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एडिटोरियल

  • 18 Oct, 2024
  • 34 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

सार्वभौमिक बुनियादी आय: भारत में कल्याण का रूपांतरण

यह एडिटोरियल 18/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित A modified UBI policy may be more feasible” पर आधारित है। यह लेख भारत में सरलीकृत यूनिवर्सल बेसिक इनकम अर्थात्  सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है, जिसमें बुनियादी सुरक्षा प्रदान करने के लिये पीएम-किसान जैसे मॉडल का उपयोग किया जा रहा है। इसमें राजकोषीय एवं कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों से निपटते हुए कम प्रशासनिक लागत और तुलनात्मक रूप से निम्न अपवर्जन त्रुटियों के लाभों पर चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI), PM-किसान, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, केंद्रीय क्षेत्र की योजनाएँ, विश्व बैंक, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, G-20 प्रेसीडेंसी- 2023, गिग इकॉनमी, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, श्रमिक जनसंख्या अनुपात, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, CAG, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 

मेन्स के लिये:

भारत में UBI के पक्ष और विपक्ष में तर्क, भारत में UBI के लिये एक मज़बूत आधार बनाने की रणनीतियाँ।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) की अवधारणा ने भारत में स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कारण बढ़ती बेरोज़गारी एवं असमानता को दूर करने के संभावित समाधान के रूप में नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया है। 

हालाँकि इस विचार पर वर्षों से बहस चल रही है, समर्थकों का तर्क है कि यह अकुशल कल्याणकारी योजनाओं की जगह ले सकता है, लेकिन व्यवहार्यता और वांछनीयता पर प्रश्न अभी भी बने हुए हैं। PM-किसान जैसे वर्तमान नकदी हस्तांतरण कार्यक्रमों के मद्देनजर भारत में UBI के संशोधित, कम महत्त्वाकांक्षी संस्करण की संभावना का अन्वेषण करना सार्थक होगा। प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% सार्वभौमिक आय हस्तांतरण एक आधारभूत सामाजिक सुरक्षा संजाल के रूप में काम कर सकता है। यह उपागम प्रशासनिक लागत और अपवर्जन त्रुटियों में कमी जैसे लाभ प्रदान कर सकता है, साथ ही राजकोषीय बाधाओं और कार्यान्वयन चुनौतियों के संदर्भ में चिंताओं को भी दूर कर सकता है।

भारत में UBI के पक्ष में तर्क क्या हैं? 

  • संरचनात्मक आर्थिक परिवर्तन: UBI के कार्यान्वयन से कृषि क्षेत्र में प्रछन्न बेरोज़गारी की निरंतर समस्या का समाधान करके भारत की अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन को गति मिल सकती है। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कहा गया है कि भारतीय कृषि क्षेत्र लगभग 42.3% आबादी को आजीविका प्रदान करता है और वर्तमान मूल्यों पर देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी 18.2% है, जो कम उत्पादकता को दर्शाती है। 
    • UBI अधिशेष कृषि मजदूरों को अधिक उत्पादक क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिये आवश्यक वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है। 
    • इससे भारत के आर्थिक आधुनिकीकरण में तेज़ी आ सकती है, ठीक उसी तरह जैसे दक्षिण कोरिया जैसी पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में संरचनात्मक परिवर्तन देखे गए हैं।
      • UBI से भारत में भी इसी प्रकार का बदलाव हो सकता है, जिससे समग्र आर्थिक उत्पादकता और विकास दर में वृद्धि हो सकती है।
  • सामाजिक सुरक्षा फ्रेमवर्क में सुधार: UBI भारत की खंडित सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में  सुधार का अवसर प्रस्तुत करता है ।
    • वर्तमान प्रणाली, अपनी असंख्य योजनाओं के कारण उच्च अपवर्जन त्रुटियों से ग्रस्त है तथा इसमें बजटीय आवंटन का एक बड़ा हिस्सा भी व्यय होता है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत 67% जनसंख्या को लाभ मिलता है, लेकिन लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) के अंतर्गत 90 मिलियन से अधिक पात्र लोग कानूनी अधिकारों से वंचित रह गए हैं।
    • UBI एक अधिक व्यापक और कुशल सामाजिक सुरक्षा फ्रेमवर्क के लिये आधार का काम कर सकता है। 
      • एक सार्वभौमिक स्तर प्रदान करके, यह वर्तमान प्रणाली की जटिलता और त्रुटियों के बिना कमियों (जैसे, शारीरिक अक्षमता/विकलांगता, वृद्धावस्था) के लिये लक्षित परिवर्धन को सक्षम बनाता है।
    • यह उपागम एकीकृत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की ओर बढ़ते वैश्विक रुझान के अनुरूप है, जैसा कि विश्व बैंक के अनुकूलनीय सामाजिक सुरक्षा फ्रेमवर्क द्वारा समर्थित है।
  • जनांकिक लाभांश अनुकूलन: भारत जनांकिक परिवर्तन के एक महत्त्वपूर्ण चरण में है, जिसकी औसत आयु 28.4 वर्ष है। 
    • हालाँकि, संभावित जनांकिक लाभांश उच्च युवा बेरोज़गारी (ILO के अनुमान के अनुसार वर्ष 2022 में 23.22%) और अल्परोज़गार के कारण जोखिम में है। UBI युवाओं को कौशल विकास, उद्यमिता या उच्च शिक्षा में निवेश करने के लिये संसाधन प्रदान करके इस जनांकिक क्षमता का अधिकतम उपयोग कर सकता है।
    • इससे अधिक कुशल कार्यबल और अधिक नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है, जो उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
      • उदाहरण के लिये मार्च 2023 की OECD रिपोर्ट में कहा गया है कि हरित कौशल (पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने या बेहतर करने के लिए ज़रूरी ज्ञान, योग्यताएँ, मूल्य, और दृष्टिकोण) की कमी सतत् विकास रोज़गार में वृद्धि को रोक रही है। 
      • एक संयुक्त UBI शिक्षा और प्रशिक्षण की अवसर लागत को कम करके इस कौशल उन्नयन को सुगम बना सकती है।
  • जलवायु अनुकूलता और अनुकूलन क्षमता: भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है, विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन वर्ष 2030 तक 45 मिलियन भारतीयों को गरीबी में धकेल सकता है। 
    • UBI जलवायु झटकों के प्रति वित्तीय सुरक्षा प्रदान करके तथा अनुकूलन रणनीतियों को सुगम बनाकर जलवायु अनुकूलता को बढ़ा सकता है। 
    • उदाहरण के लिये चरम मौसमी घटनाओं के दौरान, UBI से संकटपूर्ण स्थिति में भी प्रवासन को कम किया जा सकता है और प्रभावित आबादी को अधिक प्रभावी ढंग से पुनर्वास करने में सहायता कर सकता है।
    • इसके अलावा, सुरक्षा संजाल प्रदान करके, UBI आवश्यक लेकिन संभावित रूप से विघटनकारी जलवायु नीतियों को लागू करने के लिये राजनीतिक रूप से व्यवहार्य बना सकता है, जैसे कार्बन मूल्य निर्धारण या जीवाश्म ईंधन सब्सिडी की चरणबद्ध समाप्ती या न्यूनीकरण। 
    • यह वर्ष 2023 में COP 28 में वकालत की गई 
    • यह ‘न्यायसंगत परिवर्तन’ की अवधारणा के अनुरूप है जिसे वर्ष 2023 में COP 28 में समर्थन दिया गया था।
  • कार्य और उत्पादकता को पुनर्परिभाषित करना: UBI में भारत में कार्य और उत्पादकता की सामाजिक धारणा को नया आयाम देने की क्षमता है। 
    • मूलभूत आर्थिक सुरक्षा प्रदान करके यह रोज़गार के उन रूपों को महत्त्व दे सकता है जिन्हें वर्तमान में मान्यता प्राप्त नहीं है, जैसे: देखभाल सेवा, सामुदायिक सेवा या कलात्मक गतिविधियाँ। 
    • यह बात भारतीय संदर्भ में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहाँ परंपरागत कार्य और ज्ञान तंत्र प्रायः औपचारिक आर्थिक मापदंडों में अनदेखी कर दी जाती हैं। 
    • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाएँ प्रतिदिन अवैतनिक घरेलू कार्यों/सेवाओं पर 299 मिनट व्यय करती हैं, जबकि पुरुष केवल 97 मिनट ही व्यय करते हैं। 
      • 15-59 वर्ष की आयु की केवल 22% महिलाएँ ही सवैतनिक/वेतनभोगी कार्य में संलग्न हैं, जबकि पुरुषों में यह आँकड़ा लगभग 71% था। 
    • UBI अप्रत्यक्ष रूप से इस अवैतनिक कार्य की भरपाई कर सकता है, जिससे घरेलू श्रम का अधिक न्यायसंगत वितरण हो सकता है और समाज में उत्पादक कार्य की परिभाषा का पुनर्मूल्यांकन हो सकता है।
  • डेटा-आधारित नीति कार्यान्वयन: UBI को बड़े पैमाने पर लागू करने से भारत की विविध आबादी की आय, उपभोग पैटर्न और आर्थिक व्यवहार के आँकड़ों में अभूतपूर्व बदलाव होगा।
    • यह डेटा गोल्डमाइन भारत में साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। उदाहरण के लिये घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण के स्थान पर उपभोग पैटर्न पर वास्तविक समय के डेटा से अधिक लक्षित और प्रभावी मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों की जानकारी मिल सकती है। 
      • डिजिटल भुगतान के माध्यम से क्रियान्वित UBI इस क्षमता का तेज़ी से विस्तार कर सकती है, जिससे अधिक उत्तरदायी और सूक्ष्म आर्थिक शासन संभव हो सकेगा।
  • भू-राजनीतिक सॉफ्ट पावर और वैश्विक नेतृत्व: विश्व के सबसे बड़े UBI कार्यक्रम को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करके, भारत स्वयं को नवीन सामाजिक नीति में वैश्विक अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है। 
    • इससे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर, विशेषकर वैश्विक असमानता पर चर्चा में, भारत की सॉफ्ट पावर और प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
    • जैसे-जैसे UBI पर चर्चा वैश्विक स्तर पर प्रभावी हो रही है, भारत का अनुभव अन्य विकासशील देशों के लिये मूल्यवान सीख प्रदान कर सकता है। 
    • यह भारत की अधिक वैश्विक प्रभाव की आकांक्षाओं के अनुरूप है, जैसा कि वर्ष 2023 में G20 की उसकी अध्यक्षता से स्पष्ट है, जहाँ उसने ग्लोबल साउथ के लिये पहल की है।
      • एक सफल UBI कार्यक्रम भारत की विकास कूटनीति का आधार बन सकता है, ठीक उसी तरह जैसे इसके डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना पहलों को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली है।
  • अत्यधिक गरीबी और कुपोषण से निपटना: महत्त्वपूर्ण आर्थिक विकास के बावजूद, भारत अभी भी अत्यधिक गरीबी और कुपोषण से जूझ रहा है। 
    • विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति- 2023 के अनुसार, भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा पाएगी और 39% को पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिल पाएंगे।
      • वर्ष 2024 के लिये ग्लोबल हंगर इंडेक्स में कहा गया है कि भारत में भुखमरी का स्तर 'गंभीर' है। 
      • इसमें भारत को 127 देशों में 105वाँ स्थान दिया गया है, तथा इसका स्कोर 27.3 है।
    • UBI से निर्धनतम लोगों की आय में प्रत्यक्ष और तत्काल वृद्धि हो सकती है, जिससे अतिनिर्धनता को कम करने में मदद मिलेगी
  • उद्यमशीलता और नवप्रवर्तन को बढ़ावा: बुनियादी वित्तीय सुरक्षा प्रदान करके, UBI अधिक भारतीयों को उद्यमशीलता और नवोन्मेषी विचारों को आगे बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है। 
    • यह विशेष रूप से प्रासंगिक है, क्योंकि भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में प्रयास कर रहा है तथा स्टार्टअप्स पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 
    • UBI सूक्ष्म उद्यमियों के लिये एक वास्तविक आधारभूत निधि के रूप में कार्य कर सकती है, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में जहाँ औपचारिक ऋण तक पहुँच सीमित है। 
    • यह गिग इकॉनमी वर्कर्स को भी एक स्थिर आय आधार प्रदान करके समर्थन कर सकता है, जिनकी संख्या NITI आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सत्र 2029-30 तक 23.5 मिलियन तक बढ़ने का अनुमान है।

भारत में UBI के प्रति वितर्क क्या हैं? 

  • राजकोषीय अस्थिरता: भारत में UBI को लागू करने में गंभीर राजकोषीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के हालिया आँकड़ों में कहा गया है कि सत्र 2022-23 में केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त ऋण सकल घरेलू उत्पाद का 81% था ।
    • एक व्यापक UBI कार्यक्रम के लिये यहाँ तक ​​कि मामूली स्तर पर भी, पर्याप्त अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता होगी।
    • उदाहरण के लिये वर्तमान जनसंख्या अनुमान के आधार पर, सभी वयस्कों के लिये मात्र ₹1,000 प्रति माह की UBI की लागत सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3-4.9% होगी।
      • इससे या तो अन्य आवश्यक सार्वजनिक व्यय में भारी कटौती करनी पड़ेगी या असह्य राजकोषीय घाटा उत्पन्न हो जाएगा। 
    • भारत के राजकोषीय समेकन पथ के बारे में हाल की बहस, जिसमें सरकार ने सत्र 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% तक कम करने का लक्ष्य रखा है, ऐसे विशाल नए व्यय कार्यक्रम को शुरू करने की चुनौतियों को उजागर करती है।
  • मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: UBI जैसा बड़े पैमाने पर नकद अंतरण कार्यक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण मुद्रास्फीति संबंधी दबाव उत्पन्न कर सकता है। 
    • भारत के मुद्रास्फीति के साथ हाल के संघर्ष को देखते हुए यह विशेष रूप से चिंताजनक है– उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति सितंबर 2024 में बढ़कर 5.49% हो गई । 
    • UBI के माध्यम से आकस्मिक नकद-प्रवाह से मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति हो सकती है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ आपूर्ति की कमी है। 
  • श्रम बाज़ार में विकृतियाँ: आलोचकों का तर्क है कि UBI रोज़गार के प्रति हतोत्साहन उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से कम वेतन वाले क्षेत्रों में, जो भारत की अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। 
    • शहरी क्षेत्रों में श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) अप्रैल-जून 2024 में 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये केवल 46.8% था। एक गारंटीकृत आय इसे और कम कर सकती है, विशेषकर सीमांत श्रमिकों के बीच। 
    • बिना किसी काम की आवश्यकता के UBI का संभावित रूप से स्पष्ट प्रभाव हो सकता है। इससे कृषि और निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों जो भारत की आर्थिक वृद्धि के लिये महत्वपूर्ण हैं, में श्रम की कमी बढ़ सकती है
  • लक्ष्य निर्धारण और समानता संबंधी चिंताएँ: परिभाषा के अनुसार एक सार्वभौमिक कार्यक्रम निर्धन और संपन्न दोनों को लाभ प्रदान करेगा, जिससे समानता और सीमित संसाधनों के कुशल उपयोग पर प्रश्न उठेंगे। 
    • भारत विश्व के सर्वाधिक असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है- सार्वभौमिक अंतरण को प्रतिगामी माना जा सकता है। 
    • उच्च आय वर्ग को UBI प्रदान करने की अवसर लागत महत्त्वपूर्ण है। यह स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी अवसंरचना की तत्काल आवश्यकताओं वाली विकासशील अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक संसाधनों के सबसे प्रभावी उपयोग को लेकर नैतिक प्रश्न उठाता है।
  • कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियाँ: भारत का विविध और जटिल सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य UBI कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। 
    • वित्तीय समावेशन में प्रगति के बावजूद ( सत्र 2020-21 में 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 90% लोगों के पास किसी औपचारिक वित्तीय संस्थान में खाता था), सीमांत तक वितरण एक चुनौती बनी हुई है। 
    • पहचान सत्यापन, नेटवर्क कनेक्टिविटी और बैंकिंग एक्सेस जैसे मुद्दे अपवर्जन त्रुटियों को जन्म दे सकते हैं। इसके अलावा धोखाधड़ी और लीकेज की संभावना भी बहुत अधिक है। 
  • अवसर लागत और विकास संबंधी समझौता: सरकारी व्यय का एक बड़ा हिस्सा UBI को आवंटित करने से स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बुनियादी अवसंरचना जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश में कमी आ सकती है। 
    • भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय GDP के 2.1% पर (कम) बना हुआ है। साथ ही, पिछले दशक में शिक्षा पर सरकारी व्यय पहले ही GDP के 3.1% से घटकर 2.9% रह गया है। UBI में संसाधनों को मोड़ने से इन महत्त्वपूर्ण विकासात्मक क्षेत्रों में प्रगति में और बाधा आ सकती है। 
  • वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: UBI के कार्यान्वयन से भारत की वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रभाव पड़ सकता है, विशेष रूप से श्रम-प्रधान उद्योगों में।
    • टेक्सटाइल और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त आंशिक रूप से इसकी कम श्रम लागत के कारण है।
    • भारत में, औसत फैक्ट्री कर्मचारी को प्रति घंटे 2 अमेरिकी डॉलर से भी कम भुगतान किया जाता है। यह लागत लाभ विदेशी निवेश को आकर्षित करने और निर्यात को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण रहा है। हालाँकि, UBI से वेतन पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे संभावित रूप से यह प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त कम हो सकती है।

विश्व भर में प्रमुख UBI प्रयोग क्या हैं? 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • अलास्का स्थायी निधि: वर्ष 1982 से, नागरिकों को राज्य के तेल और गैस राजस्व से प्रतिवर्ष 1,000-2,000 अमेरिकी डॉलर प्राप्त होते हैं।
    • स्वतंत्रता लाभांश: वर्ष 2020 के राष्ट्रपति अभियान में एंड्रयू यांग द्वारा प्रस्तावित, स्वचालन के कारण नौकरी के नुकसान को दूर करने के लिये प्रत्येक अमेरिकी वयस्क को 1,000 अमेरिकी डॉलर मासिक देने की पेशकश।
  • नॉर्वे:
    • नॉर्वे भले ही UBI वाला देश नहीं है, लेकिन अपने कल्याणकारी राज्य मॉडल के कारण यह बहुत हद तक UBI जैसा ही है। सभी नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा के माध्यम से आय तक पहुँच प्राप्त है। 
    • हालाँकि, प्राप्तकर्त्ताओं को नौकरी की तलाश और करों का भुगतान जैसी शर्तों को पूरा करना होगा।
  • फिनलैंड:
    • वर्ष 2016 में, फिनलैंड ने 2,000 बेरोज़गार नागरिकों के साथ एक मूलभूत आय प्रयोग शुरू किया, जिन्हें प्रति माह 640 अमेरिकी डॉलर दिये गए। 
    • इस कार्यक्रम से प्रतिभागियों के स्वास्थ्य और खुशी में सुधार हुआ, तथा उन्हें बेरोज़गारी पात्रता प्रमाण देने के नौकरशाही बोझ से भी मुक्ति मिली।
  • ब्राज़ील:
    • बोल्सा फैमिलिया: वर्ष 2004 में शुरू किया गया UBI जैसा यह कार्यक्रम ब्राज़ील के सबसे जरूरतमंद 25% लोगों को न्यूनतम वेतन का 20% प्रदान करता है, जिससे उन्हें भोजन, कपड़े और स्कूली शिक्षा की आपूर्ति जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलती है।
    • सैंटो एंटोनियो डो पिनहाल: पहली वास्तविक UBI प्रणालियों में से एक, जहाँ दीर्घकालिक निवासियों को शहर के कर राजस्व का एक हिस्सा प्राप्त होता है।
    • क्वाटिंगा वेल्हो: वर्ष 2008 से सक्रिय एक निजी वित्तपोषित UBI पायलट योजना ने विशेष रूप से बच्चों में जीवन-स्थिति, स्वास्थ्य और पोषण में सुधार किया है।

भारत सार्वभौमिक बुनियादी आय के कार्यान्वयन का मार्ग कैसे प्रशस्त कर सकता है?

  • चरणबद्ध कार्यान्वयन और पायलट कार्यक्रम: भारत को UBI की प्रभावशीलता का परीक्षण करने और कार्यान्वयन चुनौतियों की पहचान करने के लिये विविध क्षेत्रों में लक्षित पायलट कार्यक्रमों के साथ शुरुआत करनी चाहिये।
    • सिक्किम राज्य द्वारा वर्ष 2019 में वर्ष 2022 तक UBI लागू करने का प्रस्ताव, (हालाँकि विलंबित है) एक संभावित मॉडल प्रस्तुत करता है। 
    • SEWA भारत और मध्य प्रदेश में UNICEF के अध्ययन (सत्र 2011-2012) जैसे पिछले नकद अंतरण प्रयोगों की सफलता के आधार पर, भारत द्वारा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जा सकता है, जिसमें विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संदर्भ शामिल होंगे।
    • दीर्घकालिक प्रभाव देखने के लिये इन पायलट कार्यक्रमों को कम से कम 2-3 वर्षों तक चलाया जाना चाहिये।
  • डिजिटल अवसंरचना का लाभ उठाना: भारत की सुदृढ़ डिजिटल अवसंरचना, विशेष रूप से JAM (जन धन-आधार-मोबाइल) त्रिमूर्ति, UBI कार्यान्वयन के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करती है।
    • UBI के लिये आधार तैयार करने हेतु भारत को सीमांत कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • डिजिटल भुगतान प्रणालियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिये भारतनेट परियोजना और डिजिटल साक्षरता अभियान (DISHA) को जोड़ा जाना चाहिये और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विस्तार किया जाना चाहिये।
    • इन कदमों से केवल UBI वितरण में सुविधा होगी बल्कि वित्तीय समावेशन और डिजिटल सशक्तीकरण को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • मौजूदा योजनाओं का क्रमिक समेकन: UBI की ओर आकस्मिक संक्रमण के बजाय, भारत को अपनी मौजूदा सामाजिक कल्याण योजनाओं को धीरे-धीरे समेकित करना चाहिये। 
    • यह प्रक्रिया प्रत्यक्ष नकद अंतरण के साथ चरणबद्ध प्रतिस्थापन के लिये अतिव्यापी और अकुशल कार्यक्रमों की पहचान करके शुरू की जा सकती है।
      • उदाहरण के लिये उर्वरक सब्सिडी को PM-किसान योजना की तरह किसानों को सीधे भुगतान में परिवर्तित किया जा सकता है। 
    • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को शहरी क्षेत्रों में आंशिक रूप से नकद अंतरण द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जहाँ बाज़ार तक पहुँच बेहतर है, जबकि खाद्य असुरक्षित क्षेत्रों में वस्तु अंतरण को जारी रखा जा सकता है। 
      • इस क्रमिक दृष्टिकोण से सुगम परिवर्तन संभव होगा तथा लाभार्थियों पर पड़ने वाले प्रभाव का बेहतर आकलन हो सकेगा।
  • प्रगतिशील वित्तपोषण तंत्र: UBI को वित्तीय रूप से संधारणीय बनाने के लिये भारत को अपने कर आधार का विस्तार करने और नवीन वित्तपोषण तंत्रों की खोज़ करने की आवश्यकता है। 
    • GST संग्रह में हालिया वृद्धि, जो मार्च 2024 में ₹1.78 लाख करोड़ तक पहुँच गई, राजस्व में वृद्धि की संभावना को दर्शाता है। 
    • इसके अतिरिक्त, प्रतिगामी सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाकर संसाधनों को मुक्त किया जा सकता है, जैसे कि LPG सब्सिडी, जो प्रायः उच्च आय वर्ग को लाभ पहुँचाती है। 
    • कॉर्पोरेट कर छूट में चरणबद्ध कटौती, जो सत्र 2020-21 में ₹1.03 लाख करोड़ थी, भी UBI फंडिंग में योगदान दे सकती है।
  • अनुकूली भुगतान संरचना: कार्य में बाधा उत्पन्न करने वाली चिंताओं को दूर करने तथा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये भारत एक अनुकूली UBI संरचना को लागू कर सकता है। 
    • इसमें सभी के लिये एक आधार भुगतान शामिल हो सकता है, तथा बुजुर्गों, दिव्यांग जनों या आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों जैसे कमज़ोर समूहों के लिये अतिरिक्त राशि शामिल हो सकती है। 
    • भुगतान को मुद्रास्फीति के अनुसार अनुक्रमित किया जा सकता है। यह संरचना चीन की डिबाओ प्रणाली के समान होगी, जो आधारभूत जीवनयापन भत्ता प्रदान करती है।
  • कौशल विकास और रोज़गार कार्यक्रमों के साथ एकीकरण: श्रम बाज़ार भागीदारी पर संभावित नकारात्मक प्रभावों का मुकाबला करने के लिये UBI को कौशल विकास और रोज़गार कार्यक्रमों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये। 
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) 3.0 का विस्तार किया जा सकता है और इसे UBI प्राप्तकर्त्ताओं से जोड़ा जा सकता है।
    • प्रशिक्षण के बाद निश्चित अवधि के लिये UBI राशि से जुड़े कौशल विकास कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये प्राप्तकर्त्ताओं को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
    • यह उपागम भारत के जनांकिक लाभांश का लाभ उठाने के लक्ष्य के अनुरूप होगा जो भारत कौशल रिपोर्ट- 2022 में उजागर किये गए कौशल अंतर को दूर करने में मदद कर सकता है।
  • सुदृढ़ निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली: भारत में UBI की सफलता के लिये एक व्यापक निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली का क्रियान्वयन महत्त्वपूर्ण है। 
    • इस प्रणाली को गरीबी, असमानता और समग्र आर्थिक संकेतकों पर कार्यक्रम के प्रभाव को ट्रैक करने के लिये बिग डेटा एनालिटिक्स और AI का लाभ उठाने की आवश्यकता है। 
    • इंडिया स्टैक के डेटा सशक्तिकरण और संरक्षण आर्किटेक्चर (DEPA) का उपयोग प्रभाव आकलन के लिये लाभार्थियों के वित्तीय डेटा के सुरक्षित और सहमतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये किया जा सकता है। 
    • पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये मनरेगा के समान नियमित सामाजिक ऑडिट अनिवार्य किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त अर्थशास्त्रियों, सामाजिक वैज्ञानिकों और नीति विशेषज्ञों वाला एक स्वतंत्र मूल्यांकन बोर्ड का गठन किया जाना चाहिये जो कार्यक्रम अनुकूलन के लिये आवधिक मूल्यांकन और सिफारिशें प्रदान कर सके।

निष्कर्ष: 

हालाँकि UBI कोई रामबाण उपाय नहीं हो सकता, लेकिन पायलट कार्यक्रमों के माध्यम से चरणबद्ध कार्यान्वयन और PM-KISAN जैसी मौजूदा नकद अंतरण योजनाओं का लाभ उठाकर अधिक समावेशी और अनुकूल अर्थव्यवस्था की ओर एक व्यवहार्य मार्ग प्रदान किया जा सकता है। इसकी सफलता के लिये ट्रेड-ऑफ पर सावधानीपूर्वक विचार करना और एक संतुलित उपागम अपनाना आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में गरीबी और असमानता को दूर करने के लिये सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) को एक समाधान के रूप में प्रस्तावित किया गया है। इसके संभावित लाभों और चुनौतियों पर विचार करते हुए, भारतीय संदर्भ में UBI को लागू करने की व्यवहार्यता की विवेचना कीजिये। 

 



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