भारतीय अर्थव्यवस्था
समुत्थानशील भारत के लिये स्टार्टअप को पुनर्जीवित करना
यह एडिटोरियल 13/01/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित "Startup India has fuelled entrepreneurial spirit" पर आधारित है। यह लेख भारत की स्टार्टअप इंडिया पहल के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है, जो एक समृद्ध स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ावा देते हुए स्टार्टअप को फिनटेक और हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में वैश्विक अग्रणियों के रूप में स्थान दिलाता है। इस गति को बनाए रखने के लिये, विनियामक बाधाओं को दूर करना और उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देना अनिवार्य है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत की स्टार्टअप इंडिया पहल, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग, एग्रीटेक स्टार्टअप, नवीकरणीय ऊर्जा, डीप टेक, भारत का MSME क्षेत्र, आयकर अधिनियम-1961, विश्व बैंक, ग्लोबल टैलेंट इंडेक्स- 2023, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम- 2023, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण, कृषि अवसंरचना कोष मेन्स के लिये:भारत की आर्थिक संवृद्धि में स्टार्टअप की भूमिका, भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम से संबंधित प्रमुख मुद्दे। |
वर्ष 2016 में शुरू की गई भारत की स्टार्टअप इंडिया पहल ने देश को वैश्विक नवाचार शक्ति के रूप में स्थापित किया है, 500 से अधिक इनक्यूबेशन केंद्रों को बढ़ावा दिया है तथा स्टार्टअप के लिये एक सुदृढ़ इकोसिस्टम तैयार किया है। इस कार्यक्रम ने प्रशासनिक बाधाओं को तोड़ते हुए टियर 2 और 3 शहरों के उद्यमियों को समान स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाकर नवाचार को लोकतांत्रिक बनाया है। फिनटेक से लेकर हेल्थटेक तक, भारतीय स्टार्टअप वैश्विक अग्रणियों के रूप में उभरे हैं। यद्यपि भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम अपार संभावनाओं को दर्शाता है, फिर भी इस विकास प्रक्षेपवक्र को बनाए रखने तथा वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में इसकी क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये नियामक कार्यढाँचे में आने वाली चुनौतियों से निपटने के साथ ही मज़बूत उद्योग-अकादमिक सहयोग की आवश्यकता है।
भारत की आर्थिक संवृद्धि में स्टार्टअप्स की क्या भूमिका है?
- रोज़गार सृजन: स्टार्टअप रोज़गार सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में उभरे हैं, जो IT, फिनटेक और ई-कॉमर्स जैसे विविध क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं।
- 31 दिसंबर 2023 तक, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने कुल 1,17,254 स्टार्टअप को मान्यता दी।
- इन स्टार्टअप्स ने 12.42 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन किया है, जो अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- स्टार्टअप लॉजिस्टिक्स, मार्केटिंग और विक्रेता प्रबंधन जैसी सहायक सेवाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रोज़गार को भी बढ़ावा देते हैं, जिससे समग्र रोज़गार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिलता है।
- 31 दिसंबर 2023 तक, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) ने कुल 1,17,254 स्टार्टअप को मान्यता दी।
- नवाचार और प्रौद्योगिकी अंगीकरण को बढ़ावा देना: स्टार्टअप तकनीकी नवाचार में सबसे आगे हैं, जो वास्तविक विश्व की चुनौतियों का समाधान करने के लिये AI, ब्लॉकचेन और IoT का लाभ उठाते हैं।
- उदाहरण के लिये, एथर एनर्जी अपने अत्याधुनिक इलेक्ट्रिक स्कूटरों के साथ भारत के EV क्षेत्र में क्रांति ला रही है, जबकि गरुड़ एयरोस्पेस के ड्रोन कृषि उत्पादकता में बदलाव ला रहे हैं।
- भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय कम बना हुआ है, लेकिन स्टार्टअप एग्रीटेक, एडटेक और हेल्थ-टेक जैसे क्षेत्रों में नवाचार करके इस अंतर की पूर्ति कर रहे हैं।
- निर्यात और वैश्विक पहुँच को बढ़ावा देना: स्टार्टअप्स ने अपने कारोबार को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक विस्तारित करके भारत की निर्यात क्षमताओं को बहुत हद तक बढ़ाया है।
- रेज़रपे और पेटीएम जैसी फिनटेक कंपनियाँ अब वैश्विक स्तर पर भुगतान समाधान निर्यात कर रही हैं, जबकि ज़ोहो और फ्रेशवर्क्स जैसी SaaS (सॉफ्टवेयर-ऐज़-अ-सर्विस) फर्म अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों पर प्रभावी बने हुए हैं। वर्ष 2030 तक अकेले भारत के SaaS सेक्टर से 100 बिलियन डॉलर के राजस्व की उम्मीद है, जो वर्ष 2023 में 13 बिलियन डॉलर (NITI आयोग) था। यह वैश्विक उपस्थिति भारत के ब्रांड मूल्य को बढ़ाती है और विदेशी मुद्रा आय में योगदान देती है, जिससे देश के भुगतान संतुलन को सहारा मिलता है।
- वित्तीय समावेशन का समर्थन: फिनटेक क्षेत्र के स्टार्टअप वंचित आबादी को सस्ती और सुलभ डिजिटल वित्तीय सेवाएँ प्रदान करके वित्तीय समावेशन का विस्तार कर रहे हैं।
- फोनपे, भारतपे और पेटीएम जैसी कंपनियों ने डिजिटल भुगतान को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाया है, दिसंबर 2024 में UPI लेन-देन रिकॉर्ड 16.73 बिलियन तक पहुँच गया।
- सूक्ष्म ऋण तथा नियोबैंकिंग के स्टार्टअप MSME और व्यक्तियों को ऋण तक पहुँच प्रदान कर उन्हें सशक्त बना रहे हैं।
- भारत विश्व के सबसे तेज़ी से बढ़ते फिनटेक बाज़ारों में से एक है, जिसका वर्तमान आकार 584 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और वर्ष 2025 तक इसके 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना: स्टार्टअप ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर ग्रामीण-शहरी विभाजन को कम कर रहे हैं।
- DeHaat और क्रॉपिन जैसे एग्रीटेक स्टार्टअप किसानों को रियल टाइम सॉल्यूशन प्रदान कर रहे हैं, जिससे उत्पादकता एवं आय में वृद्धि हो रही है।
- आने वाले वर्षों में भारतीय कृषि प्रौद्योगिकी उद्योग में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है, तथा अनुमान है कि वर्ष 2025 तक इसका राजस्व 204 बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- इसके अलावा, विक्रम सोलर जैसे सोलर स्टार्टअप ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं, महंगे डीज़ल पंपों पर निर्भरता कम कर रहे हैं और सतत् ग्रामीण आजीविका का समर्थन कर रहे हैं। नवाचार का यह विकेंद्रीकरण समान आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहा है।
- महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देना: स्टार्टअप महिला उद्यमियों को सशक्त बना रहे हैं तथा उन्हें अर्थव्यवस्था में सक्रिय रूप से भाग लेने के अवसर प्रदान कर रहे हैं।
- मन्न देशी फाउंडेशन जैसे उद्यम मार्गदर्शन और वित्तपोषण के माध्यम से महिला-नेतृत्व वाले उद्यमों को बढ़ावा दे रहे हैं।
- आज भारत में 18% स्टार्टअप का नेतृत्व महिलाएँ कर रही हैं, जो अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
- IIM बैंगलोर में NSRCEL का महिला स्टार्टअप कार्यक्रम, कोटक की CSR पहल और स्टार्टअप इंडिया के तहत वित्तीय प्रोत्साहन जैसी पहलें एक अधिक समावेशी स्टार्टअप इकोसिस्टम का निर्माण कर रही हैं।
- हरित एवं सतत् विकास को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय क्षेत्र में स्टार्टअप्स जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- ReNew पावर और इकोज़ेन सॉल्यूशन्स सौर एवं नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण में अग्रणी हैं, जबकि सेरो रीसाइक्लिंग एंड-ऑफ-लाइफ (ELV) वाहनों के पुनर्चक्रण पर केंद्रित है।
- भारत के नवीकरणीय ऊर्जा स्टार्टअप वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय क्षमता के लक्ष्य के अनुरूप हैं, तथा हरित ऊर्जा बाज़ार में 15% CAGR (MNRE) की दर से वृद्धि होने की उम्मीद है।
- ये स्टार्टअप न केवल आर्थिक विकास में योगदान देते हैं बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देते हैं।
- विदेशी निवेश आकर्षित करना: भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिये एक आकर्षण का केंद्र बन गया है।
- वैश्विक निवेशक भारत के विशाल बाज़ार, मज़बूत डिजिटल बुनियादी अवसंरचना और फलते-फूलते उद्यमशीलता की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में डीप टेक (R&D-उन्मुख) क्षेत्र में लगातार निवेश बढ़ रहा है, जिसकी कुल फंडिंग 6.73 बिलियन डॉलर है।
- ओला इलेक्ट्रिक और लेंसकार्ट जैसे स्टार्टअप ने अरबों डॉलर का वित्त पोषण जुटाया है, जिससे आर्थिक विकास एवं नवाचार को बढ़ावा मिला है।
- MSME और सहायक उद्योगों को समर्थन: स्टार्टअप डिजिटल उपकरण, ऋण तथा बाज़ार अभिगम प्रदान करके MSME के लिये सक्षमकर्त्ता के रूप में कार्य करते हैं।
- भारत का MSME क्षेत्र जो सकल घरेलू उत्पाद में 30% का योगदान देता है और 150 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार देता है, इन तकनीक-संचालित समाधानों से लाभान्वित हो रहा है।
- स्टार्टअप्स और MSME के बीच यह तालमेल आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ करता है और भारत की अर्थव्यवस्था की समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार कर रहा है।
भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- प्रारंभिक चरण के स्टार्टअप के लिये वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ: कई प्रारंभिक चरण के स्टार्टअप को सीमित निवेशकों और उद्यम पूंजी की रुचि के कारण पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त करने में संघर्ष करना पड़ता है।
- वर्ष 2023 में, फंडिंग विंटर के परिणामस्वरूप लगभग 35,000 भारतीय स्टार्टअप बंद हो गए, जिससे भारतीय स्टार्टअप के लिये फंड जुटाने में लगभग 73% की गिरावट आई।
- मज़बूत बीज वित्त पोषण तंत्र की अनुपस्थिति और विदेशी निवेशकों पर निर्भरता के कारण, आरंभिक चरणों में नवाचारों को पोषित करने में अंतराल उत्पन्न होता है।
- विनियामक और अनुपालन भार: स्टार्टअप इंडिया पहल के तहत सुधारों के बावजूद, स्टार्टअप्स को जटिल विनियामक आवश्यकताओं का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से कराधान और कंपनी पंजीकरण से संबंधित।
- उदाहरण के लिये, एंजल टैक्स मुद्दे (धारा 56(2)(viib), आयकर अधिनियम-1961 अभी भी विदेशी निवेश के लिये अनिश्चितता उत्पन्न कर रहे हैं, जिससे प्रारंभिक चरण के वित्तपोषण में बाधा आती है।
- इसके अतिरिक्त, विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में व्यवसाय शुरू करने में औसतन 18 दिन लगते हैं, जबकि OECD उच्च आय वाले देशों में, आमतौर पर केवल 5 प्रक्रियाएँ और 9 दिन लगते हैं, जो अनुपालन प्रक्रियाओं को और भी सरल बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
- कुशल प्रतिभा की कमी और प्रतिभा पलायन: स्टार्टअप्स को कुशल प्रतिभा खोज़ में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से AI, ब्लॉकचेन और IoT जैसी उभरती प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में, जबकि शीर्ष भारतीय प्रतिभाओं का प्रायः विदेश में पलायन हो जाता है।
- ग्लोबल टैलेंट इंडेक्स- 2023 में भारत 103वें स्थान पर है, जो इसे BRICS में सबसे कम वांछनीय देश बनाता है। चीन 40वें स्थान पर समूह में सबसे आगे है, उसके बाद रूस (52), दक्षिण अफ्रीका (68) और ब्राज़ील (69) हैं।
- इसके अतिरिक्त, वर्ष 2011 से अब तक 16 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता त्याग दी है, जिनमें से कई लोग अमेरिकी नवाचार केंद्रों की ओर रूख कर रहे हैं।
- प्रतिभा का यह अंतर प्रतिभा-प्रधान क्षेत्रों में भारतीय स्टार्टअप्स के विकास की गति को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
- टियर-2 और टियर-3 शहरों में सीमित बुनियादी अवसंरचना: हालाँकि छोटे शहरों से स्टार्टअप उभर रहे हैं, लेकिन मज़बूत बुनियादी अवसंरचना की कमी— जैसे: हाई-स्पीड इंटरनेट, लॉजिस्टिक्स और इनक्यूबेशन सेंटर तक पहुँच उनकी स्केलेबिलिटी को सीमित करती है।
- उदाहरण के लिये, ग्रामीण भारत में लगभग 50 प्रतिशत लोग गैर-सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता हैं, जिससे डिजिटल-प्रथम स्टार्टअप प्रभावित हो रहे हैं।
- जबकि डिजिटल इंडिया पहल जैसे कार्यक्रम कनेक्टिविटी में सुधार कर रहे हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप्स को अभी भी प्रौद्योगिकी और बुनियादी अवसंरचना का प्रभावी ढंग से लाभ उठाने में बहुत-सी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
- उद्यमिता में लैंगिक असमानता: कुछ प्रगति के बावजूद, सामाजिक बाधाओं, वित्तपोषण संबंधी पूर्वाग्रहों और सीमित मार्गदर्शन अवसरों के कारण भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम में महिला उद्यमियों का प्रतिनिधित्व कम है।
- भारत के कुल स्टार्टअप में महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप की हिस्सेदारी 18% है, लेकिन उन्हें कुल उद्यम पूंजी वित्तपोषण का 3% से भी कम प्राप्त होता है।
- NITI आयोग के अंतर्गत महिला उद्यमिता मंच (WEP) जैसी पहलों ने इन अंतरालों को दूर करने का प्रयास किया है, लेकिन महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने में संरचनात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- स्टार्टअप्स की विफलता दर: निम्नस्तरीय बिज़नेस मॉडल, बाज़ार अनुसंधान की कमी और परिचालन अक्षमताओं के कारण स्टार्टअप्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा पहले पाँच वर्षों के भीतर विफल हो जाता है।
- भारत में, लगभग 90% स्टार्टअप प्रायः अपने शुरुआती वर्षों में ही विफल हो जाते हैं। यह उच्च विफलता दर मुख्य रूप से अपर्याप्त बाज़ार अनुसंधान, निम्नस्तरीय उत्पाद-बाज़ार फिट, वित्तीय कुप्रबंधन, टीम संघर्ष और एक भरोसेमंद ब्रांड स्थापित करने में असमर्थता जैसे कारकों के कारण होती है।
- ज़िलिंगो (सिंगापुर-भारत क्रॉस-बॉर्डर स्टार्टअप) जैसी हाई-प्रोफाइल विफलताएँ स्टार्टअप इकोसिस्टम में बेहतर मार्गदर्शन, वित्तीय नियोजन और दीर्घकालिक धारणीयता रणनीतियों की आवश्यकता को उजागर करती हैं।
- कमज़ोर उद्योग-अकादमिक सहयोग: भारत में अकादमिक और स्टार्टअप के बीच मज़बूत तालमेल का अभाव है, जो नवाचार-संचालित उद्यमिता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अमेरिका जैसे देशों के विपरीत, जहाँ स्टैनफोर्ड जैसे संस्थान गूगल जैसे स्टार्टअप को आगे बढ़ा रहे हैं, भारतीय विश्वविद्यालय स्टार्टअप इकोसिस्टम में न्यूनतम योगदान देते हैं, जिससे अत्याधुनिक अनुसंधान और नवाचार स्टार्टअप इकोसिस्टम तक अभिगम सीमित हो जाती है।
- सीमित बाज़ार अभिगम और मापनीयता: स्टार्टअप्स को प्रायः घरेलू और वैश्विक बाज़ारों तक सीमित अभिगम के कारण अपने परिचालन को बढ़ाने में संघर्ष करना पड़ता है।
- उदाहरण के लिये, DeHaat जैसे कृषि प्रौद्योगिकी स्टार्टअप को सीमांत किसानों को बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं से जोड़ने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) जैसे डिजिटल मार्केटप्लेस के लिये सरकार के प्रयासों के बावजूद, स्टार्टअप्स की बाज़ार में अभिगम कम बना हुआ है।
- यह बाधा नवीन उत्पादों को व्यापक क्रेताओं तक पहुँचने से रोकती है।
- बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और बाज़ार संतृप्ति: स्टार्टअप इकोसिस्टम, विशेष रूप से ई-कॉमर्स और फिनटेक जैसे क्षेत्रों में, अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी और संतृप्त हो गया है।
- फ्लिपकार्ट, पेटीएम और अमेज़न जैसी कंपनियाँ बाज़ार पर हावी हैं, जिससे नए प्रवेशकों के लिये बहुत कम अवसर मिलते हैं।
- यह तीव्र प्रतिस्पर्द्धा नवाचार को हतोत्साहित करती है और उद्यमशीलता की विविधता को सीमित करती है।
- साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: संवेदनशील उपभोक्ता डेटा के साथ काम करने वाले स्टार्टअप, विशेष रूप से फिनटेक और स्वास्थ्य-तकनीक में, डेटा गोपनीयता एवं साइबर सुरक्षा से संबंधित बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- अकेले वर्ष 2023 में, भारत में 79 मिलियन से अधिक साइबर अटैक हुए, जो वर्ष 2022 की तुलना में 15 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है, जिससे स्टार्टअप्स के लिये स्थायित्व एवं वित्तीय जोखिम बढ़ गया है।
- यद्यपि डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम- 2023 का उद्देश्य इन चिंताओं को दूर करना है, लेकिन इसके प्रावधानों का अनुपालन छोटे स्टार्टअप्स के लिये संसाधन-गहन हो सकता है।
भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- नियामक कार्यढाँचे को सरल बनाना: सरकार को स्टार्टअप्स के लिये प्रशासनिक बाधाओं को कम करने के लिये कंपनी पंजीकरण, कर फाइलिंग और अनुपालन मानदंडों जैसी नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना चाहिये।
- राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS) जैसी पहलों को सभी राज्यों तक विस्तारित करने से समाशोधन और अनुमोदन के लिये एक ही स्थान पर समाधान उपलब्ध हो सकता है।
- एंजल टैक्स जैसी कराधान नीतियों के बारे में अस्पष्टता को दूर करने से अधिक घरेलू और विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम जैसी योजनाओं के तहत शिकायत निवारण तंत्र को सुदृढ़ करने से स्टार्टअप्स के लिये सुचारू संचालन सुनिश्चित हो सकता है।
- प्रारंभिक चरण के वित्तपोषण तक अभिगम को बेहतर करना: वित्तपोषण संबंधी अंतराल को दूर करने के लिये, सरकार को स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स (FFS) जैसी पहलों का विस्तार करना चाहिये और निजी निवेशकों के साथ सह-निवेश मॉडल पेश करना चाहिये।
- इक्विटी फंड जुटाने में चुनौतियों का सामना करने वाले स्टार्टअप्स को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये SIDBI के तहत एक समर्पित उद्यम ऋण निधि स्थापित की जा सकती है।
- अद्यतन कानूनी कार्यढाँचे के माध्यम से क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण तरीकों को बढ़ावा देने से भी छोटे निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है।
- स्टार्टअप्स के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS) जैसी क्रेडिट गारंटी योजनाओं को मज़बूत करने से स्टार्टअप्स को संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- महिला उद्यमिता को बढ़ावा देना: अनुकूलित वित्तीय प्रोत्साहन और मार्गदर्शन कार्यक्रम अधिक महिलाओं को स्टार्टअप इकोसिस्टम में प्रवेश करने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
- NITI आयोग के तहत महिला उद्यमिता मंच (WEP) के दायरे का विस्तार करके इसमें क्षेत्र-विशिष्ट प्रशिक्षण और बाज़ार संपर्क को शामिल करने से समावेशिता को बढ़ावा मिल सकता है।
- स्टार्टअप इंडिया के तहत महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप के लिये समर्पित फंड शुरू करने से वित्तपोषण में लैंगिक पूर्वाग्रहों को दूर किया जा सकता है।
- ओडिशा में मिशन शक्ति जैसी राज्य स्तरीय पहलों में महिला उद्यमियों के लिये समर्थन को एकीकृत करने से क्षेत्रीय पहुँच सुनिश्चित होगी।
- उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ाना: स्टार्टअप और शैक्षणिक संस्थानों के बीच मज़बूत संबंध स्थापित करने से अनुसंधान-संचालित उद्यमिता को बढ़ावा मिल सकता है।
- नवाचारों के विकास और उपयोग के लिये राष्ट्रीय पहल (NIDHI) जैसी पहलों का विस्तार करके विश्वविद्यालयों और अनुसंधान एवं विकास केंद्रों में इनक्यूबेशन कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- IIT, IIM और अन्य प्रमुख संस्थानों को उद्योग-केंद्रित नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करने से शैक्षणिक अनुसंधान एवं बाज़ार की मांग के बीच के अंतर को समाप्त किया जा सकता है।
- अटल इनोवेशन मिशन (AIM) जैसी सरकारी योजनाओं के साथ शैक्षणिक जगत को जोड़ने से ज्ञान आधारित स्टार्टअप को और भी बढ़ावा मिल सकता है।
- टियर-2 और टियर-3 शहरों में स्टार्टअप को बढ़ावा देना: स्टार्टअप इकोसिस्टम को विकेंद्रीकृत करने के लिये, सरकार को छोटे शहरों में डिजिटल और भौतिक बुनियादी अवसंरचना के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- डिजिटल इंडिया पहल जैसे कार्यक्रमों का विस्तार और भारतनेट के माध्यम से हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने से ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप्स को सशक्त बनाया जा सकेगा।
- स्थानीय उद्योगों के साथ साझेदारी में विशेष मार्गदर्शन कार्यक्रम और कार्यशालाएँ इन क्षेत्रों की उद्यमशीलता क्षमता का लाभ उठा सकती हैं।
- बाज़ार अभिगम और स्केलेबिलिटी को सुविधाजनक बनाना: स्टार्टअप्स को घरेलू और वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करना उनकी स्केलेबिलिटी के लिये आवश्यक है।
- ONDC (डिजिटल कॉमर्स के लिये ओपन नेटवर्क) जैसे प्लेटफॉर्मों को सुदृढ़ करने से छोटे स्टार्टअप को व्यापक आपूर्ति शृंखलाओं और ई-कॉमर्स नेटवर्क में एकीकृत किया जा सकता है।
- चैंपियन सेवा क्षेत्र योजना (CSSS) के तहत स्टार्टअप एक्सपोर्ट हब स्थापित करने से स्टार्टअप को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रवेश करने में मदद मिल सकती है।
- सरकारी खरीद नीतियों में स्टार्टअप्स के लिये एक निश्चित प्रतिशत अनुबंधों को अनिवार्य किया जाना चाहिये, जैसा कि सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GEM) पोर्टल के माध्यम से किया गया है।
- कौशल और प्रतिभा विकास में सुधार: स्टार्टअप्स को AI, ब्लॉकचेन और IoT जैसी उभरती हुई तकनीकों में कुशल कार्यबल की आवश्यकता होती है। कौशल भारत मिशन के तहत कार्यक्रमों, जैसे कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY 4.0) में स्टार्टअप की मांगों के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए मॉड्यूल शामिल होने चाहिये।
- स्टार्टअप्स के साथ इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप की पेशकश करने के लिये निजी क्षेत्र के सहयोग को प्रोत्साहित करने से कौशल को उद्योग की ज़रूरतों के साथ संरेखित किया जा सकता है।
- स्टार्टअप इंडिया लर्निंग प्रोग्राम जैसे प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी में समर्पित "स्टार्टअप स्किलिंग सेंटर" स्थापित करने से उद्यमियों की नेक्स्ट जनरेशन तैयार हो सकती है।
- धारणीय और हरित स्टार्टअप को प्रोत्साहन: हरित उद्यमिता को बढ़ावा देने से नवाचार को प्रोत्साहन के साथ-साथ जलवायु लक्ष्यों को भी प्राप्त किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण (FAME) के तहत स्वच्छ ऊर्जा स्टार्टअप्स के लिये सब्सिडी और प्रोत्साहन का विस्तार करके इनके अंगीकरण को गति मिल सकती है।
- मेक इन इंडिया 2.0 के तहत समर्पित हरित स्टार्टअप ज़ोन नवीकरणीय ऊर्जा, अपशिष्ट प्रबंधन और धारणीय कृषि पर ध्यान केंद्रित करने वाली कंपनियों के लिये इनक्यूबेशन सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता कार्यढाँचे का निर्माण: फिनटेक, हेल्थ-टेक और एडटेक में संवेदनशील उपयोगकर्त्ता डेटा से निपटने वाले स्टार्टअप्स को दृढ़ साइबर सुरक्षा कार्यढाँचे की आवश्यकता है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत सख्त मानकों को लागू करने से स्टार्टअप्स को प्रतिष्ठा एवं वित्तीय संबंधी जोखिमों से बचाया जा सकता है।
- भारत साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के माध्यम से सब्सिडी वाले साइबर सुरक्षा साधन और प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने से छोटे स्टार्टअप्स के लिये सुरक्षा मज़बूत हो सकती है।
- साइबर खतरों पर ज्ञान साझा करने के लिये सरकार समर्थित प्लेटफॉर्म अतिरिक्त सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देना: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये, स्टार्टअप्स को अग्रणी प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इंडियाAI मिशन जैसे कार्यक्रमों को गति देने से AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों में अधिक स्टार्टअप काम कर सकेंगे।
- भारत-इज़रायल औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी नवाचार निधि (I4F) जैसी योजनाओं के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को समर्थन देकर भारतीय स्टार्टअप को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत किया जा सकता है।
- स्टार्टअप इंडिया के तहत सीमा पार स्टार्टअप शिखर सम्मेलनों और विनिमय कार्यक्रमों को बढ़ावा देने से भारतीय स्टार्टअप्स को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखने में मदद मिलेगी।
- एग्रीटेक स्टार्टअप्स के लिये समर्थन का विस्तार: भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था को देखते हुए, एग्रीटेक स्टार्टअप्स परिशुद्ध कृषि और आपूर्ति शृंखला डिजिटलीकरण जैसे नवाचारों के माध्यम से कृषि पद्धतियों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं।
- कृषि अवसंरचना कोष (AIF) के अंतर्गत कार्यक्रमों का विस्तार करने से कृषि प्रौद्योगिकी नवाचारों के लिये कम लागत पर वित्तपोषण उपलब्ध हो सकता है।
- PM-KUSUM जैसी पहलों को सौर ऊर्जा चालित सिंचाई समाधान पर काम करने वाले स्टार्टअप्स के साथ एकीकृत किया जा सकता है।
- राज्य स्तरीय कार्यक्रम, जैसे कि महाराष्ट्र की एग्रीटेक नीति, क्षेत्र-विशिष्ट एग्रीटेक नवाचारों को बढ़ावा देने के लिये मॉडल के रूप में काम कर सकते हैं।
- मेंटरशिप और इकोसिस्टम नेटवर्किंग को सुदृढ़ करना: वित्तपोषण, संचालन और स्केलिंग चुनौतियों के माध्यम से स्टार्टअप्स को मार्गदर्शन देने में मेंटरशिप महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- स्टार्टअप इंडिया हब जैसे कार्यक्रमों के तहत मेंटरशिप नेटवर्क का विस्तार करने से स्टार्टअप्स को उद्योग विशेषज्ञों एवं निवेशकों तक अभिगम प्रदान किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय स्टार्टअप शिखर सम्मेलन आयोजित करने के लिये NASSCOM जैसे उद्योग संघों के साथ साझेदारी करने से नेटवर्किंग के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
निष्कर्ष:
यद्यपि भारत की स्टार्टअप इंडिया पहल ने एक समृद्ध स्टार्टअप इकोसिस्टम को प्रोत्साहन के साथ नवाचार और रोज़गार सृजन को विशेषकर फिनटेक और हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में वैश्विक अग्रणियों के रूप में स्थान दिलाया है। फिर भी स्टार्टअप इकोसिस्टम की प्रगति बनाए रखने के लिये, विनियामक बाधाओं, फंडिंग की कमी जैसी चुनौतियों का समाधान और उद्योग-अकादमिक सहयोग को बढ़ाना आवश्यक है। इन क्षेत्रों को सुदृढ़ करने से स्टार्टअप की संवहनीयता सुनिश्चित होगी, समावेशी विकास में योगदान मिलेगा और प्रमुख सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) जैसे कि उत्कृष्ट श्रम (SDG 8) और उद्योग नवाचार (SDG 9) को समर्थन प्राप्त होगा, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में स्टार्टअप, विकास और नवाचार के प्रमुख चालक हैं। उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालिये और स्टार्टअप इकोसिस्टम को बेहतर बनाने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है? (2014) (a) उद्योगों को प्रदान की गई अल्पकालिक पूंजी उत्तर: (b) |