ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 25 Apr, 2025
  • 26 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक अनिश्चितताओं के मध्य भारत की आर्थिक संवृद्धि

यह एडिटोरियल 22/04/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “India amid global strain: Rate cut relief versus trade war challenges” पर आधारित है। यह लेख भारत की सीमित व्यापार निर्भरता के बावजूद उसकी आर्थिक सशक्तता को रेखांकित करता है, किन्तु वैश्विक तनावों तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में गिरावट के चलते आर्थिक संवृद्धि की मंदी की चेतावनी भी देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का आर्थिक विकास परिदृश्य, अमेरिकी टैरिफ, निजी अंतिम उपभोग व्यय, गिनी गुणांक, पीएम गति शक्ति, स्मार्ट सिटी मिशन, चीन+1 रणनीति,  अनर्जक परिसंपत्तियाँ, पूंजी से जोखिम (भारित) परिसंपत्ति अनुपात, पीएम-विश्वकर्मा, पीएम ई-ड्राइव, रुपया मूल्यह्रास    

मेन्स के लिये:

वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत की आर्थिक संवृद्धि के प्रमुख चालक, भारत पर वैश्विक व्यापार तनावों के दुष्प्रभाव।

भारत की अर्थव्यवस्था, जो अपेक्षाकृत रूप से बाह्य व्यापार पर कम निर्भर है, वैश्विक व्यापार तनावों के बढ़ने के बीच वित्त वर्ष 2024-25 में 6.5% तथा वित्त वर्ष 2025-26 में 6.2% की वृद्धि दर तक सीमित हो सकती है। अमेरिका द्वारा लगाये गये शुल्कों का प्रत्यक्ष प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का मात्र 0.2-0.3% है, किन्तु वैश्विक वृद्धि में कमी एवं पूँजी प्रवाह के घटने जैसे अप्रत्यक्ष प्रभाव अधिक चिंता का विषय हैं, क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वर्ष-दर-वर्ष $11.5 बिलियन से घटकर केवल $1.4 बिलियन रह गया है। भारत इन चुनौतियों से पार पाने के लिये सुधारों में तीव्रता, घरेलू माँग को सशक्तीकरण तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में आये बदलावों का लाभ उठाने हेतु प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि कर सकता है, साथ ही बाह्य झटकों के विरुद्ध अपनी संवेदनशीलता को भी कम कर सकता है।

वैश्विक अनिश्चितताओं के मध्य भारत की आर्थिक संवृद्धि के प्रमुख चालक क्या हैं?

  • ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार के कारण मज़बूत घरेलू मांग: घरेलू खपत भारत का सबसे मज़बूत विकास स्तंभ बना हुआ है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार, कल्याणकारी योजनाओं और मुद्रास्फीति नियंत्रण से मदद मिली है। 
    • पीएमजीकेएवाई, कर कटौती और बेहतर ग्रामीण आय जैसी सरकारी हस्तांतरण योजनाओं ने शहरी खपत में कमी के बावजूद समग्र मांग के अनुरक्षण में मदद की है
    • उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2025 में निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) में 7.3% की वृद्धि का अनुमान है और ग्रामीण गिनी गुणांक घटकर 0.237 रह गया है तथा सीपीआई में 3.3% (मार्च 2025) तक की नरमी ग्रामीण आशावाद को समर्थन प्रदान करती है।
  • निजी निवेश में कमी के बीच सार्वजनिक पूंजीगत व्यय वृद्धि का आधार: वैश्विक चुनौतियों के कारण निजी निवेश में संकोच की स्थिति बनी हुई है, लेकिन सार्वजनिक पूंजीगत व्यय ने वृद्धि, बुनियादी अवसंरचना के निर्माण और रोज़गार सृजन को गति देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। यह प्रति-चक्रीय निवेश एक स्थिर विकास आधार रेखा सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण के लिये, केंद्र का पूंजीगत व्यय साल-दर-साल (जुलाई-नवंबर 2024) 8.2% बढ़ा और वित्त वर्ष 2025 में 11.1 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये गए।
    • इसके अलावा, प्रमुख बुनियादी अवसंरचना कार्यक्रमों में पीएम गति शक्ति, स्मार्ट सिटी मिशन, अमृत भारत स्टेशन योजना और राज्यों को 50 साल का ब्याज मुक्त ऋण शामिल हैं।
  • सेवा क्षेत्र की गति एवं आईटी निर्यात की स्थिरता: भारत का सेवा क्षेत्र अब भी विकास की रीढ़ बना हुआ है, जो देश के भीतर सशक्त प्रदर्शन तथा निर्यात में तीव्र गति दर्शाता है। 
    • आईटी, वित्तीय सेवाएँ तथा व्यावसायिक सेवाएँ रोज़गार, मूल्य संवर्द्धन तथा बाह्य स्थिरता को समर्थन प्रदान करती रही हैं, भले ही विनिर्माण निर्यात की गति धीमी रही हो।
    • उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2024–25 में सेवा क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (GVA) 7.2% अनुमानित है तथा अप्रैल–नवंबर 2024–25 के दौरान सेवा निर्यात में 12.8% की वार्षिक वृद्धि दर्ज़ की गई है।
      • भारत सेवा निर्यात में विश्व स्तर पर 7वें स्थान पर है और जीसीसी (वैश्विक क्षमता केन्द्र) हेतु एक वैश्विक केंद्र है।
  • उत्पादन क्षेत्र को गति: पीएलआई, चीन+1 रणनीति तथा डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से भारत की औद्योगिक वृद्धि अब उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), बेहतर लॉजिस्टिक्स तथा 'चीन+1' रणनीति के अंतर्गत बढ़ते निवेशक हित द्वारा सशक्त बनायी जा रही है।
    • हालाँकि कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, फिर भी इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा तथा रक्षा उत्पादन जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति देखी गयी है।
    • उदाहरणस्वरूप, पीएलआई योजना को 14 क्षेत्रों में लागू किया गया; स्मार्टफोन निर्यात $15 अरब का आँकड़ा पार कर गया और भारत वर्ष 2024 में कुल 327 आईपीओ लॉन्च कर वैश्विक स्तर पर आईपीओ गतिविधि में अग्रणी बनकर उभरा। 
  • वित्तीय क्षेत्र का सशक्तीकरण एवं ऋण प्रवाह में सुगमता: वित्तीय क्षेत्र की बेहतर स्थिति ने ऋण के सहज संचरण तथा पूंजी तक पहुँच को संभव बनाया है, विशेष रूप से एमएसएमई तथा अवसंरचना परियोजनाओं के लिये। यह आर्थिक अनुकूलन एवं निवेशकों के विश्वास को सुदृढ़ करता है।
    • उदाहरण के लिये, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) घटकर 12 वर्षों के न्यूनतम स्तर 2.6% पर पहुँच गयीं और पूंजी से जोखिमयुक्त संपत्ति अनुपात (CRAR) सितंबर 2024 में 16.7% पर मजबूत बना रहा।
    • साथ ही, एमएसएमई एवं सेवा क्षेत्र में ऋण प्रवाह सशक्त बना हुआ है तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वर्ष दर वर्ष 17.9% की वृद्धि हुई, जो अप्रैल–नवंबर FY25 में $55.6 अरब तक पहुँच गया।
  • संरचनात्मक सुधार, विनियमन और डिजिटल सुशासन: भारत की विकास संभावनाएँ चल रहे संरचनात्मक सुधारों से सशक्त हो रही हैं — जैसे EoDB 2.0, लक्षित विनियमन तथा शिक्षा, अवसंरचना एवं हरित ऊर्जा क्षेत्रों में मिशन मोड योजनाएँ, ये सुधार प्रतिस्पर्धात्मकता तथा मध्यम अवधि की उत्पादकता को सुदृढ़ करते हैं।

बढ़ता वैश्विक व्यापार तनाव किस प्रकार भारत पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता हैं? 

  • व्यापारिक निर्यात और औद्योगिक उत्पादन में मंदी: वैश्विक व्यापार युद्धों एवं संरक्षणवाद के कारण वैश्विक माँग में कमी का सीधा प्रभाव भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ता है।
    • वस्त्र, रसायन तथा अभियांत्रिकी जैसे निर्यात-प्रधान उद्योगों को कमज़ोर ऑर्डर प्राप्त हो रहे हैं, जिससे उनकी क्षमता उपयोग दर में गिरावट आई है।
    • उदाहरणस्वरूप, भारत का माल निर्यात (अप्रैल–दिसंबर, वित्त वर्ष 2024–25) मात्र 1.6% की वृद्धि दर्शाता है एवं विश्व बैंक ने भारत की वित्त वर्ष 2025–26 की वृद्धि दर घटाकर 6.3% कर दी है, जिसका कारण कमज़ोर बाहरी माँग को बताया जा रहा है।
  • वैश्विक विकास चुनौतियों के प्रति सेवा निर्यात की संवेदनशीलता: हालाँकि भारत का सेवा क्षेत्र अनुकूलनशील है, फिर भी भारत की सूचना प्रौद्योगिकी एवं पेशेवर सेवाओं का निर्यात अमेरिका तथा यूरोपीय संघ में आर्थिक मंदी के प्रति संवेदनशील है, जिससे इस क्षेत्र में रोज़गार एवं राजस्व प्रभावित होता है।
    • सेवा निर्यात भारत के कुल निर्यात का 40% से अधिक है और चूँकि IMF ने आगामी पाँच वर्षों के लिये वैश्विक विकास दर 3.2% रहने का अनुमान दिया है, जो ऐतिहासिक औसत से कम है, यह मंदी भारत के ग्लोबल कैप्टिव सेंटर्स (GCC) तथा ITES नौकरी बाज़ार को प्रभावित कर सकती है, जो प्रमुख श्वेतपोश नियोक्ता हैं।
  • पूंजी प्रवाह में अस्थिरता और निवेशकों की कमज़ोर होती धारणा: बढ़ते व्यापार तनाव के कारण वैश्विक स्तर पर जोखिम उठाने की क्षमता कम हो गई है, जिससे एफपीआई का बहिर्वाह बढ़ रहा है और भारत के इक्विटी और ऋण बाज़ारों में अस्थिरता है। अनिश्चितता के कारण निवेशकों का विश्वास कमज़ोर हो रहा है।
    • उदाहरण के लिये, FPI प्रवाह वित्त वर्ष 2023–24 में $41 अरब से घटकर वित्त वर्ष 2024–25 में मात्र $2.7 अरब रह गया। फरवरी 2025 तक भारतीय शेयर बाज़ार ने लगातार पाँच महीनों तक गिरावट दर्ज की, जो 1996 के बाद सबसे खराब प्रदर्शन रहा
  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से औद्योगिक दक्षता प्रभावित: वैश्विक व्यापार विखंडन और नीति अनिश्चितता ने आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया है, जिससे भारतीय फर्मों के लिये इनपुट उपलब्धता, लागत संरचना और निर्यात समय-सीमा प्रभावित हुई है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2024–25 ने वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में आपूर्ति शृंखला चुनौतियों के कारण आई मंदी को रेखांकित किया है; वित्त वर्ष 2024–25 की दूसरी तिमाही में औद्योगिक वृद्धि में कमी का एक कारण मानसून से जुड़ी एवं बाह्य आपूर्ति समस्याएँ भी थीं।
  • रुपए के अवमूल्यन के माध्यम से आयातित मुद्रास्फीति का जोखिम: व्यापार तनावों के चलते जोखिम से बचाव की प्रवृत्ति बढ़ती है, जिससे अमेरिकी डॉलर मज़बूत होता है और भारतीय रुपया दबाव में आ जाता है, परिणामस्वरूप कच्चे तेल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे आयातित वस्तुओं की लागत में वृद्धि होती है।
    • उदाहरणस्वरूप, फरवरी 2025 तक रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 1.8% अवमूल्यित हो चुका है, जबकि वर्ष 2023 में यह गिरावट 1.5% थी।
  • निर्यातोन्मुख क्षेत्रों में रोज़गार बाज़ार की नाज़ुक स्थिति: धीमी निर्यात और कमज़ोर वैश्विक मांग के कारण वस्त्र, रत्न एवं आभूषण तथा आईटी सेवाओं जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार और श्रम प्रभावित हो रहा है, जिससे युवा बेरोज़गारी बढ़ रही है।
    • भारत में युवा बेरोज़गारी दर पहले से ही ~15% के उच्च स्तर पर बनी हुई है और आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 ने पिछले दो वर्षों में भारत के आईटी क्षेत्र में भर्ती में मंदी पर प्रकाश डाला है।
  • भू-आर्थिक विखंडन बहुपक्षवाद को कमज़ोर कर रहा है: व्यापार युद्ध खुले बहुपक्षवाद से ध्यान हटाकर द्विपक्षीयता और रणनीतिक गुटों की ओर ले जा रहे हैं, जहाँ भारत को तब तक दबाव में रहने का खतरा है जब तक कि वह क्षेत्रीय साझेदारी या मुक्त व्यापार समझौतों को नहीं करता।
    • उदाहरण के लिये, भारत केवल इसे 13 एफटीए समझौतों में शामिल हैं, जो वियतनाम जैसे समकक्षों की तुलना में बहुत कम हैं तथा कनाडा और यूरोपीय संघ के साथ चल रही लेकिन अनिर्णीत वार्ताएँ गहरी संरचनात्मक चुनौतियों को उजागर करती हैं।

उभरती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच सुदृढ़ आर्थिक संवृद्धि सुनिश्चित करने के लिये कौन-से उपाय अपना सकता है?

  • राजकोषीय संघवाद के माध्यम से विकेन्द्रीकृत पूंजीगत व्यय: भारत को राज्यों को अधिक वित्तीय स्वायत्तता देकर उन्हें परिणाम-आधारित पूँजीगत व्यय हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • वित्त आयोगों के माध्यम से पूँजीगत व्यय निधियों के हस्तांतरण हेतु सूत्र-आधारित दृष्टिकोण क्षेत्रीय अवसंरचना एवं रोज़गार सृजन को बेहतर बना सकता है।
    • योजनाबद्धता एवं क्रियान्वयन में राज्यों की क्षमता को सशक्त करना बहुगुणक प्रभावों को तीव्र कर सकता है।
      • विकेन्द्रीकृत सार्वजनिक निवेश राज्य स्तर पर निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित कर सकता है।
  • घरेलू विनिर्माण मिटेलस्टैण्ड का निर्माण: भारत को जर्मनी के मिटेलस्टैण्ड मॉडल की तरह मध्यम आकार की विनिर्माण फर्मों का प्रतिस्पर्धी आधार बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • इसके लिये व्यवस्थित विनियमन, सरलीकृत कर व्यवस्था, पूर्वानुमानित नीतिगत वातावरण तथा प्रौद्योगिकी और वित्त तक पहुँच की आवश्यकता है। 
    • MSME क्लस्टरिंग तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण को नीति की प्राथमिकता बनाना आवश्यक है।
  • योजना-केन्द्रित से परिणाम-आधारित ग्रामीण विकास की ओर बदलाव: ग्रामीण मांग को स्थायी रूप से बढ़ाने के लिये, भारत को स्थानीयकृत परिणाम मीट्रिक के आसपास  रोज़गार, कौशल और कृषि के लिये योजनाओं को फिर से डिजाइन करना होगा।
    • बाज़ार, ऋण, भंडारण और डिजिटल सेवाओं तक पहुँच के साथ एकीकृत ग्रामीण क्लस्टर उत्पादकता और खपत को बढ़ाएँगे। 
    • कार्यान्वयन के लिये पंचायतों को नोडल एजेंसी बनाया जा सकता है। मज़बूत निगरानी और विकेन्द्रीकृत फीडबैक आवश्यक हैं। 
  • उच्च मूल्य, विशिष्ट क्षेत्रों के लिये निर्यात रणनीति: भारत को मात्रा-आधारित निर्यात से मूल्य-आधारित और आईपी-गहन क्षेत्रों जैसे सेमीकंडक्टर, बायोफार्मा, ईवी घटक और रक्षा हार्डवेयर की ओर बढ़ना चाहिये।
    • इसके लिये विशिष्ट व्यापार इकाइयों, लक्षित अनुसंधान एवं विकास वित्तपोषण तथा विनियामक सामंजस्य के लिये समन्वित कूटनीति की आवश्यकता है। 
    • क्षेत्र-विशिष्ट निर्यात केंद्र बनाए जा सकते हैं। उच्च मूल्य वाले निर्यात भारत को कम मार्जिन वाले वैश्विक व्यापार अस्थिरता से बचा सकते हैं।
  • तेल एवं विदेशी मुद्रा से परे रणनीतिक भंडार एवं सार्वभौमिक निधियों का विकास: भारत को सार्वभौमिक निधियों को स्थापित करनी चाहिये - न केवल तेल या विदेशी मुद्रा के लिये, बल्कि अर्द्धचालक, दुर्लभ मृदा तत्त्व और खाद्य वस्तुओं जैसे आवश्यक आगतों के लिये भी।
    • इन निधियों का उपयोग बाह्य आपूर्ति संकट के दौरान किया जा सकता है। एक अंतर-मंत्रालयी समन्वय कार्य बल को संस्थागत बनाया जाना चाहिये। 
    • इस तरह के वित्तीय और भौतिक बफर्स ​​से मूल्य अस्थिरता और आपूर्ति शृंखला जोखिम को प्रबंधित करने में मदद मिलेगी।
  • सर्कुलर इकोनॉमी पर ध्यान केंद्रित करते हुए हरित औद्योगिक नीति को उत्प्रेरित करना: भारत को हरित तकनीक, अपशिष्ट से ऊर्जा और सर्कुलर अर्थव्यवस्था उपक्रमों  के लिये प्रोत्साहन के माध्यम से औद्योगिक नीति के साथ जलवायु कार्रवाई को एकीकृत करना चाहिये।
    • विनियामक स्पष्टता, हरित पेटेंट और दीर्घकालिक कार्बन बाज़ार कार्यढाँचे महत्त्वपूर्ण हैं। हरित वर्गीकरण पूंजी आवंटन का मार्गदर्शन करेगा। 
      • इससे यह सुनिश्चित होता है कि विकास सतत्, समावेशी और भविष्य-सक्षम हो।
  • रोज़गार-केंद्रित शहरी आर्थिक क्लस्टर बनाएँ: मेट्रो-केंद्रित शहरी विकास से परे, भारत को माध्यमिक शहरों को औपचारिक रोज़गार, स्टार्टअप नवाचार और औद्योगिक सेवाओं के केंद्र के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है। 
    • कौशल विकास और डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ी शहरी रोज़गार योजनाएँ पलायन के दबाव को कम कर सकती हैं। ऐसे क्लस्टर रोज़गार सृजन को विकेंद्रीकृत करते हैं और शहरीकरण पैटर्न को जोखिम मुक्त करते हैं।
  • अनुसंधान, डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश को बढ़ावा देना: भारत को विश्वविद्यालय-उद्योग-सरकार संबंधों के माध्यम से नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिये विनिर्माण प्रोत्साहन से आगे बढ़ना होगा। 
    • AI, बायोटेक, उन्नत सामग्री और क्वांटम तकनीक में अनुप्रयुक्त अनुसंधान के लिये मिशन-मोड वित्तपोषण को बढ़ाया जाना चाहिये। 
      • राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ सार्वजनिक प्रयोजन की प्रौद्योगिकियों को विकसित कर सकती हैं। इससे भारत लागत-संचालित अर्थव्यवस्था के बजाय नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था में बदल जाएगा।
  • कारक बाज़ारों का संस्थागत सुधार - भूमि, श्रम और रसद:  भूमि अधिग्रहण की संरचनात्मक बाधाएँ, कठोर श्रम कानून एवं खंडित लॉजिस्टिक्स प्रणाली निवेश को कम आकर्षक बनाते हैं। 
    • एक आदर्श भूमि पट्टा संहिता और श्रम संहिता डिजिटलीकरण को सभी राज्यों में पूर्णतः लागू किया जाना चाहिये। 
      • डिजिटलीकृत माल गलियारों और बंदरगाह सुधार के माध्यम से राष्ट्रीय रसद लागत में कटौती की जानी चाहिये।

निष्कर्ष: मज़बूत घरेलू आर्थिक दशाओं के बावजूद, भारत बढ़ते वैश्विक व्यापार तनावों एवं भू-अर्थिक खंडन से अछूता नहीं रह सकता। अनुकूल एवं समावेशी वृद्धि सुनिश्चित करने हेतु भारत को निर्णायक रूप से कार्य करना होगा — सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना, मुक्त व्यापार समझौतों को सशक्त करना, उच्च-मूल्य निर्यात को पोषित करना एवं एक सुदृढ़ विनिर्माण आधार बनाना होगा। साथ ही, हरित नवाचार, संस्थागत सुधार एवं विकेन्द्रीकृत विकास के माध्यम से अर्थव्यवस्था को भविष्य-सिद्ध बनाना भी अनिवार्य है।

दृष्टि  मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. बढ़ते वैश्विक व्यापार तनाव और भू-आर्थिक विखंडन के संदर्भ में, समालोचनात्मक रूप से परीक्षण कीजिये कि भारत किस प्रकार समुत्थानशील आर्थिक विकास को कायम रख सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स   

प्रश्न 1. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत् उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. निरपेक्ष तथा प्रति व्यत्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि   (2018) 

(a)    औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b)    कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c)    निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d)    निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।

उत्तर: (c)


प्रश्न 3.  किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है
(b) कीमत-स्तर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है

उत्तर: (b)


मेन्स  

प्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।"  कारण बताइए । औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहां तक सक्षम हैं ? (2017)

प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुव़फ़ाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2