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एडिटोरियल

  • 09 Feb, 2024
  • 20 min read
शासन व्यवस्था

चाइल्ड पोर्नोग्राफी संबंधी कानूनी विसंगतियों का समाधान

यह एडिटोरियल 08/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Downloading child pornography is an offence” लेख पर आधारित है। इसमें ‘एस. हरीश बनाम पुलिस निरीक्षक’ मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के हाल के निर्णय के निहितार्थों और समाज के विभिन्न क्षेत्रों पर इसके विभिन्न प्रभाव के बारे में विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1992) , भारतीय दंड संहिता (IPC), किशोर न्याय अधिनियम 2015 , सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000।

मेन्स के लिये:

POCSO अधिनियम, 2000 के कार्यान्वयन में मुद्दे और आगे की राह।

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने एस. हरीश बनाम पुलिस निरीक्षक (2020) मामले में निर्णय देते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी (child pornography) डाउनलोड करना सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000 की धारा 67B के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित एक पूर्व-दृष्टांत का हवाला दिया जहाँ माना गया था कि निजी स्थानों पर पोर्नोग्राफी देखना भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 292 का उल्लंघन नहीं है।

पुलिस ने अन्वेषण के बाद अंतिम रिपोर्ट दायर की थी और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 14 (1) और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67B उच्च न्यायालय द्वारा इसका संज्ञान लिया गया था।

POCSO अधिनियम, 2012 क्या है?

  • परिचय:
    • POCSO अधिनियम को बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1992) के भारत के अनुसमर्थन के रूप में अधिनियमित किया गया था।
      • इस विशेष कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन दुर्व्यवहार के अपराधों को संबोधित करना है, जिन्हें तब तक या तो विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया था या पर्याप्त रूप से दंडित नहीं बनाया गया था।
      • अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को ‘बाल’ (child) के रूप में परिभाषित करता है। अधिनियम अपराध की गंभीरता के अनुसार दंड का प्रावधान करता है।
      • बच्चों के विरुद्ध यौन अपराध करने के लिये मृत्युदंड सहित अधिक कठोर दंड का प्रावधान करने के लिये अधिनियम की वर्ष 2019 में समीक्षा की गई और इसमें संशोधन किया गया। इसका उद्देश्य अपराधियों को भयभीत कर ऐसे अपराध के लिये हतोत्साहित करना और बच्चों के विरुद्ध ऐसे अपराधों पर रोक लगाना था।
    • भारत सरकार ने POCSO नियम, 2020 को भी अधिसूचित कर दिया है।
      • POCSO नियमों का नियम-9 विशेष न्यायालय को FIR दर्ज होने के बाद बच्चे की राहत या पुनर्वास से संबंधित आवश्यकताओं के लिये अंतरिम मुआवज़े का आदेश देने की अनुमति देता है। यह मुआवज़ा अंतिम मुआवज़े, यदि कोई हो, के विरुद्ध समायोजित किया जाता है।
      • POCSO नियम बाल कल्याण समिति (CWC) को अन्वेषण एवं परीक्षण प्रक्रिया के दौरान बच्चे की सहायता करने के लिये एक सहायक व्यक्ति प्रदान करने का अधिकार देते हैं।
        • यह सहायक व्यक्ति शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक कल्याण सहित बच्चे के सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • विशेषताएँ:
    • लैंगिक-तटस्थ प्रकृति:
      • अधिनियम मानता है कि बालक एवं बालिकाएँ दोनों यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं और पीड़ित किसी भी लिंग का हो, उसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार एक अपराध है।
      • यह इस सिद्धांत के अनुरूप है कि सभी बच्चों को यौन दुर्व्यवहार एवं शोषण से सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है और कानूनों को लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिये।
    • मामलों की रिपोर्टिंग में आसानी:
      • न केवल व्यक्तियों द्वारा बल्कि संस्थानों द्वारा भी बच्चों के यौन शोषण के मामलों की रिपोर्ट करने के लिये अब पर्याप्त सामान्य जागरूकता मौजूद है क्योंकि घटना की रिपोर्ट न करना अधिनियम के तहत एक विशिष्ट अपराध बना दिया गया है। इससे बच्चों के विरुद्ध अपराधों को छिपाना तुलनात्मक रूप से कठिन हो गया है।
    • विभिन्न शब्दों की स्पष्ट परिभाषा:
      • चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री के भंडारण को एक नया अपराध बना दिया गया है।
      • इसके अलावा, ‘यौन उत्पीड़न’ (sexual assault) के अपराध को IPC में ‘महिला का शील भंग करने’ की अमूर्त परिभाषा के विपरीत स्पष्ट शब्दों में (न्यूनतम दंड में वृद्धि के साथ) परिभाषित किया गया है।
    • विशेष राहत का तत्काल भुगतान:
      • POCSO नियमों के तहत, CWC ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA), ज़िला बाल संरक्षण इकाई (DCPU) या किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत स्थापित कोष का उपयोग कर भोजन, वस्त्र एवं परिवहन जैसी आवश्यक आवश्यकताओं के लिये तत्काल भुगतान की अनुशंसा कर सकता है। 
      • CWC की अनुशंसा प्राप्त होने के एक सप्ताह के भीतर यह भुगतान हो जाना चाहिये।

मद्रास उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

  • धारा 67B की भिन्न व्याख्या:
    • अन्वेषण के तथ्य IT अधिनियम, 2000 की धारा 67B (b) के अनुप्रयोग को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त होते हैं, लेकिन उच्च न्यायालय ने माना कि अपराध तब तय होगा यदि आरोपी ने ऐसी सामग्री प्रकाशित, प्रसारित, निर्मित की हो जो बच्चों को यौन कृत्य या आचरण में प्रदर्शित करती हो।
      • इस प्रकार, उच्च न्यायालय ने धारा 67B का संपूर्ण विश्लेषण किये बिना और उप-खंड (b) को पढ़े बिना ही (जहाँ आरोपी के कृत्य को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है) निर्णय दे दिया है।
  • केरल उच्च न्यायालय के निर्णय का अधूरा संदर्भ:
    • मद्रास उच्च न्यायालय ने विवरण का उल्लेख किये बिना (यानी शीर्षक या वर्ष का उल्लेख) एक पूर्व-दृष्टांत का संदर्भ लिया, जहाँ केरल उच्च न्यायालय ने IPC की धारा 292 के दायरे पर विचार किया था और माना था कि किसी व्यक्ति द्वारा अश्लील तस्वीर या अश्लील वीडियो देखना स्वयं में कोई अपराध नहीं है।
      • उस मामले का तर्क या सिद्धांत चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी के मामलों पर लागू नहीं होता है, विशेष रूप से उस मामले पर जिस पर मद्रास उच्च न्यायालय विचार कर रहा था।
  • धारा 67B की संवैधानिक वैधता की लापरवाही:
    • केरल उच्च न्यायालय द्वारा निर्णित अनीश बनाम केरल राज्य मामला (2023) चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी से संबंधित नहीं था। जबकि निजता के स्तर पर एडल्ट पोर्नोग्राफ़ी देखना IPC की धारा 292 के तहत अपराध नहीं माना गया है (केरल उच्च न्यायालय और भारत के सर्वोच्च न्यायालय दोनों द्वारा), बच्चों से संबंधित स्पष्ट यौन सामग्री डाउनलोड करना स्पष्ट रूप से IT अधिनियम के तहत एक अपराध है। 
      • अब तक किसी भी मामले में धारा 67B(b) की संवैधानिकता को चुनौती नहीं दी गई है और न ही इसके अधिकार-क्षेत्र को असंवैधानिक ठहराया गया है।
  • CrPC की धारा 482 पर अत्यधिक निर्भरता :
    • मद्रास उच्च न्यायालय ने न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किया और न्यायिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। 
    • CrPC की धारा 482 के तहत शक्तियों के प्रयोग या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत असाधारण शक्तियों के प्रयोग के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल मामले (1992) में कुछ दिशानिर्देश तय किये हैं, जिसमें यह शामिल है कि ऐसी शक्तियों का उपयोग तब किया जा सकता है जहाँ FIR में लगाये गए आरोप, प्रथम दृष्टया, अपराध का गठन नहीं करते हैं या आरोपी के विरुद्ध मामले का कारण नहीं बनाते हैं। 

चाइल्ड पोर्नोग्राफी को विनियमित करने वाले विभिन्न कानून कौन-से हैं?

  • IT अधिनियम 2000 की धारा 67B: धारा 67B में विभिन्न पहलुओं से संबंधित पाँच उप-खंड मौजूद हैं:
    • यौन कृत्य या आचरण में लिप्त बच्चों को चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित
    • चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी सामग्री डाउनलोड करने सहित अन्य कृत्यों से संबंधित
    • बच्चों को ऑनलाइन माध्यम से यौन संबंध बनाने, लुभाने या प्रेरित करने से संबंधित
    • बच्चों के साथ ऑनलाइन दुर्व्यवहार को सुविधाजनक बनाने से संबंधित
    • बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार/यौन कृत्य को रिकॉर्ड करने से संबंधित।
  • POCSO अधिनियम, 2012 की धारा 14:
    • धारा 14 की उप-धारा 1 में कहा गया है कि जो कोई, अश्लील प्रयोजनों के लिये किसी बच्चे या बच्चों का उपयोग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा तथा दूसरे या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडित होगा।
    • उप-धारा 2 में कहा गया है कि जो कोई भी उप-धारा 1 के तहत अश्लील प्रयोजनों के लिये किसी बच्चे या बच्चों का उपयोग करता है, ऐसे अश्लील कृत्यों में प्रत्यक्ष भागीदारी के रूप में धारा 3 या धारा 5 या धारा 7 या धारा 9 में निर्दिष्ट अपराध करता है और उसे उक्त अपराधों के लिये उप-धारा (1) में उपबंधित दंड के अलावा क्रमशः धारा 4, धारा 6, धारा 8 और धारा 10 के तहत भी दंडित किया जाएगा।

मुद्दों के समाधान के लिये कौन-से कदम उठाये जाने की आवश्यकता है?

  • व्यापक विधायी ढाँचे का पालन:
    • IT अधिनियम की धारा 67B, 67 एवं 67A जैसी संबंधित धाराओं और POCSO अधिनियम 2012 की धारा 14 के साथ चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी से संबंधित अपराधों को संबोधित करने के लिये एक व्यापक विधायी ढाँचे का गठन करती है। विशिष्ट प्रावधानों को शामिल करना साइबरस्पेस में बच्चों के यौन शोषण को संबोधित करने के इरादे को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की भूमिका:
    • गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ‘अमेरिकन नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रेन’ के साथ एक समझौते के तहत, भारत में कहीं से भी बाल यौन शोषण सामग्री (child sexual abuse materials- CSAM) को अपलोड करने वाले लोगों पर मुकदमा चलाने के लिये नियमित रूप से जियो-टैग्ड साइबरटिपलाइन (CyberTipline) रिपोर्ट प्राप्त करता है। 
      • इसमें बाल पीड़ितों की गोपनीयता संबंधी चिंता एवं शारीरिक अखंडता की सुरक्षा और संरक्षण भी शामिल होना चाहिये तथा इसे वेबसाइट पर खुले तौर पर प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिये।
  • शब्दावली समायोजन:
    • अधिवक्ताओं ने सामग्री की गैर-सहमत प्रकृति को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने के लिये ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ शब्द को CSAM शब्द से बदलने का सुझाव दिया है। यह भाषाई बदलाव कानूनी स्पष्टता बढ़ाएगा और अपराध की गंभीरता पर बल देगा।
  • विधिक प्रावधानों में सामंजस्य लाना:
    • बाल यौन शोषण से संबंधित अपराधों को संबोधित करने में सुसंगति सुनिश्चित करने के लिये POCSO अधिनियम 2012 और IT अधिनियम 2000 के बीच प्रावधानों में सामंजस्य लाने का आह्वान किया गया है। यह संरेखण विधिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा और बच्चों की सुरक्षा को मज़बूत करेगा।
  • CSAM को एक पृथक अपराध घोषित करना:
    • CSAM रखने को एक पृथक अपराध घोषित करने के लिये POCSO अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता पड़ सकती है, जहाँ इसे IT अधिनियम 2000 के प्रावधानों के साथ संरेखित किया जाए। ऐसे परिवर्तन विसंगतियों को संबोधित करेंगे और अपराधियों के अभियोजन में स्पष्ट कानूनी मार्गदर्शन प्रदान करेंगे।
  • राज्य कार्रवाई का महत्त्व:
    • राज्य सरकार और संबंधित जांच एजेंसियों के लिये मद्रास उच्च न्यायालय के हालिया निर्णय के विरुद्ध अपील करना महत्त्वपूर्ण है ताकि ऐसे अहितकर पूर्व-दृष्टांत को चुनौती दिया जा सके। बाल संरक्षण से संबंधित कानूनों की अखंडता को बनाए रखना आवश्यक है ताकि ऐसी भेद्य आबादी की सुरक्षा और उनके लिये न्याय सुनिश्चित हो सके।

बाल दुर्व्यवहार को रोकने के लिये कौन-सी पहलें की गई हैं?

निष्कर्ष

मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित कानूनों की व्याख्या एवं अनुप्रयोग के संबंध में महत्त्वपूर्ण विधिक एवं नैतिक सवालों को जन्म देता है। CSAM रखने के संबंध में POCSO अधिनियम 2012 और IT अधिनियम 2000 के बीच विसंगति को देखते हुए बच्चों के ऑनलाइन शोषण से निपटने में सुसंगतता एवं प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये विधायी समीक्षा एवं संशोधन की आवश्यकता है। इसलिये, राज्य सरकार के लिये यह आवश्यक है कि वह इस निर्णय के विरुद्ध अपील करे तथा कानूनी सुरक्षा उपायों को सुदृढ़ करने और डिजिटल युग में बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के लिये सक्रिय कदम उठाए।

अभ्यास प्रश्न: विधायी उपायों, सामाजिक दृष्टिकोण एवं निवारक रणनीतियों को संबोधित करते हुए बाल यौन शोषण और पोर्नोग्राफी के विधिक एवं सामाजिक निहितार्थों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चों के अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3 
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न 2. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके क्रियान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016)


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