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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 15 May, 2023
  • 24 min read
प्रारंभिक परीक्षा

इरेटमोप्टेरा मर्फी

ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे (BAS) के एक अध्ययन के अनुसार, इरेटमोप्टेरा मर्फी (Eretmoptera murphyi) नामक छोटा फ्लाइटलेस मिज (छोटा बग या कीट) अंटार्कटिक के सिग्नी द्वीप की मृदा की संरचना को बदल रहा है।

  • यह अंटार्कटिक के सिग्नी द्वीप पर एक आक्रामक प्रजाति है।

इरेटमोप्टेरा मर्फी:

  • परिचय: 
    • यह दक्षिण जॉर्जिया, उप-अंटार्कटिक द्वीप का स्थानिक है और 1960 के दशक में वनस्पति प्रयोग के दौरान अनायास ही सिग्नी द्वीप में लाया गया था। 1980 के दशक में इसके प्रचलन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।
    • इरेटमोप्टेरा मर्फी मृत कार्बनिक पदार्थों को खाता है, जिससे पौधों का तेज़ी से अपघटन एवं द्वीप के उन क्षेत्रों की तुलना में तीन से पाँच गुना अधिक मृदा नाइट्रेट का स्तर बढ़ जाता है जहाँ मिज (छोटे काटने वाले कीड़े) अनुपस्थित हैं तथा केवल स्थानीय अकशेरूकीय प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
      • नाइट्रेट का उच्च स्तर अन्य पौधों की प्रजातियों हेतु विषैला हो सकता है और यह भू-जल को भी दूषित कर सकता है। जल में नाइट्रेट के उच्च स्तर से शैवाल की अत्यधिक वृद्धि हो सकती है, जो ऑक्सीजन के स्तर को कम कर सकता है एवं जलीय जीवन को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • इसके फैलने का कारण: 
    • विशेषज्ञों के अनुसार, अंटार्कटिक में मर्फी मिज के प्रसार में वृद्धि का कारण इंसानों के जूतों के साथ यहाँ आए कीड़ों को माना जा रहा है।
  • चुनौतियाँ: 
    • मिज जल में भी जीवित रह सकता है, जो चिंता का विषय है, यह अन्य द्वीपों में भी फैल सकता है। 
    • यह छोटा बग बहुत बड़े क्षेत्र में फैल गया है और इसकी संख्या बढ़ रही है, इसलिये यह एक गंभीर मुद्दा बन गया है।
    • अंटार्कटिका में अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र है जो आक्रामक प्रजातियों हेतु संवेदनशील है, अर्थात् मिज कीट का आक्रमण इस बात पर प्रकाश डालता है कि कठोर परिस्थितियाँ भी अब इस क्षेत्र की रक्षा नहीं कर सकती हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में तेज़ी लाने के अलावा मिज कीट की गतिविधियाँ अन्य आक्रामक प्रजातियों की स्थापना या उत्पत्ति को भी बढ़ावा दे सकती हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


प्रारंभिक परीक्षा

Y20 परामर्श कार्यक्रम

हाल ही में भारत की G20 अध्यक्षता के एक भाग के रूप में यूथ20 (Y20) समूह का Y20 परामर्श कार्यक्रम कश्मीर विश्वविद्यालय में आयोजित किया गया, इसमें देश के बेहतर भविष्य के लिये युवाओं ने विचारों का आदान-प्रदान किया और 'जलवायु परिवर्तन एवं आपदा जोखिम में कमी: स्थिरता को जीवन जीने का एक तरीका बनाने' पर एक्शन प्लान कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

FVOLGTKOY20 परामर्श कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ:

  • पृष्ठभूमि:  
    • भारत ने 1 दिसंबर, 2022 को 1 वर्ष की अवधि के लिये यानी 30 नवंबर, 2023 तक G20 की अध्यक्षता ग्रहण की हैं। अध्यक्षता के लिये भारत की थीम 'वसुधैव कुटुंबकम' (जो महा उपनिषद के प्राचीन संस्कृत पाठ से लिया गया है) की सभ्यतागत मूल्य प्रणाली में निहित है। अतः हमारी थीम है- 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य'
      • G20 अध्यक्षता के ढाँचे के तहत युवा मामलों के विभाग को यूथ 20 समिट- 2023 आयोजित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
    • यूथ20 जो कि G20 के आधिकारिक रूप से शामिल समूहों में से एक है,  युवाओं को G20 की प्राथमिकताओं पर अपने दृष्टिकोण एवं विचारों को व्यक्त करने हेतु एक मंच प्रदान करता है।
  • पाँच थीम:  
    • जलवायु परिवर्तन एवं आपदा जोखिम में कमी: स्थिरता को जीवन जीने का एक तरीका बनाना
    • कार्य का भविष्य: उद्योग 4.0, नवाचार, और 21वीं सदी के कौशल
    • शांति निर्माण और सुलह: युद्ध रहित युग की शुरुआत
    • साझा भविष्य: लोकतंत्र और शासन में युवा
    • स्वास्थ्य, कल्याण और खेल: युवाओं हेतु एजेंडा
  • सहभागिता:  
    • इंडोनेशिया, मैक्सिको, तुर्किये, रूस, जापान, कोरिया गणराज्य, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील और नाइजीरिया जैसे G20 देशों के 17 युवा प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया।
    • कश्मीर विश्वविद्यालय और जम्मू-कश्मीर के आसपास के विद्यालयों के छात्रों ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। 
  • चर्चा के क्षेत्र:  
    • इसमें निम्नलिखित चार प्रमुख विषयों पर चर्चा हुई:  
      • जैवविविधता और मानव कल्याण पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
      • सुरक्षित भविष्य के लिये आपदा जोखिम न्यूनीकरण
      • हरित ऊर्जा- नवाचार और अवसर
      • जल संसाधन- चुनौतियाँ और संभावनाए

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी

ब्रिटेन (UK) में तीन माता-पिता के DNA से पैदा हुए एक बच्चे की हालिया खबर ने इस उल्लेखनीय उपलब्धि के पीछे वैज्ञानिक सफलता को जिज्ञासा और चर्चा का विषय बना दिया है। 

  • माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी (MRT) या थ्री-पैरेंट IVF के रूप में जानी जाने वाली इस परिवर्तनकारी तकनीक का उद्देश्य माइटोकॉन्ड्रियल रोगों के वंशानुक्रम को रोकना है।

माइटोकॉन्ड्रिया: 

  • परिचय: 
    • माइटोकॉन्ड्रिया अधिकांश यूकेरियोटिक जीवों की कोशिकाओं में पाए जाने वाले झिल्ली-बद्ध अंग हैं।
    • उन्हें अक्सर कोशिकाओं के "पावर हाउस" के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट (ATP) के रूप में सेल की अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।

  • कार्य: 
    • माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकीय श्वसन की एक प्रक्रिया को पूरा करते हैं जो पोषक तत्त्वों को ATP में परिवर्तित करती है।
    • माइटोकॉन्ड्रिया कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन से ऊर्जा को कोशिका के लिये उपयोगी रूप में परिवर्तित करता है।
    • वे ATP का उत्पादन करने के लिये ग्लूकोज़ का चयापचय करते हैं, जो विभिन्न सेलुलर प्रक्रियाओं को शक्ति प्रदान करता है।
    • माइटोकॉन्ड्रिया सेल सिग्नलिंग पाथवे में भाग लेते हैं, सेल की वृद्धि, विभेदन और एपोप्टोसिस जैसी प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।
  • विरासत: 
    • माइटोकॉन्ड्रिया का अपना DNA होता है, जिसे माइटोकॉन्ड्रियल DNA (mtDNA) के रूप में जाना जाता है, जो आवश्यक प्रोटीन की एक छोटी संख्या को कूटबद्ध करता है।
    • अधिकांश पशुओं में mtDNA पूरी तरह से माँ से विरासत में मिला होता है।
    • mtDNA में उत्परिवर्तन से माइटोकॉन्ड्रिया (सूत्रकणिका) विकार और विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियाँ हो सकती हैं।
  • माइटोकॉन्ड्रिया रोग: 
    • माइटोकॉन्ड्रिया में कुछ उत्परिवर्तन से माइटोकॉन्ड्रियल रोग हो सकते हैं, ऊर्जा उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं और मस्तिष्क, तंत्रिकाओं, मांसपेशियों, गुर्दे, हृदय और यकृत सहित विभिन्न अंगों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • इन रोगों के परिणामस्वरूप अतिगंभीर लक्षण देखे जा सकते हैं, जैसे- अंग का विफल होना, मांसपेशियों का खराब होना और यहाँ तक कि मस्तिष्क क्षति। दुर्भाग्य से माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों का कोई उपचार उपलब्ध नहीं है, लेकिन उन्हें कुछ हद तक प्रबंधित किया जा सकता है।
      • माइटोकॉन्ड्रियल रोगों के कुछ उदाहरण हैं- लेह सिंड्रोम, किर्न्स-सायरे सिंड्रोम (KSS), माइटोकॉन्ड्रियल मायोपैथी और माइटोकॉन्ड्रियल DNA डिप्लेशन सिंड्रोम।

माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन ट्रीटमेंट (MDT)/MRT:

  • परिचय: 
    • माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों के मुद्दे को हल करने के लिये वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं ने माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन ट्रीटमेंट (MDT) या थ्री-पैरेंट IVF नामक एक उन्नत इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (IVF) तकनीक विकसित की है।
      • इस तकनीक में यह सुनिश्चित करने के लिये एक जटिल प्रक्रिया शामिल है कि जैविक माता-पिता दोनों से आनुवंशिक सामग्री लेते समय शिशु को स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया विरासत में प्राप्त हो।
  • वैज्ञानिक प्रक्रिया: 
    • उपयुक्त उम्मीदवारों की पहचान करना:  
      • यह प्रक्रिया विशेष रूप से उन जोड़ों (दम्पति) के लिये है जो अपने आनुवंशिक शिशु को जन्म देना चाहते हैं लेकिन दाता अंडे का उपयोग नहीं करना चाहते हैं।
    • दाता और जैविक माता-पिता का चयन: 
      • जैविक माता, जिसे माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी है, अपने अंडे प्रदान करती है, जो जैविक पिता के शुक्राणु द्वारा निषेचित होते हैं।
        • इसके अतिरिक्त इस प्रक्रिया में स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया वाली एक अलग महिला दाता शामिल होती है।
    • माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट:  
      • दाता के अंडे से आनुवंशिक पदार्थ (DNA) निकाला जाता है और जैविक माता-पिता के आनुवंशिक पदार्थ के साथ प्रतिस्थापित किया जाता है।
        • यह माता-पिता के DNA और दाता के माइटोकॉन्ड्रिया के साथ एक भ्रूण बनाता है।
    • प्रत्यारोपण और गर्भावस्था:  
      • संशोधित भ्रूण को तब गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है और परिपक्व अवधि के परिणामस्वरूप माता के माइटोकॉन्ड्रियल रोग से मुक्त बच्चे का जन्म होता है।

  • संभावित दुष्प्रभाव: 
    • हालाँकि इस प्रक्रिया में न्यूनतम जोखिमों के बिना आशाजनक परिणाम देखने को मिले हैं। कुछ मामलों में कभी-कभी दुर्लभ स्थितियों में ऑपरेशन के दौरान गलती से दोषपूर्ण मातृ माइटोकॉन्ड्रिया की एक छोटी मात्रा स्थांतरित हो सकती है।
    • यद्यपि सर्वसम्मति स्थापित करने और बेहतर परिणामों हेतु तकनीक को परिष्कृत करने के लिये और अधिक शोध एवं प्रकाशित डेटा की आवश्यकता है।
  • विधान और अनुमोदन:
    • यूनाइटेड किंगडम सरकार ने माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसमेंट थेरेपी की अनुमति देने हेतु वर्ष 2015 में अपने कानून में संशोधन किया एवं न्यूकैसल फर्टिलिटी सेंटर वर्ष 2017 में इस तरह की प्रक्रिया करने वाला पहला लाइसेंस प्राप्त केंद्र बन गया।
  • माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़ संबंधी आँकड़े: 
    • विश्व स्तर पर अनुमानित 5,000 लोगों में से 1 को आनुवंशिक माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़ है।
      • ब्रिटेन में 6,500 शिशुओं में से लगभग एक माइटोकॉन्ड्रियल विकार से प्रभावित होता है और इस देश में लगभग 12,000 लोग इस स्थिति के साथ रहते हैं।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले बच्चों में माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़ से पीड़ित बच्चों की अनुमानित संख्या 1,000-4,000 तक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. आनुवांशिक रोगों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. अंडे के अंतः पात्र (इन विट्रो) निषेचन से या तो पहले या बाद में सूत्रकणिका प्रतिस्थापन (माइटोकॉन्ड्रिया रिप्लेसमेंट) चिकित्सा द्वारा सूत्रकणिका रोगों (माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़) को माता-पिता से संतान में जाने से रोका जा सकता है।
  2. किसी संतान में सूत्रकणिका रोग (माइटोकॉन्ड्रियल डिजीज़) आनुवांशिक रूप से पूर्णतः माँ से जाता है, न कि पिता से।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c) 

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 15 मई, 2023

मोरक्कन टिड्डे का प्रकोप 

अफगानिस्तान के गेहूँ उत्पादक क्षेत्रों में मोरक्कन टिड्डे का प्रकोप देश की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था हेतु गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। यह प्रकोप आठ प्रांतों को प्रभावित कर सकता है, साथ ही यह वार्षिक फसल के एक-चौथाई के बराबर यानी 700,000-1.2 मिलियन टन गेहूँ को नष्ट कर सकता है। यदि इसका निदान किये बिना छोड़ दिया जाता है, तो टिड्डियों की आबादी अगले वर्ष सौ गुना बढ़ सकती है, जिससे अफगानिस्तान एवं पड़ोसी देशों में खाद्य सुरक्षा को लेकर संकट बढ़ सकता है। मोरक्कन टिड्डे को विश्व भर में पौधों के लिये सबसे अधिक हानिकारक कीटों के रूप में जाना जाता है। इसका प्रभाव गेहूँ की फसल से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि मोरक्कन टिड्डे पौधों की 150 से अधिक प्रजातियों का उपभोग करते हैं, जिनमें वृक्ष फसलें, चरागाह तथा अफगानिस्तान में उगाई जाने वाली विभिन्न खाद्य फसलें शामिल हैं। मोरक्कन टिड्डे, वैज्ञानिक रूप से ‘डोसियोस्टोरस मारोकेनस (Dociostaurus maroccanus)’ के रूप में जाने जाते हैं। वे एक्रीडीडी (Acrididae) समूह से संबंधित हैं, जिसमें टिड्डे और टिड्डियाँ शामिल हैं। इन टिड्डियों को झुंड बनाने की उनकी क्षमता हेतु जाना जाता है, जिससे वे प्रभावित क्षेत्रों में गंभीर कृषि क्षति का कारण बनते हैं। वे मध्यम से बड़े आकार के कीट हैं, सामान्यतः वयस्कों की लंबाई लगभग 4-5 सेंटीमीटर होती है। इन कीटों का शरीर मज़बूत, सिर पर छोटे एंटीना होते हैं और शक्तिशाली पिछले पैर इन्हें कूदने में मदद करते हैं। उनके शरीर का भिन्न रंग जैसे हरे-भूरे से लेकर लाल-भूरे तक हो सकता है।

और पढ़ें…जलवायु परिवर्तन और टिड्डे का प्रकोप 

भोपाल, SDG प्रगति को ट्रैक करने वाला पहला भारतीय शहर 

भोपाल ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को स्थानीय बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। SDG हासिल करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता और क्षमता प्रदर्शित करने हेतु स्वैच्छिक स्थानीय समीक्षा (Voluntary Local Reviews- VLR) को अपनाने वाला यह भारत का पहला शहर बन गया है। सतत् विकास के वैश्विक एजेंडे के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को व्यावहारिक स्थानीय रणनीतियों में स्थानीयकृत किये जाने से निर्दिष्ट लक्ष्यों की समग्र प्राप्ति में मदद मिलने की संभावना है। भोपाल का स्वैच्छिक स्थानीय समीक्षा (VLR) भोपाल नगर निगम, यूएन-हैबिटेट और विभिन्न स्थानीय हितधारकों के बीच सहयोग का परिणाम है, जिसका उद्देश्य स्थायी तथा समावेशी शहरी परिवर्तन की दिशा में शहर के प्रयासों को प्रदर्शित करना है। इस समीक्षा में मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों दृष्टिकोण शामिल हैं, जिसमें 56 विकास परियोजनाओं के गुणात्मक मानचित्रण शामिल हैं। वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य देशों ने एजेंडा 2030 को अपनाया, जिसमें 17 SDG और 169 प्रयोजन शामिल हैं। सदस्य राज्य संयुक्त राष्ट्र के उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF) को प्रस्तुत स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षाओं (VNRs) के माध्यम से इन लक्ष्यों की दिशा में अपनी प्रगति की रिपोर्ट करते हैं। स्थानीय एवं क्षेत्रीय जुड़ाव के महत्त्व को स्वीकार करते हुए शहरों तथा क्षेत्रों ने तेज़ी से अपनी उप-राष्ट्रीय समीक्षाएँ की हैं जिन्हें VLR के रूप में जाना जाता है। हालाँकि 2030 एजेंडा अथवा अन्य अंतर-सरकारी समझौते आधिकारिक तौर पर VLR का समर्थन नहीं करते हैं, फिर भी VLR स्थानीय कार्रवाई को बढ़ावा देने में प्रभावी रहे हैं। न्यूयॉर्क शहर वर्ष 2018 में HLPF को अपना VLR प्रस्तुत करने वाला पहला शहर था और वर्ष 2021 तक 33 देशों ने 114 VLR या फिर इसी तरह के समीक्षा दस्तावेज़ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराए थे।

और पढ़ें…वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट, 2022

विश्व प्रवासी पक्षी दिवस

विश्व प्रवासी पक्षी दिवस (WMBD) 13 मई, 2023 को “जल और प्रवासी पक्षी के लिये इसका महत्त्व” विषय के साथ मनाया गया। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में मिशन LiFE कार्यक्रम के तहत पूरे भारत में लोगों के बीच व्यापक स्तर पर कई गतिविधियाँ आयोजित की गईं। इन आयोजनों का उद्देश्य सामुदायिक स्तर पर जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरण के अनुकूल प्रवृत्ति के महत्त्व को रेखांकित करना है। प्रतिभागियों ने स्थायी प्रथाओं को अपनाने तथा उनके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये LiFE कार्यक्रम की प्रतिज्ञा ली। WMBD एक द्वि-वार्षिक वैश्विक अभियान है जिसका उद्देश्य प्रवासी पक्षियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना, उनके संरक्षण को बढ़ावा देना और उनके आवासों के संरक्षण के महत्त्व पर ध्यान देना है। यह प्रत्येक वर्ष मई और अक्तूबर में दूसरे शनिवार को मनाया जाता है। यह अभियान दो संयुक्त राष्ट्र संधियों, जंगली पशुओं की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर सम्मेलन (CMS) और अफ्रीकी-यूरेशियन प्रवासी वाटरबर्ड समझौते (AEWA) के बीच एक सहयोगी साझेदारी के माध्यम से आयोजित किया जाता है। इसमें अमेरिका के गैर-लाभकारी पर्यावरण संगठन (EFTA) भी शामिल होते हैं।

और पढ़ें… विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 2022 

समुद्र शक्ति- 23 

भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय नौसैन्य अभ्यास समुद्र शक्ति- 23 का चौथा संस्करण 14 से 19 मई 2023 तक आयोजित होना निर्धारित है। इस अभ्यास सत्र में भाग लेने के लिये INS कवारत्ती इंडोनेशिया के बाटम गया है। इस अभ्यास का उद्देश्य भारतीय और इंडोनेशिया की नौसेनाओं के बीच अंतर-संचालनीयता, संयुक्तता तथा आपसी सहयोग को बढ़ाना है। INS कवारत्ती के साथ एक भारतीय नौसेना डोर्नियर समुद्री गश्ती विमान एवं चेतक हेलीकॉप्टर भी भाग ले रहा है। इंडोनेशियाई नौसेना का प्रतिनिधित्व KRI सुल्तान इस्कंदर मुदा, CN 235 समुद्री गश्ती विमान व AS565 पैंथर हेलीकाप्टर द्वारा किया जा रहा है। भारत और इंडोनेशिया के बीच अन्य अभ्यास गरुड़ शक्ति है, जो एक संयुक्त सैन्य अभ्यास है। भारत-इंडोनेशिया CORPAT भारत और इंडोनेशिया की नौसेनाओं के बीच एक समन्वित गश्त है, जिसका उद्देश्य अंडमान सागर एवं मलक्का जलडमरूमध्य में समुद्री सुरक्षा तथा सहयोग को बढ़ाना है।

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और पढ़ें… 38वांँ भारत-इंडोनेशिया कॉर्पेट


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