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आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय

  • 14 Jul 2022
  • 4 min read

हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने दिल्ली के रसायन विज्ञान विभाग में "रसायनज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय के योगदान" पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु  

  • परिचय:
    • आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की 161वीं जयंती पर आजादी का अमृत महोत्सव के तहत 2-3 अगस्त, 2022 को सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
    • रसायन विज्ञान विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है और विज्ञान भारती (VIBHA) इंद्रप्रस्थ विज्ञान भारती, नई दिल्ली तथा संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के साथ संयुक्त रूप से इसका आयोजन करेगा।
  • उद्देश्य:
    • समाज में आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय की विरासत और योगदान का विस्तार करना, जिसका उद्देश्य इसके महत्त्व के साथ-साथ प्राचीन रसायन विज्ञान के बारे में सामान्य जागरूकता व पृष्ठभूमि को बढ़ाना है।
      • यह अप्रत्याशित है कि सरकार वर्ष 1980 के दशक की पारंपरिक अवधारणा से शिक्षा प्रणाली को अद्यतन कर रही है ताकि भारत की परंपराओं और मूल्य प्रणालियों पर निर्माण करते हुए SDG 4 (गुणवत्ता शिक्षा) सहित 21वीं सदी की शिक्षा के आकांक्षी लक्ष्यों के साथ संरेखित किया जा सके।

आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय

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  • प्रफुल्ल चंद्र राय (1861-1944) एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और शिक्षक थे तथा "आधुनिक" भारतीय रासायनिक शोधकर्त्ताओं में से एक थे। इन्हें "भारतीय रसायन विज्ञान के पिता" के रूप में जाना जाता है,
  • मूल रूप से एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में प्रशिक्षित, उन्होंने कई वर्षों तक कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय में काम किया।
  • उन्होंने वर्ष 1895 में स्थिर यौगिक मर्क्यूरस नाइट्राइट की खोज की।
  • ब्रिटिश सरकार ने सबसे पहले उन्हें भारतीय साम्राज्य का साथी (CIE) की शाही उपाधि से सम्मानित किया; और फिर वर्ष 1919 में नाइटहुड से।
  • वर्ष 1920 में उन्हें भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
  • एक राष्ट्रवादी के रूप में वह चाहते थे कि बंगाली उद्यम की दुनिया में आएंँ।
    • उन्होंने खुद बंगाल केमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स (1901) नामक एक केमिकल फर्म की स्थापना करके एक मिसाल कायम की।
  • वह एक सच्चे तर्कवादी थे और पूरी तरह से जाति व्यवस्था व अन्य तर्कहीन सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ थे। उन्होंने अपनी मृत्यु तक समाज सुधार के इस कार्य को जारी रखा।
  • 2 अगस्त, 1961 को उनकी जयंती मनाने के लिये भारतीय डाक द्वारा उन पर एक डाक टिकट जारी किया गया था।

स्रोत : पी.आई.बी.

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