प्रारंभिक परीक्षा
अपसौर
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में 5 जुलाई 2024 को पृथ्वी सूर्य के चारों ओर अपने परिक्रमा पथ के उस बिंदु पर पहुँची जो सूर्य से सर्वाधिक दूर है, जिसे अपसौर (Aphelion) कहा जाता है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्तीय कक्षा में परिक्रमा करती है और इस प्रकार समग्र वर्ष में सूर्य और पृथ्वी की दूरी थोड़ी-बहुत घटती-बढ़ती रहती है।
अपसौर क्या है?
- अपसौर (Aphelion) का तात्पर्य पृथ्वी की कक्षा में उस बिंदु से हैं जहाँ सूर्य से उसकी दूरी सर्वाधिक होती है, जो प्रत्येक वर्ष 3 से 6 जुलाई के बीच घटित होता है (NCERT के अनुसार 4 जुलाई)।
- पृथ्वी की कक्षा की उत्केंद्रता (Eccentricity) में अंतर के कारण इसकी उपसौर (Perihelion) और अपसौर तिथियाँ निश्चित नहीं हैं।
- इस समय, पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी लगभग 152.5 मिलियन किलोमीटर होती है।
- उपसौर: उपसौर पर, सूर्य से पृथ्वी की दूरी निकटम होती है जो प्रत्येक वर्ष 3 जनवरी के आस-पास घटित होता है और इसकी दूरी लगभग 147.5 मिलियन किलोमीटर होती है।
- अपसौर का महत्त्व:
- सौर विकिरण में भिन्नता: जुलाई माह की शुरुआत में पृथ्वी का अपसौर भारत पर पड़ने वाले सूर्यप्रकाश को कम कर देता है किंतु इसका तापमान पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ता है।
- पृथ्वी के झुकाव के कारण ऋतु में होने वाले परिवर्तन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। पृथ्वी की दीर्घवृत्तीय कक्षा के कारण सौर विकिरण में होने वाली भिन्नता केवल 3% है जो दर्शाता है कि अपसौर की स्थिति में भी भारत के तापमान पर मुख्य प्रभाव ऋतु अथवा मौसमी कारकों का होता है।
- कक्षा की स्थिरता: ग्रहों के एक दूसरे पर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण, पृथ्वी की कक्षा दीर्घवृत्ताकार है, जिसके परिणामस्वरूप स्वाभाविक रूप से अपसौर घटित होता है। पृथ्वी की जलवायु और इस पर उत्तरजीविता/निवासस्यता की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये यह आवश्यक है कि इसकी दीर्घवृत्ताकार कक्षा बनी रहे।
- सौर विकिरण में भिन्नता: जुलाई माह की शुरुआत में पृथ्वी का अपसौर भारत पर पड़ने वाले सूर्यप्रकाश को कम कर देता है किंतु इसका तापमान पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ता है।
नोट:
- पृथ्वी पर ऋतुएँ मुख्यतः पृथ्वी की धुरी के झुकाव से निर्धारित होती हैं, न कि सूर्य से दूरी से।
- पृथ्वी के झुकाव के कारण सौर विकिरण का असमान वितरण होता है, जिसके कारण चार ऋतुएँ होती हैं: वसंत, ग्रीष्म, पतझड़ (शरद) और शीत ऋतु।
उपभू (Perigee) तथा अपभू (Apogee)
- पेरिगी चंद्रमा की अंडाकार कक्षा में वह बिंदु है जो पृथ्वी के सर्वाधिक समीप होती है। पेरिगी पर, चंद्रमा अपने सबसे छोटे आकार में होता है और पृथ्वी पर उसका गुरुत्वाकर्षण बल सर्वाधिक होता है।
- अपोजी चंद्रमा की अण्डाकार कक्षा में वह बिंदु है जो पृथ्वी से सर्वाधिक दूर होता है। अपोजी पर, चंद्रमा अपने सबसे बड़े आकार में होता है और पृथ्वी पर उसका गुरुत्वाकर्षण बल सर्वाधिक कमज़ोर होता है।
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: 21 जून को सूर्य की स्थिति होती है: (2019) (a) आर्कटिक वृत में क्षितिज के नीचे नहीं होता है। उत्तर: (a) |
रैपिड फायर
पेरू में 4,000 वर्ष पुराना मंदिर
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
पुरातत्त्वविदों के एक दल ने प्रशांत महासागर के पास उत्तरी पेरू के लाम्बायेक क्षेत्र के जाना नामक स्थान पर रेत के टीले में दबे 4,000 वर्ष पुराने एक अनुष्ठानिक मंदिर का पता लगाया है, जिसमें कंकाल के अवशेष मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठानों के लिये चढ़ावा चढ़ाया जाता था।
- बहुमंज़िला इमारत के भीतर तीन वयस्कों के कंकाल मिले। अवशेषों में से एक के साथ प्रसाद भी रखा हुआ था और संभवतः उसे लिनन या कपड़े में लपेटा गया था।
- एक मंदिर की दीवार पर एक उच्च-उभरा चित्र एक पौराणिक आकृति को दर्शाता है, जिसमें मानव शरीर और पक्षी का सिर है, जो कि पूर्व-हिस्पैनिक चाविन संस्कृति से पहले का है।
- चाविन सभ्यता 900-250 ईसा पूर्व के बीच पेरू के उत्तरी एंडियन हाइलैंड्स में विकसित हुई थी। यह मोस्ना घाटी में स्थित थी, जहाँ मोस्ना और हुआचेसा नदियाँ मिलती हैं। यह अब यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल (चाविन डी हुआंतार) है।
- निकटवर्ती उत्खनन से मोचे संस्कृति से संबंधित एक अन्य मंदिर का पता चला, जो लगभग 1,400 वर्ष पुराना है।
- मोचे संस्कृति, जिसे मोचिका संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है, पेरू के उत्तरी तट पर लगभग 100 ई. से 800 ई. के बीच फली-फूली। पेरू के शुष्क उत्तरी तट के साथ नदी घाटियों में फली-फूली।
- उत्तरी पेरू पवित्र शहर कैरल (5,000 वर्ष पुराना) जैसे प्राचीन समारोह परिसरों के लिये जाना जाता है।
- पेरू का सबसे प्रमुख पुरातात्त्विक स्थल इंका सिटाडेल माचू पिच्चू (Incan citadel Machu Picchu) है, जिसका निर्माण 15वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था।
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रैपिड फायर
दलाई लामा
स्रोत: पी. आई. बी.
हाल ही में बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का 89वाँ जन्मदिन मनाया गया।
- दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग्पा परंपरा से संबंधित हैं, जो तिब्बत में सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली परंपरा है।
- तिब्बती बौद्ध धर्म के इतिहास में केवल 14 दलाई लामा हुए हैं और पहले तथा दूसरे दलाई लामाओं को मरणोपरांत यह उपाधि दी गई थी।
- 14वें और वर्तमान दलाई लामा ‘तेनजिन ग्यात्सो’ हैं।
- माना जाता है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर या चेनरेज़िग, करुणा के बोधिसत्व और तिब्बत के संरक्षक संत के प्रतीक हैं।
- बोधिसत्व सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिये बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित प्राणी हैं, जिन्होंने मानवता की मदद के लिये दुनिया में पुनर्जन्म लेने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- दलाई लामा (14वें) वर्ष 1959 के तिब्बती विद्रोह के दौरान हज़ारों अनुयायियों के साथ तिब्बत से भारत भाग आए थे, तब से वे भारत में रह रहे हैं।
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रैपिड फायर
माउंट एटना और स्ट्रोमबोली विस्फोट
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
हाल ही में इटली में माउंट एटना (Mount Etna) और स्ट्रोमबोली (Stromboli) में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण गर्म राख तथा लावा निकला है।
- माउंट एटना इटली के दक्षिणी भाग में सिसिली द्वीप पर स्थित है।
- यह आल्प्स के दक्षिण में इटली की सबसे ऊँची चोटी है।
- यूरोप का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी विश्व के सबसे बड़े ज्वालामुखियों में से एक है। इसके अलावा यह भूमध्यसागरीय द्वीप पर सबसे ऊँचा पर्वत है और विश्व भर में सबसे सक्रिय स्ट्रेटोवोलकैनो है।
- स्ट्रैटोवोलकानो ऊँचे, शंक्वाकार ज्वालामुखी हैं जो कठोर लावा, राख और चट्टान के टुकड़ों की परतों से निर्मित होते हैं।
- वे आमतौर पर सबडक्शन ज़ोन (Subduction Zone) के ऊपर पाए जाते हैं और वे अक्सर बड़े ज्वालामुखीय सक्रिय क्षेत्रों का हिस्सा होते हैं, जैसे कि रिंग ऑफ फायर जो प्रशांत महासागर के अधिकांश भाग को घेरे हुए है।
- स्ट्रोमबोली (यह एक स्ट्रेटोवोलकैनो भी है) इटली के सिसिली के उत्तरी तट पर टायरीनियन सागर (Tyrrhenian Sea) में स्थित एक छोटा सा द्वीप है।
- जैसे: माउंट स्ट्रोमबोली एक सक्रिय ज्वालामुखी है और यह इतने सारे गैस के बादल उत्सर्जित करता है कि इसे “भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ (Lighthouse of the Mediterranean)” कहा जाता है।
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रैपिड फायर
विश्व ज़ूनोसिस दिवस
स्रोत: पी.आई.बी.
विश्व ज़ूनोसिस दिवस के उपलक्ष्य में, पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा विश्व ज़ूनोसिस दिवस की पूर्व संध्या पर पशुपालन तथा डेयरी सचिव (AHD) की अध्यक्षता में एक बातचीत सत्र का आयोजन किया गया।
- यह दिवस लुई पाश्चर के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने 6 जुलाई 1885 को एक ज़ूनोसिस रोग, रेबीज़ का पहला सफल टीका लगाया था।
- ज़ूनोसिस संक्रामक रोग हैं जो जानवरों एवं मनुष्यों के बीच स्थानांतरित हो सकते हैं, जैसे रेबीज़, एंथ्रेक्स, इन्फ्लूएंजा (H1N1 और H5N1), निपाह, कोविड-19, ब्रूसेलोसिस तथा तपेदिक आदि।
- कई गैर-ज़ूनोटिक रोग मानव स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न किये बिना पशुधन को प्रभावित करते हैं।
- उदाहरणों में फुट एंड माउथ डिजीज़, पेस्टे डेस पेटिट्स रूमिनैंट्स (PPR), लम्पी स्किन डिज़ीज़, क्लासिकल स्वाइन फीवर तथा रानीखेत डिज़ीज़ शामिल हैं।
- सभी रोगों में से लगभग 60% ज़ूनोटिक हैं और 70% उभरते संक्रमण जानवरों से उत्पन्न होते हैं।
- ज़ूनोटिक रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण करने हेतु टीकाकरण, स्वच्छता, पशुपालन प्रथाओं के साथ-साथ वन हेल्थ दृष्टिकोण के माध्यम से वेक्टर नियंत्रण पर भी निर्भर करता है।
- जोखिम को कम करने हेतु, DAHD ने राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP) के तहत गोजातीय बछड़ों के ब्रुसेल्ला टीकाकरण के लिये एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है और साथ ही पशु रोगों के नियंत्रण के लिये राज्यों को सहायता (ASCAD) के तहत रेबीज़ का टीकाकरण शुरू किया है।
- भारत में वैश्विक पशुधन तथा मुर्गीपालन की संख्या क्रमशः 11% और 18% है। इसके अतिरिक्त, भारत विश्व स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक और अंडे का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
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रैपिड फायर
स्वदेशी रक्षा उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन वर्ष 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में 16.7% की वृद्धि है।
- वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा उत्पादन का मूल्य 1.08 लाख करोड़ रुपए था।
- भारत का वार्षिक रक्षा उत्पादन लक्ष्य वर्ष 2028-29 तक 3 लाख करोड़ रुपए तक पहुँचने का लक्ष्य रखा गया है।
- वर्ष 2023-24 के दौरान उत्पादन के कुल मूल्य में, रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (Defence Public Sector Undertakings- DPSU) और अन्य PSU द्वारा लगभग 79.2 प्रतिशत तथा निजी क्षेत्र द्वारा 20.8 प्रतिशत का योगदान किया गया है।
- वर्ष 2019-20 से रक्षा उत्पादन मूल्य में वृद्धि 60% से अधिक रही है।
- रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2022-23 में 15,920 करोड़ रुपए से 32.5% बढ़कर 2023-24 में 21,083 करोड़ रुपए पर पहुँच गया। वर्ष 2028-29 तक इसके 50,000 करोड़ रुपए तक पहुँचने की उम्मीद है।
- वर्ष 2024-25 के लिये रक्षा बजट 6.21 लाख करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। वर्ष 2023-24 में 4,35,000 करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी अधिग्रहण परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।
- पूंजी अधिग्रहण बजट का 75% स्थानीय कंपनियों से खरीद के लिये निर्धारित किया गया है।
- भारतीय रक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि का श्रेय नीतिगत सुधारों, व्यापार में सुगमता की पहल और व्यापक डिजिटल समाधानों को दिया जाता है, जो भारतीय रक्षा उत्पादों तथा प्रौद्योगिकियों की वैश्विक स्वीकृति को दर्शाता है।
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