अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका-चीन टैरिफ वृद्धि 2025
- 11 Apr 2025
- 14 min read
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन, सेमीकंडक्टर, दुर्लभ मृदा तत्त्व, भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल, मुख्य परीक्षा के लिये:वैश्विक व्यापार संघर्ष और उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर उनका प्रभाव, भारत की व्यापार नीति और बाह्य क्षेत्र सुधार |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी आयात पर 145% तक की बढ़ोतरी के जवाब में चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ 84% से बढ़ाकर 125% कर दिया है। इससे पहले, राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत सहित अधिकांश देशों के लिये पारस्परिक टैरिफ को 90 दिनों के लिये स्थगित करने की घोषणा की थी, लेकिन चीन को इससे बाहर रखा था।
- अमेरिका और चीन के बीच इन जवाबी कदमों से वैश्विक आर्थिक स्थिरता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में वृद्धि के क्या कारण रहे?
- अमेरिका: वर्ष 2024 में चीन के साथ 295 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अमेरिकी व्यापार घाटा अमेरिकी टैरिफ बढ़ोतरी के पीछे एक प्रमुख कारण बना हुआ है।
- अमेरिका ऐसे घाटे को वैश्विक व्यापार में हानि का संकेत मानता है तथा चीन के अधिशेष को अनुचित और रणनीतिक रूप से जोखिमपूर्ण मानता है।
- अमेरिका ने चीन पर बौद्धिक संपदा की चोरी और जबरन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का आरोप लगाया है, जो निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को विकृत करता साथ ही उसने अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिये टैरिफ बढ़ा दिये हैं।
- चीन: चीन ने अमेरिका द्वारा चीनी आयात पर टैरिफ बढ़ाकर 145% करने के बाद प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यह कदम दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार विवाद का हिस्सा है।
- आपूर्ति शृंखला सुरक्षा: दोनों राष्ट्रों का लक्ष्य आपसी निर्भरता को कम करना है, विशेष रूप से अर्द्धचालक, दुर्लभ मृदा तत्त्व और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) घटकों जैसे महत्त्वपूर्ण वस्तुओं में।
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अमेरिका चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहा है, चिप्स एक्ट और भारत (भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल) तथा वियतनाम के साथ साझेदारी जैसे कदमों का उद्देश्य आपूर्ति शृंखलाओं को जोखिम मुक्त करना तथा उनमें विविधता लाना है।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: अमेरिका-चीन तनाव व्यापार से परे है, जो ताइवान, दक्षिण चीन सागर और तकनीकी प्रभुत्व (कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम) पर रणनीतिक संघर्षों में निहित है।
- तीसरे देशों के माध्यम से टैरिफ चोरी: चीनी कंपनियाँ अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिये वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों के माध्यम से माल भेजती हैं।
- इससे चीन से परे व्यापक व्यापार तनाव पैदा हो गया है, क्योंकि अमेरिका क्षेत्रीय मध्यस्थों के माध्यम से अपने बाज़ारों तक गुप्त पहुँच को रोकना चाहता है।
अमेरिका और चीन के बीच पूर्ण पैमाने पर व्यापार युद्ध के जोखिम क्या हैं?
- मंदी का जोखिम: अमेरिका और चीन संयुक्त रूप से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 2024 अनुमान) में लगभग 43% हिस्सेदारी रखते हैं।
- एक साथ आर्थिक सुस्ती या मंदी वैश्विक विकास की गति को धीमा कर देगी। विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने चेतावनी दी है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 7% तक की गिरावट ला सकता है।
- टैरिफ को लेकर अनिश्चितता भी निवेश को कमज़ोर कर रही है तथा बाज़ार में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- भारी टैरिफ व्यवस्था से रोज़मर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ने, मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलने तथा उपभोक्ता व्यय सीमित होने का जोखिम होता है, जिसके चलते वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ सकता है।
- उत्पाद डंपिंग जोखिम: अमेरिकी बाज़ार तक पहुँच कम होने के कारण, चीन स्टील और सौर पैनलों जैसी अधिशेष वस्तुओं को सब्सिडी वाले मूल्यों पर अन्य बाज़ारों में भेज सकता है।
- यह यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और भारत जैसे क्षेत्रों के स्थानीय उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे रोजगार और मजदूरी पर असर पड़ सकता है तथा व्यापारिक विवादों और संरक्षणवाद में वृद्धि हो सकती है।
- सामरिक संसाधनों का शस्त्रीकरण: गैलियम, जर्मेनियम और लिथियम जैसे दुर्लभ मृदा तत्त्वों पर चीन की पकड़ अमेरिका-चीन तनाव को एक तकनीकी शीत युद्ध में बदल सकती है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ संकट में पड़ सकती हैं।
- भारत के लिये, यह विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में 'मेक इन इंडिया' अभियान के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में बाधा: चीन में विनिर्मित उत्पादों या अमेरिका द्वारा विकसित तकनीकों (जैसे, सॉफ्टवेयर, चिप्स) पर निर्भर देशों को सीमा पार आर्थिक अस्थिरताओं का सामना करना पड़ सकता है।
- रीशोरिंग और नियर-शोरिंग जैसी पहलें महंगी और समय-साध्य होती हैं।
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भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण: वैश्विक विभाजन देशों को किसी एक पक्ष का समर्थन करने के लिये विवश कर सकता है, जिससे बहुपक्षीय सहयोग कमजोर पड़ सकता है तथा वैश्विक आर्थिक शासन व्यवस्था बिखर सकती है।
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के भारत पर क्या प्रभाव होंगे?
- आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो पार्ट्स और फार्मास्यूटिकल्स मुख्य रूप से चीनी घटकों पर निर्भर हैं।
- टैरिफ के कारण लागत में वृद्धि या शिपमेंट में देरी के कारण भारत में गैजेट, वाहन महंगे हो सकते हैं या उन्हें प्राप्त करना कठिन हो सकता है।
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फार्मास्युटिकल क्षेत्र में जोखिम: भारतीय दवाओं में प्रयुक्त होने वाले लगभग 70% सक्रिय फार्मास्युटिकल घटक (API) चीन से आयात किये जाते हैं।
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टैरिफ से जुड़ी लागत वृद्धि या आपूर्ति बाधाएँ दवाओं की कीमतें बढ़ा सकती हैं और भारत के स्वास्थ्य सेवा और फार्मा निर्यात को प्रभावित कर सकती हैं।
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GDP और मुद्रास्फीति पर प्रभाव: वैश्विक मांग की सुस्ती भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है। इसका उदाहरण वर्ष 2018 के अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के दौरान देखा गया, जब भारत की GDP वृद्धि दर वर्ष 2017-18 के 8.3% से घटकर वर्ष 2019-20 में 4.2% पर आ गई थी।
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महंगे आयात के कारण मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे घरेलू खर्च और व्यावसायिक लागत प्रभावित होगी।
- निर्यात के नए अवसर: अमेरिका द्वारा चीन पर उच्च टैरिफ लगाए जाने के चलते, वस्त्र और चमड़ा जैसे भारतीय उद्योगों के पास प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करने तथा अमेरिकी बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का अच्छा अवसर है।
अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष के प्रभाव को कम करने के लिये क्या किया जा सकता है?
- वैश्विक कार्यवाहियाँ: विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय वर्ष 2019 से पंगु हो गया है। G-20 और क्वाड देशों के बीच आम सहमति बनाकर इसे पुनर्जीवित करना बड़े पैमाने पर टैरिफ विवादों को कानूनी रूप से मध्यस्थता करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- दक्षिणी देशों को दक्षिण-दक्षिण व्यापार गलियारों (जैसे, भारत-अफ्रीका-आसियान) में निवेश करके अमेरिका-चीन धुरी पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी।
- यदि यूरोप एशिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत करता है, तो दीर्घावधि में वैश्विक व्यापार अमेरिकी प्रभुत्व से विकेंद्रित हो सकता है।
- एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग और ब्रिक्स जैसे मंचों को एकतरफावाद की तुलना में आर्थिक तनाव कम करने और सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई: भारत को भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता (FTA), भारत-यूके FTA और भारत-GCC FTA जैसे समझौतों को शीघ्रता से आगे बढ़ाना चाहिये, ताकि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से उत्पन्न आपूर्ति संबंधी झटकों से भारतीय निर्यात को सुरक्षित रखा जा सके।
- चीनी आयात पर अत्यधिक निर्भरता को रोकने के लिये सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, APIs और सौर मॉड्यूल में उत्पादन सह प्रोत्साहन योजनाओं और मेक इन इंडिया को मजबूत करना।
- PM गति शक्ति और इन्वेस्ट इंडिया प्लेटफॉर्म के तहत भूमि, श्रम, रसद और अनुपालन को आसान बनाकर चीन से बाहर निकलने की इच्छुक आपूर्ति शृंखलाओं को आकर्षित करने के लिये भारत को एक पसंदीदा चीन+1 गंतव्य के रूप में स्थापित करना।
- आपूर्ति शृंखलाओं के गैर-राजनीतिकरण को बढ़ावा देने और विकासशील देशों के व्यापार अधिकारों की रक्षा के लिये क्वाड, ब्रिक्स, जी-20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे मंचों का उपयोग करना।
- भारतीय निर्यातकों के लिये टैरिफ परिवर्तनों, पुनः मार्गित वस्तुओं तथा पूर्व चेतावनी प्रणालियों की निगरानी के लिये एक राष्ट्रीय व्यापार निगरानी संस्था की स्थापना करना।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वर्ष 2025 में अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में वृद्धि के चलते भारत की अर्थव्यवस्था एवं वैश्विक व्यापार पर संभावित प्रभावों का विश्लेषण कीजिये। साथ ही, इन चुनौतियों को कम करने हेतु भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले संभावित कदमों पर प्रकाश डालिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)मेन्सप्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वजह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018) प्रश्न. चीन और पाकिस्तान ने आर्थिक गलियारे के विकास हेतु एक समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिये क्या खतरा है? समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014) प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017) |