एडिटोरियल (26 Nov, 2024)



भारत के शहरी परिदृश्य में सुधार

यह संपादकीय 25/11/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India’s urban infrastructure financing, needs and reality” पर आधारित है। इस लेख में भारत की शहरी आबादी को समायोजित करने की बढ़ती चुनौती को उजागर किया गया है, जिसके वर्ष 2050 तक 800 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है, जिसके लिये बुनियादी अवसंरचना में ₹70 लाख करोड़ निवेश की आवश्यकता है। यह सीमित सरकारी खर्च, स्थिर नगरपालिका वित्त और घटती सार्वजनिक-निजी भागीदारी की बाधाओं को रेखांकित करने के साथ ही सतत् शहरी विकास के लिये संरचनात्मक सुधारों तथा सहयोगी शासन के आग्रह पर आधारित है।

प्रिलिम्स के लिये:

74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, शहरी स्थानीय निकाय, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम (RERA), 2016, राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, शहरी अपशिष्ट प्रबंधन, नगरीय ऊष्मा द्वीप, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम, दीन दयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन 

मेन्स के लिये:

भारत के शहरी परिदृश्य के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे, भारत के शहरी परिदृश्य को बढ़ाने के लिये अपनाए जा सकने वाले उपाय। 

भारत की शहरी जनसंख्या तीन दशकों में दोगुनी होकर 800 मिलियन हो जाएगी, जिसके लिये वर्ष 2036 तक बुनियादी अवसंरचना में 70 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता होगी। हालाँकि सीमित सरकारी खर्च, स्थिर नगरपालिका वित्त और घटती सार्वजनिक-निजी भागीदारी प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है। इस संकट से निपटने के लिये संरचनात्मक सुधार, सुदृढ़ परियोजना पाइपलाइन, डिजिटल बुनियादी अवसंरचना का अंगीकरण और सहयोगी शासन की आवश्यकता है। अगले दशक में रणनीतिक हस्तक्षेप भारत के शहरी परिदृश्य को एक संधारणीय और समावेशी पारिस्थितिकी तंत्र में बदलने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत में शहरी परिदृश्य को नियंत्रित करने वाले नियामक संरचना क्या हैं?

  • विधिक संरचना: 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1992) नगर पालिकाओं और नगर निगमों जैसे शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की भूमिका को परिभाषित करके शहरी शासन के लिये आधार प्रदान करता है। 
    • इसमें शहरी नियोजन, जल आपूर्ति, स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे कार्यों को शहरी स्थानीय निकायों को सौंपने का प्रावधान है।
    • नगर निगम शहरी क्षेत्रों के प्राथमिक नियामक हैं जो स्थानीय सेवाओं, अपशिष्ट प्रबंधन, कराधान और सार्वजनिक सुविधाओं के लिये ज़िम्मेदार हैं। 
      • राज्य नगरपालिका अधिनियमों के तहत उन्हें शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
  • शहरी नियोजन और विकास प्राधिकरण: शहरी नियोजन का कार्य शहरी विकास प्राधिकरणों (जैसे- दिल्ली विकास प्राधिकरण) और राज्य नगर नियोजन विभागों द्वारा किया जाता है।
    • ये निकाय भूमि उपयोग, बुनियादी अवसंरचना के विकास और ज़ोनिंग कानूनों को विनियमित करने के लिये मास्टर प्लान तथा विकास योजनाएँ तैयार करते हैं।
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली का मास्टर प्लान, 2041 मिश्रित भूमि उपयोग और सतत् शहरी विकास पर केंद्रित है।
  • पर्यावरण विनियम: शहरी पर्यावरण शासन निम्नलिखित कानूनों द्वारा निर्देशित होता है:
  • भूमि और आवास विनियमन: भूमि उपयोग तथा विकास कार्य राज्य भूमि राजस्व अधिनियम, शहरी भूमि (सीमा और विनियमन) अधिनियम और स्थानीय ज़ोनिंग कानूनों द्वारा शासित होते हैं।
  • शहरी परिवहन विनियमन: शहरी गतिशीलता को केंद्रीय और राज्य कानूनों जैसे मोटर यान अधिनियम, 1988 के माध्यम से विनियमित किया जाता है।
  • शहरी क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन: शहरी आपदा तैयारी को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत विनियमित किया जाता है, जिसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) जैसी एजेंसियाँ ​​महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

भारत के शहरी परिदृश्य के विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • शहरी बुनियादी अवसंरचना की कमी: भारतीय शहर जर्जर बुनियादी अवसंरचना से ग्रस्त हैं, जो तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के साथ तालमेल बैठाने में असमर्थ हो गए हैं।
    • सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि दिसंबर 2023 तक 431 बुनियादी अवसंरचना विकास परियोजनाओं, जिनमें से प्रत्येक में 150 करोड़ रुपए या उससे अधिक का निवेश है, की लागत में 4.82 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है।
    • अत्यधिक कार्यभार के कारण सड़कें, पुल और परिवहन प्रणालियाँ विफल हो जाती हैं, जिससे व्यवधान, दुर्घटनाएँ तथा मौतें होती हैं। 
    • हाल की घटनाएँ जैसे कि दिल्ली हवाई अड्डे पर छत गिरने की घटना (जुलाई 2024), बुनियादी अवसंरचना में अनुकूलन की सख्त ज़रूरत को उजागर करती हैं। 
  • वायु प्रदूषण: भारत के शहरी क्षेत्रों में वाहनों से होने वाले उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों, निर्माण जनित धूल और पराली दहन के कारण गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या है। 
    • विश्व के 100 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत के हैं। दिल्ली जैसे शहरों में प्रायः AQI का स्तर खतरनाक श्रेणी में दर्ज किया जाता है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और आर्थिक उत्पादकता पर असर पड़ता है। 
    • नवंबर 2024 में, असहनीय प्रदूषण स्तर के कारण दिल्ली के स्कूल कई दिनों तक बंद रहे। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) जैसी पहल आशाजनक तो हैं, लेकिन उन्हें सख्ती से लागू करने की ज़रूरत है।
  • जल की कमी और प्रबंधन के मुद्दे: भारत के शहरी क्षेत्र अत्यधिक जल दोहन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। 
    • बंगलूरू में वर्ष 2024 और चेन्नई में वर्ष 2019 का जल संकट आसन्न शहरी जल आपदा की कटु स्मृति है। 
    • शहरी उपयोगिताएँ अकुशल हैं, वितरण के दौरान जल की अत्यधिक हानि होती है तथा वर्षा जल संचयन अपर्याप्त होता है। 
  • आवास और झुग्गी बस्तियों का प्रसार: गाँवों से शहरों की ओर बढ़ते प्रवास के परिणामस्वरूप आवास की कमी बढ़ गई है, जिससे अनेक लोग अनौपचारिक बस्तियों या झुग्गी बस्तियों में चले गए हैं। 
    • इन क्षेत्रों में स्वच्छता, स्वच्छ जल और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, जिससे गरीबी तथा बीमारी का कुचक्र जारी है। 
    • झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली एक तिहाई से अधिक आबादी भारत के 46 मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों में निवास करती है। महानगरों के मामले में, मुंबई में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों का अनुपात सर्वाधिक (इसकी आबादी का 41.3%) है।
  • यातायात भीड़ और सार्वजनिक परिवहन की कमी: निजी वाहन स्वामित्व में वृद्धि और सार्वजनिक परिवहन की अपर्याप्तता के कारण शहरी यातायात भीड़ बदतर होती जा रही है। 
    • भारत में बंगलूरु और पुणे विश्व के शीर्ष 10 सबसे खराब यातायात प्रभावित शहरों में शामिल हैं।
    • बंगलूरू जैसे शहरों में यात्रा का अधिकतम समय घंटों तक चल सकता है, जिससे उत्पादकता में कमी आती है और ईंधन की खपत बढ़ जाती है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन संकट: शहरी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ बढ़ते ठोस अपशिष्ट उत्पादन से निपटने के लिये संघर्ष कर रही हैं तथा अनुचित निपटान प्रथाओं के कारण पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। 
    • ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष 62 मिलियन टन से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है। 
      • कुल उत्पन्न अपशिष्ट में से केवल 43 मीट्रिक टन ही एकत्रित किया जाता है, जिसमें से 12 मीट्रिक टन अपशिष्ट की निपटान से पूर्व सफाई की जाती है तथा शेष 31 मीट्रिक टन को कचरागृहों में ही फेंक दिया जाता है। 
    • दिल्ली के गाज़ीपुर जैसे विशाल लैंडफिल का विस्तार जारी है, जिससे ज़हरीली गैसें मुक्त हो रही हैं और जल निकाय प्रदूषित हो रहे हैं। 
  • आर्थिक असमानताएँ और शहरी गरीबी: शहरी क्षेत्रों में आर्थिक असमानता बढ़ रही है, जीवन-यापन की लागत बढ़ रही है और निम्न आय वर्ग के लिये रोज़गार का सृजन अपर्याप्त है। 
    • शहरी अनौपचारिक क्षेत्र, जिसमें बहुत बड़ा कार्यबल कार्यरत है, में प्रायः सामाजिक सुरक्षा या स्थिर वेतन का अभाव होता है। 
    • विशेषकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में मुद्रास्फीति ने शहरी परिवारों को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिससे उनकी प्रयोज्य आय और व्यय शक्ति कम हो गई है।
    • CMIE के अनुसार, वर्ष 2024 में शहरी बेरोज़गारी 8.7% होने का अनुमान है। 
  • जलवायु परिवर्तन की सुभेद्यता: भारत के 85% से अधिक ज़िले बाढ़, अनावृष्टि और चक्रवात जैसी चरम जलवायु घटनाओं के प्रति संवेदनशील हैं।
    • शहरी नियोजन में प्रायः समुत्थानशील उपायों की अनदेखी की जाती है, जैसा कि चेन्नई और मुंबई की बाढ़ में देखा गया, जो अनियोजित विकास तथा प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों पर अतिक्रमण के कारण और भी बदतर हो गई। 
    • बढ़ते तापमान और नगरीय ऊष्मा द्वीप के कारण जीवन की स्थिति खराब हो रही है, विशेषकर गरीबों के लिये। 
    • भारत में वर्ष 2024 के प्रारंभिक नौ महीनों में 93% दिन चरम मौसम दर्ज किया गया, जिसके कारण 3,238 मौतें और 3.2 मिलियन हेक्टेयर से अधिक फसलें बर्बाद होने का अनुमान किया गया है।  
  • शासन और नीति कार्यान्वयन अंतराल: भारत में शहरी शासन खंडित प्राधिकरण, अतिव्यापी अधिकार क्षेत्र और एजेंसियों के बीच अपर्याप्त समन्वय से ग्रस्त है। 
    • नगर निकायों में प्रायः वित्तीय स्वायत्तता का अभाव होता है, जिससे महत्त्वपूर्ण विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है। 
    • स्मार्ट सिटी मिशन जैसे महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रमों के बावजूद नौकरशाही विलंब और सीमित क्षमता के कारण प्रगति धीमी रही है। 
    • इसके अलावा, शहरी भारत देश के आर्थिक उत्पादन का लगभग 60% संचालित करता है, फिर भी नगर निगम वित्तीय रूप से संघर्ष करते हैं, संपत्ति कर राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.12% है।
  • शहरी विस्तार और हरित आवरण का ह्रास: अनियमित शहरी विस्तार के कारण वनों, आर्द्रभूमि और कृषि भूमि पर अतिक्रमण हुआ है, जिससे हरित आवरण एवं जैवविविधता में कमी आई है। 
    • यह अनियंत्रित वृद्धि कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाती है तथा नगरीय ऊष्मा द्वीप बनाती है, जिससे जलवायु प्रभाव और भी बदतर हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 1973 के बाद से बंगलूरू का शहरीकृत क्षेत्र 1055% तक बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप वनस्पति में 88% की कमी आई है।
  • शहरी अपराध और सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: चोरी, साइबर अपराध और लैंगिक हिंसा सहित शहरी अपराध दर में वृद्धि से शहर के निवासियों की सुरक्षा को खतरा है। 
    • पर्याप्त पुलिस व्यवस्था का अभाव, निम्न स्तरीय शहरी व्यवस्था और कमज़ोर कानूनी प्रवर्तन इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं। 
    • NCRB की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर के 19 प्रमुख शहरों में महिलाओं के साथ हुए अपराधों (48755 दर्ज) में से 29.04% दिल्ली में हुए।
  • सांस्कृतिक क्षरण और शहरी पहचान का नुकसान: तीव्र शहरीकरण के कारण प्रायः सांस्कृतिक विरासत, पारंपरिक वास्तुकला और स्थानीय पहचान का ह्रास होता है।
    • जेंट्रीफिकेशन से स्वदेशी समुदाय विस्थापित हो जाते हैं, जबकि सामान्य शहरी डिज़ाइन स्थानीय लोकाचार को प्रतिबिंबित करने में विफल हो जाते हैं। 
    • वाराणसी और जयपुर जैसे शहरों को आधुनिकीकरण तथा विरासत संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • उदाहरण के लिये, राजस्थान की कालबेलिया और घूमर जैसी लोक कलाएँ धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं, क्योंकि इन्हें करने वाले लोग शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं।

शहरी विकास से संबंधित प्रमुख सरकारी पहल क्या हैं?

भारत के शहरी परिदृश्य को बेहतर बनाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • शहरी शासन और विकेंद्रीकरण को मज़बूत करना: शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को शहरी विकास योजनाओं को प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने के लिये वित्तीय स्वायत्तता और क्षमता निर्माण के माध्यम से सशक्त बनाया जाना चाहिये। 
    • शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बनाने के लिये 74वें संविधान संशोधन को पूर्णतः लागू करने की आवश्यकता है। 
      • 15वें वित्त आयोग के अंतर्गत नगर निकायों के लिये हाल ही में किया गया वित्तपोषण उत्प्रेरक का काम कर सकता है। 
  • शहरी बुनियादी अवसंरचना का आधुनिकीकरण: सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करने के लिये व्यापक बुनियादी अवसंरचना का ऑडिट और उन्नयन आवश्यक है। 
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परिवहन, उपयोगिताओं और आवास के लिये निवेश आकर्षित कर सकती है। उदाहरण के लिये, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC) शहरी विकास में सफल PPP मॉडल को दर्शाता है। 
    • स्वचालित यातायात प्रबंधन प्रणालियों जैसे स्मार्ट सिटी बुनियादी अवसंरचना पर बल देने से शहरी परिचालन को अनुकूलित किया जा सकता है। 
    • सत्र 2023-24 के बजट के अंतर्गत शहरी अवसंरचना विकास निधि (UIDF) शहर-स्तरीय सुधारों के वित्तपोषण के लिये एक समर्पित तंत्र प्रदान करता है।
  • किफायती आवास और झुग्गी बस्ती पुनर्वास को बढ़ावा देना: निजी क्षेत्र के सहयोग से प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी किफायती आवास योजनाओं का विस्तार करके आवास की कमी को पूरा किया जा सकता है। 
    • समावेशी ज़ोनिंग नीतियाँ और डेवलपर्स के लिये किफायती इकाइयों के निर्माण हेतु प्रोत्साहन महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • झुग्गी पुनर्वास कार्यक्रमों को मुंबई की धारावी परियोजना की तरह यथास्थान पुनर्विकास मॉडल अपनाना चाहिये ताकि न्यूनतम विस्थापन सुनिश्चित हो सके। 
  • संधारणीय शहरी गतिशीलता में निवेश: शहरों को निजी वाहनों पर निर्भरता कम करने के लिये मेट्रो प्रणाली, उपनगरीय रेल नेटवर्क और सार्वजनिक बस सेवाओं का विस्तार करना होगा।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों और साइकिल-शेयरिंग कार्यक्रमों के साथ लास्ट-माईल कनेक्टिविटी को एकीकृत करने से अभिगम में वृद्धि हो सकती है। 
    • बंगलूरू का नया मेट्रो विस्तार और दिल्ली का इलेक्ट्रिक बस फ्लीट प्रभावशाली परिवर्तन की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। 
    • स्मार्ट यातायात प्रबंधन प्रणालियों के साथ संयोजन में कंजेशन शुल्क से यातायात की बाधाओं को कम किया जा सकता है।
  • ठोस और ई-अपशिष्ट प्रबंधन को आगे बढ़ाना: पुनर्चक्रण विलंब में सुधार लाने और लैंडफिल पर निर्भरता को कम करने के लिये वार्ड स्तर पर विकेंद्रीकृत अपशिष्ट पृथक्करण प्रणालियों को लागू किया जाना चाहिये। 
    • उन्नत प्रौद्योगिकियाँ जैसे अपशिष्ट से ऊर्जा बनाने वाले संयंत्र और पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ बढ़ते अपशिष्ट की मात्रा का प्रबंधन कर सकती हैं। 
    • ई-अपशिष्ट के उत्पादन को रोकने के लिये विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) कानूनों को लागू किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कंपनियाँ जर्जर/अनुपयोगी हो चुके इलेक्ट्रॉनिक्स को वापस ले लें।
    • विकेंद्रीकृत कम्पोस्ट निर्माण में बेंगलुरु की सफलता एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में कार्य करती है। 
  • जलवायु-अनुकूल शहरी नियोजन: शहरी नियोजन में बाढ़, हीट वेव्स और बढ़ते समुद्री स्तर के जोखिमों को कम करने के लिये जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को एकीकृत करना होगा। 
    • प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों और आर्द्रभूमि का पुनर्भरण करने से (जैसा कि चेन्नई की पुनर्स्थापना परियोजनाओं में देखा गया है) शहरी बाढ़ को कम किया जा सकता है। 
    • हरित छतें, वर्टीकल गार्डन्स और शहरी वन नगरीय ऊष्मा द्वीपों से निपटने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं साथ ही वायु गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। रूफटॉप सोलर इनस्टॉलेशन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
  • शहरी जल सुरक्षा सुनिश्चित करना: शहरों को वर्षा जल संचयन, अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण और जलभृत पुनर्भरण पर ध्यान केंद्रित करने वाली व्यापक जल प्रबंधन नीतियों की आवश्यकता है।
    • चेन्नई का वर्षा जल संचयन अभियान प्रभावी सिद्ध हुआ है और इसे देश भर में लागू किया जा सकता है। 
    • स्मार्ट जल मीटर और IoT-आधारित निगरानी प्रणालियाँ अपव्यय को रोक सकती हैं तथा दक्षता बढ़ा सकती हैं। 
    • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों (DEWATS) को बढ़ावा देने से प्रभावी पुनःउपयोग सुनिश्चित हो सकता है।
  • डिजिटल समावेशन को बढ़ावा देना: शहरी झुग्गी बस्तियों में BharatNet जैसी पहलों के माध्यम से इंटरनेट कनेक्टिविटी का विस्तार करके डिजिटल डिवाइड को कम किया जा सकता है। 
    • निम्न आय वर्ग को लक्षित करने वाले डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम ई-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन और ऑनलाइन शिक्षा तक अभिगम को बढ़ा सकते हैं। 
    • शहरी परिचालन को सुचारु बनाने के लिये शहरों को एकीकृत कमांड सेंटर जैसे स्मार्ट सिटी सॉल्यूशन अपनाने होंगे। 
  • सांस्कृतिक और धरोहर संपदाओं का पुनरोद्धार: शहरी विकास में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये। 
    • धरोहर संरचनाओं का अनुकूली पुनःउपयोग, जैसा कि राजस्थान के पैलेस होटलों में देखा गया है, संरक्षण और आर्थिक उपयोगिता के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है। 
    • शहरी नियोजन में पारंपरिक वास्तुकला और सांस्कृतिक तत्त्वों के एकीकरण को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। सांस्कृतिक विरासत प्रबंधन के लिये यूनेस्को के दिशा-निर्देश कार्यान्वयन योग्य रूपरेखा प्रदान कर सकते हैं।
  • सहभागी शहरी नियोजन को प्रोत्साहित करना: शहरी शासन में नागरिक भागीदारी से पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार हो सकता है। 
    • शिकायत निवारण के लिये MyGov जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म को शहरी-विशिष्ट मुद्दों के लिये विकसित किया जाना चाहिये। 
    • सहभागी बजट निवासियों को स्थानीय विकास संबंधी प्राथमिकताओं पर निर्णय लेने की अनुमति देता है। पुणे जैसे शहरों के केस स्टडीज़ से पता चलता है कि किस प्रकार नागरिक भागीदारी शहरी नियोजन परिणामों को बेहतर बनाती है।
  • रूफटॉप सोलर इनस्टॉलेशन और पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार करके ऊर्जा स्रोतों में वृद्धि की जा सकती है।
    • ऊर्जा भंडारण प्रणालियों वाले स्मार्ट ग्रिड दक्षता बढ़ा सकते हैं और बिजली कटौती को कम कर सकते हैं। ऊर्जा कुशल इमारतों के लिये प्रोत्साहन, जैसे कर छूट, संधारणीय निर्माण प्रथाओं को प्रोत्साहित कर सकते हैं। 
    • शहरों में नवीकरणीय ऊर्जा (कोचीन जैसे शहर, जो भारत का पहला पूर्णतः सौर ऊर्जा आधारित हवाई अड्डा संचालित करते हैं) को मुख्यधारा में लाना: शहरी केंद्रों को बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण करना चाहिये। 
  • शहरी आपदा तैयारी को सुदृढ़ करना: शहरों को बाढ़, भूकंप और औद्योगिक दुर्घटनाओं जैसे शहर-विशिष्ट जोखिमों से निपटने के लिये सुदृढ़ समर्पित आपदा प्रतिक्रिया इकाइयाँ स्थापित करनी चाहिये। 
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ IoT सेंसरों से प्राप्त रियल टाइम डेटा के साथ मिलकर आपदा के प्रभावों को कम कर सकती हैं। 
    • मुंबई की बाढ़ प्रतिक्रिया से प्राप्त सीख शहरी आपदा तैयारी रणनीतियों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. शहरी नियोजन, शासन और सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत के शहरी परिदृश्य को विनियमित करने में चुनौतियों एवं अवसरों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। समावेशी और अनुकूल शहरी विकास को बढ़ावा देने के लिये इन मुद्दों को किस प्रकार हल किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न1. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारंबारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)

प्रश्न2. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014)