भारतीय राजव्यवस्था
न्यायाधिकरण
- 26 Dec 2023
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:न्यायाधिकरण, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल (AFT), जज एडवोकेट जनरल, संविधान का अनुच्छेद 226। मेन्स के लिये:न्यायाधिकरण, वैधानिक, नियामक और विभिन्न अर्ध-न्यायिक निकाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने यूनियन ऑफ इंडिया (UoI) और अन्य बनाम AIR कमोडोर एन. के. शर्मा (2023) मामले में स्पष्ट किया है कि अपने शासी कानूनों के सख्त मापदंडों के तहत काम करने वाले न्यायाधिकरण सरकार को नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय इस सवाल पर विचार कर रहा था कि क्या सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) सरकार को जज एडवोकेट जनरल (Air) के पद को भरने के लिये एक नीति बनाने का निर्देश दे सकता था।
UoI और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला क्या है? बनाम AIR कमोडोर एन. के. शर्मा मामला?
- सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) सहित न्यायाधिकरणों के पास सरकार को विशिष्ट नीतियाँ बनाने का निर्देश देने का अधिकार नहीं है।
- नीति बनाने की भूमिका न्यायपालिका के क्षेत्र में नहीं है, जिसमें AFT जैसे अर्द्ध-न्यायिक निकाय भी शामिल हैं।
- AFT को सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं किंतु इसमें सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों के प्राधिकार का अभाव है। इसके अतिरिक्त, उच्च न्यायालय, संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सरकार अथवा उसके विभागों को विशेष नीतियाँ बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं।
- अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को किसी नागरिक के अधिकारों तथा स्वतंत्रता का उल्लंघन होने पर सरकारी संस्था के विरुद्ध मुकदमा दायर करने का अधिकार प्रदान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के पास किसी भी व्यक्ति अथवा प्राधिकारी को आदेश एवं रिट जारी करने की व्यापक शक्तियाँ हैं।
- रक्षा कर्मियों की सेवा या उनके नियमितीकरण के संबंध में नीतियों का निर्माण या मंज़ूरी पूरी तरह से सरकार के विशेषाधिकार के अंतर्गत आती है।
- अपने शासी कानून के दायरे में काम करने वाले एक न्यायाधिकरण के पास नीति के निर्माण को अनिवार्य करने की शक्ति का अभाव है।
न्यायाधिकरण क्या है?
- परिचय :
- न्यायाधिकरण एक अर्ध-न्यायिक संस्था है जिसे प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को सुलझाने जैसी समस्याओं से निपटने के लिये स्थापित किया गया है। यह कई कार्य करता है, जैसे– विवादों का निपटारा करना, चुनाव लड़ने वाले पक्षों के बीच अधिकारों का निर्धारण करना, प्रशासनिक निर्णय लेना, मौजूदा प्रशासनिक निर्णय की समीक्षा करना आदि।
- संवैधानिक प्रावधान:
- न्यायाधिकरण मूल संविधान का हिस्सा नहीं था, इसे 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया था।
- अनुच्छेद 323-A प्रशासनिक न्यायाधिकरणों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 323-B अन्य मामलों के लिये न्यायाधिकरण से संबंधित है।
- अनुच्छेद 323 B के तहत संसद और राज्य विधानमंडल निम्नलिखित मामलों से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये न्यायाधिकरण की स्थापना के लिये अधिकृत हैं–
- कराधान
- विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात
- औद्योगिक और श्रम
- भूमि सुधार
- शहरी संपत्ति पर सीमा
- संसद और राज्य विधानमंडलों के लिये चुनाव
- खाद्य सामग्री
- किराया और किरायेदारी अधिकार
- अनुच्छेद 323A और 323B में अंतर :
- अनुच्छेद 323 A केवल सार्वजनिक सेवा मामलों के लिये न्यायाधिकरणों की स्थापना पर विचार करता है, अनुच्छेद 323 B कुछ अन्य मामलों (ऊपर दिये गए) के लिये न्यायाधिकरणों की स्थापना पर विचार करता है।
- अनुच्छेद 323 A के तहत अधिकरण केवल संसद द्वारा स्थापित किये जा सकते हैं, अनुच्छेद 323 B के तहत अधिकरण उनकी विधायी क्षमता के अंतर्गत आने वाले मामलों के संबंध में संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों द्वारा स्थापित किये जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 323 A के तहत, केंद्र के लिये केवल एक तथा प्रत्येक राज्य के लिये एक अथवा दो अथवा दो से अधिक राज्यों के लिये एक अधिकरण स्थापित किया जा सकता है। इसके तहत अधिकरणों के पदानुक्रम की कोई प्रावधान नहीं है, जबकि अनुच्छेद 323 B के तहत अधिकरणों का एक पदानुक्रम बनाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 262: भारतीय संविधान राज्य/क्षेत्रीय सरकारों के बीच उत्पन्न होने वाली अंतर्राज्यिक नदियों के जल विवादों पर निर्णय लेने में केंद्र सरकार को एक भूमिका प्रदान करता है।
- न्यायाधिकरण मूल संविधान का हिस्सा नहीं था, इसे 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया था।
भारत में विभिन्न अधिकरण कौन-कौन से हैं?
- प्रशासनिक अधिकरण:
- प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत स्थापित प्रशासनिक अधिकरण, संविधान के अनुच्छेद 323 A के अंतर्गत स्थापित किये गए हैं। वे विशेष अर्द्ध-न्यायिक निकायों के रूप में कार्य करते हैं जो संघ तथा राज्य शासन के तहत सार्वजनिक पदों पर व्यक्तियों की भर्ती एवं कार्यकाल की शर्तों से संबंधित विवादों व शिकायतों का निपटारा करते हैं।
- इन अधिकरणों में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), अनुरोध पर स्थापित राज्य-विशिष्ट अधिकरण तथा विभिन्न राज्यों के लिये संयुक्त अधिकरण शामिल हैं।
- जल विवाद अधिकरण:
- संसद ने अंतर्राज्यिक जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 अधिनियमित किया है तथा अंतर्राज्यिक नदियों तथा नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये विभिन्न जल विवाद अधिकरण का गठन किया है।
- आत्म-नियोजित अधिकरण: अंतर्राज्यिक नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 को मौजूदा ISRWD अधिनियम, 1956 में संशोधन करने के लिये संसद द्वारा पारित किया गया ताकि प्रत्येक जल विवाद के लिये एक पृथक अधिकरण स्थापित करने की आवश्यकता को दूर करने के लिये एक आत्म-नियोजित (Standalone) अधिकरण का गठन किया जा सके। यह निश्चित रूप से एक समय लेने वाली प्रक्रिया है।
- संसद ने अंतर्राज्यिक जल विवाद (ISRWD) अधिनियम, 1956 अधिनियमित किया है तथा अंतर्राज्यिक नदियों तथा नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये विभिन्न जल विवाद अधिकरण का गठन किया है।
- सशस्त्र बल अधिकरण (AFT):
- यह भारत का एक सैन्य अधिकरण है। इसकी स्थापना सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी।
- इसके द्वारा सेना अधिनियम, 1950, नौसेना अधिनियम, 1957 तथा वायु सेना अधिनियम 1950 के अधीन व्यक्तियों के संबंध में आयोग, नियुक्तियों, नामांकन तथा कार्यकाल की शर्तों के संबंध में विवादों एवं शिकायतों पर AFT द्वारा निर्णय अथवा परीक्षण की शक्ति प्रदान की जाती है।
- न्यायिक सदस्य सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश होते हैं और प्रशासनिक सदस्य सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त सदस्य होते हैं, जिन्होंने तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिये मेजर जनरल/समकक्ष या उससे ऊपर का पद धारण किया हो या जज एडवोकेट जनरल (JAG) जिन्होंने इस पद पर नियुक्ति प्राप्त की हो, कम-से-कम एक वर्ष तक प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त होने के भी हकदार हैं।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT):
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल अधिनियम, 2010 द्वारा स्थापित पर्यावरणीय विवादों को शीघ्र-अतिशीघ्र हल करने के लिये समर्पित एक निकाय है।
- न्यायाधीशों और पर्यावरण विशेषज्ञों को शामिल करते हुए, यह प्रकृति संरक्षण तथा क्षति मुआवज़े से जुड़े मामलों को तेज़ी से निपटाता है।
- आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण:
- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 252 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार एक अपीलीय न्यायाधिकरण का गठन करेगी जिसमें कई न्यायिक सदस्य और लेखाकार सदस्य शामिल होंगे क्योंकि वह अधिनियम द्वारा न्यायाधिकरण को प्रदत्त शक्तियों एवं कार्यों का प्रयोग करना उचित समझती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q1. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-सा/से प्रावधान के आनुरूप्य अधिनियमित हुआ था/थे? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: A |