अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संरक्षणवाद और वैश्वीकरण में संतुलन
यह एडिटोरियल 08/01/2025 को लाइवमिंट में प्रकाशित “Raghuram Rajan: How emerging economies can prosper in a protectionist world” पर आधारित है। यह लेख उभरती अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से भारत के समक्ष आने वाली महत्त्वपूर्ण चुनौतियों तथा अवसरों पर ध्यान केंद्रित है, जो संरक्षणवाद और स्वचालन द्वारा आयाम दिये गए बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर प्रकाश डालता है।
प्रिलिम्स के लिये:उभरती अर्थव्यवस्थाएँ, संरक्षणवादी बाधाएँ, यूरोपीय संघ का क्रिटिकल रॉ मटेरियल एक्ट, विश्व व्यापार संगठन, चाइना प्लस वन रणनीतियाँ, ब्रेक्सिट, यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, डेटा स्थानीयकरण, गेहूँ और चावल निर्यात, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी, भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता, PM गति शक्ति पहल मेन्स के लिये:वैश्वीकृत विश्व में संरक्षणवाद के उदय को प्रेरित करने वाले कारक, भारत के लिये संरक्षणवाद से उत्पन्न मुद्दे। |
जैसे-जैसे बढ़ते वैश्विक व्यापार तनाव से स्वचालन विनिर्माण में परिवर्तन हो रहा है, उभरती अर्थव्यवस्थाएँ अपनी विकास यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण क्षण का सामना कर रही हैं। निर्यात-आधारित विनिर्माण वृद्धि का परंपरागत मार्ग, जिसने चीन जैसे देशों को मध्यम आय का दर्जा प्राप्त करने में मदद की, विकसित देशों में संरक्षणवादी बाधाओं के कारण तीव्रता से चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। सेवाओं के निर्यात में भारत की प्रभावशाली वृद्धि और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी उभरती स्थिति के बावजूद, नीति निर्माताओं को तीव्रता से संरक्षणवादी विश्व में सतत् विकास सुनिश्चित करने के लिये मानव पूंजी विकास, बुनियादी अवसंरचना एवं आर्थिक समावेशिता में चुनौतियों का समाधान करने को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है।
वैश्वीकृत विश्व में संरक्षणवाद के उदय के पीछे कौन से कारक जिम्मेदार हैं?
- आर्थिक राष्ट्रवाद और वि-औद्योगीकरण: विकसित देशों में विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों के नुकसान से प्रेरित आर्थिक राष्ट्रवाद, उद्योगों को "पुनर्स्थापित" करने और घरेलू उत्पादन को पुनर्जीवित करने के लिये संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका ने घरेलू हरित प्रौद्योगिकी उत्पादन को सब्सिडी देने के लिये इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट (वर्ष 2022) लागू किया, जिसमें आयात पर अमेरिकी फर्मों को प्राथमिकता दी गई।
- इसी तरह, यूरोपीय संघ का क्रिटिकल रॉ मटेरियल एक्ट (वर्ष 2023) का उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा में आयात पर निर्भरता को कम करना है।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और रणनीतिक अलगाव: अमेरिका और चीन जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच तनाव के कारण आर्थिक अलगाव हुआ है, जिसके कारण राष्ट्र महत्त्वपूर्ण उद्योगों में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दे रहे हैं।
- अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2023 में उन्नत अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी तक चीन की पहुँच पर प्रतिबंध लगा दिया।
- इस बीच, चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए वैश्विक चिप निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई।
- कोविड-19 द्वारा आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियाँ उजागर: कोविड विश्वमारी ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता को उजागर किया, जिससे राष्ट्रों को महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के उत्पादन को स्थानीय बनाने के लिये मज़बूर होना पड़ा।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 के दौरान, चिकित्सा आपूर्ति के वैश्विक व्यापार में व्यवधान देखा गया जिसमें भारत जैसे देशों ने वेंटिलेटर के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुसार, वर्ष 2020 में वैश्विक व्यापार में 5.3% की गिरावट आई, जिससे अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखलाओं की कमज़ोरियाँ उजागर हुईं।
- इसके प्रत्युत्तर में, कई देशों ने “चाइना प्लस वन” रणनीति अपनाई है, तथा जोखिम को कम करने के लिये आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लायी है।
- बढ़ती असमानता और लोकलुभावनवाद: राष्ट्रों के भीतर और उनके बीच आर्थिक असमानता ने घरेलू नौकरियों तथा उद्योगों की सुरक्षा के लिये संरक्षणवादी नीतियों की जनवादी मांगों को बढ़ावा दिया है।
- ब्रेक्सिट (वर्ष 2016) इसका एक उदाहरण है, जहाँ शासन और मतदाताओं ने विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्रों में स्थानीय नौकरियों के नुकसान के लिये यूरोपीय संघ की व्यापार नीतियों को दोषी ठहराया।
- जनवादी नेता टैरिफ और व्यापार बाधाओं को उचित ठहराने के लिये इन शिकायतों का लाभ उठाते हैं।
- पर्यावरण और जलवायु संबंधी चिंताएँ: सरकारें संधारणीयता की आड़ में पर्यावरण नीतियों का संरक्षणवादी उपकरण के रूप में तीव्रता से उपयोग कर रही हैं।
- यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़्म (CBAM) (वर्ष 2023) उच्च कार्बन उत्सर्जन वाले आयातों पर शुल्क लगाता है, जिससे विकासशील देशों में उद्योग प्रभावित होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, ऊर्जा दहन और औद्योगिक प्रक्रियाओं से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन वर्ष 2022 में 0.9% या 321 मीट्रिक टन बढ़कर 36.8 गीगाटन के नए सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया है, जिससे कार्बन टैरिफ पर्यावरणीय लक्ष्यों एवं औद्योगिक संरक्षण के लिये एक साधन बन गया है।
- तकनीकी प्रभुत्व और डिजिटल संरक्षणवाद: तकनीकी वर्चस्व की दौड़ ने डेटा प्रवाह, बौद्धिक संपदा और डिजिटल वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा दिये हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत ने वर्ष 2022 में डेटा स्थानीयकरण नियम लागू किये, जिसके तहत गूगल और अमेज़न जैसी कंपनियों को राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा तथा घरेलू डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये अपनी सीमाओं के भीतर डेटा संग्रहीत करना अनिवार्य कर दिया गया।
- इसी तरह, यूरोपीय संघ का डिजिटल सर्विसेज़ एक्ट (वर्ष 2022) बाज़ारों सहित डिजिटल सेवाओं के दायित्वों को नियंत्रित करता है।
- घरेलू कृषि का संरक्षण: कृषि सब्सिडी और टैरिफ का उपयोग घरेलू किसानों को अस्थिर वैश्विक बाज़ारों एवं विदेशी प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के लिये किया जाता है।
- अमेरिकी कृषि अधिनियम (वर्ष 2018) ने घरेलू कृषि के लिये 428 बिलियन डॉलर की सब्सिडी आवंटित की, जिससे किसानों को मूल्य झटकों से बचाया जा सके।
- भारत में, वर्ष 2020 में कृषि सुधारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से सुरक्षा में कमी के भय में निहित थे।
- वर्ष 2024 में भारत ने चावल के लिये निर्धारित सब्सिडी सीमा का उल्लंघन करने के कारण विश्व व्यापार संगठन (WTO) में लगातार पाँचवीं बार शांति खंड का आह्वान किया।
- मुद्रास्फीति संबंधी दबाव और आर्थिक अस्थिरता: बढ़ती मुद्रास्फीति और आर्थिक अस्थिरता ने सरकारों को घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने के लिये निर्यात प्रतिबंध तथा आयात प्रतिबंध लगाने के लिये प्रेरित किया है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में इंडोनेशिया ने स्थानीय खाद्य तेल की कीमतों को स्थिर करने के लिये पाम ऑइल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- इसी प्रकार, भारत ने घरेलू मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिये वर्ष 2023 में गेहूँ और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- बहुपक्षीय संस्थाओं का कमज़ोर होना: विश्व व्यापार संगठन जैसी वैश्विक व्यापार संस्थाओं को विवादों को सुलझाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण राष्ट्र एकपक्षीय संरक्षणवादी उपायों का सहारा लेते हैं।
- उदाहरण के लिये, न्यायिक नियुक्तियों पर अमेरिकी विरोध के कारण विश्व व्यापार संगठन का अपीलीय निकाय वर्ष 2019 से गैर-कार्यात्मक है।
- राष्ट्र अब द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर अधिकाधिक निर्भर हो रहे हैं या एकतरफा टैरिफ लगा रहे हैं, जो बहुपक्षीय तंत्रों में विश्वास में गिरावट को दर्शाता है।
- घरेलू राजनीतिक दबाव: चुनाव जैसे अल्पकालिक राजनीतिक विचार प्रायः घरेलू मतदाताओं को खुश करने के लिये संरक्षणवादी नीतियों को प्रेरित करते हैं।
- वर्ष 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से पूर्व, दोनों प्रमुख दलों ने सख्त टैरिफ का समर्थन किया, जो संरक्षणवाद के लिये द्विदलीय समर्थन को दर्शाता है।
- नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ने चेतावनी दी है कि यदि BRICS राष्ट्र वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कमज़ोर करेंगे तो उन पर 100% टैरिफ लगा दिया जाएगा।
भारत के लिये संरक्षणवाद से उत्पन्न होने वाले मुद्दे क्या हैं?
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बाज़ार अभिगम: संरक्षणवाद भारत की वैश्विक बाज़ारों तक अभिगम को सीमित करता है, इसकी निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम करता है तथा वस्त्र एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को खतरे में डालता है।
- मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम (वर्ष 2022) के तहत अमेरिका जैसे देश घरेलू उद्योगों के लिये टैरिफ या सब्सिडी लगाते हैं, जिससे भारतीय निर्यात को नुकसान होता है।
- हालिया रिपोर्टों में कहा गया है कि वर्ष 2023 के लिये भारत का व्यापारिक निर्यात 432 बिलियन डॉलर था, जो वर्ष 2022 की तुलना में 5% कम है, विशेष रूप से वस्त्र जैसे प्रमुख क्षेत्रों में।
- आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान: वैश्विक संरक्षणवाद भारत की आपूर्ति शृंखला में भागीदारी को बाधित करता है, जिससे सेमीकंडक्टर जैसे महत्त्वपूर्ण आयातों की लागत बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिये, सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला पर अमेरिका-चीन के बीच टकराव से भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं EV उद्योग को नुकसान पहुँचा है।
- वित्तीय वर्ष 2023-24 में, भारत ने चीन से 12 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के इलेक्ट्रॉनिक घटकों का आयात किया तथा कच्चे माल में किसी भी व्यवधान से उसके 10 बिलियन डॉलर के सेमीकंडक्टर मिशन को खतरा है।
- घरेलू MSME पर प्रभाव: विकसित बाज़ारों में संरक्षणवादी बाधाएँ भारतीय MSME उत्पादों की मांग को कम करती हैं, जिससे निर्यात और रोज़गार प्रभावित होता है।
- जब कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) पूरी तरह से लागू हो जाएगा, तो भारत के इस्पात और सीमेंट उद्योग पर भारी प्रभाव पड़ेगा।
- भारत को यूरोपीय संघ को इस्पात निर्यात पर 173.8 यूरो प्रति टन (भारतीय रुपए 15,394) का शुल्क देना होगा।
- आयात बाधाओं से मुद्रास्फीति संबंधी दबाव: संरक्षणवाद आयात की लागत को बढ़ाता है, जिससे भारत में मुद्रास्फीति संबंधी दबाव बढ़ता है, विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं के मामले में।
- अप्रैल 2022 के अंत तक इंडोनेशिया के पाम तेल निर्यात प्रतिबंध के कारण भारतीयों के लिये रिफाइंड पाम तेल 27% अधिक महंगा हो गया था।
- इसी प्रकार, रूस और बेलारूस द्वारा उर्वरक निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से भारतीय DAP उर्वरक की कीमतें बढ़ गईं, जिससे कृषि उत्पादकता और उपभोक्ता लागत प्रभावित हुई।
- FDI प्रवाह में कमी: संरक्षणवाद अनिश्चितता उत्पन्न करता है तथा विदेशी निवेशकों को भारतीय परियोजनाओं में निवेश करने से हतोत्साहित करता है।
- विदेशी संस्थागत निवेशकों ने अक्तूबर 2024 में भारतीय शेयर बाज़ार से लगभग 10 बिलियन डॉलर की निकासी की है, जो एक रिकॉर्ड उच्च स्तर है तथा बढ़ते वैश्विक टैरिफ और व्यापार बाधाओं के बीच सतर्कता को दर्शाता है।
- भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह वर्ष 2023 में 43% घटकर 28 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि वैश्विक FDI में 2% की गिरावट आई।
- व्यापार विवादों के लिये संसाधनों का विचलन: संरक्षणवादी प्रवृत्तियाँ भारत को नए व्यापार संबंधों को बढ़ावा देने के बजाय व्यापार विवादों के प्रबंधन के लिये संसाधनों और कूटनीतिक ध्यान को विचलित करने पर मज़बूर करती हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में भारत ने सेवा क्षेत्र से संबंधित एक मुद्दे को हल करने के लिये ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के तहत मध्यस्थता कार्यवाही की मांग की है।
क्या भारत का आत्मनिर्भर भारत संरक्षणवाद का एक रूप है?
- आत्मनिर्भर भारत का सुझाव देने वाले तर्क संरक्षणवादी हैं
- बढ़े हुए टैरिफ और आयात प्रतिबंध: भारत ने आत्मनिर्भर भारत के तहत घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स, सौर पैनल और खिलौनों जैसे सामानों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है।
- उदाहरण के लिये, मूल सीमा शुल्क (BCD) वर्ष 2021 में 14.5% से बढ़कर सौर PV मॉड्यूल पर 40% और वर्ष 2022 में सौर पीवी सेल पर 25% हो गया है।
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना: PLI योजना इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करती है, जिसके संदर्भ में आलोचकों का तर्क है कि यह अप्रत्यक्ष संरक्षणवाद का एक रूप है।
- सरकार ने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने तथा आयात पर निर्भरता कम करने के लिये 14 क्षेत्रों में 1.97 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये।
- मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से बाहर हो जाना: भारत FTA पर सतर्क रुख अपनाकर आयात में अत्यधिक वृद्धि की चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर हो गया।
- यह निर्णय आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य के अनुरूप है, लेकिन प्रमुख बाज़ारों में भारत की निर्यात क्षमता को सीमित करता है।
- प्रतिवाद यह सुझाव देते हैं कि आत्मनिर्भर भारत संरक्षणवादी नहीं है
- घरेलू क्षमता निर्माण के माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: आत्मनिर्भर भारत का उद्देश्य केवल घरेलू बाज़ारों की सुरक्षा करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने वित्त वर्ष 2023 में मोबाइल निर्यात में 90,000 करोड़ रुपये का आँकड़ा पार कर लिया, जो वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण को दर्शाता है।
- अलगाव के बजाय रणनीतिक समुत्थानशक्ति: अर्द्धचालक और रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर ध्यान संरक्षणवादी उद्देश्यों के बजाय भू-राजनीतिक एवं आपूर्ति शृंखला कमज़ोरियों से प्रेरित है।
- चयनात्मक उदारीकरण: भारत ने ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापार समझौतों को सक्रियता से आगे बढ़ाया है तथा ब्रिटेन एवं यूरोपीय संघ नए FTA पर वार्ता कर रहे हैं।
- ये प्रयास आत्मनिर्भर भारत के घरेलू फोकस और बाह्य बाज़ार एकीकरण के बीच संतुलन को उजागर करते हैं।
संरक्षणवाद और वैश्वीकरण के बीच संतुलन बनाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- सामरिक व्यापार साझेदारी को मज़बूत करना: भारत सावधानीपूर्वक वार्ता के माध्यम से मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में शामिल होकर संरक्षणवाद को संतुलित कर सकता है, जो संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा करते हुए पारस्परिक लाभ प्रदान करते हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA, 2022) जैसे समझौते प्रमुख निर्यात क्षेत्रों (वस्त्र) में टैरिफ कटौती पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि डेयरी जैसे कमज़ोर क्षेत्रों को बाहर रखा गया है।
- चयनात्मक उदारीकरण को बढ़ावा देना: भारत को ऐसे क्षेत्रों का अभिनिर्धारण करने की आवश्यकता है जहाँ उदारीकरण से प्रतिस्पर्द्धात्मकता और निर्यात क्षमता में वृद्धि होगी, साथ ही नवोदित या महत्त्वपूर्ण उद्योगों को संरक्षण मिलेगा।
- उदाहरण के लिये, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ इलेक्ट्रॉनिक्स और EV विनिर्माण के लिये आवश्यक घटकों पर कम टैरिफ के साथ-साथ चल सकती हैं।
- वर्ष 2023 में भारत से मोबाइल निर्यात 90,000 करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जो दर्शाता है कि किस प्रकार चयनात्मक उदारीकरण, घरेलू प्रोत्साहनों के साथ मिलकर भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत कर सकता है।
- समुत्थानशील आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाकर और घरेलू विकल्पों को बढ़ावा देकर महत्त्वपूर्ण आयातों के लिये एकल राष्ट्रों पर निर्भरता को कम करने की आवश्यकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों द्वारा पहले से अपनाई जा रही चाइना प्लस वन रणनीति को फार्मास्यूटिकल्स और नवीकरणीय ऊर्जा तक विस्तारित किया जाना चाहिये।
- बहुपक्षीय सहभागिता को बढ़ाना: भारत को व्यापार विवादों और गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर करने के लिये विश्व व्यापार संगठन जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं को पुनर्जीवित करने तथा उनमें सुधार करने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
- निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देकर तथा विवाद समाधान सुधारों की मांग करके, भारत एकपक्षीय संरक्षणवादी उपायों का सहारा लिये बिना समान अवसर सुनिश्चित कर सकता है।
- प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये घरेलू बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करना: विश्व स्तरीय बुनियादी अवसंरचना, लॉजिस्टिक्स और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में निवेश करके भारतीय उद्योगों को संरक्षणवादी टैरिफ पर निर्भर हुए बिना वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सकता है।
- PM गति शक्ति पहल का उद्देश्य वैश्विक मानदंडों के अनुरूप लॉजिस्टिक्स लागत को सकल घरेलू उत्पाद के 13% से घटाकर 8% करना है।
- इससे भारत के MSME और निर्यातक लागत व गुणवत्ता पर प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम होंगे, जिससे सुरक्षात्मक व्यापार बाधाओं की आवश्यकता कम हो जाएगी।
- क्षेत्र-विशिष्ट सुरक्षा उपाय बनाना: भारत कमज़ोर क्षेत्रों के लिये लक्षित सुरक्षा उपाय लागू कर सकता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में उदारीकरण की अनुमति दे सकता है।
- उदाहरण के लिये, इस्पात और एल्युमीनियम के सब्सिडीयुक्त आयातों पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाने से निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित होती है, जबकि वस्त्र एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में टैरिफ में कटौती की सुविधा मिलती है।
- डिजिटल और सेवा व्यापार का लाभ उठाना: भारत को वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देकर तथा उच्च-कुशल क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करके डिजिटल सेवाओं और IT में अपनी क्षमता का लाभ उठाना चाहिये।
- ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) मॉडल ने पहले ही 36 बिलियन डॉलर का वार्षिक राजस्व उत्पन्न कर दिया है, तथा JP मॉर्गन और क्वालकॉम जैसी कंपनियाँ भारत में अपने परिचालन का विस्तार कर रही हैं।
- सेवा व्यापार उदारीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ संरक्षणवादी औद्योगिक नीतियों पर भारी निर्भरता के बिना भी विकास सुनिश्चित कर सकती हैं।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिये कौशल को प्राथमिकता देना: घरेलू ज़रूरतों के साथ वैश्वीकरण को संतुलित करने के लिये उभरते उद्योगों में कुशल एक अनुकूलनीय कार्यबल की आवश्यकता होती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये स्किल इंडिया जैसी पहलों को उन्नत विनिर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- चिप डिज़ाइन और हरित प्रौद्योगिकियों में इंजीनियरों को प्रशिक्षित करके, भारत आयात पर निर्भरता कम करते हुए उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में FDI आकर्षित कर सकता है।
- निर्यातोन्मुख पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना: भारत को विशेषीकृत क्षेत्र और क्लस्टर बनाने की आवश्यकता है जो वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण करते हुए निर्यातोन्मुख उद्योगों की जरूरतों को पूरा कर सकें।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) मॉडल को आधुनिक विनिर्माण और सेवा आवश्यकताओं, विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों एवं अर्द्धचालकों के लिये, के अनुरूप बनाया जा सकता है।
- तमिलनाडु के ऑटोमोटिव क्लस्टर जैसे निर्यात केंद्र यह दर्शाते हैं कि किस प्रकार लक्षित नीतियाँ स्थानीय विकास के साथ वैश्विक एकीकरण को संतुलित कर सकती हैं।
- जलवायु-सचेत व्यापार नीतियों का अंगीकरण: भारत को यूरोपीय संघ कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM, 2023) जैसे हरित टैरिफ के तहत संरक्षणवादी प्रतिक्रिया से बचने के लिये अपनी व्यापार नीतियों को वैश्विक स्थिरता प्रवृत्तियों के साथ संरेखित करना चाहिये।
- नवीकरणीय ऊर्जा विनिर्माण में निवेश करके तथा निर्यात को निम्न-कार्बन के रूप में प्रमाणित करके भारत ग्रीन मार्केट्स में प्रतिस्पर्द्धी बना रह सकता है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन जैसे कार्यक्रम वैश्विक बाज़ारों के साथ एकीकरण करते हुए सतत् व्यापार में अग्रणी रहने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करते हैं।
निष्कर्ष:
यदि संरक्षणवाद का उदय विशेष रूप से निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता, आपूर्ति शृंखला व्यवधान और विदेशी निवेश के संदर्भ में भारत के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है, तो रणनीतिक पुनर्संरचना के लिये अवसर भी प्रदान करता है। भारत का दृष्टिकोण, जिसका उदाहरण आत्मनिर्भर भारत जैसी पहल है, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के साथ आत्मनिर्भरता को संतुलित करना है। भारत चुनिंदा उदारीकरण को अपनाकर, व्यापार साझेदारी को मज़बूत करके, बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाकर और महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में समुत्थानशक्ति पर ध्यान केंद्रित करके, एक संरक्षणवादी विश्व की जटिलताओं के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्वीकरण के युग में संरक्षणवादी नीतियाँ आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? उदाहरणों सहित चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत में 1991 में आर्थिक नीतियों के उदारीकरण के बाद घटित हुआ/हुए है/हैं ? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न 2. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद की भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |