आसियान बैठक में भारत की भागीदारी
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के संगठन (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) की बैठकों के लिये भारत के विदेश मंत्री (EAM) की वियनतियाने, लाओस की यात्रा ने काफी ध्यान आकर्षित किया। इस यात्रा ने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के उद्देश्य से कई वैश्विक नेताओं के साथ उच्च-स्तरीय संवाद के लिये एक मंच प्रदान किया है।
ASEAN बैठक की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- भारत की विदेश नीति में ASEAN: विदेश मंत्री ने ASEAN को भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और इंडो-पैसिफिक विज़न की आधारशिला के रूप में महत्त्व दिया।
- वर्ष 2024 में भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी की घोषणा वर्ष 2014 में 9वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में की गई थी।
- इस नीति का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र के साथ वाणिज्य, संपर्क और क्षमता निर्माण, रणनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाना है।
- भारत ASEAN साझेदारी को अपने राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग के लिये महत्त्वपूर्ण मानता है।
- नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के आधार पर एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी और शांतिपूर्ण क्षेत्र को बढ़ावा देने में भारत के इंडो-पैसिफिक के लिये दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।
- फोकस क्षेत्र: लोगों से लोगों के बीच संपर्क और द्विपक्षीय सहयोग का विस्तार करने पर चर्चा हुई।
- इस यात्रा का उद्देश्य साझेदारी को मज़बूत करना और क्षेत्र में आपसी हितों को आगे बढ़ाना है।
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN) क्या है?
- परिचय: ASEAN एक क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 8 अगस्त 1967 को बैंकॉक, थाईलैंड में हुई थी।
- संगठन को ASEAN घोषणा के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया था।
- जिस पर शुरू में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड ने हस्ताक्षर किये थे।
- ASEAN का विस्तार करके इसमें ब्रुनेई दारुस्सलाम (वर्ष 1984), वियतनाम (वर्ष 1995), लाओस PDR और म्याँमार (वर्ष 1997) तथा कंबोडिया (वर्ष 1999) को शामिल किया गया।
- यह क्षेत्र विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है; माना जाता है कि वर्ष 2050 तक यह विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी।
- हाल के वर्षों में सदस्यों राष्ट्रों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना इस ब्लॉक की सबसे बड़ी सफलता रही है। इसने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, विश्व के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता करने में भी मदद की।
- ASEAN चार्टर (वर्ष 2008): ASEAN को एक कानूनी दर्जा और संस्थागत ढाँचा प्रदान किया गया। इसने मानदंडों, नियमों और मूल्यों को संहिताबद्ध किया, जिससे जवाबदेही एवं अनुपालन में वृद्धि हुई।
- ASEAN शिखर सम्मेलन: सर्वोच्च नीति-निर्माण निकाय (जिसमें ASEAN के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष या सरकार प्रमुख शामिल होते हैं) का वर्ष में दो बार सम्मलेन होता है।
- पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 1976 में इंडोनेशिया के बाली में आयोजित किया गया था।
- भारत-ASEAN संबंध:
- भारत ने वर्ष 1992 में ‘क्षेत्रीय वार्ता साझेदार’ के रूप में और उसके बाद वर्ष 1995 में "वार्ता साझेदार" के रूप में ASEAN के साथ औपचारिक साझेदारी शुरू की।
- साझेदारी को वर्ष 2012 में रणनीतिक साझेदारी और वर्ष 2022 में व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया गया।
- भारत ने वर्ष 1992 में ‘क्षेत्रीय वार्ता साझेदार’ के रूप में और उसके बाद वर्ष 1995 में "वार्ता साझेदार" के रूप में ASEAN के साथ औपचारिक साझेदारी शुरू की।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-से देश आसियान के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. 'रीज़नल काम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016) (a) G- 20 उत्तर: (b) |
भारत में मोज़ाम्बिक से तुअर दाल का आयात
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में भारत ने मोज़ाम्बिक से तुअर दाल का आयात पुनः शुरू कर दिया है, क्योंकि इसे “भारत विरोधी” समूह द्वारा बाधित किया गया था।
भारत में दालों के आयात की वर्तमान स्थिति क्या है?
- भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में 4.65 मिलियन मीट्रिक टन दालों का आयात किया (जो वर्ष 2022-23 में 2.53 मिलियन टन से अधिक है), जो वर्ष 2018-19 के बाद से सबसे अधिक है।
- मूल्य के संदर्भ में दालों का आयात 93% बढ़कर 3.75 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- वर्ष 2023-24 में भारत ने 7.71 लाख टन तुअर/अरहर का आयात किया, जिसमें से 2.64 लाख टन (एक तिहाई) मोज़ाम्बिक से आया। मलावी भी भारत को तुअर का एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।
- मोज़ाम्बिक ने भारत के साथ वर्ष 2025-26 तक 2 लाख टन तुअर/अरहर की दाल की आपूर्ति के लिये समझौता ज्ञापन किया है, जिससे उसे बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित होगी। इसी तरह मलावी के साथ एक समझौता ज्ञापन के तहत भारत को 0.50 लाख टन की वार्षिक आपूर्ति सुनिश्चित की गई है।
- लाल मसूर (Red Lentil) का आयात, विशेष रूप से कनाडा से, दोगुना होकर 1.2 मिलियन टन हो गया।
- पीले मटर (Yellow Peas) रूस और तुर्की से आयात किये जाते हैं।
- भारत सहित दक्षिण एशियाई देश आमतौर पर कनाडा, म्याँमार, ऑस्ट्रेलिया, मोज़ाम्बिक और तंजानिया से दालें आयात करते हैं।
भारत में दलहल उत्पादन की स्थिति क्या है?
- भारत विश्व में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%) तथा आयातक (14%) है।
- खाद्यान्न के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में दलहन की हिस्सेदारी लगभग 20% है तथा देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7-10% है।
- चना सबसे प्रमुख दलहन है जिसकी कुल उत्पादन में हिस्सेदारी लगभग 40% है, इसके बाद तुअर/अरहर की हिस्सेदारी 15 से 20% तथा उड़द/ब्लैक मेटपे एवं मूंग दलहन की हिस्सेदारी लगभग 8-10% है।
- हालाँकि दलहन का उत्पादन खरीफ तथा रबी दोनों सीज़न में किया जाता है, रबी सीज़न में उत्पादित दलहन का कुल उत्पादन में 60% से अधिक का योगदान है।
- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक शीर्ष पाँच दलहन उत्पादक राज्य हैं।
तुअर दाल के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- यह भारत में एक महत्त्वपूर्ण फलीदार (लैग्यूम) फसल और प्रोटीन स्रोत है।
- यह उष्णकटिबंधीय और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है।
- जलवायु आवश्यकताएँ:
- वर्षा: सालाना 600-650 मिमी. वर्षा की आवश्यकता होती है, जिसमें शुरुआत में नमी की स्थिति और फूल आने से लेकर फली बनने तक शुष्क स्थिति वांछनीय है।
- तापमान: यह वर्षा ऋतु के दौरान 26°C से 30°C तथा उसके बाद 17°C से 22°C के तापमान पर सबसे अच्छी तरह विकसित होता है।
- मृदा: इसके लिये रेतीली दोमट या दोमट मृदा आवश्यक है, हालाँकि यह विभिन्न प्रकार की मृदा के अनुकूल हो सकती है।
- यह फली विकास के दौरान कम विकिरण के प्रति संवेदनशील है, जिसके कारण यदि मानसून या बादल वाली स्थिति में फूल आते हैं तो फली उत्पादन खराब हो सकता है।
- प्रमुख रोगों में विल्ट, स्टेरिलिटी मोज़ेक रोग, फाइटोफ्थोरा ब्लाइट, अल्टरनेरिया ब्लाइट और पाउडरी फफूंद/पाउडरी मिल्ड्यू शामिल हैं।
- शीर्ष उत्पादक राज्य (2019): कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश
भारत में दलहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु सरकारी पहल
- नीतिगत समर्थन: किसानों को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये नीतिगत सुझाव मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) और हाल ही में लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (SFAC) के माध्यम से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान करके दालों की खरीद पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)-दालें
- अनुसंधान और किस्म विकास में ICAR की भूमिका
- प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: A |
खदानों से हम्पी को खतरा
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में कर्नाटक के विजयनगर ज़िले में स्थित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हम्पी के आस-पास के क्षेत्र में पत्थर उत्खनन गतिविधियाँ शुरू हो गई हैं।
- पर्यावरणविदों और पर्यटकों ने इन गतिविधियों के कारण इस स्थल की ऐतिहासिक तथा पारिस्थितिक अखंडता पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चिंता जताई है।
विजयनगर साम्राज्य और हम्पी के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- विजयनगर साम्राज्य:
- विजयनगर साम्राज्य या "विजय का शहर" की स्थापना वर्ष 1336 में हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी, जो पहले मुहम्मद-बिन-तुगलक की सेना में सेवा कर चुके थे।
- वे दिल्ली सल्तनत से अलग हो गये और कर्नाटक में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की, जिसका राजधानी शहर विजयनगर तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित था।
- उनके राज्य की स्थापना में समकालीन विद्वान और संत विद्यारण्य (Saint Vidyaranya) की सहायता और प्रेरणा मिली थी।
- विजयनगर साम्राज्य पर संगम, सलुवा, तुलुवा और अराविदु नामक चार महत्त्वपूर्ण राजवंशों का शासन था।
- तुलुव वंश के कृष्णदेवराय (1509-29) विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक थे।
- उन्होंने तेलुगु में राजव्यवस्था पर एक ग्रंथ की रचना की जिसे अमुक्तमाल्यदा (Amuktamalyada) के नाम से जाना जाता है।
- हम्पी:
- यह कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले में स्थित है, जिसमें विजयनगर साम्राज्य की राजधानी (14वीं-16वीं शताब्दी ई.) के अवशेष शामिल हैं।
- हम्पी के मंदिरों की एक अनूठी विशेषता यह है कि यहाँ की चौड़ी रथ सड़कें स्तंभयुक्त मंडपों की पंक्ति से घिरी हुई हैं।
- इसके प्रसिद्ध स्थलों में कृष्ण मंदिर परिसर, नरसिंह, गणेश, हेमकूट मंदिर समूह, अच्युतराय मंदिर परिसर, विठ्ठल मंदिर परिसर, पट्टाभिराम मंदिर परिसर, लोटस महल परिसर आदि शामिल हैं।
- हम्पी को वर्ष 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
- वर्ष 1565 में दक्कन सल्तनतों के गठबंधन द्वारा विजयनगर साम्राज्य को पराजित कर दिया गया (तालिकोटा का युद्ध), जिसके बाद हम्पी खंडहर बन गया।
विट्ठल मंदिर:
- इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के शासकों में से एक देवराय द्वितीय के शासनकाल में हुआ था।
- यह विट्ठल (भगवान विष्णु) को समर्पित है और इसे विजय विट्ठल मंदिर भी कहा जाता है।
- इसमें पत्थर के रथ और संगीतमय स्तंभ जैसे उल्लेखनीय आकर्षण हैं, जिसमें पत्थर के रथ को 50 रुपए के नोट पर दर्शाया गया है।
हम्पी रथ:
- यह भारत के तीन प्रसिद्ध पत्थर के रथों में से एक है, अन्य दो कोणार्क (ओडिशा) और महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में हैं।
- इसे 16वीं शताब्दी में विजयनगर के शासक राजा कृष्णदेवराय के आदेश पर बनाया गया था।
- यह भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित एक मंदिर है।
विरुपाक्ष मंदिर:
- यह कर्नाटक के मध्य हम्पी में 7वीं शताब्दी का शिव मंदिर है।
- भगवान विरुपाक्ष जिन्हें पंपापति भी कहा जाता है, विरुपाक्ष मंदिर के मुख्य देवता हैं।
- इसे विजयनगर शैली की वास्तुकला में बनाया गया था और विजयनगर साम्राज्य के शासक देव राय द्वितीय के अधीन नायक लखन दंडेश ने इसका निर्माण कराया था।
विजयनगर मंदिर वास्तुकला शैली:
- विविध संरचनाएँ: इसमें मंदिर, अखंड मूर्तियाँ, महल, आधिकारिक इमारतें, शहर, सिंचाई प्रणालियाँ, बावड़ियाँ और तालाब शामिल थे।
- शैलियों का मिश्रण: वास्तुकला में हिंदू और इस्लामी तत्त्वों का अनूठा मिश्रण था।
- मंदिरों की विशेषताएँ थीं:
- मंदिरों की दीवारें नक्काशी और ज्यामितीय पैटर्न से अत्यधिक सुसज्जित थीं।
- अब चारों तरफ गौपुरम बनाए गए।
- अखंड चट्टान के स्तंभ
- सामान्यतः मंदिर के स्तंभों पर एक पौराणिक प्राणी याली (घोड़ा) उकेरा जाता है
- प्रत्येक मंदिर में एक से अधिक मंडप बनाए गए थे। केंद्रीय मंडप को कल्याण मंडप के रूप में जाना जाने लगा।
- मंदिर परिसर के अंदर धर्मनिरपेक्ष इमारतों की अवधारणा भी इसी अवधि के दौरान शुरू की गई थी।
- उल्लेखनीय संरचनाओं में महानवमी टिब्बा, कल्याण मंडप और हज़ारा राम मंदिर शामिल हैं। सजावटी तत्त्वों में अक्सर घोड़े और राया गोपुरम (भव्य प्रवेश द्वार टॉवर) होते थे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2021) (a) अजंता गुफाएँ, वाघोरा नदी की घाटी में स्थित हैं। उत्तर: (a) |
जम्मू-कश्मीर में शरणार्थियों को मिला भूमि का स्वामित्व
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में जम्मू और कश्मीर (J&K) सरकार ने पश्चिमी पाकिस्तान शरणार्थियों (West Pakistan Refugees- WPR) तथा वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान विस्थापित व्यक्तियों को मालिकाना अधिकार प्रदान किये।
- पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी (WPR) वे व्यक्ति हैं जो वर्ष 1947 में विभाजन के दौरान पश्चिमी पाकिस्तान से तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य (अब केंद्रशासित प्रदेश) में चले आए थे और मुख्य रूप से जम्मू संभाग के जम्मू, कठुआ तथा राजौरी ज़िलों में बस गए थे।
- यह निर्णय क्षेत्र में विधानसभा चुनाव कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 30 सितंबर, 2024 की समय-सीमा से पहले लिया गया।
- विस्थापितों को राज्य की भूमि पर अधिकार प्रदान करके भेदभाव समाप्त हो गया तथा उनके अधिकारों को पाकिस्तान अधिकृत जम्मू और कश्मीर (Pakistan Occupied Jammu and Kashmir- PoJK) से विस्थापित व्यक्तियों के अधिकारों के समान कर दिया गया।
- इससे पहले, WPR परिवारों को "गैर-राज्य विषय" माना जाता था और वर्ष 1947 के विभाजन के समय निवासी नहीं होने के कारण वे जम्मू तथा कश्मीर में मत नहीं दे सकते थे।
- 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उन्हें अधिवास का दर्जा और मतदान का अधिकार दिया गया।
अधिक पढ़ें: अनुच्छेद 370 हटाने पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय।
आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच डोनर एग्रीमेंट
स्रोत: पी.आई.बी.
आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जुलाई 2024 में जिनेवा में WHO मुख्यालय में आयोजित एक हस्ताक्षर समारोह में एक दाता समझौते (Donor Agreement) पर हस्ताक्षर किये।
- यह समझौता गुजरात के जामनगर में WHO ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर (GTMC) की गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिये वित्तीय शर्तों की रूपरेखा तैयार करता है।
- इसमें WHO ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर को साक्ष्य-आधारित परंपरागत पूरक और एकीकृत चिकित्सा (Traditional Complementary and Integrative Medicine- TCIM) के लिये ज्ञान के एक प्रमुख स्रोत के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों और धरती के स्वास्थ्य तथा कल्याण को आगे बढ़ाना है।
- इस सहयोग के माध्यम से, भारत गुजरात के जामनगर में WHO ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर (GTMC) के संचालन का समर्थन करने के लिये 10 वर्षों (2022-2032) की अवधि में 85 मिलियन अमेरीकी डॉलर का दान देगी।
- गुजरात के जामनगर में WHO ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर की स्थापना समग्र विश्व में पारंपरिक चिकित्सा के पहले और एकमात्र वैश्विक आउट-पोस्ट सेंटर (कार्यालय) को चिह्नित करता है।
- पारंपरिक चिकित्सा में आरोग्य रहने और शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार के लिये उपयोग की जाने वाली विभिन्न संस्कृतियों के ज्ञान, कौशल तथा अभ्यास शामिल हैं।
- भारत में पारंपरिक चिकित्सा की छह मान्यता प्राप्त पद्धतियाँ हैं अर्थात् आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी, योग, प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी।
सिरेमिक
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में सिरेमिक ने अपने विविध अनुप्रयोगों और ऐतिहासिक महत्त्व के लिये ध्यान आकर्षित किया है। ग्रीक शब्द 'केरामोस' से व्युत्पन्न जिसका अर्थ है 'कुम्हार की मिट्टी' अर्थात् सिरेमिक 25,000 से अधिक वर्षों से मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रहा है, की प्राचीन कलाकृतियाँ सिंधु घाटी और तमिलनाडु के कीझाड़ी में पाई गई हैं।
- सिरेमिक न तो धात्विक है और न ही कार्बनिक; यह एक कठोर, रासायनिक रूप से गैर-अभिक्रियाशील पदार्थ है जो क्रिस्टलीय, काँच जैसा या दोनों प्रकृति का हो सकता है और ऊष्मा की सहायता से इसे निर्मित किया जा सकता है।
- सिरेमिक उच्च तापमान को सहन करने, रासायनिक क्षरण का प्रतिरोध करने और अपनी कठोरता के लिये जाने जाते हैं, लेकिन वे भंगुर भी होते हैं, आघात/अपरूपण तनाव के तहत अतिसंवेदनशील होते हैं और टूट जाते हैं।
- सिरेमिक के सूक्ष्म गुणों के अध्ययन को सेरामोग्राफी के रूप में जाना जाता है।
- सिरेमिक में उच्च तापमान सुपरकंडक्टिविटी की खोज ने वर्ष 1987 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता।
- गुजरात का मोरबी ज़िला विश्व के दूसरे सबसे बड़े सिरेमिक उत्पादन क्लस्टर (चीन अग्रणी सिरेमिक टाइल निर्माता है) का गढ़ है, जहाँ 1,000 से अधिक इकाइयाँ, 50,000 करोड़ रुपए का वार्षिक कारोबार और वर्ष 2022-23 में 12,000 करोड़ रुपए से अधिक का निर्यात हुआ है, जो राज्य की तीव्र आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- वर्ष 2013 में, भारत ने 55 मिलियन वर्ग मीटर टाइल का निर्यात किया। वर्ष 2023 तक, यह निर्यात बढ़कर 589.5 मिलियन वर्ग मीटर हो गया, जिसमें से आधे से अधिक एशिया के बाहर भेजे गए, जिससे भारत विश्व भर में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया।
- आधुनिक अनुप्रयोग: वायुमंडलीय पुनर्प्रवेश के दौरान हीट शील्ड के रूप में अंतरिक्ष शटल में प्रयोग किया जाता है, ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये माइक्रोवेव भट्टियों में काम आता है, अपघर्षक के रूप में प्रयोग किया जाता है, वैरिस्टर व अर्द्धचालकों के उत्पादन में, परमाणु ईंधन के रूप में, लड़ाकू विमान की खिड़कियों में उपयोग किया जाता है तथा यह टोमोग्राफिक स्कैनर में भी महत्त्वपूर्ण है।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय
हाल ही में 2 अगस्त को आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की जयंती के रूप में मनाया गया।
आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय:
- प्रफुल्ल चंद्र राय (1861-1944) एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और शिक्षक थे तथा "आधुनिक" भारतीय रासायनिक शोधकर्त्ताओं में से एक थे। इन्हें "भारतीय रसायन विज्ञान के जनक" के रूप में जाना जाता है।
- मूल रूप से एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में प्रशिक्षित, उन्होंने कई वर्षों तक कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय में काम किया।
कार्य:
- उन्होंने वर्ष 1895 में स्थिर यौगिक मर्क्यूरस नाइट्राइट (Mercurous Nitrite) की खोज की।
- एक कट्टर राष्ट्रवादी राय बंगाली उद्यम को आगे बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध थे और उन्होंने वर्ष 1901 में बंगाल केमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स की स्थापना की।
- राय वर्ष 1905 के स्वदेशी आंदोलन के सक्रिय समर्थक थे और वे विदेशी वस्तुओं के प्रयोग को भारत के विरुद्ध राजद्रोह मानते थे।
- वह एक सच्चे तर्कवादी थे और पूरी तरह से जाति व्यवस्था व अन्य तर्कहीन सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थे। उन्होंने अपनी मृत्यु तक समाज सुधार के इस कार्य को जारी रखा।
पुरस्कार एवं सम्मान:
- ब्रिटिश सरकार द्वारा सम्मानित, उन्हें भारतीय साम्राज्य का साथी (Companion of the Indian Empire- CIE) की तथा उसके बाद वर्ष 1919 में नाइटहुड की उपाधि दी गई।
- वर्ष 1920 में उन्हें भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
- 2 अगस्त, 1961 को उनकी जयंती मनाने के लिये भारतीय डाक द्वारा उन पर एक डाक टिकट जारी किया गया था।
अधिक पढ़ें: आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय
खान मंत्रालय ने किये खनिज उत्पादन के आँकड़े प्रकाशित
स्रोत: पी.आई.बी.
खान मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में खनिज उत्पादन के आँकड़े प्रकाशित किये।
- वित्त वर्ष 2023-24 में कुल MCDR खनिज उत्पादन में लौह अयस्क (275 MMT) और चूना पत्थर (450 MMT) का योगदान लगभग 80% होगा।
- भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा एल्युमीनियम उत्पादक, तीसरा सबसे बड़ा चूना पत्थर उत्पादक तथा चौथा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक है।
- विश्व स्तर पर, चीन एल्युमीनियम और चूना पत्थर का सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि ऑस्ट्रेलिया लौह अयस्क का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- ओडिशा भारत का सबसे बड़ा एल्युमीनियम अयस्क और लौह अयस्क उत्पादक राज्य है। भारत में चूना पत्थर उत्पादन में राजस्थान की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।
- एल्युमीनियम अयस्क, लौह अयस्क और चूना पत्थर के उत्पादन में निरंतर वृद्धि ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे, निर्माण, ऑटोमोटिव तथा मशीनरी जैसे उपयोगकर्त्ता क्षेत्रों में निरंतर मज़बूत आर्थिक गतिविधि की ओर इंगित करती है।
- खनिज उत्पादन की रिपोर्ट 19 राज्यों से प्राप्त हुई, जिनमें से लगभग 97.04% खनिज उत्पादन का बड़ा हिस्सा केवल 7 राज्यों तक ही सीमित था।
- हिस्सेदारी के अनुसार खनिज उत्पादन का क्रम - ओडिशा (44.11%), छत्तीसगढ़ (17.34%), राजस्थान (14.10%), कर्नाटक (13.24%), झारखंड (4.36%), मध्य प्रदेश (2.44%), और महाराष्ट्र (1.45%)।
- शेष 12 राज्यों की संचयी हिस्सेदारी कुल मूल्य के 3% से भी कम है।
अधिक पढ़ें: खनिज उत्पादन में वृद्धि