यूरेनियम के नए समस्थानिक की खोज
मैजिक नंबर की खोज में जापान के भौतिकविदों ने यूरेनियम के एक नए समस्थानिक (Isotope) की खोज की है जिसकी परमाणु संख्या 92 और द्रव्यमान संख्या 241 है।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- शोधकर्त्ताओं ने KEK आइसोटोप सेपरेशन सिस्टम (KISS) की सहायता से यूरेनियम-238 नाभिक को प्लूटोनियम-198 नाभिक में परिवर्तित किया। मल्टीन्यूक्लियॉन ट्रांसफर नामक प्रक्रिया के माध्यम से इन दो समस्थानिकों के प्रोटॉन और न्यूट्रॉन का आदान-प्रदान किया गया।
- प्राप्त नाभिकीय विखंडन में विभिन्न समस्थानिक होते हैं।
- टीम ने प्रत्येक नाभिक के द्रव्यमान को मापने के लिये टाइम-ऑफ-फ्लाइट मास स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग किया।
- निष्कर्ष:
- इसकी पहचान यूरेनियम-241 के रूप में की गई थी और इसके नाभिक के द्रव्यमान को मापा गया था। सैद्धांतिक गणना से पता चलता है कि इस नए समस्थानिक की अर्द्ध-आयु 40 मिनट की हो सकती है।
- सामान्य प्रतिक्रिया द्वारा इस क्षेत्र में न्यूक्लाइड को संश्लेषित करने की अत्यधिक कठिनाई के कारण यह खोज वर्ष 1979 के बाद से अपनी तरह की पहली खोज है
- सामान्य प्रतिक्रिया द्वारा इस क्षेत्र में न्यूक्लाइड को संश्लेषित करने की अत्यधिक कठिनाई के कारण यह खोज वर्ष 1979 के बाद से अपनी तरह की पहली खोज है
- इसकी पहचान यूरेनियम-241 के रूप में की गई थी और इसके नाभिक के द्रव्यमान को मापा गया था। सैद्धांतिक गणना से पता चलता है कि इस नए समस्थानिक की अर्द्ध-आयु 40 मिनट की हो सकती है।
- महत्त्व:
- यह खोज परमाणु भौतिकी से संबंधित हमारी समझ को बढ़ाने के साथ परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के डिज़ाइन में सहायक है।
- विखंडन संबंधी खगोलीय घटनाओं में ऐसे भारी तत्त्वों के संलयन को समझने के क्रम में यूरेनियम और उसके नजदीकी तत्त्वों के द्रव्यमान को मापने से आवश्यक जानकारी प्राप्त होती है।
- यह खोज परमाणु भौतिकी से संबंधित हमारी समझ को बढ़ाने के साथ परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के डिज़ाइन में सहायक है।
- भविष्य के निहितार्थ:
- मल्टीन्यूक्लियॉन ट्रांसफर रिएक्शन और KISS का उपयोग करने वाले इस नए दृष्टिकोण से अधिक न्यूट्रॉन-समृद्ध एक्टिनाइड न्यूक्लाइड की खोज की संभावना है, जो न्यूक्लाइड की स्थिरता और खगोलीय न्यूक्लियोसिंथेसिस की प्रक्रिया को स्पष्ट करने में सहायक है।
नोट: यूरेनियम (रासायनिक प्रतीक U) प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक रेडियोधर्मी तत्त्व है। अपनी प्राकृतिक अवस्था में यूरेनियम के तीन समस्थानिक (U-234 (0.0057%), U-235 (0.72%) और U-238 (99.28%) होते हैं। U-232, U-233, U-236 और U-237 इसके अन्य ऐसे समस्थानिक हैं जो प्राकृतिक यूरेनियम में नहीं मिलते हैं।
मैजिक नंबर (Magic Numbers)
- परमाणु भौतिकी में, "मैजिक नंबर" नाभिकों (प्रोटॉन या न्यूट्रॉन) की विशिष्ट संख्याएँ हैं जो परमाणु नाभिक के भीतर विशेष रूप से स्थिर विन्यास के अनुरूप हैं।
- माना जाता है कि ये संख्याएँ परमाणु नाभिक की अंतर्निहित शेल संरचना से उत्पन्न होती हैं।
- सबसे भारी ज्ञात ‘मैजिक’ नाभिक लेड/सीसा (82 प्रोटॉन) है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न . भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का। उत्तर: (b)
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स्रोत: द हिंदू
नासा का TEMPO मिशन
हाल ही में स्पेसएक्स फॉल्कन 9 रॉकेट ने फ्लोरिडा से एक ट्रोपोस्फेरिक एमिशन मॉनिटरिंग ऑफ पॉल्यूशन (TEMPO) उपकरण प्रक्षेपित किया।
- परिचय:
- TEMPO नासा का एक उपकरण है जो अंतरिक्ष से उत्तरी अमेरिका में वायु प्रदूषण का पता लगा सकता है। यह वैज्ञानिकों को वायु प्रदूषकों और उसके उत्सर्जन स्रोतों की निगरानी करने की अनुमति देगा।
- TEMPO उपकरण एक ग्रेटिंग स्पेक्ट्रोमीटर है, जो प्रकाश और पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य के प्रति संवेदनशील है।
- विशेषताएँ:
- TEMPO को भू-तुल्यकालिक कक्षा में इंटेलसेट संचार उपग्रह के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया है।
- यह वायुमंडलीय प्रदूषण को 4 वर्ग मील या उसके आस-पास के क्षेत्रीय विभेदन को भी मापने में सक्षम होगा
- अनुप्रयोग एवं महत्त्व :
- TEMPO में विभिन्न प्रदूषकों के स्तर को मापने से लेकर वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान प्रदान करने और उत्सर्जन-नियंत्रण रणनीतियों के विकास में मदद करने के लिये कई अनुप्रयोग होंगे।
- 40% से अधिक अमेरिकी नागरिक ओज़ोन या कण प्रदूषण के हानिकारक स्तर वाले क्षेत्रों में रहते हैं तथा वायु प्रदूषण से प्रति वर्ष लगभग 60,000 असामयिक मृत्यु होती हैं।
भू-तुल्यकालिक कक्षा
- एक भू-तुल्यकालिक कक्षा में, एक उपग्रह की कक्षीय अवधि पृथ्वी के घूर्णन के समतुल्य है, जिससे उपग्रह पृथ्वी की सतह पर एक ही बिंदु पर एक निश्चित स्थिति में रह सकता है।
- भू-तुल्यकालिक कक्षा की ऊँचाई पृथ्वी के भूमध्य रेखा से लगभग 35,786 किलोमीटर (22,236 मील) तक है।
- भू-तुल्यकालिक कक्षा में उपग्रहों का उपयोग सामान्यतः संचार एवं मौसम अवलोकन के लिये किया जाता है, क्योंकि वे बार-बार पुनर्स्थापन की आवश्यकता के बिना किसी विशिष्ट क्षेत्र का निरंतर कवरेज प्रदान कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न . दूरसंचार प्रसारण हेतु प्रयुक्त उपग्रहों को भू-अप्रगामी कक्षा में रखा जाता है। एक उपग्रह ऐसी कक्षा में तब होता हैः
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रस्तावित टाइगर रिज़र्व को लेकर इदु मिश्मियों का विरोध
हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने यह घोषणा की कि अरुणाचल प्रदेश में दिबांग वन्यजीव अभयारण्य को जल्द ही बाघ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया जाएगा।
- इस कदम से इदु मिश्मी नामक जनजाति में अशांति उत्पन्न हो गई है, क्योंकि उनका मानना है कि एक टाइगर रिज़र्व वन "उनकी पहुँच में बाधा" बनेगा।
इदु मिश्मी
- इदु मिश्मी अरुणाचल प्रदेश और पड़ोसी देश तिब्बत में स्थित मिश्मी समूह की एक उप-जनजाति है, जो मुख्य रूप से तिब्बत की सीमा से लगी मिश्मी पहाड़ियों में निवास करती है।
- उनके पैतृक घर दिबांग घाटी और निचली दिबांग घाटी के साथ-साथ ऊपरी सियांग तथा लोहित के कुछ हिस्सों में फैले हुए हैं।
- वे अपने बुनाई और शिल्प कौशल के लिये जाने जाते हैं, जिनकी अनुमानित संख्या लगभग 12,000 (वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार) है।
- उनकी भाषा, जिसे इदु मिश्मी कहा जाता है, यूनेस्को द्वारा लुप्तप्राय मानी जाती है।
- यह जनजाति, क्षेत्र की समृद्ध वनस्पतियों और जीवों की अच्छी समझ रखती है। उनकी जीववादी परंपरा ने अद्वितीय वन्यजीव संरक्षण प्रथाओं को जन्म दिया है।
- इस जनजाति के लिये बाघ विशेष महत्त्व रखते हैं। उनकी पौराणिक कथाओं के अनुसार, बाघ उनके बड़े भाई हैं।
दिबांग वन्यजीव अभयारण्य:
- अवस्थिति: दिबांग वन्यजीव अभयारण्य भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में स्थित है।
- इस अभयारण्य का नाम इससे होकर बहने वाली दिबांग नदी के नाम पर रखा गया है।
- जैव विविधता हॉटस्पॉट:
- यह एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है और यह पूर्वी हिमालय के स्थानिक पक्षी क्षेत्र का हिस्सा है।
- वनस्पति:
- इस अभयारण्य में विविध प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती है जिनमें उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, उपोष्णकटिबंधीय चौड़ी पत्ती वाले वन, अल्पाइन घास के मैदान और शंकुधारी वन शामिल हैं।
- यहाँ पाए जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों में ओक, रोडोडेंड्रोन, बाँस और देवदार शामिल हैं।
- जीव:
- इस अभयारण्य में पशुओं की कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें मिश्मी ताकिन, कस्तूरी मृग, गोरल, क्लाउडेड लेपर्ड, हिम तेंदुआ और बाघ शामिल हैं।
- यहाँ कई पक्षी प्रजातियाँ भी पाई जाती है, जैसे कि सतीर ट्रैगोपैन, बेलीथ ट्रैगोपैन और टेम्मिंक ट्रैगोपैन।
- निवासी:
- इस अभयारण्य में कई स्वदेशी समुदाय पाए जाते हैं, जैसे कि इदु मिश्मी।
- संरक्षण के प्रयास:
- दिबांग वन्यजीव अभयारण्य को इसकी समृद्ध जैव विविधता की रक्षा के लिये वर्ष 1998 में अधिसूचित किया गया था।
- बीते कई वर्षों से इसके संरक्षण प्रयास किये गए हैं, जिनमें बाघों के निवास स्थान का मानचित्रण करना और इस क्षेत्र में बाघों की गणना कार्य शामिल है।
- इस अभयारण्य को टाइगर रिज़र्व घोषित करने का प्रस्ताव इन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।
- खतरे:
- दिबांग वन्यजीव अभयारण्य कई खतरों का सामना कर रहा है, जिसमें निवास स्थान की क्षति, अवैध शिकार एवं मानव-वन्यजीव संघर्ष शामिल हैं।
- प्रस्तावित टाइगर रिज़र्व से अभयारण्य के वन्यजीवों तथा उनके आवास को बेहतर सुरक्षा मिलने की उम्मीद है।
अरुणाचल प्रदेश में अन्य संरक्षित क्षेत्र:
- पक्के वन्यजीव अभयारण्य।
- नामदफा राष्ट्रीय उद्यान।
- मौलिंग राष्ट्रीय उद्यान।
- कमलांग वन्यजीव अभयारण्य।
- ईटानगर वन्यजीव अभयारण्य।
- ईगल नेस्ट वन्यजीव अभयारण्य।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
बाघ गणना 2022
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा भारत की बाघ गणना 2022 के 5वें चक्र के आँकड़े जारी किये गए हैं, जिसमें पिछले चार वर्षों से 6.7% की वृद्धि को दर्शाया गया है।
- बाघों की गणना में भारत के 20 राज्यों के वन्य आवासों को शामिल किया गया है। इसमें 32,588 स्थानों पर कैमरा लगाए गए और इनसे 47,081,881 तस्वीरें ली गईं।
- प्रधानमंत्री ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में कर्नाटक के मैसूर में आयोजित इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBC) का उद्घाटन करते हुए यह गणना जारी की है।
IBCA:
- IBCA को बाघ, शेर, हिम तेंदुआ, तेंदुआ, चीता, जगुआर और प्यूमा के संरक्षण के लिये शुरू किया गया है।
- इसके सदस्यों में 97 देश शामिल हैं।
- IBCA इस संबंध में साझेदारी, क्षमता निर्माण, पर्यावरण-पर्यटन पर बल देने पर केंद्रित है।
- इससे सूचना का प्रसार होने के साथ सदस्यों के बीच जागरूकता विकसित होगी।
मुख्य बिंदु:
- संख्या:
- वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक बाघों की संख्या में 200 की वृद्धि हुई है। वर्तमान में भारत में बाघों की संख्या 3,167 है, जो 2018 में 2,967 थी।
- वृद्धि दर:
- वर्ष 2014-2018 के दौरान इनकी वृद्धि दर लगभग 33% थी जो वर्ष 2018 से 2022 के दौरान घटकर 6.7% रह गई।
- संख्या में वृद्धि:
- शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानों में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जबकि झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में बाघों की संख्या में गिरावट देखी गई है।
- उत्तर-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्रों और ब्रह्मपुत्र के मैदानों में 194 बाघों को कैमरा में ट्रैप किया गया था और नीलगिरी क्लस्टर में विश्व स्तर पर बाघों की सबसे अधिक संख्या है।
- गिरावट:
- नवीनतम विश्लेषण से पता चला है कि पश्चिमी घाट में बाघों की संख्या में कमी आई है। वायनाड और बिलीगिरिरंगा पहाड़ियों में काफी गिरावट देखी गई।
- उच्च संरक्षण प्राथमिकता:
- सिमलीपाल में आनुवंशिक रूप से अनूठी और कम आबादी वाले बाघों की को भी उच्च संरक्षण प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया गया है।
- यह रिपोर्ट अलग-अलग आबादी के साथ-साथ सतत् आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये वैश्विक बाघ संरक्षण तकनीकों की सिफारिश करती है।
बाघों के संरक्षण की आवश्यकता:
- जैव विविधता: बाघ परभक्षी की श्रेणी में शीर्ष हैं और अपने आवासों के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे शिकार की आबादी को विनियमित करने में मदद करते हैं और यह पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
- पर्यटन: बाघ भारत जैसे देशों में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं और पर्यावरण पर्यटन के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने में मदद करते हैं। यह राजस्व स्थानीय समुदायों को समर्थन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर सकता है।
- सांस्कृतिक महत्त्व: बाघ हिंदू एवं बौद्ध धर्म सहित कई संस्कृतियों और धर्मों में एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक हैं।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: बाघ वैज्ञानिक अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण विषय हैं, क्योंकि यह एक कीस्टोन प्रजाति हैं तथा उनका संरक्षण उनके पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों की रक्षा करने में मदद कर सकता है।
- जलवायु परिवर्तन: बाघ एक संकेतक प्रजाति है, जिसका अर्थ है कि उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का संकेत देती है। बाघों का संरक्षण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद कर सकता है।
भारत में बाघों की गणना:
- राष्ट्रीय बाघ गणना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा राज्य वन विभागों, संरक्षण NGOs और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के साथ साझेदारी में प्रत्येक चार वर्ष में की जाती है। गणना ज़मीन-आधारित सर्वेक्षणों तथा कैमरा-ट्रैप से छवियों के आधार पर एक संयुग्मित नमूना पद्धति का उपयोग करती है।
बाघ से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा टाइग्रिस
- भारतीय उप-प्रजाति: पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस
- पर्यावास:
- इसका पर्यावास भारतीय उपमहाद्वीप और सुमात्रा पर साइबेरियाई समशीतोष्ण वनों से लेकर उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय वनों तक विस्तृत है।
- यह सबसे बड़ी बिल्ली की प्रजाति है और पैंथेरा जीनस का सदस्य है।
- परंपरागत रूप से बाघों की आठ उप-प्रजातियों को मान्यता दी गई है, जिनमें से तीन विलुप्त हो चुकी हैं।
- बंगाल टाइगर: भारतीय उपमहाद्वीप
- कैस्पियन टाइगर: मध्य और पश्चिम एशिया से तुर्की तक (विलुप्त)
- अमूर टाइगर: रूस, चीन और उत्तर कोरिया का अमूर नदी क्षेत्र
- जावा टाइगर: जावा, इंडोनेशिया (विलुप्त)
- दक्षिण चीन टाइगर: दक्षिण मध्य चीन
- बाली टाइगर: बाली, इंडोनेशिया (विलुप्त)
- सुमात्रा टाइगर: सुमात्रा, इंडोनेशिया
- इंडो-चाइनीज टाइगर: प्रायद्वीपीय दक्षिण-पूर्वी एशिया
- खतरे:
- पर्यावास हानि, पर्यावास विखंडन और अवैध शिकार
- सुरक्षा की स्थिति:
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची I
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ रेड लिस्ट: विलुप्त होने के कगार पर
- वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES): परिशिष्ट I
- भारत में टाइगर रिज़र्व:
- कुल संख्या: NTCA के अनुसार 53
- सबसे बड़ा: मुख्य क्षेत्र के आधार पर ,आंध्र प्रदेश का नागार्जुनसागर श्रीशैलम टाइगर रिजर्व
- सबसे छोटा: मुख्य क्षेत्र के आधार पर असम में ओरांग टाइगर रिज़र्व।
संबंधित पहल:
- प्रोजेक्ट टाइगर 1973: यह वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों को आश्रय प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA): यह MoEFCC के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है, इसको वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद स्थापित किया गया था। NTCA का गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 38 L (1) के तहत किया गया है।
- कंजर्वेशन एश्योर्डIबाघ मानक: CAITS मानकों का एक समूह है, जो बाघ स्थलों को यह निर्धारित करने में सक्षम बनाता है कि क्या उनके प्रबंधन से बाघ संरक्षण सफल होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्रों में "क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)" के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020) (a) कॉर्बेट उत्तर: (c)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कॉप ने यूरेनस और उसके वलयों की तस्वीर ली
2021 में प्रमोचित किये गए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने यूरेनस ग्रह (अरुण) और उसके वलयों की स्पष्ट तस्वीर ली है।
यूरेनस से संबंधित प्रमुख बिंदु
- यूरेनस अपने आंतरिक संरचना के कारण एक विशालकाय बर्फ है, जिसका अधिकांश द्रव्यमान जल, मीथेन और अमोनिया जैसे बर्फीले पदार्थों के उष्ण और सघन द्रव्य से निर्मित है।
- यूरेनस अपनी कक्षा के तल से 90 डिग्री के कोण पर घूर्णन करता है। इससे चरम मौसम तथा लंबे समय तक धूप और अंधेरा होता है।
- शुक्र के अतिरिक्त यूरेनस, हमारे सौर मंडल में दक्षिणावर्त घूर्णन करता है।
- ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में 84 पृथ्वी वर्ष लगते हैं।
- यूरेनस के 13 वलय में से 11 इस चित्र में दिखाई दे रहे हैं। इसमें कुछ वलय बहुत चमकीले और नजदीक होने के साथ एक बड़े वलय के रूप में दिखाई दे रहे हैं।
- इस ग्रह के 27 ज्ञात उपग्रह भी हैं।
- यूरेनस की एक विशेष ध्रुवीय टोपी है जो गर्मियों के दौरान दिखाई देती है।
- वर्ष 1986 में नासा के वोएजर-2 (Voyager 2) ने यूरेनस की कक्षा की पहली बार यात्रा की थी।
- वोएजर-2 के बाद, न्यू होराइजंस यूरेनस की कक्षा से परे यात्रा करने वाला पहला अंतरिक्ष यान बन गया है।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप:
- जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) एक बड़ा इन्फ्रारेड टेलीस्कोप है जिसे ब्रह्मांड में सुदूर वस्तुओं का निरीक्षण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- JWST हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी है।
- यह टेलीस्कोप नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का परिणाम है।
- इसे दिसंबर 2021 में लॉन्च किया गया था। यह वर्तमान में अंतरिक्ष में एक बिंदु पर है जिसे सूर्य-पृथ्वी L2 लैग्रेंज बिंदु के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है।
- लैग्रेंज प्वाइंट 2 पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के कक्षीय तल के पाँच बिंदुओं में से एक है।
- लैग्रेंज पॉइंट्स अंतरिक्ष में ऐसी स्थितियाँ हैं जहाँ दो-पिंड प्रणाली (जैसे सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के बढ़े हुए क्षेत्र उत्पन्न करते हैं।
- इसका प्राथमिक मिशन प्रारंभिक ब्रह्मांड, आकाशगंगाओं, सितारों और ग्रहों के निर्माण तथा बाह्य ग्रहों के वातावरण का अध्ययन करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (2014) अंतरिक्षयान उद्देश्य
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। मेन्सप्रश्न. 25 दिसंबर, 2021 को छोड़ा गया जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप तभी से समाचारों में बना हुआ है। उसमें ऐसी कौन-कौन सी अनन्य विशेषताएँ हैं जो उसे इससे पहले के अंतरिक्ष टेलीस्कोपों से श्रेष्ठ बनाती हैं? इस मिशन के मुख्य ध्येय क्या हैं? मानव जाति के लिये इसके क्या संभावित लाभ हो सकते हैं? (मुख्य परीक्षा-2022) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11अप्रैल, 2023
3D प्रिंटिंग
बेंगलुरु का उल्सूर बाज़ार डाकघर 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके निर्मित भारत का पहला डाकघर बनने के लिये तैयार है। त्रि-आयामी मुद्रण, जिसे एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक क्रांतिकारी तकनीक है जिसका निर्माण उद्योग में तेज़ी से उपयोग किया जा रहा है। 3D प्रिंटिंग के साथ, कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन (CAD) सॉफ्टवेयर का उपयोग करके जटिल और अनुकूलित डिज़ाइन का निर्माण संभव है।
इस तकनीक का उपयोग किसी एक भाग, संरचना और यहाँ तक कि पूरी इमारतों को बनाने के लिये किया जा सकता है। निर्माण में 3D प्रिंटिंग के मुख्य लाभों में से एक निर्माण समय और लागत को कम करने की क्षमता है। व्यापक संरचना (संरचनात्मक आकृतियों में कंक्रीट बनाने के लिये इस्तेमाल किया जाने वाले मोल्ड), पाइट और श्रम की आवश्यकता को समाप्त करके, निर्माण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और महत्त्वपूर्ण बचत की जा सकती है। इसके अलावा, 3D प्रिंटिंग लाइटर और अधिक टिकाऊ संरचनाओं के निर्माण की अनुमति देती है जो पर्यावरण के अनुकूल भी हैं। इसके कई लाभों के बावजूद, अभी भी निर्माण में 3D प्रिंटिंग से जुड़ी कुछ चुनौतियाँ हैं। मुख्य चुनौतियों में से एक प्रिंटर का सीमित आकार है, जिससे बड़ी इमारतों का निर्माण करना मुश्किल हो जाता है। इसके अतिरिक्त, 3D प्रिंटिंग के लिये उपयोग की जाने वाली सामग्री अभी भी सीमित है, जो कि बनाई जा सकने वाली संरचनाओं की विविधता को सीमित करती है।
और पढ़े: एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के लिये राष्ट्रीय रणनीति
तमिलनाडु विधानसभा द्वारा विधेयकों की स्वीकृति हेतु समय सीमा के निर्धारण का आग्रह
तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें केंद्र सरकार और राष्ट्रपति से आग्रह किया गया है कि सदन में लाए गए विधेयकों को राज्यपालों द्वारा अपनी सहमति देने के लिये एक समय सीमा निर्धारित की जाए। यह प्रस्ताव राज्यपाल की इस टिप्पणी के बाद आया जिसमें इन्होंने कहा कि रोके जाने वाले विधेयकों को "डेड" माना जाना चाहिये।
संविधान के अनुसार विधानसभा द्वारा भेजे गए विधेयक को राज्यपाल अस्वीकार नहीं कर सकता है। वह अपनी आपत्तियों या टिप्पणियों के साथ सरकार को विधेयक वापस कर सकता है और यदि विधानसभा इसे दूसरी बार मंज़ूरी देती है तो वह या तो अपनी सहमति दे सकता है या राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को सुरक्षित रख सकता है। वह विधेयक को अपने पास भी रख सकता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित किया गया है। विधेयक को अपने पास रख लेने की स्थिति में यह मृत हो जाता है। हालाँकि संविधान में विधेयक को मंज़ूरी देने हेतु राज्यपाल के लिये समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है।
अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र
हैदराबाद में बोवेनपल्ली सब्जी बाज़ार ने एक अभिनव अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली लागू की है। बाज़ार में प्रतिदिन लगभग 10 टन अपशिष्ट इकट्ठा होता है, जिसे अब अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र के माध्यम से जैव-विद्युत, बायोगैस और जैव-खाद में परिवर्तित किया जाता है। बिना बिकी और सड़ी हुई सब्जियों को काट दिया जाता है और उसकी लुगदी बना दिया जाता है, जो बायोगैस का उत्पादन करने के लिये एनारोबिक डाइजेस्टर से गुजरता है। बायोगैस को गुब्बारों में एकत्र और संग्रहीत किया जाता है तथा बायोगैस जनरेटर के माध्यम से भोजन पकाने एवं बाज़ार सुविधाओं को उर्जा प्रदान करने में उपयोग किया जाता है। जैव-खाद का उत्पादन भी प्रक्रिया के उप-उत्पाद के रूप में किया जाता है। उत्पन्न अपशिष्ट, जो पहले भराव- क्षेत्र (लैंडफिल) में समाप्त होता था, अब प्रतिदिन लगभग 500 यूनिट विद्युत और 30 किलोग्राम जैव ईंधन उत्पन्न करने हेतु उपयोग किया जाता है।
अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र महिलाओं हेतु विभिन्न भूमिकाओं में कार्य करने के अवसर प्रदान करके उनके लिये रोज़गार भी सृजित करता है। संयंत्र जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है तथा CSIR-IICT के कृषि विपणन विभाग, तेलंगाना के मार्गदर्शन एवं पेटेंट तकनीक के तहत स्थापित किया गया है। अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र न केवल अपशिष्ट प्रबंधन समस्या का एक अभिनव समाधान है, बल्कि सतत् विकास की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
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रामकृष्ण मठ की 125वीं वर्षगाँठ
भारतीय प्रधान मंत्री ने हाल ही में चेन्नई में रामकृष्ण मठ संस्थान की 125 वीं वर्षगाँठ समारोह में चेन्नई में विवेकानंद हाउस का दौरा किया। रामकृष्ण मठ एक विश्वव्यापी, गैर-राजनीतिक, गैर-सांप्रदायिक आध्यात्मिक संगठन है जो सौ से अधिक वर्ष से विभिन्न प्रकार के मानवतावादी, त्याग और सेवा के आदर्शों से प्रेरित और सामाजिक सेवा गतिविधियों में लगा हुआ है। इस मठ की सहायता से बिना किसी जातिगत, धार्मिक अथवा नस्लवादी भेदभाव के लाखों पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की सेवा की जाती है, क्योंकि वे उन्हें ईश्वर के समान मानते हैं। इन संगठनों को अस्तित्त्व में लाने का श्रेय श्री रामकृष्ण (1836-1886) को जाता है, जो 19वीं सदी के बंगाल के महान संत थे तथा उन्हें आधुनिक युग का पैगंबर माना जाता है। वे त्याग, ध्यान और पारंपरिक तरीकों से धार्मिक मुक्ति की मांग करते हैं। वह एक संत व्यक्ति थे जिन्होंने सभी धर्मों की मौलिक एकता की पहचान की और इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर और मोक्ष प्राप्ति के कई मार्ग हैं और मनुष्य की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। रामकृष्ण परमहंस का संदेश रामकृष्ण आंदोलन का आधार बना। साथ ही उनके विचारों ने श्री रामकृष्ण के प्रमुख शिष्य, स्वामी विवेकानंद (1863-1902) का भी मार्ग प्रशस्त किया, जिन्हें वर्तमान युग के अग्रणी विचारकों और धार्मिक नेताओं तथा आधुनिक विश्व को दिशा प्रदान करने वाला माना जाता है।