प्रारंभिक परीक्षा
टियांटोंग परियोजना
स्रोत: फर्स्ट पोस्ट
हाल ही में चीन के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने विश्व का पहला सैटेलाइट बनाया है जिसकी सहायता से बिना मोबाइल टावर के स्मार्टफोन से कॉल की जा सकती है।
- यह आपात स्थिति में मोबाइल कनेक्टिविटी बाधित वाले स्थानों में प्रयोग के लिये बनाया गया है जिसकी मदद से लोग सीधे ओवरहेड कम्युनिकेशन ऑर्बिटर से जुड़कर मदद प्राप्त कर सकते हैं।
टियांटोंग परियोजना क्या है?
- परिचय:
- दूरसंचार के क्षेत्र में हो रही प्रगति और विशेष रूप से दूरदराज़ तथा आपदा-प्रवण क्षेत्रों में कनेक्टिविटी की बढ़ती मांग को देखते हुए टियांटोंग उपग्रह पहल एक रणनीतिक पहल है।
- डिज़ाइन किये गए प्रत्येक टियांटोंग उपग्रह का जीवन चक्र 12 वर्ष का है और इसका एंटीना 800 विभिन्न आवृत्ति बैंडों में विद्युत चुंबकीय तरंगों को संचारित और प्राप्त करने के साथ-साथ 160 डिग्री सेल्सियस तक के दैनिक तापमान परिवर्तन को सहन करने में सक्षम है।
- टियांटोंग-1 शृंखला का पहला उपग्रह अगस्त 2016 में लॉन्च किया गया था, इसके बाद दूसरा व तीसरा उपग्रह क्रमशः वर्ष 2020 और 2021 में लॉन्च किया गया था।
- 36,000 किमी. की ऊँचाई पर एक भू-तुल्यकालिक कक्षा में तीनों उपग्रह एक नेटवर्क से जुड़ते हैं, यह मध्य-पूर्व से लेकर प्रशांत महासागर तक पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र को कवर करता है।
- सितंबर 2023 में हुआवे टेक्नोलॉजीज़ ने सैटेलाइट कॉल की सुविधा प्रदान करने वाला विश्व का पहला स्मार्टफोन लॉन्च किया, यह सीधे टियांटोंग उपग्रहों के नेटवर्क से जुड़ा हुआ था, इसके बाद अन्य कंपनियों ने भी ऐसे ही मॉडल लॉन्च किये।
- चीनी उपभोक्ताओं के बीच इन उत्पादों की काफी मांग है, अकेले हुआवे कंपनी ने इन स्मार्टफोनों की लाखों इकाइयाँ बेचीं और 2 मिलियन से अधिक वैश्विक ग्राहकों के साथ स्पेसएक्स की स्टारलिंक उपग्रह सेवा को पीछे छोड़ दिया।
- आवश्यकता:
- वर्ष 2008 में सिचुआन में आए भूकंप के बाद इस प्रकार के उपग्रह की अवधारणा का जन्म हुआ, इस आपदा की वज़ह से संचार में बाधा के कारण 80,000 से अधिक लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी।
- चीनी सरकार ने आपदा की प्रतिक्रिया में टियांटोंग परियोजना, एक उपग्रह संचार प्रणाली शुरू की, जो संचार में लचीलापन बढ़ाने की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
- संबद्ध मुद्दे:
- आने वाले समय में काफी संभावना है कि मोबाइल फोन्स सैटेलाइट संचार की मुख्यधारा का हिस्सा बन जाएँ। हालाँकि विशेषज्ञों का तर्क है कि इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ आ सकती हैं।
- 1970 के दशक के बाद से अमेरिका, यूरोप और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा संचालित अधिकांश वाणिज्यिक संचार उपग्रह नेटवर्क को प्राप्त सिग्नल और आवृत्ति बैंड के बीच ओवरलैपिंग के कारण कई बड़े व्यवधानों का सामना करना पड़ा है।
- टियांटोंग परियोजना के मामले में भी कुछ इसी प्रकार की चुनौती उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिये एक छोटे/साधारण स्मार्टफोन से जुड़ने हेतु उपग्रह में एक शक्तिशाली सिग्नल भेजने की व्यवस्था करनी होगी।
- ये अव्यवस्थित सिग्नल सैटेलाइट कॉल की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।
- दूरसंचार इंजीनियर इसकी पैसिव इंटरमॉड्यूलेशन (PIM) के रूप में व्याख्या करते हैं, यह मुद्दा उपग्रह संचार प्रौद्योगिकी के भविष्य के विकास के लिये एक बाधा बन गया है।
- PIM के घटित होने की प्रक्रिया को प्रबंधित करने के लिये वर्तमान में कोई सार्वभौमिक रूप से प्रभावी तकनीक नहीं है।
- हल:
- पैसिव इंटरमॉड्यूलेशन (PIM) की समस्या से निपटने के लिये चीन के टियांटोंग प्रोजेक्ट में देश भर से संचार प्रौद्योगिकी से जुड़े विशिष्ट लोगों को एकजुट किया गया है।
- वैज्ञानिक ने पाया है कि विशाल उपग्रह एंटेना में विभिन्न धातु घटकों के एक-दूसरे के संपर्क में आने के कारण PIM घटित होता है।
- भौतिकविदों ने संपर्क इंटरफेस पर क्वांटम टनलिंग और थर्मल उत्सर्जन जैसे सूक्ष्म भौतिक तंत्रों की भी खोज की है, यह सिल्वर-प्लेटेड और गोल्ड-प्लेटेड माइक्रोवेव घटकों के लिये नए भौतिक नियम की खोज के समान है।
- भौतिकविदों ने एक भौतिक मॉडल/प्रारूप विकसित किया है जो विभिन्न संपर्क स्थितियों, दबावों, तापमानों, कंपनों और बाहरी प्रभावों को ध्यान में रखते हुए उच्च सटीकता के साथ PIM प्रभावों का पूर्वानुमान प्रदान करता है।
- वैज्ञानिकों ने विश्व का पहला सार्वभौमिक PIM सिमुलेशन सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो न्यूनतम त्रुटि दर के साथ विद्युत, ऊष्मा और तनाव जैसे बाह्य कारकों के तहत जटिल माइक्रोवेव कम्पोनेंट में PIM का संख्यात्मक विश्लेषण और मूल्यांकन प्रदान करता है।
- इस शक्तिशाली सॉफ्टवेयर ने चीनी इंजीनियरों को PIM प्रभाव को कम करने की तकनीक विकसित करने में मदद की है, जिसमें डाईइलेक्ट्रिक आइसोलेशन कैपेसिटर और अनुकूलित मेश एंटीना वायर तैयार करना आदि शामिल है।
- वैज्ञानिकों ने विश्व की सबसे प्रभावी PIM पहचान तकनीक विकसित की है, जिससे उपग्रहों को हज़ारों किलोमीटर दूर स्मार्टफोन से सिग्नल प्राप्त करने में सक्षम बनाया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय-संचालन उपग्रह प्रणाली (इंडियन रीज़नल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम/IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
रैपिड फायर
NASA का मार्स सैंपल रिटर्न प्रोग्राम
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में NASA के पर्सिवरेंस रोवर, उपनाम पर्सी, ने दस रॉक सैंपल ट्यूब के साथ पहला "सैंपल डिपो ऑन अनदर वर्ल्ड" बनाया, जिसे मार्स सैंपल रिटर्न अभियान के हिस्से के रूप में पृथ्वी पर लौटाया जाना था।
- हालाँकि यह योजना बहुत महँगी है, इसकी लागत $11 बिलियन है, और इसे केवल वर्ष 2040 तक क्रियान्वित किया जाएगा।
पर्सिवरेंस रोवर:
- यह NASA के मंगल 2020 मिशन का एक रोबोटिक एक्सप्लोरर हिस्सा है।
- इसे जुलाई 2020 में लॉन्च किया गया और यह फरवरी 2021 में मार्स के जेज़ेरो क्रेटर पर उतरा।
- यह एक कार के आकार का मार्स रोवर है, लेकिन सभी उपकरणों के साथ इसका वजन केवल 1,025 किलोग्राम है।
- यह शैल और मृदा के सैंपल एकत्र करता है तथा उन्हें भविष्य में पृथ्वी पर भेजने के लिये ट्यूबों में बंद कर देता है।
- एक मल्टी-मिशन रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर, जो विद्युत उत्पन्न करने के लिये प्लूटोनियम से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग करता है, रोवर के लिये शक्ति स्रोत के रूप में कार्य करता है।
और पढ़ें: पर्सिवरेंस रोवर, मार्स
रैपिड फायर
कंदुकुरी वीरेसलिंगम
16 अप्रैल को प्रमुख सुधारक कंदुकुरी वीरेसलिंगम की जयंती मनाई गई।
- कंदुकुरी वीरेसलिंगम (16 अप्रैल, 1848 - 27 मई, 1919) :
- वह ब्रिटिश भारत के मद्रास प्रेसीडेंसी में एक समाज सुधारक और लेखक थे। वे ब्रह्म समाज के आदर्शों से प्रभावित थे।
- उन्हें तेलुगू पुनर्जागरण आंदोलन का जनक माना जाता है।
- वह प्रारंभिक समाज सुधारकों में से एक थे जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा और विधवाओं को पुनर्विवाह के लिये प्रोत्साहित किया (जिसका तत्कालीन समाज में समर्थन नहीं किया जाता था)।
- उन्होंने बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।
- उन्होंने 1874 में दोलाईस्वरम में एक स्कूल शुरू किया।
- उन्होंने 1887 में 'ब्रह्म मंदिर' का निर्माण कराया और 1908 में आंध्र प्रदेश में 'हितकारिणी स्कूल' का निर्माण कराया।
- उनका उपन्यास राजशेखर चरित्रमु तेलुगू साहित्य का पहला उपन्यास माना जाता है।
और पढ़ें: सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: भाग l, सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: भाग lI
रैपिड फायर
चौथा वैश्विक सामूहिक प्रवाल विरंजन कार्यक्रम
स्रोत: डाउन टू अर्थ
संयुक्त राज्य अमेरिका की कोरल रीफ वॉच (CRW) और इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI) ने वर्ष 2023-2024 में चौथी वैश्विक सामूहिक प्रवाल विरंजन घटना की पुष्टि की है।
- विगत 10 वर्षों में यह दूसरी ऐसी घटना है, जो ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक महासागरों में भी वर्ष 2023 और वर्ष 2024 में अभूतपूर्व तापमान दर्ज किया गया है।
- भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो घटना से भूमि और महासागरों के तापमान में वृद्धि देखी गई है।
- अल नीनो घटनाओं के दौरान मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर से उष्ण सागरीय धाराएँ पश्चिमी प्रशांत महासागर की ओर बढ़ती हैं, जिससे कई क्षेत्रों में सागरीय सतह का तापमान बढ़ जाता है।
- दीर्घकालिक पैटर्न के बीच, सागर का गर्म होना और वृहद स्तर पर प्रवाल विरंजन अल नीनो की घटनाओं से निकटता से जुड़ा हुआ है।
- अल नीनो का यह उष्ण प्रभाव सागर के गर्म होने में योगदान देता है, जो प्रवाल भित्तियों पर दबाव डालता है।
- प्रवाल विरंजन के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न कारकों में सागरीय सतह के तापमान में वृद्धि, व्यापक समुद्री हीटवेव, समुद्र का अम्लीकरण और प्रदूषण शामिल हैं।
- जब सागरीय सतह का तापमान और समुद्री तापमान सामान्य रूप से बढ़ता है, तो कठोर प्रवालों पर मौजूद शैवाल मर जाते हैं। इससे प्रवाल सफेद हो जाते हैं।
- इस प्रक्रिया को 'प्रवाल विरंजन' के नाम से जाना जाता है। एक बार विरंजन के बाद प्रवाल बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं और अंततः मर सकते हैं।
और पढ़ें: ग्रेट बैरियर रीफ में कोरल ब्लीचिंग
रैपिड फायर
इंडोनेशिया में पर्यावरण आंदोलन
स्रोत: न्यूयार्क टाइम्स
इंडोनेशियाई धार्मिक नेता प्रतिकूल मौसम तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि से उत्पन्न खतरों के जवाब में पर्यावरण आंदोलन को सक्रिय रूप से प्रभावित कर रहे हैं।
- इंडोनेशिया कोयला एवं पाम तेल के सबसे बड़े निर्यातक देश के रूप में वैश्विक जलवायु संकट पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव प्रदर्शित करता है।
- द्वीप समूह राष्ट्र बढ़ते समुद्र के स्तर एवं चरम मौसम की घटनाओं के प्रति संवेदनशील हैं, जबकि ग्रामीण समुदाय जलवायु परिवर्तन से प्रेरित सूखे से प्रभावित हैं।
- वर्ष 2007 में बाली में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान विभिन्न धर्मों के इंडोनेशियाई धार्मिक नेताओं ने एक अंतर-धार्मिक वक्तव्य प्रस्तुत किया, जिसमें ज़मीनी स्तर की कार्रवाई को प्रेरित करने में धार्मिक शिक्षाओं के साथ ही स्थानीय ज्ञान की भूमिका पर ज़ोर दिया गया।
- इंडोनेशिया में यह बढ़ती प्रवृत्ति ही "ग्रीन मस्जिदों" एवं "ग्रीन चर्च" के उद्भव का कारण है।
- साथ ही पारिस्थितिक पदचिह्न को कम करने के लिये कई अन्य कदम भी उठाए गए हैं जैसे:
- सोलर पैनलों की स्थापना
- जल पुनर्चक्रण प्रणाली का कार्यान्वयन
- ऊर्जा दक्ष नल का उपयोग करना
- इंडोनेशिया अत्यधिक भीड़भाड़, प्रदूषण एवं तेज़ी से जलमग्न होने की आशंका के कारण अपनी राजधानी को जकार्ता द्वीप से बोर्नियो में स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है, जिससे वर्ष 2050 तक शहर के एक महत्त्वपूर्ण भाग के जलमग्न होने का अनुमान है।
और पढ़ें… पर्यावरण आंदोलन
रैपिड फायर
नागोर्नो-काराबाख से रूसी शांति सैनिकों की वापसी
स्रोत: द हिंदू
सितंबर 2023 में अज़रबैजान द्वारा आर्मेनियाई अलगाववादियों के नियंत्रण वाले विवादित क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के बाद रूसी शांति सैनिकों ने नागोर्नो-काराबाख से अपनी वापसी शुरू कर दी है।
- वापसी के निर्णय पर बाकू (अज़रबैजान) और मॉस्को के बीच "उच्च स्तर (Highest Levels)" पर सहमति बनी थी।
- नागोर्नो-काराबाख, काकेशस क्षेत्र (काला सागर और कैस्पियन सागर के बीच अंतरमहाद्वीपीय क्षेत्र) में पहाड़ों से घिरा क्षेत्र है, इसे अर्मेनियाई लोग आर्टाख (Artsakh) के नाम से जानते हैं।
- 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में सोवियत संघ के पतन के बाद इस क्षेत्र द्वारा अज़रबैजान से स्वतंत्र होने की घोषणा के समय से ही नागोर्नो-काराबाख संघर्ष चला आ रहा है।
- इस क्षेत्र को लेकर आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच पहला युद्ध 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुआ, जिसकी समाप्ति वर्ष 1994 में युद्धविराम के साथ हुई, इसके परिणामस्वरूप नागोर्नो-काराबाख तथा आसपास के कुछ क्षेत्र अर्मेनियाई नियंत्रण के अधीन आ गए।
- 2020 में अज़रबैजान ने आसपास के सात ज़िलों और नागोर्नो-काराबाख के एक-तिहाई हिस्से पर फिर से नियंत्रण हासिल करते हुए दूसरा कराबाख युद्ध जीता। रूस ने शांति समझौता किया और क्षेत्र में शांति सैनिकों को तैनात कर दिया गया।
- इस संघर्ष ने रूस और आर्मेनिया के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है क्योंकि मॉस्को बाकू के साथ मधुर संबंध बनाए रखता है।
- आर्मेनिया ने घोषणा की कि उसने मॉस्को के नेतृत्व वाले रक्षा गठबंधन सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (Collective Security Treaty Organisation- CSTO) में अपनी भागीदारी को प्रभावी ढंग से निलंबित कर दिया है।
और पढ़ें: नागोर्नो-काराबाख संघर्ष
प्रारंभिक परीक्षा
पार्किंसंस रोग
स्रोत: द हिंदू
वैज्ञानिकों ने पार्किंसंस रोग से जुड़ा एक नया आनुवंशिक संस्करण खोजा है, जो पार्किंसनिज़्म फैमिली के विभिन्न रूपों की उद्विकासी जड़ों (Evolutionary Roots) में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जो स्थिति की बेहतर समझ और उपचार का मार्ग प्रशस्त करता है।
पार्किंसंस रोग क्या है?
- परिचय: पार्किंसंस रोग एक प्रगतिशील न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जो चलने-फिरने में बाधा उत्पन्न करता है और समय के साथ गतिहीनता एवं मनोभ्रंश का कारण बन सकता है।
- यह बीमारी आमतौर पर वृद्ध लोगों में होती है, लेकिन युवा लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं।
- विगत 25 वर्षों में इस रोग का प्रचलन दोगुना हो गया है। पार्किंसंस रोग से ग्रसित लोगों में वैश्विक स्तर की तुलना में भारत का हिस्सा लगभग 10% है।
- कारण: पार्किंसंस रोग का सटीक कारण अभी तक पूरी तरह से ज्ञात नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसमें आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन शामिल है।
- इसकी विशेषता मुख्य रूप से मस्तिष्क में डोपामाइन-उत्पादक न्यूरॉन्स का नुकसान है, जिससे संचारी तंत्रिका संबंधी तथा गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी लक्षण उत्पन्न होते हैं।
- लक्षण: संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों में धीमी गति, कंपकंपी के साथ चलने में कठिनाई आदि शामिल हैं।
- गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों में संज्ञानात्मकता, मानसिक स्वास्थ्य विकार, नींद की गड़बड़ी, दर्द तथा संवेदी समस्याएँ आदि शामिल हैं।
- उपचार: पार्किंसंस रोग का कोई उपचार नहीं है, किंतु दवाओं, सर्जरी तथा पुनर्वास से विकारों के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- लेवोडोपा अथवा कार्बिडोपा, एक संयोजन औषधि जो मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा बढ़ाती है, यह इसके उपचार की सबसे आम औषधि है।
- विश्व पार्किंसंस दिवस: प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल को विश्व पार्किंसंस दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- इस दिन का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पार्किंसंस रोग के बारे में जागरूकता तथा समझ को बढ़ाना है।
पार्किंसंस रोग को समझने में वर्तमान प्रमुख प्रगति क्या है?
- पार्किंसंस को बेहतर ढंग से समझने के लिये आनुवंशिकीविद् एवं तंत्रिका विज्ञानी आनुवंशिक विविधताओं की खोज कर रहे हैं। जिसके अंर्तगत दो प्राथमिक दृष्टिकोणों का उपयोग किया जाता है: लिंकेज विश्लेषण तथा जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS)।
- लिंकेज विश्लेषण: वंशानुगत पार्किंसनिज़्म वाले दुर्लभ परिवारों पर ध्यान केंद्रित करता है, रोग से जुड़े जीन उत्परिवर्तन की पहचान करता है।
- हाल के शोध ने विश्व स्तर पर कई परिवारों में पार्किंसंस से जुड़े RAB32 Ser71Arg नामक एक नए आनुवंशिक संस्करण की पहचान की है।
- जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS): इसके तहत पार्किंसंस के रोगियों के साथ ही स्वस्थ व्यक्तियों के आनुवंशिक डेटा की तुलना की गई, जिसमें 92 से अधिक जीनोमिक स्थानों एवं संभावित रूप से पार्किंसंस के जोखिम से संबंधित 350 जीनों की पहचान की गई।
- लिंकेज विश्लेषण: वंशानुगत पार्किंसनिज़्म वाले दुर्लभ परिवारों पर ध्यान केंद्रित करता है, रोग से जुड़े जीन उत्परिवर्तन की पहचान करता है।
अन्य प्रमुख तंत्रिका संबंधी रोग:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |