प्रिलिम्स फैक्ट्स (17 Jun, 2024)



HIV वैक्सीन अनुसंधान में प्रगति

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वायरस के तीव्र उत्परिवर्तन एवं प्रतिरक्षा प्रणाली से बच निकलने की क्षमता के कारण, पारंपरिक टीकाकरण रणनीतियाँ 40 वर्षों के प्रयास के बाद भी HIV संक्रमण को रोकने में सफल नहीं हो पाई हैं।

  • विशेषज्ञों का मानना है कि अधिक परिष्कृत वैक्सीन रणनीतियाँ आवश्यक हैं तथा साथ ही अनुसंधान एवं विकास प्रक्रिया में कुछ और समय भी लगेगा।

HIV के विरुद्ध पारंपरिक वैक्सीन दृष्टिकोण क्या है?

  • परिचय: 
    • यह टीकों के विकास को संदर्भित करता है जिसका उद्देश्य पारंपरिक तरीकों जैसे वायरस के निष्क्रिय या कमज़ोर रूपों, वायरल सबयूनिट या अन्य घटकों का उपयोग करके ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) से संक्रमण को रोकना है जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं।
    • इन उपायों में आमतौर पर शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करना शामिल  है ताकि वे HIV की पहचान कर उस पर हमला करें और इस तरह संक्रमण को रोका जा सके अथवा रोग की गंभीरता को कम किया जा सके।
      • यह शरीर को नए रोगजनकों का मुकाबला करना सिखाता है।
  • HIV के विरुद्ध पारंपरिक वैक्सीन दृष्टिकोण की विफलता: निम्नलिखित कारणों से HIV के लिये यह दृष्टिकोण असफल रहा है।
    • शरीर में प्राकृतिक आत्मरक्षा का अभाव: अन्य वायरसों के विपरीत, अधिकांश मानव शरीर HIV के विरुद्ध स्वयं मज़बूत सुरक्षा प्रणाली विकसित नहीं कर पाते।
    • तीव्र उत्परिवर्तन: HIV में ऐसे हिस्से होते हैं जो प्राय: शेप-शिफ्टर (तेज़ी से आकर बदलना) की तरह उत्परिवर्तन करते हैं। वैक्सीन इन हिस्सों को लक्षित करती है, लेकिन जब तक वैक्सीन तैयार होती है, तब तक वायरस अपने आकार में परिवर्तन कर चुका होता है।
    • अत्यधिक वायरल विविधता: HIV के विभिन्न प्रकार रूपों में अत्यधिक संख्या में प्रसारित होते हैं, जिससे सभी प्रकारों को लक्षित करना कठिन हो जाता है।
    • जटिल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया: एक सफल वैक्सीन के लिये तीव्रता से बदलते वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडी एवं कोशिकीय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया दोनों को उत्तेजित करना आवश्यक है।

प्रभावी HIV टीकों के विकास में क्या प्रगति हुई है?

  • व्यापक रूप से निष्क्रिय करने वाली एंटीबॉडी (bNAbs): यह एक प्रकार का एंटीबॉडी है, जो बड़ी संख्या में प्रसारित वायरल उपभेदों को निष्क्रिय कर सकता है।
  • जर्मलाइन लक्ष्यीकरण दृष्टिकोण: इसमें विशेष पूर्ववर्ती B कोशिकाओं के विकास और गुणन को प्रोत्साहित करने के लिये टीकों की एक शृंखला का उपयोग किया जाता है, जिनमें bnAbs बनाने की क्षमता होती है।
    • यह HIV के विरुद्ध B-कोशिकाओं की पहचान करता है और उन्हें bNAb उत्पादक कोशिकाओं में तैयार करता है, जिससे HIV के विभिन्न प्रकारों को निष्क्रिय किया जा सके।
  • अन्य टीके:
    • N332-GT5 इम्यूनोजेन: B-कोशिकाओं को BG18 नामक एक अलग शक्तिशाली एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिये प्रशिक्षित करना।
    • MPER-लक्ष्यित वैक्सीन: यह HIV आवरण के अधिक स्थिर क्षेत्र को लक्षित करता है, जो बार-बार उत्परिवर्तित नहीं होता।

ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (Human Immunodeficiency Virus- HIV)

  • HIV/AIDS एक दीर्घकालिक और संभावित रूप से जीवन के लिये जोखिम उत्पन्न करने वाली स्थिति है, जो मानव इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (HIV) के कारण होती है, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को लक्षित करता है, जिससे व्यक्ति संक्रमण और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है।
  • HIV शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में CD4, एक प्रकार की श्वेत रक्त कणिका (T-कोशिकाएँ) पर हमला करता है।
    • T-कोशिकाएँ वे कोशिकाएँ होती हैं जो कोशिकाओं में विसंगतियों और संक्रमण का पता लगाने के लिये शरीर में घूमती रहती हैं।
  • शरीर में प्रवेश करने के बाद HIV वायरस की संख्या में तीव्रता से वृद्धि होती है और यह CD-4 कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है, इस प्रकार यह मानव प्रतिरक्षा प्रणाली (Human Immune System) को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता है। एक बार जब यह वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है तो इसे कभी नहीं हटाया जा सकता।
  • संबंधित पहल: HIV और एड्स निवारण और नियंत्रण अधिनियम, 2017, प्रोजेक्ट सनराइज़, 90-90-90, रेड रिबन, एड्स, टीबी और मलेरिया हेतु वैश्विक फंंड (GFATM)

HIV-AIDS की व्यापकता

  • अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 39 मिलियन व्यक्ति ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (HIV) से ग्रसित हैं। भारत में यह आँकड़ा 2.4 मिलियन है। 
  • वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर HIV संक्रमण के 1.3 मिलियन और भारत में 63,000 नए मामले सामने गए
    • वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर इन स्थितियों के कारण 6,50,000 लोगों की मृत्यु हुई। भारत में AIDS के कारण 42,000 लोगों की मृत्यु हुई। इनमें से कई संक्रमणों की रोकथाम और उनका उपचार संभव है।

और पढ़ें: HIV/AIDS उपचार में ART की भूमिका, ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस, UNAIDS रिपोर्ट: HIV/AIDS की रोकथाम में प्रगति और चुनौतियाँ

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित बीमारियों में से कौन-सी टैटू बनवाने के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित हो सकती है/हैं?  (2013)

  1. चिकनगुनिया 
  2. यकृतशोथ B 
  3. HIV-AIDS

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


WHA में भारत की TB डायग्नोस्टिक तकनीक की सराहना

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में जिनेवा में आयोजित 77वें विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन में फेफड़ों (Pulmonary) एवं अन्य अंगों (Extra-Pulmonary) संबंधी TB तथा रिफाम्पिसिन-प्रतिरोधी TB हेतु एक तीव्र आण्विक नैदानिक ​​परीक्षण, ट्रूनेट (Truenat) की सराहना की गई।

ट्रूनेट:

  • पोर्टेबल एवं बैटरी चलित इस उपकरण से एक घंटे से भी कम समय में परिणाम मिलने के साथ 40 से भी अधिक बीमारियों की जाँच हो सकती है।
  • भारत में राष्ट्रीय TB उन्मूलन कार्यक्रम (National TB Elimination Programme) के अंतर्गत 7,000 से अधिक प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा लगभग 1,500 निजी प्रयोगशालाओं में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य सभा (WHO की निर्णय लेने वाली संस्था) ने TB उन्मूलन के लिये भारत के प्रयास की सराहना करते हुए ट्रूनेट मशीनों और हैंडहेल्ड एक्स-रे उपकरणों के उपयोग सहित भारत की अभिनव पहलों को संभावित वैश्विक मॉडल के रूप में मान्यता दी।
    • भारत में TB उन्मूलन कार्यक्रम के तहत TB के निदान हेतु हस्तचालित एक्स-रे उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार प्रतिवर्ष TB के 10 मिलियन से अधिक नए मामले सामने आते हैं।
  • वैश्विक TB रोगियों में भारत की हिस्सेदारी 27% है। भारत में TB से प्रतिदिन 1,400 से अधिक रोगियों की मृत्यु होती है।
  • प्रधानमंत्री TB मुक्त भारत अभियान के तहत भारत का लक्ष्य, वर्ष 2025 तक TB का उन्मूलन करना है।

Tuberculosis

और पढ़ें: प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान, इंडिया TB रिपोर्ट 2024


मुसांकवा सनयातियेंसिस

स्रोत: Phys.org

हाल ही में वैज्ञानिकों ने ज़िम्बाब्वे में करीबा झील (Lake Kariba) के तट पर डायनासोर की एक नई प्रजाति, मुसांकवा/मुसनकवा सनयातियेंसिस (Musankwa Sanyatiensis) के जीवाश्म की खोज की है।

  • लगभग 390 किलोग्राम वज़न वाला यह शाकाहारी डायनासोर उत्तर ट्राइएसिक काल (लगभग 210 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान दलदली क्षेत्रों में रहता था।
  • इसका नाम हाउसबोट और सनयाती नदी के नाम पर रखा गया है जो करीबा झील में गिरती है।
  • यह 50 वर्षों में मध्य-ज़ाम्बेज़ी बेसिन में पाई गई डायनासोर की पहली प्रजाति होने के साथ ही देश की चौथी डायनासोर प्रजाति है।
  • अफ्रीका में डायनासोर के जीवाश्म का एक विस्तृत इतिहास रहा है। दक्षिण अफ्रीका में डायनासोर का पहला जीवाश्म वर्ष 1842 में "डायनासोर" शब्द के निर्माण के तीन वर्ष बाद पाया गया था।
  • पृथ्वी पर लगभग 243 से 233 मिलियन वर्ष पूर्व डायनासोर (सरीसृपों का एक विविध समूह) पाए जाते थे और जुरासिक एवं क्रिटेशियस काल के दौरान ये विभिन्न रूपों में विकसित हुए।

Lake_Kariba_Zimbabwe

और पढ़ें: डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध


FSSAI द्वारा "100% फलों का रस" के झूठे दावों पर कार्रवाई

स्रोत: द हिंदू

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) द्वारा विनिर्माताओं या खाद्य व्यापार संचालकों (Food Business Operators- FBO) को जारी निर्देश के अनुसार, पुनर्निर्मित रस से तैयार उत्पादों पर "100% fruit juice” (यानी 100% फलों का जूस) के नए दावे को हटा दिया जाना चहिये।

  • पुनर्निर्मित रस, सांद्रित फलों के रस में पुनः जल मिलाकर बनाया जाता है।
  • FSSAI का उद्देश्य उपभोक्ताओं को गुमराह होने से बचाना है, जो यह मानते हैं कि उन्हें शुद्ध एवं बिना मिलावट वाला जूस मिल रहा है।

प्रमुख विनियम:

  • कोई "100% जूस" दावा नहीं: विज्ञापन और दावा विनियमन (2018) के अनुसार, किसी भी फल के रस उत्पाद के लिये ऐसे दावों की अनुमति नहीं है।
  • "पुनर्निर्मित" लेबलिंग: खाद्य उत्पाद मानक एवं योज्य विनियम (2011) के अनुसार पुनर्गठित जूसों में घटक सूची में स्पष्ट रूप से "पुनर्निर्मित" लिखा होना चाहिये।
  • "स्वीटनर पारदर्शिता: 15 ग्राम/किलोग्राम से अधिक पोषक स्वीटनर वाले जूस पर "मीठा जूस" का लेबल लगाया जाना चाहिये।

FSSAI

  • इसकी स्थापना खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (2006) के तहत की गई है।
  • यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है
  • मिशन: विश्व स्तरीय खाद्य सुरक्षा मानक स्थापित करना,सुव्यवस्थित विनिर्माण प्रथाओं को बढ़ावा देना तथा खाद्य व्यवसाय नियमों का पालन सुनिश्चित करना।

और पढ़ें: भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI), FSSAI खाद्य सुरक्षा नियमों को सुव्यवस्थित करेगा


मानसून क्रोक्स बायोब्लिट्ज

स्रोत:द हिंदू

केरल वन अनुसंधान संस्थान (KFRI) मानसून क्रोक्स बायोब्लिट्ज़ 2024 का आयोजन कर रहा है। 

  • "मानसून क्रोक्स बायोब्लिट्ज़" चार महीने तक चलने वाली सार्वजनिक भागीदारी वाली विज्ञान परियोजना है जिसका उद्देश्य जून से सितंबर तक चलने वाले मानसून के मौसम के दौरान केरल के मेंढकों का दस्तावेज़ीकरण करना है। 
  • इसके तहत वैज्ञानिक अवलोकन, वैश्विक जैवविविधता सूचना सुविधा (Global Biodiversity Information Facility- GBIF) डेटाबेस का हिस्सा होगा, जिसका उपयोग जैवविविधता जागरूकता, आवास संरक्षण, प्रजातियों के संरक्षण आदि के लिये किया जा सकता है। 
  • इस परियोजना का उद्देश्य मेंढकों की सुरक्षा के लिये प्रमुख आवासों की पहचान करना है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के संकेतक के रूप में कार्य करते हैं। 
  • जलवायु परिवर्तन, असामयिक वर्षण प्रतिरूप, आवास विखंडन एवं जल प्रदूषण जैसे कारक, मेंढकों के अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं, जिसके कारण विश्व के 41% मेंढक संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN की रेड लिस्ट में शामिल हैं।
  • अकेले केरल में मेंढक की 200 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनके लिये संरक्षण प्रयास आवश्यक हैं। 
    • यहाँ सर्वाधिक देखी जाने वाली प्रजाति में वायनाड बुश फ्रॉग (Pseudophilautus wynaadensis) शामिल है, जिसके बाद एशियन कॉमन टोड (Duttaphrynus melanostictus) का स्थान है। 
    • यहाँ दर्ज की गई महत्त्वपूर्ण उभयचर प्रजातियों में गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) रेस्प्लेंडेंट श्रब फ्रॉग (Raorchestes resplendens), संकटग्रस्त मालाबार टोरेंट टोड (Blaira ornata), सुभेध अन्नामलाई फ्लाइंग फ्रॉग (Rhacophorus pseudomalabaricus) और संकटापन्न पर्पल फ्रॉग (Nasikabatrachus sahyadrensis) शामिल हैं। 

वैश्विक जैव विविधता सूचना सुविधा (GBIF):

  • यह सरकारों द्वारा वित्तपोषित एक इंटरनेशनल ओपन डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर है। यह किसी को भी, कहीं भी पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवों के बारे में डेटा तक पहुँच प्रदान करता है।

और पढ़ें: भारत को जैवविविधता चैंपियन बनाना


वैश्विक पवन दिवस 2024

स्रोत: पी.आई.बी.

15 जून, 2024 को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने “पवन-ऊर्जा: भारत के भविष्य को सशक्त बनाना” के केंद्रीय विषय के साथ ‘वैश्विक पवन दिवस’ (Global Wind Day 2024) का आयोजन किया।

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय पवन ऊर्जा क्षेत्र की सफलता का जश्न मनाना तथा भारत में पवन ऊर्जा को अपनाने में तीव्रता लाने के तरीकों पर चर्चा करना था।
  • मई 2024 तक भारत की संचयी स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता 46.4 गीगावॉट (चीन, अमेरिका तथा जर्मनी के बाद दुनिया में चौथी सबसे बड़ी) है।
  • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से अपनी विद्युत ऊर्जा की स्थापित क्षमता का 50 प्रतिशत और वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करने के भारत के प्रयासों के लिये पवन ऊर्जा महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • गुजरात, कर्नाटक तथा तमिलनाडु भारत में पवन ऊर्जा उत्पादक अग्रणी राज्य हैं।

और पढ़ें: भारत की पवन ऊर्जा क्षमता