प्रारंभिक परीक्षा
भारत की CAR T-सेल थेरेपी
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
द लैंसेट हेमाटोलॉजी में भारत के पहले काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) T-सेल थेरेपी के नैदानिक परीक्षण के परिणाम प्रकाशित किये गए जिसके अनुसार ल्यूकेमिया और लिम्फोमा रोगियों में इस थेरेपी की प्रभावकारिता दर 73% है।
भारत के CAR T-सेल थेरेपी नैदानिक परीक्षण के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- उच्च प्रभावकारिता दर: इस परीक्षण में पुनरावर्ती या दुश्चिकित्स्य B-कोशिका कैंसर {ल्यूकेमिया (अस्थि मज्जा और रक्त को प्रभावित करने वाला कैंसर) और लिम्फोमा (लसीका तंत्र का कैंसर)} के रोगी शामिल थे, जिनके उपचार के विकल्प प्रायः सीमित होते हैं।
- विश्लेषण किये गये रोगियों में से 73% में इस थेरेपी की सकारात्मक अनुक्रिया दर्ज की गई, जिससे ऐसे मामलों में नई आशा की संभावनाएँ हैं।
- वैश्विक उपचारों से तुलनीय: भारत के CAR T-सेल थेरेपी की प्रभावकारिता विश्व की अन्य थेरेपी के समान है, लेकिन इसकी कीमत 20 गुना कम है, जिसकी लागत 25 लाख रुपए है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी लागत 3-4 करोड़ रुपए है, जहाँ कुल व्यय 8 करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है।
- दुष्प्रभाव: भारत के CAR T-सेल थेरेपी के नैदानिक परीक्षणों में प्रबंधनीय दुष्प्रभावों की सूचना दी गई है, जिसमें रोगियों में न्यूट्रोपेनिया (श्वेत रक्त कोशिकाओं की कमी), थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (प्लेटलेट्स की कमी) और एनीमिया (लाल रक्त कोशिकाओं की कमी) की समस्या दर्ज की गई।
- कुछ रोगियों में साइटोकाइन रिलीज़ सिंड्रोम (CRS) पाया गया, जिसके कारण बुखार और सूजन जैसे समस्याएँ हुईं।
- उपचार से संबंधित दो रोगियों की मृत्यु की सूचना दी गई, लेकिन समग्र रूप से, इसकी अहानिकारकता प्ररूप को नियंत्रणीय समझा गया।
CAR T-सेल थेरेपी क्या है?
- परिचय: CAR T-कोशिका थेरेपी कैंसर का उन्नत उपचार है जिसके अंतर्गत कैंसर का और अधिक प्रभावी रूप से उपचार करने हेतु रोगी की T-कोशिकाओं (एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिका) में परिवर्तन किया जाता है।
- कार्यप्रणाली: T-सेल को एक रोगी के रक्त से लिया जाता है और उन्हें आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है (कैंसर कोशिकाओं को पहचान करने और उनको लक्षित करने के लिये)।
- इन संशोधित कोशिकाओं को, जिन्हें काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (CAR) T-सेल के रूप में जाना जाता है, द्विगुणित किया जाता है और रोगी में पुनः प्रविष्ट कराया जाता है, ताकि B-सेल को लक्षित किया जा सके और रोग की पुनरावृत्ति को रोका जा सके।
- महत्त्व: जब B-सेल ट्यूमर दोबारा हो जाते हैं या दुर्दम्य (Refractory) हो जाते हैं (उपचार के बाद वापस आ जाते हैं या प्रारंभिक उपचार पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं), तो उपचार के विकल्प सीमित हो जाते हैं, जिससे प्रायः रोगी की मृत्यु हो जाती है।
- अनियंत्रित B-सेल वृद्धि एंटीबॉडी उत्पादन में उनकी भूमिका के कारण गंभीर जटिलताओं का कारण बनती है।
- भारत की CAR T-सेल थेरेपी एक अतिरिक्त, रोगी-विशिष्ट उपचार विकल्प प्रदान करती है, क्योंकि संशोधित T-सेल शरीर में ही रहती हैं, तथा कैंसर की पुनरावृत्ति के विरुद्ध दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रदान करती हैं।
- यह रोगी-विशिष्ट उपचार है, जो इसे पारंपरिक कीमोथेरेपी की तुलना में अत्यधिक उपयुक्त बनाता है।
- NexCAR19: वर्ष 2023 में, NexCAR19 भारत की पहली स्वीकृत स्वदेशी CAR-T सेल थेरेपी बन गई, जिसे IIT बॉम्बे, टाटा मेमोरियल सेंटर और ImmunoACT (IIT बॉम्बे में स्थापित कंपनी) के बीच सहयोग के माध्यम से विकसित किया गया।
- विश्व की सबसे सस्ती CAR-T थेरेपी के रूप में, यह भारत को उन्नत कोशिका (Advanced Cell) और जीन थेरेपी के लिये वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करती है।
- निहितार्थ: शोधकर्त्ता CAR T-सेल थेरेपी के अनुप्रयोगों और इम्यूनोथेरेपी के साथ संयोजन की खोज कर रहे हैं, जिससे भारत में जीन-संशोधित कोशिका उपचार को व्यापक रूप से अपनाने का मार्ग प्रशस्त होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक, मानव शरीर में B कोशिकाओं और T कोशिकाओं की भूमिका का सर्वोत्तम वर्णन है? (2022) (a) वे शरीर को पर्यावरण प्रत्यूर्जकों (एलार्जनों) से संरक्षित करती हैं। उत्तर: D |
प्रारंभिक परीक्षा
बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स की ISS से वापसी
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) के अंतरिक्ष यात्री बुच विल्मोर और सुनीता विलियम्स, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर 286 दिनों के अप्रत्याशित लंबे मिशन के बाद पृथ्वी पर वापस लौट आए हैं।
- प्रारंभ में 8 दिवसीय मिशन की योजना बनाई गई थी, लेकिन बोइंग के स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी समस्याओं के कारण उनकी वापसी में विलंब हुआ। वे अंततः स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन के माध्यम से वापस आए, जिसमें लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्रा की तकनीकी और स्वास्थ्य चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया।
स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट और स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- स्टारलाइनर स्पेसक्राफ्ट: नासा के वाणिज्यिक क्रू कार्यक्रम (CCP) के सहयोग से बोइंग द्वारा विकसित, इसे अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) तक लाने और ले जाने के लिये डिजाइन किया गया था।
- बोइंग का स्टारलाइनर वर्ष 2024 में विलियम्स और विल्मोर को ISS ले गया लेकिन प्रणोदन संबंधी समस्याओं के कारण उनकी वापसी में विलंब हुआ।
- स्पेसएक्स का क्रू ड्रैगन: स्पेसएक्स के ड्रैगन 2 स्पेसक्राफ्ट के दो संस्करणों में से एक, क्रू ड्रैगन को फाल्कन 9 रॉकेट पर प्रक्षेपित किया गया है और इसमें पुन: प्रयोज्य कैप्सूल है। NASA के CCP के तहत विकसित, यह मुख्य रूप से अंतरिक्ष यात्रियों को ISS तक पहुँचाता है। दूसरा संस्करण, कार्गो ड्रैगन, कार्गो को स्टेशन तक पहुँचाता है।
- नासा के स्पेसएक्स क्रू-9 मिशन ने विलियम्स और विल्मोर को फ्रीडम नामक क्रू ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर सवार होकर ISS से वापस लाया।
अंतरिक्ष यात्रा के स्वास्थ्य संबंधी निहितार्थ क्या हैं?
- स्पेस एनीमिया: एक ऐसी स्थिति जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को माइक्रोग्रैविटी में द्रव के विस्थापन के कारण लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में गिरावट का अनुभव होता है, जिसके परिणामस्वरूप मिशन के बाद थकान, चक्कर आना और हृदय संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- स्पेसफ्लाइट-एसोसिएटेड न्यूरो-ओकुलर सिंड्रोम (SANS): यह माइक्रोग्रैविटी में द्रव के विस्थापन के कारण होने वाली दृष्टि हानि है, जिसके कारण ऑप्टिक डिस्क में सूजन और दूरदृष्टि दोष उत्पन्न होता है।
- बेबी फीट सिंड्रोम: यह दीर्घावधि के अंतरिक्ष मिशन के बाद अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा अनुभव की जाने वाली तलवों की अतिसंवेदनशीलता और गमन करने में होने वाली कठिनाई को संदर्भित करता है।
- सूक्ष्मगुरुत्व में, भार वहन करने वाली गतिविधि न होने के कारण पैरों का कठोर भाग मृदु होने लगता है, तथा पृथ्वी पर लौटने पर त्वचा नरम और संवेदनशील हो जाती है।
- अस्थि घनत्व का कम होना: NASA द्वारा किये गए अध्ययनों के अनुसार अंतरिक्ष यात्रियों का अस्थि घनत्व प्रत्येक माह लगभग 2% कम हो जाता है। इसके उचित प्रत्युपायों जैसे व्यायाम के अभाव में इससे ऑस्टियोपोरोसिस भी हो सकता है।
- ब्रह्मांडीय विकिरण का जोखिम: अंतरिक्ष में, अंतरिक्ष यात्रियों को ब्रह्मांडीय किरणों और सौर विकिरण के प्रत्यक्ष संपर्क का सामना करना पड़ता है, जबकि पृथ्वी पर ऐसा नहीं होता, जहाँ वायुमंडल और चुंबकीय क्षेत्र सुरक्षा प्रदान करते हैं।
- इससे DNA क्षति, आनुवंशिक उत्परिवर्तन और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
- मंगल और चंद्रमा हेतु गहन अंतरिक्ष मिशनों में दीर्घावधि में विकिरण के संपर्क में रहने के कारण अधिक जोखिम उत्पन्न होता है।
भारत का गगनयान मिशन और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS)
- गगनयान मिशन: इसका उद्देश्य तीन अंतरिक्ष यात्रियों को 3 दिवसीय मिशन पर 400 किलोमीटर की कक्षा में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना है। इससे भारत मानवयुक्त अंतरिक्ष यान में अमेरिका, रूस और चीन के साथ शामिल हो जाएगा।
- गगनयान मिशन का अल्पकालिक लक्ष्य पृथ्वी की निम्न कक्षा में मानव अंतरिक्ष उड़ान का प्रदर्शन करना है, जबकि दीर्घकालिक लक्ष्य एक सतत् भारतीय मानवयुक्त अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रम की स्थापना करना है।
- भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS): BAS भारत का नियोजित अंतरिक्ष स्टेशन है, जो पृथ्वी से 400-450 किमी. ऊँचाई पर कक्षा की परिक्रमा करेगा।
- पहला मॉड्यूल, बेस मॉड्यूल, वर्ष 2028 में लॉन्च किया जाएगा तथा वर्ष 2035 तक यह पूर्णतः संचालन में होगा।
- इससे तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देते हुए मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान, भूप्रेक्षण और सूक्ष्मगुरुत्व अनुसंधान में सहायता मिलेगी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के थेमिस मिशन, जो हाल ही में खबरों में था, का उद्देश्य क्या है? (2008) (a) मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना का अध्ययन करना। उत्तर: (c) प्रश्न. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हाल ही में खबरों में रहा "भुवन" (Bhuvan) क्या है? (2010) (a) भारत में दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये इसरो द्वारा लॉन्च किया गया एक छोटा उपग्रह उत्तर: (c) |
प्रारंभिक परीक्षा
माइक्रो-लाइटनिंग और जीवन की उत्पत्ति
स्रोत: स्टैनफोर्ड
चर्चा में क्यों?
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चलता है कि माइक्रो-लाइटनिंग, अर्थात् जल की बूँदों के भीतर सूक्ष्म विद्युत विसर्जन, पृथ्वी पर जीवन के लिये आवश्यक कार्बनिक अणुओं के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो मिलर-उरे परिकल्पना को चुनौती देता है।
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- मुख्य निष्कर्ष:
- अध्ययन में पाया गया कि जल की छींटे/बौछार (Splashing/Spraying) से विद्युत आवेश उत्पन्न होते हैं, और उनके संपर्क से माइक्रो-लाइटनिंग (सूक्ष्म चिंगारियाँ) उत्पन्न होती हैं, जो आवश्यक जैव-अणुओं के निर्माण में सहायक होती हैं ।
- अध्ययन ने यूरैसिल (एक प्रमुख RNA और DNA घटक), ग्लाइसीन (प्रोटीन संश्लेषण के लिये एक मौलिक अमीनो एसिड) और हाइड्रोजन साइनाइड (जटिल जैव रासायनिक यौगिकों का अग्रदूत) के स्वतः अप्रवर्तित संश्लेषण को भी प्रदर्शित किया।
- इन निष्कर्षों के अनुसार प्रीबायोटिक प्रक्रिया का उत्प्रेरण संभवतः महासागरों, झरनों और वर्षा जैसे प्राकृतिक जल क्षेत्रों में सूक्ष्म प्रकाश के कारण था, जिससे पृथ्वी पर जीवन का उद्भव संभव हुआ होगा।
- आशय:
- मिलर-उरे मॉडल संबंधी चुनौतियाँ: इसके अनुसार जल क्षेत्रों में बार-बार होने वाली सूक्ष्म तड़ित की भूमिका विरल तड़ित की तुलना में अधिक थी।
- खगोलीय जैविक संभावना: इसी प्रकार की क्रियाविधि यूरोपा और एनसेलेडस जैसे हिममय चंद्रमाओं पर भी संचालित हो सकती है, जिससे वहाँ अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना बढ़ सकती है।
मिलर-उरे परिकल्पना क्या है?
- मिलर-उरे परिकल्पना (1952) के अनुसार पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति पृथ्वी के प्रारंभिक वायुमंडल में तड़ित (वायुमंडलीय विद्युत) द्वारा उत्पन्न रासायनिक अभिक्रियाओं के माध्यम से हुई।
- इसमें यह प्रदर्शित किया कि जल, मीथेन, अमोनिया और हाइड्रोजन के मिश्रण पर अनुप्रयुक्त विद्युत से अमीनो एसिड (जीवन के निर्माण खंड) का निर्माण संभव है, जिससे यह सिद्ध होता है कि जीवन के लिये आवश्यक कार्बनिक अणुओं का निर्माण प्रारंभिक पृथ्वी की स्थितियों में स्वाभाविक रूप से हो सकता था।
- इसमें अबियोजेनेसिस (निर्जीव पदार्थ से जीवन की उत्पत्ति) की वैज्ञानिक व्याख्या प्रदान की गई।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? (2008)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 2 और 3 उत्तर: (b) |
रैपिड फायर
विकास और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार
स्रोत: द हिंदू
ऑरोविले फाउंडेशन बनाम नवरोज़ केरस्प मोदी (2025) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि औद्योगीकरण के माध्यम से विकास का अधिकार स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार के समान ही महत्त्वपूर्ण है, तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दोनों के बीच "गोल्डन बैलेंस" पर ज़ोर दिया।
- मामले की पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दरकाली वन में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को ध्यान देते हुए वर्ष 2022 में तमिलनाडु में ऑरोविले के विकास पर रोक लगा दी थी।
- ऑरोविले फाउंडेशन ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए कहा कि ऑरोविले के मास्टर प्लान को वैधानिक अधिकार प्राप्त है और इसके लिये किसी अतिरिक्त पर्यावरणीय मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने NGT के वर्ष 2022 के आदेश को पलट दिया, ऑरोविले के कानूनी रूप से वैध मास्टर प्लान को बरकरार रखा, और निर्णय दिया कि "दरकाली वन" को वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत वन के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों पर ज़ोर देते हुए कहा कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच उचित संतुलन सुनिश्चित करता है, अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) उचित प्रतिबंधों के साथ व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों के अधिकार की रक्षा करता है, जबकि अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) में स्थायी आर्थिक प्रगति के साथ-साथ स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार शामिल है।
और पढ़ें: विकास और पर्यावरण में संतुलन
चर्चित स्थान
यमन और हूती
स्रोत: द हिंदू
अमेरिका ने वैश्विक शिपिंग मार्गों के लिये खतरे का उल्लेख करते हुए लाल सागर में हूती समूह के मिसाइल और ड्रोन हमलों का मुकाबला करने के लिये यमन में हूती नियंत्रित क्षेत्रों पर हवाई हमले बढ़ा दिये हैं।
- यमन: यह अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी सिरे पर मध्य पूर्व में अवस्थित है और इसकी सीमाएँ सऊदी अरब (उत्तर) और ओमान (पूर्व) से लगती है। इसकी तटरेखा लाल सागर (पश्चिम), अदन की खाड़ी, अरब सागर और गार्डाफुई चैनल (दक्षिण) के अनुदिश है।
- जिबूती और यमन के बीच बाब अल-मंदेब जलडमरूमध्य एक प्रमुख समुद्री अवरोध बिंदु है, जो लाल सागर और स्वेज़ नहर के माध्यम से हिंद महासागर को भूमध्य सागर से जोड़ता है, जो वैश्विक व्यापार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
- हूती: यह उत्तर-पश्चिमी यमन का एक जैदी शिया उग्रवादी समूह है जो वर्ष 1990 के दशक में यमन सरकार के खिलाफ विद्रोही समूह के रूप में उभरा। इन्हें ईरान का समर्थन प्राप्त है और ये एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस (ईरानी समर्थित मिलिशिया का अनौपचारिक गठबंधन) का हिस्सा हैं तथा गाज़ा संघर्ष के जवाब में यह समूह बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य में इज़रायल के जहाज़ों पर हमले करता है।
और पढ़ें: लाल सागर में बढ़ता संकट
रैपिड फायर
23 वाँ अभ्यास वरुण 2025
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
भारतीय और फ्राँसीसी नौसेनाएँ अरब सागर में वार्षिक द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, वरुण -2025 के 23 वें संस्करण की शुरुआत करने के लिये तैयार हैं।
- इसमें विमानवाहक पोत INS विक्रांत (भारत) और चार्ल्स डी गॉल (फ्राँस) के साथ-साथ लड़ाकू विमान, विध्वंसक, फ्रिगेट और एक भारतीय स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी शामिल होगी।
- इसका आयोजन पहली बार वर्ष 2001 में किया गया था एवं इसका उद्देश्य अंतर-संचालन और परिचालन तालमेल को बढ़ाना था।
- रक्षा सहयोग: भारत और फ्राँस ने रक्षा उपकरणों के सह-डिजाइन, सह-विकास और सह-उत्पादन के लिये एक नए रक्षा औद्योगिक रोडमैप के साथ सैन्य संबंधों को मज़बूत किया।
- आगामी रक्षा सौदे: INS विक्रांत के लिये 26 राफेल-M फाइटर जेट।
- प्रोजेक्ट 75 के तहत मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) में 3 अतिरिक्त स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा।
- MDL ने पहले ही फ्राँसीसी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से छह कलवरी श्रेणी (स्कॉर्पीन) पनडुब्बियों का निर्माण किया है।
और पढ़ें: भारत-फ्राँस संबंध
रैपिड फायर
किलिफिश
स्रोत: डीटीई
केन्या के गोंगोनी वन (7.09 मिलियन वर्ष प्राचीन) में किलिफिश (Nothobranchius sylvaticus) की एक नई प्रजाति की खोज की गई है। यह वन में पाई गई पहली ज्ञात स्थानिक किलिफिश है।
- यह केन्या में स्थानिक है और इसे गंभीर रूप से संकटापन्न (IUCN) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
किलिफिश:
- परिचय: किलिफिश छोटी, अंडद (अंडप्रजक) मछलियाँ हैं जो साइप्रिनोडोंटिफॉर्मेस गण से संबंधित हैं, जिन्हें प्रायः टूथकार्प्स के रूप में जाना जाता है।
- पर्यावास: किलिफिश अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के अलवणोद और लवणीय जल क्षेत्रों में पाई जाती हैं, तथा इसकी कुछ प्रजातियाँ दलदलों और अस्थायी तालाबों जैसे अल्पकालिक (ऋतुनिष्ठ) जल क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं।
- अनुकूलनशीलता: इनकी चरम वातावरण की अनुकूलन क्षमता होती है और ये उच्च लवणता और अल्प ऑक्सीजन की स्थिति में जीवित रहने में सक्षम होते हैं तथा काल प्रभावन और आनुवंशिकी अनुसंधान में इनकी भूमिका आदर्श जीव के रूप में होती है।
केन्या:
- अवस्थान: केन्या (भूमध्यरेखीय और पूर्वी अफ्रीकी देश) की सीमा दक्षिण सूडान, इथियोपिया, सोमालिया, युगांडा, तंज़ानिया और हिंद महासागर से लगती है।
- दादाब शरणार्थी परिसर सोमालिया के गृहयुद्ध से आए शरणार्थियों को आश्रय देने वाले सबसे बड़े शिविरों में से एक है।
- प्रमुख झीलें: तुर्काना झील, विक्टोरिया झील (केन्या, तंज़ानिया और युगांडा का साझा स्वामित्व), आदि।
- केन्या भारत के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य (मध्य प्रदेश-राजस्थान) में चीतों की संख्या में पुनः वृद्धि करने के उद्देश्य से 20 चीते प्रदान करेगा।
और पढ़ें: मछली की नई प्रजाति की खोज