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भारतीय अर्थव्यवस्था

यूनिवर्सल बेसिक इनकम

  • 17 Jun 2023
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 14/06/2023 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘The Universal Basic Income debate’’ लेख पर आधारित है। इसमें ‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ और इस आशाजनक अवधारणा पर गंभीर विचार एवं प्रयोग की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है। 

प्रिलिम्स के लिये:

यूनिवर्सल बेसिक इनकम, मनरेगा, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, नकारात्मक आयकर, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

यूनिवर्सल बेसिक इनकम के गुण एवं दोष, इसकी व्यवहार्यता और वैकल्पिक उपाय

सार्वभौमिक बुनियादी आय या  यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income- UBI) प्रदान किया जाए या नहीं, एक ऐसा विचार है जिस पर चर्चा थमती नज़र नहीं आ रही। जहाँ पूर्व में मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अरविंद सुब्रमण्यन ने वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसे ‘अवधारणात्मक रूप से आकर्षक विचार’ के रूप में प्रस्तावित किया था, तो वहीं वर्तमान CEA वी. अनंत नागेश्वरन ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह देश के लिये आवश्यक नहीं है। अभी कुछ समय पूर्व ही प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाहकार परिषद (Economic Advisory Council) द्वारा सौंपी गई असमानता पर एक रिपोर्ट में भी UBI की अनुशंसा की गई थी। नीति आयोग के एक सदस्य द्वारा भी अर्द्ध-सार्वभौमिक बुनियादी ग्रामीण आय के उपबंध का समर्थन किया गया था।

वर्तमान CEA मानते हैं कि UBI की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारत को अपने लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। उन्होंने यह भी कहा इसे निकट अवधि के एजेंडे में शामिल नहीं होना चाहिये।

सार्वभौमिक बुनियादी आय की अवधारणा

  • सार्वभौमिक बुनियादी आय एक सामाजिक कल्याण प्रस्ताव है जिसमें सभी लाभार्थियों को बिना शर्त हस्तांतरण भुगतान के रूप में नियमित रूप से एक गारंटीकृत आय प्राप्त होती है।  
  • एक बुनियादी आय प्रणाली के लक्ष्यों में गरीबी को कम करना और ऐसे अन्य आवश्यकता-आधारित सामाजिक कार्यक्रमों को प्रतिस्थापित करना शामिल है जिसके लिये संभावित रूप से अधिक नौकरशाही संलग्नता की आवश्यकता होती है। 
  • UBI आम तौर पर बिना शर्तों के या न्यूनतम शर्तों के साथ सभी (या आबादी के एक अत्यंत बड़े भाग) तक पहुँच बनाने का लक्ष्य रखती है।

सार्वभौमिक बुनियादी आय के गुण एवं दोष

  • गुण:
    • गरीबी उन्मूलन: यह सभी के लिये, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर और हाशिये पर स्थित समूहों के लिये एक न्यूनतम आय सीमा प्रदान करके गरीबी और आय असमानता को कम करती है। यह लोगों को खाद्य, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को वहन करने में भी मदद कर सकती है।
    • एक स्वास्थ्य प्रोत्साहक: गरीबी और वित्तीय असुरक्षा से संबद्ध तनाव, दुश्चिंता और अवसाद को कम करके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाती है। यह लोगों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छता और पोषण तक पहुँच बनाने में भी सक्षम कर सकती है।
    • सरलीकृत कल्याण प्रणाली: यह विभिन्न लक्षित सामाजिक सहायता कार्यक्रमों को प्रतिस्थापित कर मौजूदा कल्याण प्रणाली को सुव्यवस्थित कर सकती है। यह प्रशासनिक लागत को कम करती है और साधन-परीक्षण, पात्रता आवश्यकताओं एवं बेनिफिट क्लिफ (benefit cliffs) से जुड़ी जटिलताओं को समाप्त करती है।
    • व्यक्तिगत स्वतंत्रता में वृद्धि: UBI लोगों को वित्तीय सुरक्षा और उनके कार्य, शिक्षा एवं व्यक्तिगत जीवन के बारे में चयन की अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती है।
    • आर्थिक प्रोत्साहक: यह प्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों के हाथों में धन का प्रवेश कराती है, जो उपभोक्ता व्यय को उत्प्रेरित करती है और आर्थिक विकास को गति देती है। यह स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा दे सकती है, वस्तुओं एवं सेवाओं के लिये मांग उत्पन्न कर सकती है और रोज़गार के अवसर सृजित कर सकती है।
      • यह लोगों को उद्यमशीलता की राह पर आगे बढ़ने, जोखिम उठाने और रचनात्मक या सामाजिक रूप से लाभकारी गतिविधियों में संलग्न होने के लिये सशक्त कर सकती है जो अन्यथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं भी हो सकते हैं।
  • दोष:
    • लागत और राजकोषीय संवहनीयता: सार्वभौमिक बुनियादी आय अत्यधिक लागत रखती है और इसके वित्तपोषण के लिये उच्च करों, व्यय में कटौती या ऋण की आवश्यकता होगी। यह मुद्रास्फीति उत्पन्न कर सकती है, श्रम बाज़ार को विकृत कर सकती है और आर्थिक विकास को मंद कर सकती है।
    • विकृत प्रोत्साहन का निर्माण: यह काम करने की प्रेरणा को कम करती है और उत्पादकता एवं दक्षता में कमी लाती है। यह निर्भरता, पात्रता और आलस्य की एक संस्कृति का भी निर्माण कर सकती है। यह लोगों को कौशल, शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त करने से भी हतोत्साहित कर सकती है।
      • वर्तमान मुख्य आर्थिक सलाहकार ने UBI पर आपत्ति जताई है क्योंकि यह आय-सृजन के अवसरों की तलाश के लिये लोगों को अपने स्वयं के प्रयास करने से रोकने में ‘विकृत प्रोत्साहन’ (perverse incentives) का निर्माण करती है। 
    • मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: यह मुद्रास्फीति संबंधी दबावों में योगदान कर सकती है। यदि सभी को एक निश्चित राशि प्राप्त होगी तो इससे वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि हो सकती है क्योंकि व्यवसाय बाज़ार में उपलब्ध अतिरिक्त आय पर कब्जा करने के लिये अपनी मूल्य निर्धारण रणनीतियों को समायोजित करते हैं।
    • निर्भरता बढ़ाने की क्षमता: सार्वभौमिक बुनियादी आय सरकारी समर्थन पर लोगों की निर्भरता का निर्माण कर सकती है और इसमें एक जोखिम शामिल है कि कुछ लोग आत्मसंतुष्ट या मूल आय पर आश्रित बन सकते हैं, जिससे व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के लिये प्रेरणा कम हो सकती है।

UBI भारत में व्यवहार्य क्यों नहीं है?

  • सामर्थ्य/वहनीयता: भारत एक बड़ी आबादी लेकिन सीमित संसाधनों वाला उभरता हुआ देश है। यहाँ प्रत्येक नागरिक को बुनियादी आय प्रदान करना बेहद महंगा सिद्ध हो सकता है, विशेष रूप से उस स्तर पर जो उनकी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त हो।
    • वर्ष 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया कि प्रत्येक भारतीय नागरिक को 7,620 रुपए प्रति वर्ष की सार्वभौमिक बुनियाद आय प्रदान करने पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 4.9% खर्च होगा, जो खाद्य, ईंधन और उर्वरक सब्सिडी पर संयुक्त व्यय से भी अधिक है।
    • UBI को वित्तपोषित करने के लिये सरकार को या तो करों में वृद्धि करनी होगी, अन्य परिव्ययों में कटौती करनी होगी या उधारी में वृद्धि करनी होगी और इन सभी के अर्थव्यवस्था एवं समाज के लिये नकारात्मक परिणाम उत्पन्न होंगे।
  • राजनीतिक व्यवहार्यता: सरकार के विभिन्न स्तरों, राजनीतिक दलों और हित समूहों के साथ भारत में एक जटिल एवं विविध राजनीतिक व्यवस्था मौजूद है। राजनेताओं, नौकरशाहों, लाभार्थियों और करदाताओं जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच UBI के लिये आम सहमति एवं समर्थन जुटाना जटिल सिद्ध हो सकता है। 
    • मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित होने वालों या वैचारिक आधार पर पुनर्वितरण का विरोध करने वालों द्वारा भी UBI को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है।
  • कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: भारत को सार्वजनिक सेवाओं के वितरण और हस्तांतरण को प्रभावी एवं कुशल तरीके से कार्यान्वित करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पहचान, लक्ष्यीकरण, वितरण, निगरानी और उत्तरदायित्व जैसे कई मुद्दे हैं जो मौजूदा कार्यक्रमों की गुणवत्ता एवं पहुँच को प्रभावित करते हैं । 
    • UBI को विश्वसनीय डेटा, प्रौद्योगिकी और संस्थानों की आवश्यकता होगी ताकि इसे उपयुक्त रूप से कार्यान्वित किया जा सके और लीकेज, भ्रष्टाचार एवं अपवर्जन त्रुटियों से बचा जा सके।
    • इसके अलावा, भारत ने अभी तक एक सार्वभौमिक आधार नामांकन हासिल नहीं किया है, इसलिये लाभार्थी की पहचान और सेवा के लक्ष्य-आधारित वितरण में समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • व्यावहारिक प्रभाव: UBI का प्राप्तकर्ताओं या वृहत रूप से समाज के व्यवहार पर अनपेक्षित या अवांछनीय प्रभाव पड़ सकता है ।
    • उदाहरण के लिये, UBI कार्य करने या कौशल हासिल करने की प्रेरणा को कम कर सकती है, जिससे उत्पादकता एवं दक्षता में कमी आ सकती है।
    • यह प्राप्तकर्ताओं के बीच निर्भरता, पात्रता या आलस्य की संस्कृति भी उत्पन्न कर सकती है। 
    • यह लोगों को उन सामाजिक या नागरिक गतिविधियों में भाग लेने से भी हतोत्साहित कर सकती है जो साझा भलाई में योगदान करती हैं।

UBI के स्थान पर भारत कौन-से विकल्प चुन सकता है?

  • Quasi UBRI: अर्द्ध-सार्वभौमिक बुनियादी ग्रामीण आय (Quasi-Universal Basic Rural Income- QUBRI) सार्वभौमिक बुनियादी आय का एक रूप है, जिसे ऐसे हस्तांतरण के रूप में परिभाषित किया गया है जो सार्वभौमिक रूप से, बिना शर्त और नकद रूप में प्रदान किया जाता है। भारत में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को (उन परिवारों को छोड़कर जो प्रकट रूप से समृद्ध हैं और कृषि संकट का सामना कर सकते हैं) 18,000 रुपए प्रति वर्ष का प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण (Direct Cash Transfer) प्रदान करने का विचार पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefits Transfers- DBT): इस योजना के तहत सब्सिडी या नकद को प्रत्यक्ष रूप से लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित किया जाता है ( बजाय इसके कि बिचौलियों की मदद ली जाए या वस्तु या सेवाओं के रूप में हस्तांतरण किया जाए)। DBT का उद्देश्य कल्याणकारी वितरण की दक्षता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही में सुधार के साथ-साथ लीकेज और भ्रष्टाचार को कम करना है।
  • सशर्त नकद हस्तांतरण (Conditional Cash Transfers- CCT): इस योजना के तहत गरीब परिवारों को इस शर्त पर नकद राशि प्रदान की जाती है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने, उनका टीकाकरण कराने करना या स्वास्थ्य जाँच में भाग लेने जैसी कुछ शर्तों की पूर्ति करेंगे। CCT का उद्देश्य मानव पूंजी और गरीबों के दीर्घकालिक परिणामों में सुधार के साथ-साथ व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करना है।
  • अन्य आय सहायता योजनाएँ: इन योजनाओं के तहत किसानों, महिलाओं, वृद्धजनों, दिव्यांगों जैसे लोगों के ऐसे विशिष्ट समूहों को नकद या अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है जो इसकी आवश्यकता रखते हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य इन समूहों के समक्ष विद्यमान विशिष्ट भेद्यताओं और चुनौतियों का समाधान करना है, साथ ही साथ उनके सशक्तीकरण एवं समावेशन को बढ़ावा देना है।
  • रोज़गार गारंटी योजनाएँ: मनरेगा (MGNREGA) के साथ भारत के पास पहले से ही इसका एक सफल उदाहरण मौजूद है। ये योजनाएँ ग्रामीण परिवारों को एक वर्ष में निश्चित दिनों के लिये रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करती हैं। ऐसे कार्यक्रमों का विस्तार और सुदृढ़ीकरण यह सुनिश्चित कर सकता है कि व्यक्तियों की रोज़गार अवसरों तक पहुँच हो और वे आजीविका कमा सकें।
  • कौशल विकास एवं प्रशिक्षण: कौशल विकास एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश से व्यक्तियों को स्थायी रोज़गार सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक कौशल से लैस किया जा सकता है। कौशल संवर्द्धन पर ध्यान केंद्रित करके सरकार व्यक्तियों को उपयुक्त नौकरी खोजने और अपनी आय संभावनाओं में सुधार करने में सक्षम बना सकती है।
  • सार्वभौमिक बुनियादी सेवाएँ (Universal Basic Services): भारत एक सार्वभौमिक बुनियादी आय प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ जल और स्वच्छता जैसी आवश्यक सेवाओं के प्रावधान को प्राथमिकता दे सकता है। सरकार सभी नागरिकों के लिये इन सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित कर समग्र जीवन स्तर में सुधार ला सकती है और असमानता को कम कर सकती है।
  • परिसंपत्ति-निर्माण नीतियाँ: ये ऐसी नीतियाँ हैं जिनका उद्देश्य निम्न आय वाले लोगों को बचत, शिक्षा, आवास या व्यावसायिक पूंजी जैसी परिसंपत्ति का संचयन करने में मदद करना है। उनमें मैचिंग फंड, कर प्रोत्साहन, सब्सिडी या संपत्ति संचय के लिये अनुदान शामिल हो सकते हैं। परिसंपत्ति-निर्माण नीतियों के समर्थकों का तर्क है कि वे UBI की तुलना में बेहतर ढंग से दीर्घावधिक आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक गतिशीलता और निम्न आय वाले लोगों के सशक्तीकरण को बढ़ावा दे सकते हैं। इसके साथ ही, वे बचत और निवेश की संस्कृति को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
  • समावेशी विकास: लोगों को एक निश्चित राशि प्रदान करने के बजाय उनके लिये अधिक अवसर और क्षमताओं के निर्माण पर ध्यान देना चाहिये ताकि वे अर्थव्यवस्था और समाज में भागीदारी एवं योगदान कर सकें। समावेशी विकास गरीबी और अपवर्जन के संरचनात्मक कारणों—जैसे भेदभाव और शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसंरचना एवं सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच की कमी आदि को भी संबोधित करता है।

अभ्यास प्रश्न: सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) के गुण एवं दोषों पर विचार कीजिये और भारतीय संदर्भ में इसकी व्यवहार्यता एवं प्रभावशीलता पर अपनी राय दीजिये।

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