एडिटोरियल (10 Jun, 2024)



भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में संतुलन

यह एडिटोरियल 04/06/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित The delicate balancing of health-care costs’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में बढ़ती स्वास्थ्य असमानताओं और चिकित्सा सेवाओं तक असमान पहुँच की चर्चा के साथ आगे की राह पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM), सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, सतत् विकास लक्ष्य (SDGs), NFHS-5, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, स्वास्थ्य का अधिकार, WHO, संयुक्त राष्ट्र, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

भारत के लिये कुशल स्वास्थ्य सेवाओं का महत्त्व एवं चुनौतियाँ।

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली एक विविध एवं जटिल नेटवर्क है जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र शामिल हैं, जो देश के 1.4 बिलियन लोगों को व्यापक श्रेणी की चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करती है।

चूँकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में चिकित्सा प्रक्रिया दरों (medical procedure rates) के मानकीकरण पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, वहनीयता (affordability) एक प्रमुख विषय बना हुआ है। हालाँकि सभी के लिये एकसमान (one-size-fits-all) मूल्य सीमा लागू करने से स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता गंभीर रूप से कम हो सकती है। हेल्थ केयर मैनेजमेंट रिव्यु (HCMR) के एक अध्ययन के अनुसार, मूल्य सीमा से उत्पन्न वित्तीय दबाव में अस्पतालों ने रोगी असंतोष में 15% वृद्धि की रिपोर्टिंग की।

वर्तमान समय में बढ़ती स्वास्थ्य असमानताओं और चिकित्सा सेवाओं तक असमान पहुँच के साथ समतामूलक एवं संवहनीय स्वास्थ्य सेवा नीतियों की अत्यधिक आवश्यकता अनुभव की जा रही है। चिकित्सा सेवाओं के लिये दरें निर्धारित करने के संबंध में जारी चर्चाएँ महज नौकरशाही संबंधी कवायद नहीं हैं, बल्कि वे मौलिक रूप से इस बात को आकार प्रदान करेंगी कि हम देश भर में स्वास्थ्य सेवा को किस प्रकार देखते हैं, किस प्रकार अभिगम्यता रखते हैं और  किस प्रकार उसकी आपूर्ति करते हैं।

स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में भारत की वर्तमान स्थिति और संभावनाएँ

वर्तमान स्थिति:

सार्वजनिक व्यय: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा पर भारत का सार्वजनिक व्यय वित्त वर्ष 23 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2.1% और वित्त वर्ष 22 में 2.2% रहा, जो वित्त वर्ष 21 में 1.6% रहा था।

  • रोज़गार सृजन: वर्ष 2024 तक, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र भारत के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक बना हुआ है, जो 7.5 मिलियन लोगों का कार्यबल रखता है।
  • व्यापक बाज़ार: भारतीय स्वास्थ्य सेवा बाज़ार का मूल्य वर्ष 2016 में 110 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आँका गया, जिसके वर्ष 2025 तक 638 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
  • चिकित्सा पर्यटन: भारत का स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र चिकित्सा पर्यटन (Medical Tourism) के वैश्विक गंतव्य के रूप में उभरा है, जो अपने कुशल चिकित्सा पेशवरों, उन्नत स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों और लागत-प्रभावी उपचारों के कारण दुनिया भर से रोगियों को आकर्षित कर रहा है।
  • भारत आने वाले चिकित्सा पर्यटकों की संख्या वर्ष 2024 में लगभग 7.3 मिलियन होने का अनुमान है, जो वर्ष 2023 में अनुमानित रूप से 6.1 मिलियन रही थी।
  • संभावना/क्षमता:
    • AI-संचालित रोज़गार: हाल के एक शोध रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के एकीकरण से वर्ष 2028 तक लगभग 3 मिलियन नए रोज़गार सृजित होंगे।
    • टेलीमेडिसिन बाज़ार: भारत के ई-हेल्थ खंडों में टेलीमेडिसिन बाज़ार सर्वाधिक संभावना रखता है, जो 31% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है और वर्ष 2025 तक इसके 5.4 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • मानव संसाधन: भारत में चिकित्सकों, नर्सों, विशेषज्ञों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों की बड़ी संख्या मौजूद है जो भारत को एक महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदाता बनने में मदद करते हैं।
    • ऋण प्रोत्साहन: भारत सरकार देश के स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना को बढ़ावा देने के लिये 50,000 करोड़ रुपए (6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का ऋण प्रोत्साहन कार्यक्रम (Credit Incentive Programme) शुरू करने की योजना बना रही है।

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की हाल की प्रगति

  • सुदूर क्षेत्रों तक पहुँच: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली सुदूर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सुलभ और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने का लक्ष्य रखती है।
  • संक्रामक रोगों से निपटना: भारत ने व्यापक टीकाकरण कार्यक्रमों के माध्यम से पोलियो, चेचक और खसरे से निपटने में उल्लेखनीय प्रगति की है।
    • वर्ष 1995 में शुरू किया गया पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम भारत से पोलियो उन्मूलन में सहायक सिद्ध हुआ है।
  • गैर-संचारी रोगों से निपटना: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention & Control of Non-Communicable Diseases- NP-NCD) कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसे पहले कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) के रूप में जाना जाता था।
  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य: मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने, शिशु एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लाने और संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिये जननी सुरक्षा योजना (JSY) तथा एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) जैसी पहलों को क्रियान्वित किया गया है।
  • फार्मास्युटिकल उद्योग: भारत जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख उत्पादक एवं निर्यातक है, जो सस्ती/वहनीय दवाओं की वैश्विक आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियाँ: भारत आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों की समृद्ध विरासत रखता है।
    • आयुष मंत्रालय इन प्रणालियों का संवर्द्धन एवं विनियमन करता है ताकि मुख्यधारा की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में उनका एकीकरण सुनिश्चित हो सके।

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ 

  • अपर्याप्त अवसंरचना और शहरी-ग्रामीण असमानताएँ: 75% से अधिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर महानगरीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं (जो कुल जनसंख्या में महज 27% हिस्सेदारी रखते हैं) और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा पेशेवरों की गंभीर कमी पाई जाती है।
    • वर्ष 2021 के ‘नेशनल हेल्थ प्रोफाइल’ के अनुसार, भारत में प्रति 1000 जनसंख्या पर मात्र 0.6 बिस्तर उपलब्ध हैं।
    • आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में बेहतर अवसंरचना, कुशल पेशेवरों की उपस्थिति और विशेष देखभाल सुविधा पाई जाती है।
  • स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की कमी: विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति 1000 व्यक्तियों पर केवल 0.8 चिकित्सक उपलब्ध हैं, जो प्रति 1000 व्यक्तियों पर 1 चिकित्सक के अनुशंसित अनुपात से कम है।
    • सरकार के आँकड़ों के अनुसार, मार्च 2022 तक ग्रामीण भारत के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सर्जन, फिजिशियन, स्त्री रोग विशेषज्ञों और बाल रोग विशेषज्ञों की लगभग 80% कमी की स्थिति थी।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का अपर्याप्त वित्तपोषण: स्वास्थ्य सेवा की मांग रखने वाले व्यक्तियों के लिये वित्तीय सुरक्षा की कमी के परिणामस्वरूप भारत में स्वास्थ्य सेवा लागत का 60% से अधिक भाग आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय के रूप में खर्च होता है। सीमित स्वास्थ्य बीमा कवरेज की स्थिति में कई लोग उपचार में देरी करते हैं या उसे टालते रहते हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी जटिलता एवं समस्या और बढ़ती है।
    • NFHS-5 की नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान में प्रत्येक प्रसव पर औसत आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय 2,916 रुपए है (शहरी क्षेत्रों में 3,385 रुपए, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 2,770 रुपए)।
    • वर्ष 2021-22 में स्वास्थ्य सेवा पर भारत का सार्वजनिक व्यय इसके सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 2.1% था, जबकि जापान, कनाडा और फ्राँस जैसे देश स्वास्थ्य पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 10% खर्च करते हैं।
  • रोगों का बढ़ता बोझ: गैर-संचारी रोगों में वैश्विक स्तर पर तीव्र वृद्धि देखी गई है, जो विकलांगता, रुग्णता और मृत्यु दर के प्रमुख कारण के रूप में उभर रहे हैं। इनके कारण विश्व भर में लगभग 41 मिलियन लोगों की मौत हुई, जो कुल मृत्यु का लगभग तीन-चौथाई भाग है।
  • अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य देखभाल: भारत में प्रति व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी की स्थिति पाई जाती है (विश्व में न्यूनतम में से एक) और सरकार मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये अत्यंत कम धनराशि आवंटित करती है।

भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिये की गई पहलें:

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक उपाय:

  • गतिशील मूल्य निर्धारण मॉडल: उचित रूप से लागू किये गए दर मानकीकरण से स्वास्थ्य सेवा असमानताओं को कम किया जा सकता है। अर्थशास्त्री गतिशील मूल्य निर्धारण मॉडल (Dynamic Pricing Models) की सलाह देते हैं जो चिकित्सा जटिलता और रोगियों की वित्तीय स्थिति के आधार पर समायोजित होते हैं; इस प्रकार, एक उचित समाधान प्रदान करते हैं।
    • थाईलैंड की स्तरीकृत मूल्य निर्धारण प्रणाली भी भारत के विविध आर्थिक परिदृश्य के लिये एक संभावित मॉडल के रूप में कार्य कर सकती है, जो रोगी की आय के स्तर और चिकित्सा आवश्यकता पर विचार के साथ लागत और देखभाल के बीच सफलतापूर्वक संतुलन का निर्माण करती है।
      • राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने दर निर्धारण प्रावधानों में खामियों की पहचान की है तथा इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से हल करने के लिये सुदृढ़ कानूनी ढाँचे की वकालत की है।
    • स्वास्थ्य सेवा में गतिशील मूल्य निर्धारण मांग, सेवाओं की उपलब्धता, रोगी की आवश्यकताओं और बीमा कवरेज जैसे कारकों पर आधारित होगा।
  • प्रौद्योगिकी नवाचार और अवसंरचना में निवेश: प्रौद्योगिकी स्वास्थ्य सेवा में क्रांति ला रही है, AI के माध्यम से निदान को द्रुत एवं अधिक सटीक बना रही है और इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के माध्यम से देखभाल समन्वय में सुधार कर रही है।
    • उदाहरण के लिये, कर्नाटक में टेलीमेडिसिन पहल से अस्पताल आने वाले रोगियों की संख्या में 40% की कमी आई है। यह दर्शाता है कि प्रौद्योगिकी के प्रयोग से, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में, चिकित्सा देखभाल को अधिक सुलभ और लागत प्रभावी बनाया जा सकता है।
    • व्यापक इंटरनेट पहुँच के लिये अवसंरचना में निवेश और डिजिटल साक्षरता में सुधार से अधिकाधिक लोगों को इन प्रगतियों से लाभ प्राप्त होगा, जिससे भारत स्वास्थ्य सेवा नवाचार में वैश्विक अग्रणी देश के रूप में स्थापित होगा।
  • हितधारकों को संलग्न करना और डेटा का लाभ उठाना: सूक्ष्म गतिशीलता को समझने और प्रभावी एवं संवहनीय नीतियों का निर्माण करने के लिये निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं सहित सभी हितधारकों को संलग्न करना आवश्यक है।
    • पायलट परियोजनाएँ: स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और नवाचार पर दर सीमा के प्रभाव का आकलन करने तथा स्थानीय स्तर पर रोग के बोझ को समझने के लिये चुनिंदा ज़िलों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में पायलट परियोजनाएँ लागू की जाएँ।
    • सरकारी सब्सिडी: निजी अस्पतालों में अनुसंधान और विकास को समर्थन देने के लिये सब्सिडी आवंटित किये जाएँ।
    • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: सार्वजनिक अस्पतालों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने के लिये साझेदारी स्थापित की जाए, ताकि उन्नत स्वास्थ्य देखभाल समाधानों तक व्यापक पहुँच सुनिश्चित हो सके।

मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल में वृद्धि करना:

  • मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों की संख्या में वृद्धि करना, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत करना तथा मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को आकर्षित करने और उन्हें बनाए रखने के लिये प्रोत्साहन एवं बेहतर पारिश्रमिक प्रदान करना भी एक सकारात्मक कदम सिद्ध हो सकता है।

निष्कर्ष:

  • स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुँच सुनिश्चित करते हुए नवाचार के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति की भलाई को प्राथमिकता देना भी आवश्यक है।

अभ्यास प्रश्न: सभी नागरिकों के लिये समतामूलक एवं गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं और किन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2.  छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3.  बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4.  पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: A