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आंध्र प्रदेश में मध्यपाषाणकालीन शैलचित्रों की खोज

  • 22 Jun 2023
  • 7 min read

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के एक पूर्व पुरातत्त्वविद् ने मध्यपाषाणकालीन शैलचित्रों की खोज की है जिसमें आंध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में ज़मीन के एक हिस्से को जोतते हुए एक व्यक्ति को दर्शाया गया है।

  • यह तीर्थस्थलों की स्थापत्य विशेषताओं का पता लगाने के लिये कृष्णा नदी की निचली घाटी के सर्वेक्षण के दौरान पाई गई। 
  • इससे पहले वर्ष 2018 में पुरातत्त्वविदों ने गुंटूर ज़िले के दचेपल्ली में प्राकृतिक चूना पत्थर संरचनाओं पर लगभग 1500-2000 ईसा पूर्व नवपाषाण युग के अनुमानित प्रागैतिहासिक शैलचित्रों की खोज की थी।

मुख्य निष्कर्ष:

  • प्राकृतिक शैलाश्रय: 
    • ओर्वाकल में एक पहाड़ी पर प्राकृतिक रूप से बनी गुफाओं की दीवारों और छत पर शैलचित्र पाए गए हैं।
    • ये गुफाएँ प्रागैतिहासिक काल के दौरान उन मनुष्यों के लिये आश्रय स्थल के रूप में कार्य करती थीं जो उस समय इस क्षेत्र में रहते थे।
  • मध्यपाषाणकालीन शैलचित्र: 
    • खोजी गई पाँच गुफाओं में से दो में शैलचित्रों का विशिष्ट चित्रण है।
    • मध्यपाषाणकालीन युग के लोगों द्वारा निष्पादित यह चित्रकला उस युग की कलात्मक क्षमताओं और प्रथाओं की झलक को दर्शाती है।
  • कलात्मक सामग्री: 
    • शैल चित्र प्राकृतिक सफेद काओलिन और लाल गेरू रंग का उपयोग करके बनाए गए थे।
      • ‘गेरू’ मिट्टी, रेत और फेरिक ऑक्साइड से बना एक रंगद्रव्य है।
      • काओलिनाइट एक नरम, मिट्टी जैसा और आमतौर पर सफेद खनिज है जो फेल्डस्पार जैसे एल्युमीनियम सिलिकेट खनिजों के रासायनिक अपक्षय द्वारा उत्पादित होता है।
    • समय के साथ हवा और हवा के संपर्क में आने से चित्रों को काफी नुकसान हुआ है। हालाँकि कुछ रेखाचित्र और रूपरेखाएँ बरकरार हैं।
  • चित्रित दृश्य:
    • शैलचित्र प्रागैतिहासिक काल के समुदायों के दैनिक जीवन के विभिन्न दृश्यों को दर्शाते हैं।
    • पेंटिंग में एक आदमी को अपने बाएँ हाथ से एक जंगली बकरी को कुशलता से पकड़ते हुए और उसे नियंत्रित करने के लिये हुक जैसे उपकरण का उपयोग करते हुए चित्रित किया गया है।
    • एक अन्य पेंटिंग में दो जोड़ों को हाथ उठाए हुए दिखाया गया है, जबकि एक बच्चा उनके पीछे खड़ा है, जो संभवतः सांप्रदायिक गतिविधियों या अनुष्ठानों का संकेत दे रहा है। 
  • कृषि पद्धतियाँ:
    • एक महत्त्वपूर्ण पेंटिंग में एक आदमी को हल पकड़े हुए और ज़मीन जोतते हुए दिखाया गया है। यह चित्रण एक अर्द्ध-व्यवस्थित जीवन पद्धति का सुझाव देता है जहाँ समुदाय के सदस्य जानवरों को पालतू बनाने तथा फसलों की खेती करने में लगे हुए हैं, जो प्रारंभिक कृषि पद्धतियों को दर्शाते हैं।

पाषाण युग: 

  • पुरापाषाण युग:
    • मुख्यतः यह एक शिकारी प्रवृत्ति की और खाद्य संचय करने वाली संस्कृति मानी जाती है।
    • पुरापाषाणकालीन उपकरणों में धारदार पत्थर, चॉपर, हाथ की कुल्हाड़ी, खुरचनी, भाला, धनुष और तीर आदि शामिल हैं तथा  ये आमतौर पर कठोर क्वार्टजाइट चट्टान से बने होते थे।
    • मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाए गए शैलचित्र और नक्काशी से पता चलता है कि इस काल में शिकार एक मुख्य जीवन निर्वाह गतिविधि थी। 
    • भारत में पुरापाषाण काल को तीन चरणों में विभाजित किया गया है: 
      • प्रारंभिक पुरापाषाण काल (500,000-100,000 ईसा पूर्व)
      • मध्य पुरापाषाण काल (100,000-40,000 ईसा पूर्व)
      • उत्तर पुरापाषाण काल (40,000-10,000 ईसा पूर्व) 
  • मेसोलिथिक (मध्य पाषाण) युग (10,000 ईसा पूर्व-8000 ईसा पूर्व):
    • प्लेइस्टोसीन काल से होलोसीन काल तक संक्रमण और जलवायु में अनुकूल परिवर्तन इस युग की प्रमुख विशेषता है।
    • मध्यपाषाण युग का प्रारंभिक काल शिकार, मछली पकड़ने और भोजन एकत्र करने का प्रतीक है।
    • पशुओं को पालतू बनाने का कार्य इसी युग में प्रारंभहुआ।
    • माइक्रोलिथ्स नामक उपकरण/औज़ार आकर में छोटे थे परंतु पुरापाषाण युग की तुलना में वे ज्यामितिक रूप से परिष्कृत थे। 
  • निओलिथिक (नव पाषाण) युग (8000 ईसा पूर्व-1000 ईसा पूर्व):
    • इसे पाषाण युग का अंतिम चरण माना जाता, इस युग से खाद्य उत्पादन की शुरुआत हुई।
    • लंबे समय तक एक ही स्थान पर रहना, मिट्टी के बर्तनों का उपयोग और शिल्प का आविष्कार नवपाषाण युग की विशेषता है।
    • नवपाषाण काल के लोग पॉलिशदार पत्थर के औज़ारों एवं हथियारों का प्रयोग करते थे। इस काल के लोग विशेष रूप से पत्थर से बनी कुल्हाड़ियों का प्रयोग करते थे। नवपाषाण काल में हथौड़ा, छेनी एवं बसुली के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं।
  • मेगालिथिक (महापाषाण) संस्कृति: 
    • महापाषाण संस्कृति में पत्थर की संरचनाओं के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, जिनका निर्माण दफन स्थलों के रूप में या स्मारक स्थलों के रूप में किया गया था।
    • भारत में पुरातत्त्वविदों को लौह युग (1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) में अधिकांश महापाषाण संस्कृतियों के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं, हालाँकि कुछ साक्ष्यों से लौह युग पूर्व (2000 ईसा पूर्व ) भी इनकी उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं।
    • महापाषाण संस्कृति संपूर्ण प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप में फैली हुई है। हालाँकि उनमें से अधिकांश स्थल प्रायद्वीपीय भारत में पाए जाते हैं, जो महाराष्ट्र (मुख्य रूप से विदर्भ), कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में केंद्रित हैं।

स्रोत: द हिंदू

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