पूर्वोत्तर कार्यक्रम भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र (NER) में जैव प्रौद्योगिकी आधारित परिवर्तन को आगे बढ़ा रहा है।
- DBT का पूर्वोत्तर कार्यक्रम: वर्ष 2010-2011 में प्रारंभ किये गए इस कार्यक्रम के बाद से जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने अपने वार्षिक बजट का 10% पूर्वोत्तर क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों के लिये आवंटित किया है, जिसका ध्यान शिक्षा, अनुसंधान और जैव-उद्यमिता को बढ़ाने पर केंद्रित है।
- अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को सक्षम बनाया गया, जिससे शोधकर्त्ताओं और छात्रों को लाभ मिला, तथा अनुसंधान और प्रशिक्षण को समर्थन देने के लिये पूर्वोत्तर क्षेत्र में 6 जैव प्रौद्योगिकी केंद्रों की स्थापना की गई।
- जैव प्रौद्योगिकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में जैव प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाएँ (BLiSS) शुरू कीं। इसके अतिरिक्त, विजिटिंग रिसर्च प्रोफेसरशिप (VRP) कार्यक्रम NER संस्थानों में जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति को आगे बढ़ाने के लिये शीर्ष वैज्ञानिकों को शामिल करता है।
- जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), DBT-नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर एग्रीकल्चरल बायोटेक्नोलॉजी (DBT-NECAB) जैसी पहल के माध्यम से भी किसानों का समर्थन करता है।
- प्रमुख उपलब्धियाँ: असम कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित “पटकाई” चावल की किस्म, उन्नत सांभा महसूरी (चावल की किस्म) से ब्लाइट प्रतिरोध (बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से सुरक्षा) को एकीकृत करती है।
- पशुओं में ब्रुसेलोसिस (जीवाणु संक्रमण) का तेज़ी से पता लगाने के लिये लेटरल फ्लो एसे (Lateral Flow Assay- LFA) को मानकीकृत किया गया, जिससे रोग निदान में सुधार हुआ।
- इसके अतिरिक्त, सुअर रोग निदान विशेषज्ञ प्रणाली (PDDES), एक मोबाइल एप्लिकेशन, को सुअर रोगों के निदान और प्रबंधन में पशु चिकित्सकों और किसानों की सहायता के लिये विकसित किया गया था।
और पढ़ें: भारत की जैव प्रौद्योगिकी क्रांति
रैपिड फायर
भारत टेक्स 2025
स्रोत: पी.आई.बी.
प्रधानमंत्री ने भारत टेक्स 2025 कार्यक्रम को संबोधित किया। यह वस्त्र उद्योग में समन्वय, सहयोग तथा नीतिगत चर्चा हेतु एक वैश्विक मंच है जिसमें 120 से अधिक देशों ने भाग लिया।
भारत का वस्त्र क्षेत्र:
- भारत के वस्त्र उद्योग की सकल घरेलू उत्पाद में 2.3%, निर्यात में 12% तथा औद्योगिक उत्पादन में 13% की भागीदारी है। इस क्षेत्र से 45 मिलियन लोगों को रोज़गार (जो कृषि के बाद दूसरे स्थान पर है) मिलता है।
- भारत विश्व स्तर पर छठा सबसे बड़ा वस्त्र निर्यातक (चीन, यूरोपीय संघ, वियतनाम, बांग्लादेश और तुर्की के बाद) और दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र एवं परिधान उत्पादक है।
- भारत का वस्त्र निर्यात वर्ष 2023 से 2024 तक 7% बढ़कर 3 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया है और इसे वर्ष 2030 तक 9 लाख करोड़ रुपए करने का लक्ष्य रखा गया है।
- वस्त्र क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- भारत के वस्त्र क्षेत्र में कपास पर अत्यधिक निर्भरता (60%), बांग्लादेश एवं वियतनाम से प्रतिस्पर्द्धा, लॉजिस्टिक्स अकुशलता (चीन के 8% की तुलना में सकल घरेलू उत्पाद की 13-14% लागत) और फास्ट फैशन से पर्यावरण संबंधी चिंताओं जैसे मुद्दे बने हुए हैं।
वस्त्र क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:
- मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (MITRA) पार्क
- कपास उत्पादकता मिशन: कपास की खेती की उत्पादकता और स्थिरता में सुधार को सुविधाजनक बनाना।
- हथकरघा उत्पादों की GI टैगिंग: जैसे उप्पाड़ा जामदानी साड़ी, असम का मुगा सिल्क, कश्मीर पश्मीना आदि।
- समर्थ योजना
और पढ़ें: भारत का परिधान निर्यात क्षेत्र
रैपिड फायर
नोवा 1
स्रोत: द वीक
वैज्ञानिकों ने मौखिक भाषा के विकास में NOVA 1 (न्यूरो-ऑन्कोलॉजिकल वेंट्रल एंटीजन 1) जीन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट करते हुए हाल ही में किये गए शोध के माध्यम से मानव वाक् के क्रमिक विकास में आनुवंशिकी की अहम भूमिका होने का सुझाव दिया है।
- नोवा 1:
- नोवा 1 वह जीन है जिससे अधिकांश स्तनधारियों में पाया जाने वाला प्रोटीन उत्पन्न होता है, जो आनुवंशिक सूचना के प्रसंस्करण, मस्तिष्क के विकास और न्यूरॉन सक्रियता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- आधुनिक मनुष्यों में इस जीन का एक अनूठा रूप मौजूद है, जो इसे निएंडरथल और डेनिसोवंस (प्राचीन मानव प्रजाति) में पाए जाने वाले जीन से अलग करता है।
- मानव वाक् के क्रमिक विकास में नोवा 1 की भूमिका:
- वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग में CRISPR जीन-एडिटिंग का उपयोग कर चूहों में NOVA 1 संस्करण को मानव संस्करण से प्रतिस्थापित किया।
- रूपांतरित चूहों का स्वरोच्चारण भिन्न-भिन्न रहा जिसमें संकट के दौरान संतति और नर चूहों के स्वरों में भिन्ना पाई गई, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि जीन से संचार प्रभावित हुआ।
- FOXP2:
- FOXP2 भी वाक् और भाषा से संबंधित एक जीन है। यह मनुष्यों और निएंडरथल दोनों में पाया जाता है, जबकि NOVA 1 होमो सेपियंस के लिये अद्वितीय है, जिससे यह मानव वाक् के क्रमिक विकास को समझने की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
और पढ़ें: ecDNA चुनौतीपूर्ण आनुवंशिकी सिद्धांत
रैपिड फायर
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा NMC नियम को रद्द किया जाना
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
अनमोल बनाम भारत संघ मामले, 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के दिशा-निर्देश को मनमाना, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक करार दिया, जिसके अनुसार MBBS प्रवेश हेतु दिव्यांग उम्मीदवारों के "दोनों हाथों स्वस्थ, अक्षुण्ण संवेदना और पर्याप्त क्षमता होनी चाहिये"।
- इस दिशा-निर्देश को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (RPwD), 2016, संविधान के अनुच्छेद 41 और संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगजन अधिकार सम्मेलन (UNCRPD) के विपरीत माना गया।
- अनुच्छेद 41 के अंतर्गत कार्य करने, शिक्षा प्राप्त करने तथा बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, अस्वस्थता और दिव्यांगता की स्थिति में सार्वजनिक सहायता प्राप्त करने के अधिकार की संरक्षा का प्रावधान किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी उम्मीदवार की योग्यताओं के कार्यात्मक मूल्यांकन को कठोर पात्रता मानदंडों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि NMC का मूल्यांकन बोर्ड दो ऐतिहासिक निर्णयों में निर्धारित मानकों को पूरा करने में विफल रहा:
- ओमकार रामचंद्र गोंड मामला, 2024 : इसने निर्णय दिया कि मात्र दिव्यांगता का परिमाणीकरण अपर्याप्त है, कार्यात्मक क्षमता का मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
- ओम राठौड़ बनाम स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक मामला, 2024 : इसमें शारीरिक विशेषताओं की तुलना में कार्यात्मक योग्यता को प्राथमिकता देते हुए दिव्यांग उम्मीदवारों के लिये अवसरों पर ज़ोर दिया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने NMC से संविधान, RPwD अधिनियम, UNCRPD और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुरूप दिव्यांगता प्रवेश दिशानिर्देशों को संशोधित करने का आग्रह किया।