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  • 19 Aug 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    दिवस 40: वर्तमान समय भारत में स्पंज सिटीज मिशन का समय है। शहरी बाढ़ से निपटने के आलोक में इस कथन पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • स्पंज सिटी से आपका क्या मतलब है और स्पंज सिटी मिशन की आवश्यकता क्यों है, कारणों का संक्षेप में उल्लेख करते हुए उत्तर लिखिये।
    • शहरी बाढ़ को कम करने वाले उपायों का उल्लेख कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    स्पंज सिटी एक ऐसा शहर है जिसे पारिस्थितिक रूप से अनुकूल तरीके से वर्षा को निष्क्रिय रूप से अवशोषित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो खतरनाक एवं प्रदूषित अपवाह को कम करता है। संबद्ध तकनीकों में पारगम्य सड़कें, छत पर उद्यान, वर्षा जल संचयन, हरे भरे स्थान, तालाब और झील जैसे स्थान शामिल हैं।

    जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तनशीलता और चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि होती है, शहरी बाढ़ अधिक से अधिक आम हो जाती है। जबकि बेमौसम भारी बारिश को जलवायु परिवर्तनशीलता के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, शहरी बाढ़ बड़े पैमाने पर अनियोजित शहरीकरण के कारण है। जल निकासी तंत्र पर अत्यधिक दबाव, अनियमित निर्माण, प्राकृतिक स्थलाकृति एवं ‘हाइड्रो-जियोमॉर्फोलॉजी’ की अवहेलना आदि शहरी बाढ़ को एक मानव निर्मित आपदा बनाते हैं।

    शहरी बाढ़ में वृद्धि के कारण

    • अपर्याप्त जल निकासी प्रणाली: हैदराबाद, मुंबई जैसे शहर एक सदी पुरानी जल निकासी प्रणाली पर निर्भर हैं, जो मुख्य शहर के केवल एक छोटे से हिस्से के लिये पर्याप्त है न की पूरे शहर के लिये। पिछले 20 वर्षों में भारतीय शहरों ने अपने मूल निर्मित क्षेत्र से कई गुना वृद्धि की है। जैसे-जैसे शहर अपनी मूल सीमाओं से आगे बढ़े हैं, पर्याप्त जल निकासी व्यवस्था के अभाव को दूर करने के लिये पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं।
    • भू-भाग में परिवर्तन: बड़े-बड़े संपत्ति निर्माताओं ने भू-भाग की संरचना को बदलकर और प्राकृतिक जल निकासी मार्गों में अवरोध डालकर शहर को स्थायी अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचाई है।
    • जल जमाव: भारतीय शहर पानी के लिये अभेद्य होते जा रहे हैं, न केवल बढ़ते हुए निर्माण के कारण बल्कि उपयोग की जाने वाली सामग्रियों की प्रकृति (कठोर, गैर-छिद्रपूर्ण निर्माण सामग्री जो मिट्टी को अभेद्य बनाती है) के कारण भी जल के अवशोषण की क्षमता कम होती जा रही है जिस कारण जल जमाव की समस्या बढ़ रही है।
    • कार्यान्वयन में कमी: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन जैसे नियामक तंत्रों में वर्षा जल संचयन, टिकाऊ शहरी जल निकासी प्रणाली आदि के प्रावधानों के बावजूद उपयोगकर्त्ताओं के साथ-साथ प्रवर्तन एजेंसियाँ भी परियोजनाओं का उपयुक्त कार्यान्वयन नहीं कर पा रही हैं।
    • प्राकृतिक स्थानों का अतिक्रमण: आर्द्रभूमि की संख्या वर्ष 1956 के 644 से घटकर वर्ष 2018 में 123 हो गई है। हरित आवरण केवल 9 प्रतिशत है, जो आदर्श रूप से कम से कम 33 प्रतिशत होना चाहिये था।

    शहरी बाढ़ को कम करने हेतु किये जा सकने वाले उपाय:

    • समग्र रूप से कोशिश की आवश्यकता: शहरी बाढ़ को अकेले नगरपालिका द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। संसाधनों के ठोस और केंद्रित निवेश के बिना बाढ़ का प्रबंधन नहीं किया जा सकता है। महानगर विकास प्राधिकरण, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य के राजस्व और सिंचाई विभागों के साथ-साथ नगर निगमों को भी इस तरह के काम में शामिल किया जाना चाहिये। इस तरह के निवेश केवल एक मिशन मोड संगठन में किये जा सकते हैं जिसमें महानगरीय स्तर पर नागरिक समाज संगठनों की सक्रिय भागीदारी हो।
    • स्पंज सिटी का विकास: स्पंज सिटी का विचार शहरों को अधिक पारगम्य बनाना है ताकि शहर भारी बारिश के जल को धारण कर उसका उपयोग कर सकें। स्पंज सिटी बारिश के जल को अवशोषित करते हैं, जिसे बाद में मिट्टी द्वारा प्राकृतिक रूप से फ़िल्टर किया जाता है और शहरी जलभृतों तक पहुँचने दिया जाता है। इस जल को आसानी से फिल्टर कर शहर में जलापूर्ति के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • आर्द्रभूमि का संरक्षण: स्थानीय समुदायों को शामिल करके आर्द्रभूमि के प्रबंधन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। निस्संदेह, भू-भाग परिवर्तन को कड़ाई से विनियमित करने की आवश्यकता है और ऐसे परिवर्तन, जिससे भू-भाग पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव हो, प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। जल को अवशोषित करने या जल जमाव में कमी लाने के लिये शहर की क्षमता में सुधार करने हेतु छिद्रयुक्त निर्माण सामग्री और प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
      • स्पंज शहरों में बायोस्वेल और रिटेंशन सिस्टम, सड़कों एवं फुटपाथ के लिये पारगम्य सामग्री, ड्रेनेज सिस्टम, जो कि वर्षा जल के बहाव में मदद करता है और इमारतों में ग्रीन रूफ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। बायोस्वाल्स सड़क के किनारे बनाए जाते हैं ताकि सड़क से बारिश का पानी उनकी ओर बहकर जमीन में समा जाए।
    • ड्रेनेज प्लानिंग: वाटरशेड मैनेजमेंट और इमरजेंसी ड्रेनेज प्लान को नीतियों और कानूनों में स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिये। शहरी वाटरशेड सूक्ष्म पारिस्थितिक जल निकासी प्रणाली हैं, जिसे क्षेत्रों के आधार पर डिज़ाइन किया जाता है। जल निकासी योजना को आकार देने के लिये चुनावी वार्डों जैसी शासन सीमाओं के बजाय वाटरशेड जैसी प्राकृतिक सीमाओं पर विचार करने की आवश्यकता है।
    • जल के प्रति संवेदनशील शहरी नियोजन: शहरों का नियोजन स्थलाकृति, सतहों के प्रकार (पारगम्य या अभेद्य), प्राकृतिक जल निकासी को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये जिससे पर्यावरण पर बहुत कम दुष्प्रभाव पड़े। सुभेद्यता विश्लेषण और जोखिम मूल्यांकन को शहरी नियोजन का अभिन्न अंग होना चाहिये। बदलते परिवेश को ध्यान में रखते हुए जल निकासी के बुनियादी ढाँचे (विशेषकर भारी जल निकासी) का निर्माण करना होगा।
    • इन सभी को अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत), नेशनल हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटेशन योजना (हृदय) और स्मार्ट सिटीज़ मिशन की तर्ज पर एक शहरी मिशन के माध्यम से प्रभावी ढंग से सुनियोजित किया जा सकता है।

    शहरी बाढ़ प्रबंधन न केवल बार-बार आने वाली बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद करेगा, बल्कि अधिक हरित स्थान प्रदान करेगा और शहर को अन्य प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लचीला और टिकाऊ बनाएगा।

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