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एडिटोरियल

  • 24 Mar, 2025
  • 28 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को मज़बूत करना

यह एडिटोरियल 22/03/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Charting a route for IORA under India’s chairship” पर आधारित है। इस लेख में IORA की फंडिंग और शासन संबंधी चुनौतियों को सामने लाया गया है। चूँकि भारत वर्ष 2025 में अध्यक्षता करने की तैयारी कर रहा है, इसलिये इसके पास क्षेत्रीय सहयोग और अपने हिंद-प्रशांत प्रभाव को बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर है।

प्रिलिम्स के लिये:

हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क (IPEF), भारत का SAGAR सिद्धांत, होर्मुज़ जलडमरूमध्य, चाइना प्लस वन रणनीतियाँ, वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना भंडार (GDPIR), आपदा रोधी अवसंरचना हेतु गठबंधन, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट, AUKUS, RCEP 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे। 

एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया को जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय निकाय, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) अपने रणनीतिक महत्त्व के बावजूद फंडिंग की कमी और शासन संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहा है। हिंद महासागर क्षेत्र में बहुत अधिक भू-रणनीतिक मूल्य है, जो वैश्विक व्यापार के 75% हिस्से को सुगम बनाता है और विश्व की दो-तिहाई आबादी यहाँ रहती है। जैसा कि भारत नवंबर 2025 से IORA की अध्यक्षता करने की तैयारी कर रहा है, यह भारत के लिये क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करने और व्यापक इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के भीतर अपने रणनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ महाशक्तियों की प्रतिस्पर्द्धा तेज़ी से समुद्री शासन और सुरक्षा को आयाम देती है।

Indo Pacific Region

भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का क्या महत्त्व है?

  • समुद्री सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता: भारत की समुद्री सुरक्षा हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर निर्भर करती है, जहाँ महत्त्वपूर्ण समुद्री संचार लाइनें (SLOC) हैं, जिनके माध्यम से भारत का अधिकांश व्यापार और ऊर्जा प्रवाहित होती है। 
    • विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता के कारण, इन जल क्षेत्रों को सुरक्षित रखना राष्ट्रीय संप्रभुता एवं आर्थिक समुत्थानशक्ति के लिये आवश्यक है। भारत का SAGAR सिद्धांत इस समुद्री-प्रथम रणनीतिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।
    • भारत का 95% से अधिक व्यापार हिंद महासागर से होकर गुजरता है। भारत ने होर्मुज़ जलडमरूमध्य और मलक्का जलडमरूमध्य के पास गश्त बढ़ा दी है, जो दोनों ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अहम चोकपॉइंट हैं।
  • आर्थिक विकास और व्यापार विविधीकरण: आर्थिक साझेदारी और एकीकृत आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से भारत के विकास के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र केंद्रीय है। 
    • चाइना प्लस वन रणनीतियों के युग में, भारत विनिर्माण को आकर्षित करने, व्यापार में विविधता लाने तथा डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिये इस क्षेत्र का लाभ उठा रहा है।
      • IPEF तथा ऑस्ट्रेलिया एवं UAE के साथ FTA जैसी पहल इस प्रयास का हिस्सा हैं।
    • भारत वर्ष 2022 में इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क (IPEF) में शामिल हो गया, जिसमें समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • प्रौद्योगिकी और अवसंरचना कनेक्टिविटी: भारत अपने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना मॉडल के अनुरूप अवसंरचना और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिये हिंद-प्रशांत का उपयोग कर रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन एवं ब्लू इकॉनमी नेतृत्व: हिंद-प्रशांत क्षेत्र चक्रवात, समुद्र-स्तर में वृद्धि और प्रवाल क्षति जैसी जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति सुभेद्य है। 
    • भारत IORA, आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन, तथा ब्लू इकॉनमी के क्षेत्र में नेतृत्व के माध्यम से जलवायु अनुकूलन प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है। 
      • इससे भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ेगी और सतत् समुद्री विकास तथा हरित वित्त के लिये अवसर उत्पन्न होंगे।
  • सामरिक एवं मानक नेतृत्व: हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत को ग्लोबल साउथ में एक सभ्यतागत एवं लोकतांत्रिक अभिकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करने में मदद करता है। 
    • भारत IORA अध्यक्षता (वर्ष 2025-27) के माध्यम से समावेशिता, विकास और संप्रभुता के आसपास क्षेत्रीय मानदंडों को आयाम दे रहा है। 
      • यह भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और बहुपक्षीय सुधार एजेंडे का भी समर्थन करता है।
    • भारत ने वर्ष 2024 में वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट की मेज़बानी की और असफलता की आशंकाओं के बावजूद G20 की अध्यक्षता में नई दिल्ली लीडर्स घोषणा का समर्थन किया।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी में बाधा डालने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • सामरिक संसाधन की कमी: भारत की हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति प्रक्षेपण की क्षमता सीमित नौसैनिक संसाधनों, बजटीय बाधाओं और सैन्य सीमाओं के कारण बाधित है, विशेष रूप से चीन एवं अमेरिका की तुलना में। 
    • बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं के बावजूद, भारत के पास विदेशों में सैन्य अड्डे, लंबी दूरी की तैनाती क्षमता और समुद्री प्रभुत्व के लिये निरंतर वित्त पोषण का अभाव है। 
      • इससे हिंद महासागर से आगे इसकी उपस्थिति सीमित हो जाती है।
    • सत्र 2023-24 में सशस्त्र बलों को आवंटित पूंजीगत व्यय उनकी अनुमानित आवश्यकताओं से बहुत मेल खाता है। हालाँकि, संशोधित अनुमान चरण में सेना, नौसेना और वायु सेना द्वारा किया गया व्यय बजट अनुमान से 4% कम था।
      • इसके विपरीत, जिबूती और कंबोडिया में सक्रिय तैनाती के साथ चीन का रक्षा बजट सत्र 2025 में 7% से अधिक हो गया।
  • सुसंगत हिंद-प्रशांत सिद्धांत का अभाव: भारत के पास अपने रणनीतिक विकल्पों और गठबंधनों का मार्गदर्शन करने के लिये एकल, संस्थागत हिंद-प्रशांत नीति कार्यढाँचे का अभाव है। 
    • हालाँकि SAGAR, एक्ट ईस्ट और इंडो-पैसिफिक महासागर पहल मौजूद हैं, लेकिन एकीकृत सिद्धांत की अनुपस्थिति भागीदारों के लिये स्पष्टता को कम करती है तथा खंडित क्षेत्रीय संदेश की ओर ले जाती है। 
      • इससे बहुपक्षीय मंचों पर भारत की नेतृत्व क्षमता कमज़ोर होती है।
    • अमेरिकी हिंद-प्रशांत रणनीति (वर्ष 2022) या जापान के मुक्त व खुले हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण के विपरीत, भारत का दृष्टिकोण पहलों का एक अंश मात्र है।
  • भू-राजनीतिक संतुलन की दुविधा: रणनीतिक स्वायत्तता के लिये भारत की खोज़, चीन की मुखरता के विरुद्ध समान विचारधारा वाले गठबंधनों (जैसे: क्वाड, इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी) के साथ पूरी तरह से जुड़ने की इसकी क्षमता को सीमित करती है। 
    • SCO और BRICS जैसे मंचों पर चीन के साथ कूटनीतिक रूप से जुड़ने से अस्पष्टता उत्पन्न होती है तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इससे उच्च-दाँव वाले सुरक्षा समझौतों में भारत की विश्वसनीयता कम हो जाती है।
    • भारत की रणनीतिक स्वायत्तता सुरक्षा संरेखण में अस्पष्टता उत्पन्न करती है। AUKUS पर इसका सतर्क रुख और रूस के साथ रक्षा संबंधों को जारी रखना (CAATSA चिंताओं के बावजूद S-400 डील) इसके संतुलन को दर्शाता है। 
  • आर्थिक असमंजस और व्यापार में संदेह: भारत की सतर्क व्यापार स्थिति जो RCEP से वापसी और सीमित FTA गहराई (डेटा स्थानीयकरण खंड) में देखी गई है, ने भारत-प्रशांत क्षेत्र में इसके आर्थिक एकीकरण को कमज़ोर कर दिया है। 
    • इससे दीर्घकालिक व्यापार साझेदार के रूप में भारत की विश्वसनीयता कमज़ोर होती है तथा क्षेत्रीय आर्थिक कूटनीति में, विशेषकर ASEAN, चीन और जापान की तुलना में, इसकी स्थिति कम होती है।
    • भारत वर्ष 2019 में RCEP से बाहर हो गया और वर्ष 2024 तक, उसके पास केवल 13 सक्रिय FTA हैं, जो ASEAN से बहुत कम हैं।
      • दूसरी ओर, ASEAN और चीन के बीच व्यापार वर्ष 2010 के बाद से दोगुना से अधिक बढ़कर 235.5 बिलियन अमरीकी डॉलर से वर्ष 2019 में 507.9 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है।
  • क्षेत्रीय मंचों में सीमित संस्थागत क्षमता: IORA, BIMSTEC और IPOI जैसी हिंद-प्रशांत संस्थाओं में भारत का प्रभाव अकुशल सचिवालय, समर्पित वित्त पोषण की कमी एवं प्रशासन की सुस्ती के कारण कमज़ोर हो गया है।
    • दूरदर्शी लक्ष्य होने के बावजूद, भारत को क्षेत्रीय क्षमता निर्माण में क्रियान्वयन और परिचालन संबंधी कार्य निष्पादन में प्रायः कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन का बजट केवल कुछ मिलियन डॉलर है। संयोग से, इंडियन ओशन कमीशन, जिसमें केवल पाँच हिंद महासागर देश शामिल हैं, का वर्ष 2020-25 के लिये बजट 1.3 बिलियन डॉलर है। 
  • घरेलू और क्षेत्रीय व्यवधानों के प्रति संवेदनशीलता: भारत का इंडो-पैसिफिक फोकस प्रायः घरेलू मुद्दों (जैसे: सीमा संघर्ष, आर्थिक मंदी) और क्षेत्रीय अस्थिरता (जैसे: पश्चिम एशिया या नेपाल में) के कारण बाधित होता है। ये निरंतर ध्यान को सीमित करते हैं, कूटनीतिक बैंडविड्थ को कम करते हैं, और लगातार क्षेत्रीय जुड़ाव में बाधा डालते हैं।
    • गाज़ा संघर्ष (वर्ष 2023-25) और लाल सागर में हूती विद्रोह ने भारत की ऊर्जा आपूर्ति लाइनों एवं कार्गो को सीधे प्रभावित किया, जिससे नौसेना को पुनः तैनात करना पड़ा। 
      • इस बीच, वर्ष 2024 में कनाडा और मालदीव के साथ तनाव ने कूटनीतिक ध्यान को भ्रमित कर दिया।
  • अपर्याप्त समुद्री अवसंरचना और संपर्क: भारत का बंदरगाह अवसंरचना, तटीय रसद और जहाज़ निर्माण क्षमता अपने हिंद-प्रशांत समकक्षों की तुलना में अविकसित है, जिससे आर्थिक एवं सामरिक अभिगम दोनों सीमित हो रही है। 
    • सागरमाला जैसी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब और गहन समुद्री बंदरगाह क्षमता की कमी से भारत का समुद्री व्यापार एवं नौसैनिक अभिगम प्रभावित होता है। 
      • इससे भारत की ब्लू इकॉनमी और कनेक्टिविटी संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (2023) में भारत 38वें स्थान पर है। भारत की प्रमुख रणनीतिक परियोजना चाबहार बंदरगाह का केवल आंशिक संचालन हुआ, जबकि चीन का ग्वादर बंदरगाह को CPEC के तहत 2.5 बिलियन डॉलर से अधिक का नया निवेश प्राप्त हुआ।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के वे प्रमुख समूह कौन-से हैं जिनका भारत हिस्सा है? 

  • क्वाड (चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता)
    • सदस्य: भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया
    • फोकस: रणनीतिक समन्वय, समुद्री सुरक्षा, आपूर्ति शृंखला, प्रौद्योगिकी, जलवायु, स्वास्थ्य
  • समृद्धि के लिये हिंद-प्रशांत आर्थिक कार्यढाँचा (IPEF)
    • सदस्य: भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, ASEAN राष्ट्रों सहित 14 देश
    • फोकस: व्यापार, आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन, स्वच्छ अर्थव्यवस्था, निष्पक्ष अर्थव्यवस्था (भारत ने व्यापार स्तंभ से बाहर रहने का विकल्प चुना)
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA)
    • सदस्य: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया के 23 सदस्य देश
    • फोकस: समुद्री सहयोग, ब्लू इकॉनमी, आपदा प्रबंधन, क्षमता निर्माण
  • BIMSTEC (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल)
    • सदस्य: बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्याँमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड
    • फोकस: क्षेत्रीय संपर्क, सुरक्षा सहयोग, आर्थिक और तकनीकी सहयोग
  • इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) (भारत के नेतृत्व में)
    • साझेदार: स्वैच्छिक भागीदारी— ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जापान और इंडोनेशिया इसके स्तंभ बन गए हैं
    • फोकस: समुद्री पारिस्थितिकी, कनेक्टिविटी, सुरक्षा, आपदा जोखिम न्यूनीकरण, ब्लू इकॉनमी

भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • एक व्यापक हिंद-प्रशांत वृहद रणनीति तैयार करना: भारत को अपने कई नीतिगत शृंखलाओं— SAGAR, एक्ट ईस्ट, IPOI, इंडो-पैसिफिक इकॉनोमिक फ्रेमवर्क (IPEF) को एकीकृत राष्ट्रीय हिंद-प्रशांत रणनीति में एकीकृत करना चाहिये। 
    • इस रणनीति में समुद्री, आर्थिक और मानक क्षेत्रों में भारत के हितों, सीमाओं, संलग्नता साधनों एवं क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिये।
    • एक एकल, सरकार-अनिवार्य सिद्धांत आंतरिक सुसंगति और बाह्य स्पष्टता को बढ़ाएगा। 
      • इससे भारत को स्वयं को निवल सुरक्षा प्रदाता और क्षेत्रीय स्थिरता प्रदान करने वाले अभिकर्त्ता के रूप में प्रस्तुत करने में भी मदद मिलेगी। 
  • भारत का नौसैनिक अभिगम और समुद्री अवसंरचना का विस्तार: अपने समुद्री नेतृत्व को स्थापित करने के लिये भारत को रसद-साझाकरण समझौते करके, अग्रिम उपस्थिति सुविधाएँ स्थापित करके और अपने बेड़े का आधुनिकीकरण करके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने नौसैनिक परिचालन का विस्तार करना चाहिये। 
    • मिशन आधारित तैनाती को सुदृढ़ करना, जल के अंदर के क्षेत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाना तथा द्वीप क्षेत्रों तक पहुँच सुनिश्चित करना समुद्री मार्ग सुरक्षा के लिये आवश्यक है।
    • भारत को हिंद महासागर के तटीय क्षेत्रों में गहन समुद्री बंदरगाहों, MDA नेटवर्क और तटीय रडार शृंखला जैसी परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये।
      • ऐसे कदम भारत को तटीय क्षेत्र से पूर्णतः हिंद-प्रशांत समुद्री शक्ति में बदल देंगे।
  • लघु-पार्श्वीय और बहुपक्षीय नेतृत्व को संस्थागत बनाना: भारत को समुद्री सुरक्षा, संपर्कता, महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और आपदा मोचन पर केंद्रित सहयोग को बढ़ावा देकर क्वाड, IORA, IPOI, BIMSTEC और भारत-फ्राँस-ऑस्ट्रेलिया जैसे त्रिपक्षीय में अपनी भूमिका को गहन करना चाहिये।
    • मिनी-लेटरल प्रारूप औपचारिक गठबंधनों की कठोरता के बिना चपलता प्रदान करते हैं और भारत को क्षेत्रीय मानदंडों को आयाम देने की अनुमति देते हैं। 
    • भारत को पुनरावृत्ति को कम करने के लिये इन समूहों के बीच समन्वय तंत्र भी बनाना चाहिये।
      • संस्थागत गहनता भारत की कूटनीतिक पूंजी को कई गुना बढ़ा देती है।
  • रणनीतिक अवसंरचना और संपर्क पहल प्रदान करना: भारत को चाबहार बंदरगाह, कलादान मल्टी-मॉडल परियोजना और भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) जैसी रणनीतिक संपर्क परियोजनाओं के क्रियान्वयन में तेज़ी लानी चाहिये।
    • इन्हें समयबद्ध, गुणवत्ता-संचालित तथा स्थानीय स्वामित्व एवं संधारणीयता पर आधारित होना चाहिये।
    • भारत को बुनियादी अवसंरचना कूटनीति को गति देने के लिये परियोजना तैयारी एवं वितरण इकाइयों (PPDU) का भी विस्तार करना चाहिये।
      • बुनियादी अवसंरचना की डिलीवरी रणनीतिक प्रभाव की नई मुद्रा है।
    • जन-केंद्रित ब्लू इकॉनमी और जलवायु एजेंडा को आगे बढ़ाना: भारत को संवहनीय मात्स्यिकी, समुद्री संरक्षण, महासागरीय ऊर्जा और द्वीप आजीविका पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक समावेशी ब्लू इकॉनमी संरचना को आकार देने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये।
    • यह समुद्री कूटनीति को क्लाइमेट जस्टिस और सतत् विकास के साथ संरेखित करता है।
    • इसे क्षेत्रीय सहयोग में जलवायु अनुकूलन और तटीय समुत्थानशीलन को शामिल करना चाहिये, विशेष रूप से IORA और IPOI के माध्यम से।
    • CDRI और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में भारत के नेतृत्व को इस क्षेत्रीय एजेंडे से जोड़ा जा सकता है। 
    • व्यापार कूटनीति और आर्थिक एकीकरण को पुनः परिभाषित करना: भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक एकीकरण के लिये एक संतुलित लेकिन प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। 
    • इसमें ASEAN, ऑस्ट्रेलिया, UAE के साथ FTA को गहन करना और IPEF के व्यापार, डिजिटल एवं आपूर्ति शृंखला स्तंभों में सक्रिय रूप से शामिल होना शामिल है। 
    • सेमीकंडक्टर, दुर्लभ मृदा तत्त्व, हरित प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स में मूल्य शृंखलाओं को सुदृढ़ करके भारत को चीन के एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
    • इन प्रयासों के साथ संस्थागत व्यापार क्षमता, सीमा शुल्क सुधार और व्यापार सुविधा भी होनी चाहिये। 
    • IPOI को एक प्रमुख क्षेत्रीय मंच के रूप में क्रियान्वित करना: इंडो-पैसिफिक महासागर पहल (IPOI) को वैचारिक दृष्टि से परिभाषित रोडमैप, प्रमुख देशों और प्रत्येक विषयगत स्तंभ के लिये परियोजना पाइपलाइनों के साथ क्रियान्वित मंच में परिवर्तित होना चाहिये।
    • जैसा कि भारत के विदेश मंत्री ने रायसीना डायलॉग- 2025 में कहा था: "यदि आपके पास व्यवस्था नहीं है, तो आप एक बहुत ही अराजक विश्व को देख रहे हैं।"
    • भारत को नीति, अनुसंधान और प्रशिक्षण में समन्वय के लिये IPOI के अंतर्गत एक सचिवालय, वित्त पोषण तंत्र और विशेषज्ञ कार्यबल की स्थापना करनी चाहिये।
    • संरचना उद्देश्य को प्रभाव में बदल देती है। इससे समुद्री शासन और पर्यावरण मानदंडों पर भारत के नेतृत्व को संस्थागत रूप मिलेगा। 
  • सांस्कृतिक, शैक्षिक और प्रवासी कूटनीति का लाभ उठाना: भारत को हिंद-प्रशांत देशों के साथ शैक्षिक, सांस्कृतिक और डिजिटल संबंध बनाकर दीर्घकालिक सॉफ्ट पावर टूल्स में निवेश करना चाहिये।
    • समुद्र-केंद्रित अनुसंधान केंद्रों का निर्माण, ब्लू इकॉनमी और रणनीतिक अध्ययन पर छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना विश्वास को गहरा कर सकता है। 
    • दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों में भारत के प्रवासी समुदाय को रणनीतिक परिसंपत्तियों के रूप में संगठित किया जाना चाहिये। 
      • विश्वविद्यालयों और थिंक टैंकों में ‘इंडो-पैसिफिक चेयर’ की शुरुआत करने से भारत के विश्वदृष्टिकोण का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो सकता है।

निष्कर्ष:

भारत की हिंद-प्रशांत भागीदारी एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसके लिये एक सुसंगत रणनीति, बढ़ी हुई समुद्री क्षमता और गहन क्षेत्रीय एकीकरण की आवश्यकता है। IORA अध्यक्ष (वर्ष 2025-27) के रूप में, भारत को प्रभावी साझेदारी के साथ रणनीतिक स्वायत्तता को संतुलित करते हुए सुरक्षा, व्यापार और कनेक्टिविटी पर नेतृत्व करना चाहिये। संस्थागत कार्यढाँचे और आर्थिक कूटनीति को सुदृढ़ करने से भारत की एक प्रमुख हिंद-प्रशांत शक्ति के रूप में भूमिका मज़बूत होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इस क्षेत्र में भारत की सक्रिय भागीदारी में कौन-सी चुनौतियाँ बाधा डालती हैं और भारत हिंद-प्रशांत भू-राजनीति में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में अपनी भूमिका किस प्रकार बढ़ा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. भारत की “लूक ईस्ट पॉलिसी” के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2011) 

  1. भारत का उद्देश्य पूर्वी एशियाई मामलों में स्वयं को एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है।
  2. भारत का उद्देश्य शीत युद्ध की समाप्ति से उत्पन्न शून्यता को भरना है।
  3. भारत का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया में अपने पड़ोसियों के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्स्थापित करना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 3 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न 1. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में, AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये।  (2021)


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