अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका ने पारित किया ‘तिब्बत समाधान अधिनियम’
- 02 Jul 2024
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प्रिलिम्स के लिये:चीन-तिब्बत मुद्दा, भारत-चीन संबंध, भारत-अमेरिका संबंध, बौद्ध धर्म, दलाई लामा। मेन्स के लिये:भारत के हितों पर देशों की नीतियों एवं राजनीति का प्रभाव। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी कॉन्ग्रेस द्वारा तिब्बत-चीन विवाद समाधान अधिनियम पारित किया है, जिसे तिब्बत समाधान अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है।
- इसका उद्देश्य बिना किसी पूर्व शर्त के शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र (UN) चार्टर के अनुसार तिब्बत-चीन विवाद का शांतिपूर्ण समाधान करना है।
तिब्बत समाधान अधिनियम, 2024 क्या है?
- परिचय:
- यह जून 2024 में संयुक्त राज्य अमेरिका कॉन्ग्रेस द्वारा पारित एक विधान है।
- यह तिब्बती नीति अधिनियम (2002) तथा तिब्बती नीति एवं समर्थन अधिनियम (2020) के बाद तिब्बत के संबंध में अमेरिकी सरकार का तीसरा उल्लेखनीय अधिनियम है।
- प्रमुख प्रावधान:
- इसका उद्देश्य तिब्बत पर अमेरिका की स्थिति को मज़बूत करने तथा चीन पर दलाई लामा के साथ वार्ता पुनः शुरू करने के लिये दबाव डालना है।
- इस अधिनियम का उद्देश्य तिब्बत के लिये अमेरिकी समर्थन को बढ़ाना तथा अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों को चीनी सरकार द्वारा तिब्बत के बारे में फैलाई जा रही गलत सूचनाओं का सक्रिय रूप से मुकाबला करने के लिये सशक्त बनाना है।
- यह अधिनियम चीनी सरकार तथा दलाई लामा अथवा उनके प्रतिनिधियों या तिब्बती समुदाय के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेताओं के बीच "बिना किसी पूर्व शर्त" के वार्ता को भी बढ़ावा देगा।
- इसमें तिब्बती लोगों के आत्मनिर्णय के साथ-साथ मानवाधिकारों को रेखांकित किया गया है तथा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों पर हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में चीन के कर्त्तव्य को रेखांकित किया गया है।
- यह तिब्बती लोगों की विशिष्ट ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषाई पहचान को मान्यता देता है और उस पर ध्यान केंद्रित करता है।
- इसका उद्देश्य तिब्बत में न्याय एवं शांति के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को सशक्त बनाना भी है।
- पूर्व के अधिनियमों से भिन्नता:
- तिब्बत समाधान अधिनियम स्पष्ट रूप से तिब्बत पर चीन के दावे का विरोध करता है, जबकि वर्ष 2002 के अधिनियम में इस दावे को स्वीकार किया गया था।
- दलाई लामा को, एक राजनीतिक दूत के रूप में नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में, वर्ष 2002 अधिनियम के तहत वार्ता में भाग लेने की अनुमति दी गई थी। इसके विपरीत, यह अधिनियम चीन से बिना किसी पूर्व शर्त के दलाई लामा या उनके लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधि के साथ वार्ता में शामिल होने का आग्रह करता है।
- तिब्बती नीति एवं समर्थन अधिनियम, 2020 में भी रचनात्मक वार्ता पर ज़ोर दिया गया है, लेकिन तिब्बत समाधान अधिनियम में यह भी स्पष्ट है कि इन वार्ताओं का उद्देश्य पक्षों के बीच "मतभेदों का समाधान" होना चाहिये।
तिब्बत के साथ भारत के संबंध कैसे हैं?
- यंगहसबैंड मिशन (1903-1904): कर्नल यंगहसबैंड के नेतृत्व में तिब्बत में ब्रिटिश सैन्य अभियान का उद्देश्य क्षेत्र में ब्रिटिश उपस्थिति स्थापित करना और बढ़ते रूसी प्रभाव का मुकाबला करना था।
- इसके परिणामस्वरूप तिब्बती सेनाओं के साथ संघर्ष हुआ, जिसकी परिणति ब्रिटिश विजय और साथ ही वर्ष 1904 के ल्हासा सम्मेलन पर हस्ताक्षर के रूप में हुई।
- आंग्ल-रूसी सम्मेलन (1907): इस समझौते का उद्देश्य औपनिवेशिक ब्रिटेन एवं रूस के बीच लंबित औपनिवेशिक विवादों का समाधान करना था।
- इस समझौते के अनुसार, दो महाशक्तियाँ चीनी सरकार की मध्यस्थता के बिना तिब्बत के साथ वार्ता नहीं करेंगी।
- तिब्बत के साथ भारत के संबंध: चीन-रूस संधि के बावजूद, भारत ने बौद्ध धर्म के प्रभाव के कारण तिब्बत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखा।
- भारत से तिब्बत तक बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ-साथ प्रभावशाली बौद्ध मठों की उपस्थिति ने दोनों क्षेत्रों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक एवं धार्मिक संबंधों को बढ़ावा दिया।
- भारत-तिब्बत सीमा: चीन-भारत सीमा विवाद विशेष रूप से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों में, भारत तथा चीन के बीच विवाद एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
- तिब्बत की स्थिति तथा भारत के साथ इसके ऐतिहासिक संबंध इस विवाद के केंद्र में हैं, दोनों देश विवादित क्षेत्रों पर संप्रभुता का दावा करते हैं।
- तिब्बत पर भारत का रुख: वर्ष 2003 से भारत और चीन के बीच संबंधों एवं व्यापक सहयोग के सिद्धांतों पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के हिस्से के रूप में मान्यता प्रदान की है।
- वर्ष 1959 में एक असफल विद्रोह के बाद भारत ने दलाई लामा को शरण दी थी।
चीन-तिब्बत विवाद की पृष्ठभूमि क्या है?
- तिब्बत की स्वतंत्रता का दावा:
- तिब्बत, तिब्बती पठार पर स्थित एक स्वायत्त क्षेत्र है, जिसकी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और धार्मिक परंपरा तिब्बती बौद्ध धर्म पर केंद्रित है।
- वर्ष 1913 में, 13वें दलाई लामा ने किंग राजवंश के पतन के बाद तिब्बत की वास्तविक स्वतंत्रता की घोषणा की और साथ ही यह दावा किया कि तिब्बत कभी भी चीन का हिस्सा नहीं था।
- हालाँकि वर्ष 1949 में स्थापित पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) सहित, लगातार चीनी सरकारों ने तिब्बत पर संप्रभुता का दावा किया है।
- चीनी आक्रमण एवं सत्रह सूत्रीय समझौता:
- वर्ष 1912 से वर्ष 1949 तक तिब्बत किसी भी चीनी सरकार के नियंत्रण में नहीं था, इस क्षेत्र पर दलाई लामा की सरकार का शासन था।
- वर्ष 1951 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने तिब्बत पर आक्रमण किया और साथ ही तिब्बती नेताओं को सत्रह सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये विवश किया गया, जिसने नाममात्र के लिये तिब्बती स्वायत्तता की गारंटी दी, लेकिन ल्हासा (तिब्बत की राजधानी) में चीनी सिविल एवं सैन्य मुख्यालय की स्थापना की अनुमति दी।
- दलाई लामा सहित तिब्बती लोगों ने इस समझौते की वैधता को अस्वीकार कर दिया है और इसे बलपूर्वक अधिकार तथा "सांस्कृतिक नरसंहार" का कृत्य माना है।
- वर्ष 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह और उसके परिणाम:
- तिब्बत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण वर्ष 1959 में एक बड़ा विद्रोह हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दलाई लामा और उनके साथ हज़ारों तिब्बती नागरिकों ने भारत में शरण ली।
- तिब्बती निर्वासितों ने भारत के धर्मशाला में स्थित एक निर्वासित सरकार, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) की स्थापना की।
- वर्ष 1959 के विद्रोह के पश्चात् चीन ने तिब्बत पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया, साथ ही भाषण, धर्म और प्रेस की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया, जिसमें जबरन गर्भपात, नसबंदी और जातीय हान चीनी (Ethnic Han Chinese) के माध्यम से जनसांख्यिकीय बदलाव जैसे मानवाधिकारों के हनन शामिल थे।
- चीन ने तिब्बत में बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश किया है, इन निवेशों को व्यापक रूप से क्षेत्र पर अपने नियंत्रण को मज़बूत करने की एक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
दलाई लामा:
- परंपरा: दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग्पा परंपरा से संबंधित हैं, जो तिब्बत में सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली परंपरा है।
- इतिहास: तिब्बती बौद्ध धर्म के इतिहास में केवल 14 दलाई लामा हुए हैं और पहले तथा दूसरे दलाई लामाओं को मरणोपरांत यह उपाधि दी गई थी। वर्तमान दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो हैं, जो इस वंश की 14वीं पीढ़ी से संबंधित हैं।
- आध्यात्मिक महत्त्व: ऐसा माना जाता है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर या चेनरेज़िग, करुणा के बोधिसत्व और तिब्बत के संरक्षक संत के प्रतीक हैं।
- बोधिसत्व सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिये बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित प्राणी हैं, जिन्होंने मानवता की मदद के लिये दुनिया में पुनर्जन्म लेने की प्रतिबद्धता जताई थी।
- दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया:
- पुनर्जन्म की खोज: दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया में पिछले दलाई लामा के पुनर्जन्म की पहचान करना शामिल है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता के रूप में कार्य करते हैं। यह खोज आमतौर पर मौजूदा दलाई लामा के निधन के बाद शुरू होती है।
- गेलुग्पा परंपरा के उच्च लामा और तिब्बती सरकार अगले दलाई लामा को खोजने के लिये ज़िम्मेदार होती हैं। यदि इसके लिये कई उम्मीदवारों की पहचान की जाती है, तो वास्तविक उत्तराधिकारी का निर्धारण करने के लिये लॉटरी निकालने के साथ एक सार्वजनिक समारोह आयोजित किया जाता है।
- मान्यता और प्रशिक्षण: चुने गए बच्चे को, जो सामान्यतः बहुत छोटा होता है, दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी जाती है। उसे कठोर आध्यात्मिक और शैक्षिक प्रशिक्षण दिया जाता है।
- भूमिका: तिब्बती बौद्ध धर्म में दलाई लामा की भूमिका में आध्यात्मिक और राजनीतिक नेतृत्व दोनों शामिल हैं। चयन प्रक्रिया तिब्बती सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अवधि: खोज में कई वर्ष लग सकते हैं; उदाहरण के लिये, वर्तमान (14वें) दलाई लामा को खोजने में 4 वर्ष का समय लगा।
- भौगोलिक दायरा: यह खोज आमतौर पर तिब्बत तक ही सीमित है। हालाँकि वर्तमान दलाई लामा ने यह सुझाव दिया है कि उनका पुनर्जन्म नहीं हो सकता है या यदि होगा भी, तो वह चीनी प्रशासन वाले देश में नहीं होगा।
चीन-तिब्बत मुद्दे पर वैश्विक रुख क्या है?
- चीन का रुख: चीन का दावा है कि तिब्बत 13वीं सदी से ही उसका हिस्सा रहा है और उसकी नीतियों का उद्देश्य इस क्षेत्र का विकास करना है। उसका तर्क है कि तिब्बत एक स्वायत्त क्षेत्र है जिसके पास महत्त्वपूर्ण अधिकार हैं तथा वह दलाई लामा पर स्वतंत्रता की मांग करने का आरोप लगाता है।
- चीन ने दलाई लामा के भविष्य के चयन पर चिंता व्यक्त की है। उसे डर है कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी को तिब्बत में उसकी सत्ता को चुनौती देने के लिये चुना जा सकता है।
- तिब्बती स्वायत्तता/स्वतंत्रता के लिये समर्थन: अमेरिका और कनाडा जैसे कुछ पश्चिमी देशों ने तिब्बती स्वायत्तता तथा मानवाधिकारों हेतु समर्थन व्यक्त किया है।
- दलाई लामा के नेतृत्व वाली निर्वासित तिब्बती सरकार, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (Central Tibetan Administration- CTA) को भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता नहीं दी गई है।
- अहस्तक्षेप और तटस्थता: कई देश, विशेषकर चीन के साथ संबंध रखने वाले देश, तटस्थ रुख बनाए रखते हैं तथा चीन के साथ राजनयिक एवं आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता देते हैं।
- नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देश चीन के साथ तनाव से बचने के लिये सतर्क रुख अपनाते हैं।
- मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) सहित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने तिब्बत में मानवाधिकारों के हनन के बारे में चिंता व्यक्त की है, जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और सांस्कृतिक दमन भी शामिल है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: चीन और तिब्बत के बीच चल रहे विवाद के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं? भारत के सामरिक हितों पर इस विवाद के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये तथा भारत की तिब्बत नीति हेतु आगे की राह बताइये। |
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