सामाजिक न्याय
कुपोषण के अंतराल को भरना
प्रिलिम्स के लिये:चाइल्ड वेस्टिंग, स्टंटिंग, अल्पपोषण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (NFHS 5), मिशन पोषण 2.0, समेकित बाल विकास योजना (ICDS), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), मिड-डे मील योजना, किशोरियों के लिये योजना(SAG), माँ का पूर्ण स्नेह (MAA), पोषण वाटिकाएँ, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) मेंस के लिये:कुपोषण: आँकड़े, कारण; आगे की राह, सरकारी पहल और बेमतारा केस स्टडी। |
यह एडिटोरियल 07/09/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Bridging the malnutrition gap, the Bemetara way’’ पर आधारित है। इसमें भारत में पोषण संबंधी अंतराल और इससे प्रभावी ढंग से निपटने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है।
भारत के ‘अमृत काल’ (इंडिया@100 की ओर 25 वर्ष की सुदीर्घ यात्रा) में प्रवेश के साथ कई बातें हैं जिनके लिये गर्व किया जा सकता है; विज्ञान, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में देश ने उल्लेखनीय प्रगति की है, जिससे देश के प्राचीन, पारंपरिक और सभ्यतागत ज्ञान आधार, विवेक एवं समृद्धि में वृद्धि हुई है।
इन प्रगतियों के बावजूद यह चिंताजनक है कि स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी भारत कुपोषण जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है। खराब पोषण न केवल स्वास्थ्य और उत्तरजीविता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, बल्कि सीखने (लर्निंग) की क्षमता में कमी और स्कूल में खराब प्रदर्शन का कारण भी बनता है। वयस्क जीवन में यह आय अर्जन की सीमित क्षमता और मधुमेह, उच्च रक्तचाप एवं मोटापे जैसी गंभीर बीमारियों के अधिक जोखिम का कारण बनता है।
कुपोषण क्या है?
- कुपोषण (Malnutrition) का तात्पर्य है पोषक तत्वों के सेवन में कमी या अधिकता; आवश्यक पोषक तत्वों का असंतुलन या पोषक तत्वों का अक्षम उपयोग।
- कुपोषण के दोहरे बोझ में अल्पपोषण (undernutrition) और अधिक वजन (overweight) व मोटापा (obesity) दोनों शामिल हैं; इसके साथ ही, इसमें आहार संबंधी गैर-संचारी रोग (non-communicable diseases) भी शामिल हैं।
- अल्पपोषण चार व्यापक रूपों में प्रकट होता है: वेस्टिंग, स्टंटिंग, अल्प वजन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी।
- वेस्टिंग (Wasting): इसे कद के अनुरूप कम वजन (low weight-for-height) के रूप में परिभाषित किया गया है।
- यह प्रायः वजन में हालिया और गंभीर कमी का संकेत देती है, हालाँकि यह दीर्घावधिक समस्या के रूप में भी मौजूद हो सकती है।
- यह आमतौर पर तब उत्पन्न होती है जब बच्चे को पर्याप्त गुणवत्ता एवं मात्रा का भोजन प्राप्त नहीं होता है और/अथवा वे लगातार या लंबे समय तक रोगों की चपेट में बने रहते हैं।
- यदि इसका उपयुक्त रूप से उपचार नहीं किया जाए तो बच्चों में वेस्टिंग से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
- स्टंटिंग (Stunting): इसे आयु के अनुरूप निम्न कद या लंबाई (low height-for-age) के रूप में परिभाषित किया गया है।
- यह गंभीर या लगातार बने रहे अल्पपोषण का परिणाम है, जो आमतौर पर गरीबी, मातृ स्वास्थ्य एवं पोषण की ख़राब दशा, लगातार बीमार बने रहना और/या आरंभिक बाल्यावस्था में आहार एवं देखभाल की अनुपयुक्त दशा से संबंधित है।
- स्टंटिंग बच्चों को उनकी शारीरिक और संज्ञानात्मक क्षमता तक पहुँचने से रोकती है।
- अल्प वजन (Underweight): इसे आयु के अनुरूप कम वजन (low weight-for-age) के रूप में परिभाषित किया गया है।
- अल्प वजन वाला कोई बच्चा स्टंटिंग या वेस्टिंग का अथवा दोनों का शिकार हो सकता है।
- वेस्टिंग (Wasting): इसे कद के अनुरूप कम वजन (low weight-for-height) के रूप में परिभाषित किया गया है।
कुपोषण की समस्या से भारत किस हद तक प्रभावित है?
- वर्ल्डोमीटर (Worldometer) के अनुसार, भारत वैश्विक आबादी में में कुपोषित लोगों का सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, जहाँ इसकी लगभग 14.37% आबादी को पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं होता है।
- सरकार के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (NFHS 5) के अनुसार:
- पाँच वर्ष से कम आयु के 36% बच्चे स्टंटिंग के शिकार हैं
- 19% बच्चे वेस्टिंग के शिकार हैं
- 32% बच्चे अल्प वजन के शिकार हैं
- 3% बच्चे अति वजन (overweight) के शिकार हैं
- एनीमिया (Anemia), जिसे हीमोग्लोबिन की कमी भी कहा जाता है; 5 वर्ष से कम आयु के 67% बच्चों को प्रभावित कर रहा है।
- एनीमिया महिलाओं में अधिक व्यापक रूप से पाया जाता है, जहाँ भारत में 25% पुरुषों (50 वर्ष से कम आयु) की तुलना में 57% महिलाएँ इससे पीड़ित हैं।
- इसके अलावा, 50 वर्ष से कम आयु की 19% महिलाएँ और 16% पुरुष अल्पपोषित (undernourished) हैं, जबकि 24% महिलाएँ और 23% पुरुष मोटापे (obesity) के शिकार हैं।
- भारत की 1.4 बिलियन विशाल आबादी का लगभग 40% भाग कुपोषण से ग्रस्त है।
भारत में व्याप्त कुपोषण के पीछे के प्राथमिक कारण
- आर्थिक असमानता: जनसंख्या के कुछ भागों की निम्न आर्थिक स्थिति के कारण, उनके आहार में प्रायः गुणवत्ता एवं मात्रा दोनों का अभाव होता है। गरीब लोग प्रायः पौष्टिक भोजन पा सकने का सामर्थ्य नहीं रखते या उस तक उनकी पहुँच सीमित होती है। प्राकृतिक आपदाओं, संघर्षों या कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण भी उन्हें खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
- प्राथमिक स्वास्थ्य अवसंरचना की कमी: भारत में आबादी का एक हिस्सा टीकाकरण, प्रसवपूर्व देखभाल या संक्रमण के उपचार जैसी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अभाव रखता है। इससे बीमारियों और अन्य जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है जो कुपोषण की समस्या को और बदतर कर सकता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रति 1000 लोगों की आबादी पर एक डॉक्टर और 3 आदर्श नर्स घनत्व की अनुशंसा करता है। भारत में प्रति 1000 लोगों पर 0.73 डॉक्टर और 1.74 नर्स ही उपलब्ध हैं।
- जागरूकता की कमी और निरक्षरता: भारत में बहुत से लोग पोषण के महत्त्व या इसे सुनिश्चित करने के सर्वोत्तम तरीकों के बारे में जागरूक नहीं हैं। वे प्रायः अवगत नहीं होते कि संतुलित आहार कैसे तैयार किया जाए, गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान किन खाद्य पदार्थों से परहेज किया जाए या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को कैसे रोका जाए। व्याप्त निरक्षरता भी पोषण संबंधी जानकारी और शिक्षा तक पहुँच की उनकी क्षमता को सीमित करती है।
- अक्षम सार्वजनिक वितरण प्रणाली: सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System (PDS) एक सरकारी कार्यक्रम है जो गरीब परिवारों को सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न और अन्य आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करता है। हालाँकि, PDS भ्रष्टाचार, लीकेज, डायवर्जन, खराब गुणवत्ता और अपर्याप्त कवरेज जैसी विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त है। इसके परिणामस्वरूप, खाद्य सहायता की आवश्यकता रखने वाले बहुत से लोग इससे वंचित रह जाते हैं या उन्हें अपर्याप्त मात्रा में ही खाद्य प्राप्त हो पाता है।
- CAG की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012-13 में PDS के तहत आवंटित खाद्यान्न का केवल 49% ही इच्छित लाभार्थियों तक पहुँच सका।
- एकीकृत बाल विकास योजना का अक्षम कार्यान्वयन: एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme- ICDS) एक अन्य सरकारी कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य छह वर्ष से कम आयु के बच्चों और गर्भवती एवं स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य में सुधार करना है। ICDS आँगनबाड़ी केंद्रों (समुदाय-आधारित मातृ एवं शिशु देखभाल केंद्र) के माध्यम से पूरक खाद्य, स्वास्थ्य जाँच, टीकाकरण, विकास निगरानी और प्री-स्कूल शिक्षा जैसी सुविधाएँ प्रदान करता है।
- हालाँकि, ICDS को अपर्याप्त धन, कर्मचारियों की कमी, सेवाओं की निम्न गुणवत्ता और निम्न भागीदारी दर जैसी कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
- NFHS-5 के अनुसार, किसी आँगनवाड़ी केंद्र के माध्यम से पिछले 6 माह में छह वर्ष से कम आयु के केवल 50.3% बच्चों को ही कोई सेवा प्राप्त हो सकी।
- स्वच्छता की बदतर स्थिति: स्वच्छता और साफ-सफाई के बदतर अभ्यासों से रोगजनकों और परजीवियों का जोखिम बढ़ सकता है जो संक्रमण एवं बीमारियों का कारण बन सकते हैं। ये शरीर में पोषक तत्वों के अवशोषण एवं उपयोगिता को प्रभावित कर सकते हैं और कुपोषण का कारण बन सकते हैं।
- NFHS-5 में पाया गया कि केवल 69% घर ही बेहतर स्वच्छता सुविधा का उपयोग करते हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
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और क्या किया जाना चाहिये?
- एक केंद्रित SBCC कार्ययोजना का विकास करना: राज्यों को एक सुसंरचित एवं केंद्रित सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (Social and Behavior Change Communication- SBCC) कार्ययोजना—जो कुपोषण को संबोधित करने के लिये विशेष रूप से तैयार किया गया हो, का विकास करने के लिये सहयोग करना चाहिये। इस योजना को प्रभावी संचार के लिये उद्देश्यों, लक्षित दर्शकों, मुख्य संदेशों और रणनीतियों की रूपरेखा प्रदान करनी चाहिये।
- पोषण संबंधी परामर्श को संस्थागत बनाना: पोषण संबंधी परामर्श को स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के एक मूलभूत घटक के रूप में संस्थागत बनाया जाना चाहिये। इसका अभिप्राय यह है कि इसे मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना (जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों) में एकीकृत किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह स्वास्थ्य सेवाओं का एक नियमित हिस्सा बन जाए।
- एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग (Exclusive Breastfeeding- EBF) पर जागरूकता बढ़ाना: बच्चे के जीवन के प्रथम छह माह के दौरान केवल स्तनपान या EBF के महत्त्व पर बल दिया जाए। जागरूकता अभियान चलाये जाएँ जो माताओं और परिवारों को EBF के लाभों के बारे में शिक्षित करें। इसमें बेहतर दूध हस्तांतरण के लिये होल्डिंग, लैचिंग और मैन्युअल रूप से स्तन से दूध प्राप्त करने की इष्टतम तकनीकों के बारे में शिक्षित करना शामिल है।
- प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर स्तनपान परामर्श: प्रसवपूर्व जाँच के दौरान गर्भवती महिलाओं को स्तनपान संबंधी परामर्श प्रदान करने के लिये एक व्यवस्थित दृष्टिकोण लागू करें और प्रसव के बाद लगातार घरेलू दौरों के माध्यम से इस सहयोग को बनाये रखें। साक्ष्य पुष्टि करते हैं कि इस तरह के परामर्श से स्तनपान अभ्यासों में व्यापक सुधार होता है और अल्पपोषण में कमी आती है।
- पूरक आहार अभ्यास: पूरक आहार शुरू करने के समय (लगभग छह से आठ माह के दौरान), आहार सामग्री एवं उसे प्रदान करने के तरीके, आवृत्ति और आहार की उपयुक्त मात्रा के बारे में माता-पिता एवं देखभालकर्ताओं को शिक्षित कर पूरक आहार अभ्यासों में विद्यमान अंतराल को दूर किया जाए। इस सूचना को सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों तक पहुँचाया जाए।
- प्रधानमंत्री की संलग्नता: ‘स्वच्छ भारत अभियान’ जैसी पहलों की तरह, ‘मन की बात’ जैसे मंचों के माध्यम से, पोषण कार्यक्रमों को प्रबल समर्थन और दृश्यता प्रदान करने के लिये प्रधानमंत्री को संलग्न किया जाए। इससे संसाधन जुटाने और जन जागरूकता पैदा करने में मदद मिल सकती है।
- पोषण 2.0 को संशोधित और रूपांतरित करना: किसी भी कमी की पहचान करने और उसे दूर करने के लिये पोषण 2.0 कार्यक्रम के कार्यान्वयन का पुनर्मूल्यांकन करें। सुनिश्चित करें कि नियोजित प्रणाली जीवन के महत्त्वपूर्ण प्रथम 1,000 दिनों के दौरान माताओं और बच्चों तक प्रभावी ढंग से पहुँच रख रही है।
- वैकल्पिक वितरण चैनलों का पता लगाना: आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को परामर्श कार्य के लिये मुक्त करने के साथ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से टेक-होम राशन पैकेट जैसे पूरक पोषण वितरित करने पर विचार करें। इससे लाभार्थियों तक आवश्यक पोषण की आपूर्ति को सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
- मानव संसाधनों को संयोजित करना: एक ऐसी नई प्रणाली का विकास एवं परीक्षण करें जो एकीकृत बाल विकास योजना और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के मानव संसाधनों को ग्राम से लेकर ज़िला और राज्य स्तर तक एकीकृत करे। इससे बाल जीवन के प्रथम 1,000 दिनों के दौरान सेवाएँ प्रदान करने के लिये एक अधिक कुशल एवं जवाबदेह प्रणाली का निर्माण होगा।
- मास-मीडिया का उपयोग करना: प्रथम 1,000 दिनों के दौरान नवजातों और शिशुओं की देखभाल पर जानकारीपूर्ण चर्चा एवं विमर्श आयोजित करने के लिये मास मीडिया और टेलीविजन शो का लाभ उठाएँ। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली से परे भी माताओं और देखभालकर्ताओं तक पहुँच बना सकता है।
- सतत् निगरानी और मूल्यांकन: इन हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता की निगरानी एवं मूल्यांकन के लिये एक सुदृढ़ प्रणाली स्थापित करें, जहाँ बाल कुपोषण में निरंतर कमी सुनिश्चित करने के लिये परिणामों के आधार पर आवश्यक समायोजन किया जाए।
‘बेमेतरा’ से क्या सबक सीखा जा सकता है?
- बेमेतरा (Bemetara) छत्तीसगढ़ का एक ज़िला है जहाँ दिसंबर 2022 में गंभीर तीव्र कुपोषण (Severe Acute Malnutrition- SAM) से ग्रस्त बच्चों की संख्या 3,299 के उच्च स्तर पर थी।
- वहाँ आहार अभ्यासों के बारे में उचित जानकारी का अभाव पाया गया। इस कारण इस क्षेत्र के लिये ठोस निगरानी के साथ पोषण परामर्श को कार्यप्रणाली के रूप में चुना गया।
- पोट्ठ लइका अभियान (Potth Laika Abhiyaan/Healthy Child Mission) एक पोषण परामर्श कार्यक्रम है जिसे 72 सबसे अधिक प्रभावित आँगनवाड़ी केंद्रों में लागू किया जा रहा है।
- स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभागों के ज़मीनी स्तर के कर्मचारियों को क्षेत्र में पोषण परामर्श प्रदान करने के तरीके के बारे में अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया गया है।
- प्रत्येक शुक्रवार को लक्षित SAM और MAM (Medium Acute Malnutritioned) बच्चों के माता-पिता को बुलाया जाता है और उनकी काउंसलिंग की जाती है।
- उन्हें स्थानीय छत्तीसगढ़ी भाषा में ‘तिरंगा भोजन’ (संतुलित आहार) के महत्त्व एवं घटकों, स्वस्थ जीवन शैली के लिये नियमित रूप से हाथ धोने की आवश्यकता और अन्य युक्तियों के बारे में जागरूक किया जाता है।
- लक्षित बच्चों की प्रगति पर नज़र रखी जा रही है।
- सरपंच जैसे स्थानीय जनप्रतिनिधियों, पंचायत सचिवों और धार्मिक प्रमुखों ने भी ऐसे परामर्श सत्रों में भागीदारी की है।
- लक्षित बच्चों की प्रगति की निगरानी के लिये घर-घर जाकर भी उन्हें देखा जाता है।
- नियमित निगरानी एवं मूल्यांकन के साथ-साथ पोषण परामर्श के सरल मंत्र के परिणामस्वरूप नौ माह की अवधि में 53.77% लक्षित बच्चों को कुपोषण से बाहर लाया गया है।
- जब इसकी तुलना 20 आँगनवाड़ी केंद्रों के एक यादृच्छिक नियंत्रण समूह से की गई, जहाँ यह मिशन लागू नहीं किया जा रहा था, तो वहाँ केवल 30.6% बच्चों को ही कुपोषण से बाहर निकाला गया था।
- यह एक शून्य लागत मिशन है, जिसके लिये महज कुछ प्रशिक्षण सत्रों और नियमित निगरानी से अधिक की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार, इसने स्वयं को लागत-प्रभावी भी सिद्ध किया है।
अभ्यास प्रश्न: अनुभव बताते हैं कि ज़रूरी नहीं कि सरल चीज़ें हमेशा आसान ही हों, लेकिन प्रायः वे सबसे प्रभावी समाधान होती हैं। इस आलोक में, लोगों को खाने-खिलाने के तरीकों के बारे में परामर्श देने के साथ-साथ उनकी प्रगति की निगरानी करना कुपोषण से निपटने में ‘गेम-चेंजर’ सिद्ध हो सकता है। टिप्पणी कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक निम्नलिखित में से कौन सा/से है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: भारत में गरीबी और भूख के बीच संबंधों में बढ़ता अंतर है। सरकार द्वारा सामाजिक व्यय में कमी के कारण गरीब अपने भोजन-बजट को घटाते हुए गैर-खाद्य आवश्यक वस्तुओं पर अधिक खर्च करने के लिये मज़बूर हो रहे हैं। स्पष्ट कीजिये। (2019) |