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एडिटोरियल

  • 21 Mar, 2025
  • 28 min read
भारतीय समाज

भारत के शहरी परिदृश्य में परिवर्तन

यह एडिटोरियल 19/03/2025 को बिज़नेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित “India's green buildings thrive, but its cities remain unsustainable” पर आधारित है। इस लेख में भारत के शहरी विकास के विरोधाभास को सामने लाया गया है— यद्यपि शहर हरित इमारतों को प्रगति के प्रतीक के रूप में दिखाते हैं, फिर भी ये ‘दो-घंटे के शहर (Two-hour cities)’ बने हुए हैं, जहाँ निवासियों को लंबी थकाऊ यात्रा और लगातार प्रदूषण का सामना करना पड़ता है।

प्रिलिम्स के लिये:

74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 12वीं अनुसूची, शहरी निर्धनता, नगरीय ऊष्मा द्वीप, शहरी स्थानीय निकाय (ULB), स्पॉन्ज सिटीज़, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (CAP), डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) 

मेन्स के लिये:

भारतीय शहरों का शासन कार्यढाँचा, भारत के शहरों से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

भारत के शहर एक आश्चर्यजनक विरोधाभास प्रस्तुत करते हैं— जो हरित-संरचना प्रमाणित इमारतों और संधारणीय उपलब्धियों वाले शहरों के रूप में विकसित हो गए हैं, फिर भी ये ‘दो-घंटे के शहर (Two-hour cities)’ बने हुए हैं, जहाँ निवासियों को लंबी थकाऊ यात्रा और लगातार प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। भारत को वास्तविक सतत् विकास प्राप्त करने की दिशा में संपूर्ण शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को शामिल करने के लिये केवल दीवारें खड़ी करने से कहीं अधिक अपने शहरी अवसंरचना पर पुनर्विचार करने और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

भारत में शहरी शासन कार्यढाँचा क्या है?

  • संवैधानिक आधार: 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1992)
    • शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है।
    • जनसंख्या के आधार पर तीन प्रकार के शहरी स्थानीय निकायों के गठन का आदेश दिया गया है:
      • नगर निगम (बड़े शहरों के लिये)
      • नगर परिषदें (छोटे शहरी क्षेत्रों के लिये)
      • नगर पंचायतें (संक्रमणकालीन/ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों के लिये)
    • 12वीं अनुसूची में 18 कार्यात्मक क्षेत्र जोड़े गए हैं जिन्हें शहरी स्थानीय निकायों को अंतरित किया जाएगा।
  • त्रिस्तरीय संस्थागत संरचना
    • निर्वाचित विंग: महापौर और नगर परिषद (लोगों द्वारा निर्वाचित)।
    • कार्यकारी विंग: नगर आयुक्त या CEO (राज्य सरकार द्वारा नियुक्त)।
    • विचार-विमर्श निकाय: विशिष्ट कार्यों के लिये वार्ड समितियाँ और स्थायी समितियाँ।
  • कार्यात्मक डोमेन (12वीं अनुसूची)
    • इसमें शहरी नियोजन, जल आपूर्ति, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सार्वजनिक स्वास्थ्य, गंदी बस्ती सुधार, शहरी वानिकी आदि शामिल हैं।
    • राज्य विधान के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा कार्यों का हस्तांतरण किया जाएगा।
  • प्रशासनिक और योजना संस्थाएँ
    • अर्द्ध-सरकारी एजेंसियाँ: विकास प्राधिकरण, जल आपूर्ति बोर्ड, परिवहन निगम (आमतौर पर राज्य-नियंत्रित)।
    • राज्य नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग: प्रायः मास्टर प्लान तैयार करते हैं।
    • शहरी विकास प्राधिकरण (UDA): महानगरीय और क्षेत्रीय योजना के लिये।

भारत के शहरी क्षेत्रों से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • शहरी असमानता और पृथक्करण: शहरी समृद्धि के मिथक के बावजूद, भारतीय शहर गरीबी से घिरे संपन्नता के गढ़ बनते जा रहे हैं।
    • मलिन बस्तियाँ, अनौपचारिक बस्तियाँ और बेघर लोग, गेटेड समुदायों (उच्चस्तरीय आवासीय क्षेत्र में रहने वाले समुदाय), गगनचुंबी इमारतों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों के साथ सह-अस्तित्व में हैं।
      • शहरी नियोजन तेज़ी से अभिजात वर्ग के हितों के अनुरूप बनाया जा रहा है, जिससे बुनियादी सेवाएँ कई लोगों की पहुँच से बाहर हो रही हैं।
    • भारत में शहरी निर्धनता 25% से अधिक है ; लगभग 81 मिलियन लोग शहरी क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे की आय पर जीवन यापन करते हैं। 
  • जलवायु सुभेद्यता और हीट स्ट्रेस: बढ़ते तापमान, चरम मौसमी घटनाओं और सुभेद्य जलवायु अनुकूलन के कारण भारतीय शहर नगरीय ऊष्मा द्वीप बनते जा रहे हैं।
    • काँच के घटकों से बनी इमारतें, लुप्त होती हरियाली और एयर कंडीशनिंग पर अत्यधिक निर्भरता गर्मी के तनाव को बढ़ाती है। 
    • एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि पिछले 40 वर्षों में भारत में तापजन्य तनाव की मात्रा लगभग 30% बढ़ गई है।
      • इसके अलावा, भारत में लगभग 34 मिलियन लोगों को गर्मी के कारण उत्पादकता में कमी के कारण नौकरी गँवाना पड़ेगा।
    • इसके अलावा, बुनियादी अवसंरचना फ्लैश फ्लड, बादल फटने और लंबे समय तक सूखे की स्थिति के लिये तैयार नहीं है। 
  • अपर्याप्त शहरी प्रशासन और संस्थागत विखंडन: 74वें संविधान संशोधन के बावजूद भारतीय शहरी स्थानीय निकाय (ULB) राजनीतिक और वित्तीय रूप से अशक्त हैं। 
    • नियोजन का कार्य प्रायः अर्द्ध-सरकारी एजेंसियों या निजी सलाहकारों को सौंप दिया जाता है, जिसमें नागरिकों की भागीदारी या जवाबदेही बहुत कम होती है। 
      • विभागों में कार्य विखंडित हो जाते हैं, जिसके कारण अतिव्यापन और अकुशलता उत्पन्न होती है। 
    • उदाहरण के लिये, हाल ही में CAG की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 22.2% कार्य (18 में से चार कार्य) ही पूरी तरह विकसित हो पाए हैं।
      • भारत में शहरी सरकारों के लिये अंतर-सरकारी हस्तांतरण (IGT) सकल घरेलू उत्पाद का 0.5% बना हुआ है। 
  • असंवहनीय शहरी गतिशीलता और भीड़भाड़: भारत में शहरी गतिशीलता कार-केंद्रित, प्रदूषणकारी और अकुशल है। 
    • अंतिम बिंदु तक अपर्याप्त कनेक्टिविटी, असुरक्षित पैदल यात्री बुनियादी अवसंरचना और अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन के कारण शहर निजी वाहनों पर निर्भर हो गए हैं। 
      • ‘दो घंटे का शहर’ मॉडल, जहाँ लंबी यात्राएँ दैनिक जीवन पर हावी हैं, उत्पादकता और जन-कल्याण को नुकसान पहुँचाता है। 
        • इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर संक्रमण सकारात्मक कदम है, लेकिन यह असमान है जिससे बुनियादी अवसंरचना की कमी बनी हुई है।
    • महानगरों में, यात्री प्रतिदिन औसतन 1.5-2 घंटे ट्रैफिक में बिताते हैं। हालाँकि मेट्रो नेटवर्क अब 17 शहरों में 1,000 किलोमीटर तक फैला हुआ है, लेकिन पैदल चलने और साइकिल लेन कमज़ोर बनी हुई है, जिससे पहुँच सीमित हो रही है।
  • रोज़गार और आवास में अनौपचारिकता: भारत में शहरीकरण से बहुसंख्यक वर्ग के लोगों के लिये सुरक्षित रोज़गार या आवास उपलब्ध नहीं हो पाया है। 
    • अधिकांश शहरवासी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, जहाँ उन्हें नौकरी की सुरक्षा, लाभ या संरक्षण का अभाव है। 
    • आवास बाज़ार अभी भी अप्राप्य बना हुआ है, जिसके कारण लाखों लोग झुग्गी-झोपड़ियों या अनौपचारिक बस्तियों में रहने को विवश हैं। 
      • कोविड महामारी के बाद आर्थिक सुधार K-आकार का बना हुआ है, जो औपचारिक एवं उच्च आय वाले क्षेत्रों के पक्ष में है।
    • भारत में 90% से अधिक रोज़गार अनौपचारिक है। साथ ही, वर्ष 2020 में भारत की झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी 236 मिलियन होने का अनुमान (UN-हैबिटेट 2021) है, जो बताता है कि इसकी लगभग आधी शहरी आबादी झुग्गियों में रहती है। 
  • पर्यावरणीय क्षरण और शहरी समुत्थानशीलन की कमी: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण हरित क्षेत्र में तीव्र गिरावट आई है, आर्द्रभूमि नष्ट हुई है और जल निकायों में प्रदूषण हुआ है।
    • निर्माण-संचालित विकास में पारिस्थितिकी नियोजन की अनदेखी की जाती है, जिसके कारण फ्लैश फ्लड की घटना होती है, जल निकासी में विफलता होती है और वायु की गुणवत्ता खराब होती है। 
      • शहर पर्यावरणीय झटकों को सहन करने में असमर्थ होते जा रहे हैं तथा भवन निर्माण नियम अभी भी उच्च ऊर्जा डिज़ाइनों को प्राथमिकता दे रहे हैं।
    • IQAir द्वारा जारी विश्व के शीर्ष 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में 13 भारतीय शहर शामिल हैं, जिनमें बिरनीहाट (असम), दिल्ली, मुल्लांपुर (पंजाब), फरीदाबाद, लोनी शामिल हैं। 
  • कमज़ोर महापौर नेतृत्व और राजनीतिक अशक्तीकरण: भारत में महापौरों की भूमिकाएँ मुख्यतः औपचारिक होती हैं तथा उनकी कार्यकारी शक्तियाँ सीमित होती हैं। 
    • कई राज्यों में नगर आयुक्त (राज्य द्वारा नियुक्त IAS अधिकारी) के पास निर्वाचित प्रतिनिधियों की तुलना में अधिक अधिकार होते हैं। 
      • वैश्विक शहरों के विपरीत, जहाँ महापौर शहरी नीति का नेतृत्व करते हैं, भारतीय शहर के नेताओं के पास प्रायः निर्णय लेने की स्वायत्तता का अभाव होता है।
    • यह बेमेल स्थानीय लोकतंत्र को कमज़ोर करता है और शहरी शासन में अधोगामी प्रशासनिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।

शहरी विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ क्या हैं? 

  • 15-मिनट सिटी (पेरिस, फ्राँस)
    • अवधारणा: शहरी मॉडल, जहाँ निवासी 15 मिनट की पैदल या बाइक की सवारी के भीतर काम, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और मनोरंजन स्थल तक पहुँच सकते हैं।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: यह दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों में क्षेत्रीय नियोजन, मिश्रित उपयोग विकास और अंतिम बिंदु गतिशीलता सुधार को प्रेरित कर सकता है।
  • पारगमन-उन्मुख विकास (टोक्यो, जापान)
    • अवधारणा: जन परिवहन केंद्रों के आसपास उच्च घनत्व वाले आवास, वाणिज्यिक क्षेत्रों और लोक सेवाओं को एकीकृत करना।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: यह भारत की मेट्रो रेल नीति के अनुरूप है तथा शहरों में भीड़भाड़ एवं प्रदूषण को कम करने में मदद करता है।
  • हरित अवसंरचना और स्पॉन्ज सिटीज़ (चीन)
    • अवधारणा: शहरी डिज़ाइन जो आर्द्रभूमि, हरित छतों, पारगम्य सतहों का प्रयोग करके वर्षा जल को अवशोषित करता है।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: मुंबई और चेन्नई जैसे शहर शहरी बाढ़ से निपटने के लिये इनका अनुकरण कर सकते हैं।
  • समावेशी ज़ोनिंग के साथ किफायती आवास (वियना, ऑस्ट्रिया)
    • अवधारणा: सभी नई रियल एस्टेट परियोजनाओं में किफायती आवास का एक निश्चित प्रतिशत अनिवार्य करना।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: निजी विकास विनियमों के साथ एकीकृत करके PMAY-U को सुदृढ़ किया जा सकता है।
  • नागरिक भागीदारी और सहभागी बजट (पोर्टो एलेग्रे, ब्राज़ील)
    • अवधारणा: नगरपालिका बजट का आवंटन किस प्रकार किया जाए, इस निर्णय में नागरिक सीधे तौर पर शामिल होते हैं।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: 74वें संशोधन और वार्ड समितियों एवं स्थानीय नियोजन को सशक्त बनाने के प्रयासों का समर्थन करता है।
  • एकीकृत डिजिटल शहरी शासन (ताल्लिन्न, एस्टोनिया)
    • अवधारणा: ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म जो शहर की सेवाओं जैसे: संपत्ति, परमिट उपयोगिताओं को एकल डिजिटल इंटरफेस में एकीकृत करता है।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: इसे स्मार्ट सिटी मिशन और शहरी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) मॉडल के तहत बढ़ाया जा सकता है।
  • वर्टिकल ग्रीनिंग और बायोक्लाइमैटिक आर्किटेक्चर (सिंगापुर)
    • अवधारणा: ऊर्ध्वाधर उद्यानों, हरित छतों और जलवायु-अनुकूल भवन डिज़ाइन का उपयोग।
      • भारत के लिये प्रासंगिकता: यह काँच-घटकों से दूर जाने को प्रोत्साहित करता है और निष्क्रिय शीतलन वास्तुकला का समर्थन करता है।

सतत् शहरी विकास के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • स्थान-आधारित, स्तरीकृत शहरी शासन मॉडल का अंगीकरण: भारतीय शहरों को एक ही तरह के ढाँचे से आगे बढ़कर महानगरीय, मध्यम आकार के तथा छोटे शहरों के लिये स्तरीकृत शासन मॉडल का अंगीकरण करना चाहिये।
    • महानगरीय क्षेत्रों को एकीकृत भूमि उपयोग, गतिशीलता और संसाधन प्रबंधन के लिये सशक्त योजना प्राधिकरणों की आवश्यकता है। 
    • उभरते और अर्द्ध-शहरी केंद्रों के लिये, ज़िला शहरी विकास प्राधिकरणों (DUDA) और राज्य शहरी विकास प्राधिकरणों (SUDA) को स्थानीय नियोजन का संचालन करना चाहिये। 
      • इससे ग्रामीण-शहरी अभिसरण को समर्थन देते हुए स्थानीय रूप से उर्ध्वगामी अनुकूलित योजना बनाने में सहायता मिलती है।
  • कार-केंद्रित से मानव-केंद्रित शहरी गतिशीलता की ओर बदलाव: उत्सर्जन को कम करने और पहुँच में सुधार करने के लिये शहरों को सार्वजनिक परिवहन, पैदल पथ और साइकिल लेन की बुनियादी अवसंरचना को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • मेट्रो नेटवर्क (मेट्रो रेल नीति के तहत) को बस प्रणालियों (PM-ई-बस सेवा के तहत) और अंतिम-बिंदु विकल्पों के साथ एकीकृत करने से सार्वजनिक परिवहन को निर्बाध बनाया जा सकता है। 
    • पैदल पथों को उन्नत करने तथा व्यापारिक ज़िलों में गैर-मोटर चालित क्षेत्रों का निर्माण करने से लोगों के लिये शहरी स्थान पुनः प्राप्त किया जा सकता है। 
      • शहरी गतिशीलता योजनाओं में पारगमन-उन्मुख विकास (TOD) और मल्टी-मॉडल एकीकरण रणनीतियों को अपनाया जाना चाहिये।
  • शहरी परिदृश्य में भीड़भाड़ कम करना: शहरों में भीड़भाड़ कम करने के लिये ग्रामीण बुनियादी अवसंरचना और अवसरों को सुदृढ़ करने की दिशा में रणनीतिक बदलाव की आवश्यकता है। 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, डिजिटल कनेक्टिविटी और रोज़गार केंद्रों का विस्तार करके, काउंटर मैग्नेट शहरों का विकास करके तथा PURA पहल पर निर्माण करके, भीड़भाड़ वाले शहरों की ओर पलायन को कम किया जा सकता है। 
    • यह संतुलित शहरी-ग्रामीण विकास जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाएगा और शहर के संसाधनों पर दबाव को कम करेगा।
  • जलवायु-अनुकूल भवन निर्माण कला के लिये भवन निर्माण संहिता को पुनः संशोधित करना: भारत को निष्क्रिय शीतलन, प्राकृतिक वेंटिलेशन और स्थानीय सामग्रियों का उपयोग करके जलवायु-अनुकूल डिज़ाइन को लागू करने के लिये राष्ट्रीय भवन संहिता को संशोधित करना चाहिये।
    • काँच-घटक और गहन प्लान वाली इमारतों को हतोत्साहित किया जाना चाहिये, विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में। संपत्ति कर छूट से संबद्ध ग्रीन बिल्डिंग रेटिंग (IGBC, GRIHA) के माध्यम से डेवलपर्स को प्रोत्साहित करने से बेहतर प्रथाओं को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • वाणिज्यिक और संस्थागत परियोजनाओं में ऊर्जा ऑडिट और निष्क्रिय डिज़ाइन को अनिवार्य करने से ऊर्जा भार कम हो जाएगा।
      • इससे भवन निर्माण कला सौंदर्य-संचालित से पारिस्थितिकी-संरेखित और निवासी-केंद्रित हो जाती है।
  • शहरी आवास के साथ स्मार्ट सिटी घटकों को एकीकृत करना: शहरी परिवर्तन को डिजिटल बुनियादी अवसंरचना और बुनियादी आश्रय के बीच के अंतराल को समाप्त करना होगा। 
    • PMAY-शहरी (सस्ती आवास) को स्मार्ट सिटीज़ मिशन (प्रौद्योगिकी, सेंसर, सार्वजनिक सेवाएँ) के साथ जोड़ने से समावेशी स्मार्ट पड़ोस का निर्माण हो सकता है। 
    • संसाधन उपयोग को अनुकूलतम बनाने के लिये आवास क्लस्टरों को सौर पैनलों, ग्रेवाटर प्रणालियों और स्मार्ट मीटरिंग से लैस किया जाना चाहिये। 
    • मलिन बस्ती मानचित्रण और पुनर्विकास के लिये भू-स्थानिक एवं AI उपकरणों का उपयोग करने से लक्ष्यीकरण व निगरानी में सुधार होगा।
  • जलवायु अनुकूलन के लिये मुख्यधारा के शहरी ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर: भारतीय शहरों को बाढ़ और ऊष्मा के प्रति समुत्थानशील बनाने के लिये शहरी जल निकायों, आर्द्रभूमि एवं हरित गलियारों को स्थापित करने तथा मुख्य योजना में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • शहरी नियोजन में हरित मास्टर प्लान के तहत शहरी वनों, जैवविविधता और वर्षा उद्यानों के लिये भूमि आरक्षित करनी चाहिये। 
    • अहमदाबाद और पुणे जैसे शहर आदर्श हो सकते हैं, जहाँ तापमान कम करने एवं भूजल में सुधार के लिये शहरी झीलों व पार्कों को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
      • शहरी हरियाली और वाटरशेड पुनरुद्धार को AMRUT 2.0 एवं SBM-U 2.0 से जोड़ा जाना चाहिये। 
  • राजकोषीय सशक्तीकरण के साथ शहर-स्तरीय जलवायु कार्य योजनाएँ: प्रत्येक शहर को भारत के नेट-ज़ीरो विज़न के अनुरूप जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजनाएँ (CAP) बनानी और लागू की जानी चाहिये।
    • CAP में उत्सर्जन सूची, जलवायु जोखिम मानचित्रण, ऊर्जा संक्रमण लक्ष्य और प्रकृति-आधारित समाधान शामिल होने चाहिये। 
      • प्रभावी कार्यान्वयन के लिये, शहरी स्थानीय निकायों को वित्त आयोग के तहत प्रदर्शन-आधारित अनुदान प्राप्त होना चाहिये।
    • जलवायु बजट, डेटा प्रणाली और निगरानी के लिये क्षमता निर्माण के साथ-साथ विकेंद्रीकृत निधि भी होनी चाहिये। 
  • सामुदायिक भागीदारी और भागीदारीपूर्ण योजना को संस्थागत बनाना: संधारणीय शहरों का निर्माण उन लोगों के बिना नहीं किया जा सकता जिनकी वे सेवा करते हैं। 
    • वार्ड समितियों, मोहल्ला सभाओं और नागरिक रिपोर्ट कार्डों को संस्थागत रूप देने से नियोजन एवं वास्तविकताओं के बीच सेतु का काम हो सकता है। 
      • नगर निगम के बजट को भागीदारीपूर्ण बनाया जाना चाहिये, जिसमें स्थानीय बुनियादी अवसंरचना की प्राथमिकताएँ नागरिक ही तय करें। 
    • डिजिटल शिकायत निवारण, सामाजिक अंकेक्षण और क्षेत्र सभा जैसे उपकरणों को राज्य नगरपालिका कानूनों के अंतर्गत अनिवार्य किया जाना चाहिये। 
      • इससे शहरी नागरिकता और जवाबदेही की संस्कृति का निर्माण होता है।
  • डेटा-संचालित, अंतर-संचालनीय शहरी प्लेटफॉर्मों को सक्षम बनाना: भारत को वास्तविक काल निगरानी, ​​सेवा वितरण और शहरी नियोजन के लिये शहरी डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) में निवेश करना चाहिये।
    • स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत एकीकृत कमांड एवं नियंत्रण केंद्र (ICCC) जैसे प्लेटफॉर्मों का विस्तार किया जा सकता है तथा उन्हें विभिन्न शहरों में अंतर-संचालनीय बनाया जा सकता है।
    • संपत्ति रिकॉर्ड, उपयोगिता बिलिंग, गतिशीलता डेटा और GIS स्तरों को जोड़ने से शहरी दक्षताओं को बढ़ावा मिल सकता है। 
      • इससे यह सुनिश्चित होता है कि डिजिटलीकरण से न केवल दृश्यता बढ़ेगी बल्कि शासन भी बेहतर होगा।

निष्कर्ष: 

भारत के शहरी परिवर्तन को खंडित शासन एवं अभिजात वर्ग-केंद्रित नियोजन से आगे बढ़कर समावेशी, जलवायु और लोगों के अनुकूल शहरी संरचना का अंगीकरण करने की आवश्यकता है। शहरी विकास को SDG 11 (सतत् शहर एवं संतुलित समुदाय) से जोड़ना जीवन-यापन, समुत्थानशक्ति और संसाधनों तक समान अभिगम सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। तभी भारत के शहर ‘दो घंटे की यात्रा वाले शहर’ से विकसित होकर सभी के लिये संपन्न, संधारणीय पारिस्थितिकी तंत्र बन सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारतीय शहर तेज़ी से शहरीकरण और संधारणीयता के चौराहे पर हैं। प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये और उनके समग्र विकास के लिये उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है?

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित  हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न 1. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रें में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये।   (2016)

प्रश्न 2. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं?  (2014)


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