एडिटोरियल (06 Jul, 2024)



औद्योगिक क्षेत्र में जलवायु प्रत्यास्थता

यह एडिटोरियल 07/05/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Mixed signals: On data and the key industrial sectors” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के औद्योगिक उत्पादन पर ग्रीष्म लहर के प्रभाव की चर्चा की गई है, जहाँ कई प्रमुख क्षेत्रों में मंदी और कोयला एवं बिजली उत्पादन की प्रत्यास्थता पर प्रकाश डाला गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत के मुख्य क्षेत्र, हीटवेव, ई-कॉमर्स, NPCI, खाद्य प्रसंस्करण, तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), जन धन योजना, चक्रवात अम्फान,  एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग, यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, चक्रवात निसर्ग

मेन्स के लिये:

भारत के औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाले क्षेत्र, भारत के औद्योगिक क्षेत्र के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रमुख खतरे।

मई 2023 के नवीनतम आँकड़े से उज़ागर होता है कि भारत के कोर सेक्टर में मंदी आई, जिसका मुख्य कारण भीषण ग्रीष्म लहर (हीटवेव) है। जबकि कोयला और बिजली उत्पादन में शीतलन आवश्यकताओं में वृद्धि के कारण विकास देखा गया, कच्चे तेल, उर्वरक और सीमेंट जैसे अन्य क्षेत्रों में संकुचन का अनुभव हुआ।

ग्रीष्म लहर ने विशेष रूप से उत्तरी भारत में निर्माण गतिविधियों को प्रभावित किया, जिससे सीमेंट और इस्पात की मांग प्रभावित हुई। उर्वरक उत्पादन में लगातार कमज़ोरी कृषि क्षेत्र में जारी चुनौतियों का संकेत देती है। भारत के औद्योगिक क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति प्रत्यास्थी बनाने के लिये रणनीतिक उपायों को लागू कर देश भविष्य की बाधाओं को पार कर सकता है और एक सतत् आर्थिक विकास के लिये अधिक संवहनीय औद्योगिक आधार का निर्माण कर सकता है।

भारत के औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और IT-सक्षम सेवाएँ: IT क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारशिला बना हुआ है, जहाँ वित्त वर्ष 2026 तक इसका राजस्व 350 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • भारत का IT उद्योग 4.5 मिलियन से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान है तथा देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 8% है।
    • उल्लेखनीय प्रगतियों में क्लाउड सेवाओं का तेज़ी से अंगीकरण शामिल है, जहाँ भारतीय सार्वजनिक क्लाउड सेवा (PCS) बाज़ार वर्ष 2026 तक 13.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: दिसंबर 2023 तक की स्थिति के अनुसार, कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है।
    • देश वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा संबंधी प्रमुख परियोजनाओं में राजस्थान के भड़ला में स्थित विश्व का सबसे बड़ा सोलर पार्क शामिल है।
  • ई-कॉमर्स और डिजिटल सेवाएँ: भारतीय ई-कॉमर्स के वर्ष 2026 तक 27% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ते हुए 163 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • इंटरनेट की बढ़ती पहुँच से इस क्षेत्र को बढ़ावा मिला है, जहाँ 820 मिलियन से अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता मौजूद हैं।
    • डिजिटल भुगतान में व्यापक वृद्धि देखी गई है, जहाँ कैलेंडर वर्ष 2022 में UPI ने 74 बिलियन से अधिक लेनदेन संसाधित किये, जिनका मूल्य 125.94 ट्रिलियन रुपए (NPCI) रहा।
    • फ्लिपकार्ट और अमेज़न जैसी कंपनियों ने टियर 2 और 3 शहरों तक अपनी सेवाओं का विस्तार किया है जो इस क्षेत्र की वृद्धि में योगदान कर रहा है।
  • खाद्य प्रसंस्करण: भारत एक विशाल कृषि आधार रखता है, जो फिर इसे खाद्य प्रसंस्करण का एक नैसर्गिक हब बनाता है।
    • बढ़ती आय और शहरीकरण के साथ, प्रसंस्करित और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है।
    • ITC, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और नेस्ले जैसी कंपनियाँ इस क्षेत्र में अपना परिचालन बढ़ा रही हैं।
  • एयरोस्पेस और रक्षा: भारत का एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र तेज़ी से विस्तार कर रहा है, जहाँ सरकार वर्ष 2025 तक रक्षा उत्पादन में 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का लक्ष्य रखती है।
    • देश ने आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये कई नीतियाँ लागू की हैं, जिसमें वर्ष 2020 में 101 रक्षा वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाना शामिल था।
    • प्रमुख उपलब्धियों में हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस’ का स्वदेशी विकास और अग्नि-V का सफल परीक्षण शामिल है।
  • फार्मास्यूटिकल्स और जैव प्रौद्योगिकी: भारत विश्व में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है, जो वैश्विक आपूर्ति का लगभग 20% है।
    • वर्ष 2030 तक भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग का आकार 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक होने की उम्मीद है।
    • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र भी तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। वर्तमान में देश में 5,000 से अधिक जैव प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप सक्रिय हैं।
  • दूरसंचार: भारत का दूरसंचार उद्योग विश्व का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार उद्योग है, जिसका ग्राहक आधार अप्रैल 2024 तक 1.091 बिलियन तक पहुँच गया।
    • जारी 5G रोलआउट से वर्ष 2040 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में 450 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान प्राप्त होने की उम्मीद है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EVs): भारत का EVs बाज़ार 2030 तक 206 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये FAME II जैसी नीतियाँ लागू की हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% निजी कारों को इलेक्ट्रिक बनाना है।
    • देश चार्जिंग अवसंरचना के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसके तहत राष्ट्रीय राजमार्गों पर 69,000 चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की योजना है।
  • वस्त्र एवं परिधान: भारत विश्व का छठा सबसे बड़ा वस्त्र एवं परिधान निर्यातक है, जहाँ घरेलू परिधान एवं वस्त्र उद्योग देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 2.3%, औद्योगिक उत्पादन में 13% तथा निर्यात में 12% का योगदान देता है।
  • फिनटेक: भारत का फिनटेक बाज़ार वर्ष 2025 तक 150 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। देश में 6,636 से अधिक फिनटेक स्टार्ट-अप सक्रिय हैं, जहाँ डिजिटल भुगतान इस क्षेत्र में अग्रणी है।
    • जन धन योजना जैसी सरकार की पहल ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये सरकार की हाल की पहलें:

भारत के औद्योगिक क्षेत्र के लिये जलवायु परिवर्तन के कौन-से प्रमुख खतरे हैं?

  • जल की कमी और तनाव: भारत के 50% ज़िलों को वर्ष 2050 तक जल की ‘गंभीर’ कमी का सामना करना पड़ सकता है। इससे कपड़ा, बिजली उत्पादन और कृषि जैसे जल-गहन उद्योगों को खतरा है।
    • नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट बताती है कि यदि जल की कमी की समस्या को संबोधित नहीं किया गया तो वर्ष 2050 तक भारत को अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 6% तक की हानि हो सकती है।
  • चरम मौसमी घटनाएँ: चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता औद्योगिक अवसंरचना और परिचालन के लिये गंभीर जोखिम पैदा करती है।
    • चक्रवात, बाढ़ और ग्रीष्म लहर जैसी घटनाएँ आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं, प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुँचा सकती हैं और उत्पादन को रोक सकती हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक रिपोर्ट के अनुसार, चक्रवात अम्फान के कारण भारत में 14 बिलियन अमरीकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई। 
  • बढ़ता तापमान: उच्च तापमान से श्रमिकों की उत्पादकता कम हो जाती है और उद्योगों के लिये शीतलन लागत बढ़ जाती है।
    • एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग के अनुसार, भारत में वर्ष 2030 तक बढ़ते तापमान के कारण लगभग 5.8% दैनिक कार्य घंटों की कमी होने की आशंका है, जिससे उत्पादकता में कमी आएगी और राजकोषीय राजस्व के संग्रहण में गिरावट होगी। 
  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: जलवायु परिवर्तन वैश्विक और स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं की भेद्यता को बढ़ा रहा है, जो भारत के उद्योगों के लिये एक बड़ा खतरा पैदा कर रहा है।
    • चरम मौसमी घटनाएँ परिवहन नेटवर्क को बाधित कर सकती हैं, भंडारण सुविधाओं को क्षति पहुँचा सकती हैं और कच्चे माल की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती हैं।
    • ऑटोमोबाइल क्षेत्र, जो कि ‘जस्ट-इन-टाइम’ विनिर्माण पर अत्यधिक निर्भर करता है, विशेष रूप से असुरक्षित है।
  • विनियामक और बाज़ार दबाव: जलवायु कार्रवाई पर बढ़ते वैश्विक ध्यान के कारण सख्त विनियमन सामने आ रहे हैं और बाज़ार की गतिशीलता में बदलाव आ रहा है।
    • उद्योगों पर अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और संवहनीय अभ्यासों को अपनाने का दबाव है।
    • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ (EU) का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism) भारत के इस्पात और रसायन जैसे निर्यातोन्मुख उद्योगों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
  • रोग पैटर्न में बदलाव और स्वास्थ्य सेवा उद्योग: जलवायु परिवर्तन विभिन्न रोगों के भौगोलिक वितरण एवं व्यापकता को बदल रहा है।
    • यह बदलाव भारत के फार्मास्यूटिकल और स्वास्थ्य सेवा उद्योगों के लिये जटिल चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
    • उदाहरण के लिये, बढ़ते तापमान के कारण मलेरिया और डेंगू जैसी वेक्टरजनित बीमारियों का दायरा बढ़ रहा है।
    • स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को अपने अनुसंधान, औषधि विकास और स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणालियों को तेज़ी से अनुकूलित करने की आवश्यकता है।
      • फार्मास्यूटिकल उद्योग को नए उपचार और टीके विकसित करने के लिये संसाधनों का पुनः आवंटन करना पड़ सकता है, जिससे मौजूदा कारोबार मॉडल में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • जलवायु-प्रेरित प्रवासन और श्रम बाज़ार व्यवधान: जलवायु परिवर्तन से भारत में महत्त्वपूर्ण आंतरिक प्रवासन शुरू हो सकता है।
    • लोगों का यह वृहत गमन मूल और गंतव्य दोनों क्षेत्रों के उद्योगों के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
    • ग्रामीण उद्योगों को श्रमिकों की कमी का सामना करना पड़ सकता है, जबकि शहरी उद्योगों को तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के कारण संघर्ष करना पड़ सकता है, जिससे सामाजिक तनाव और शहरी अवसंरचना पर दबाव बढ़ सकता है।
  • वायुमंडलीय रसायन विज्ञान और औद्योगिक प्रक्रियाओं में परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण CO2 के बढ़ते स्तर और वायुमंडलीय संरचना में परिवर्तन से कुछ औद्योगिक प्रक्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, सीमेंट उद्योग—जो भारत के CO2 उत्सर्जन में लगभग 8% का योगदान देता है, को सीमेंट सुखाने की प्रक्रिया में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि उच्च CO2 स्तर कंक्रीट की सुदृढ़ता एवं स्थायित्व को प्रभावित कर सकता है।
    • इसी प्रकार, रासायनिक उद्योग को ऐसी संश्लेषण प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने की आवश्यकता पड़ सकती है जो तापमान और आर्द्रता परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील हैं।
      • इन परिवर्तनों के लिये विभिन्न विनिर्माण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अनुसंधान एवं विकास निवेश और प्रक्रिया संशोधन की आवश्यकता पड़ सकती है।
  • तटीय औद्योगिक गलियारों के लिये खतरा: भारत के तटीय क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक गलियारे समुद्र-स्तर में वृद्धि और चक्रवात की तीव्रता में वृद्धि के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं।
    • वर्ष 2020 में चक्रवात निसर्ग ने भारत के सबसे बड़े कंटेनर बंदरगाह जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट पर परिचालन बंद करने के लिये विवश किया, जिससे देश भर में आपूर्ति शृंखला बाधित हुई।

भारत के औद्योगिक क्षेत्र की जलवायु प्रत्यास्थता को बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • इंडस्ट्रियल सिम्बायोसिस पार्क: विशिष्ट औद्योगिक पार्क विकसित किये जाएँ जहाँ विभिन्न उद्योग एक-दूसरे के अपशिष्ट और सह-उत्पादों का उपयोग करने के लिये परस्पर सहयोग करें।
    • उदाहरण के लिये, किसी इस्पात संयंत्र की अपशिष्ट ऊष्मा से किसी कपड़ा कारख़ाने को ऊर्जा प्राप्त हो सकती है, जबकि किसी खाद्य प्रसंस्करण इकाई के जैविक अपशिष्ट से किसी बायोगैस संयंत्र को ईंधन मिल सकता है।
    • यह दृष्टिकोण न केवल अपशिष्ट और उत्सर्जन को कम करता है, बल्कि बाह्य संसाधनों पर कम निर्भर और अधिक प्रत्यास्थी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण भी करता है।
  • कारख़ानों के लिये जलवायु-अनुकूल संरचना: जलवायु-अनुकूल औद्योगिक इमारतों के निर्माण को अनिवार्य और प्रोत्साहित करें। इसमें निम्नलिखित उपाय शामिल हो सकते हैं:
    • सेल्फ-शेडिंग संरचनाएँ, जो सूर्य की स्थिति के आधार पर समायोजित होती हैं
    • ग्रीन रूफ्स और दीवारें, जो प्राकृतिक शीतलता प्रदान करती हैं और वर्षा जल को संग्रहित करती हैं
    • स्थिर तापमान बनाए रखने के लिये अधिक गर्मी वाले क्षेत्रों में भूमिगत कारख़ाने स्थापित करना
    • तटीय क्षेत्रों में फ्लोटिंग फैक्ट्रियों की स्थापना करना जो बढ़ते समुद्र-स्तर के अनुकूल होंगी
  • AI-संचालित जलवायु जोखिम प्रबंधन: एक ऐसी AI प्रणाली विकसित करें जो रियल-टाइम जलवायु डेटा, दीर्घकालिक अनुमानों और औद्योगिक परिचालन  डेटा को एकीकृत करती हो। यह प्रणाली निम्नलिखित कार्य कर सकती है:
    • अलग-अलग कारख़ानों के लिये विशिष्ट जलवायु जोखिमों का पूर्वानुमान व्यक्त करना
    • मौसम पूर्वानुमान के आधार पर उत्पादन कार्यक्रम को स्वचालित रूप से समायोजित करना
    • जलवायु संबंधी व्यवधानों से बचने के लिये रियल टाइम में आपूर्ति शृंखलाओं का अनुकूलन करना
    • स्थान-विशिष्ट अनुकूलन उपाय सुझाना
  • विकेंद्रीकृत माइक्रो-ग्रिड नेटवर्क: उद्योगों को विकेंद्रीकृत, जलवायु-प्रत्यास्थी ऊर्जा नेटवर्क के निर्माण के लिये प्रोत्साहित किया जाए।
    • नेटवर्क में शामिल प्रत्येक कारख़ाने के पास अपनी नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन (सौर, पवन, बायोमास) और भंडारण क्षमताएँ होंगी।
    • ये माइक्रो-ग्रिड आपस में जुड़े होंगे, जिससे व्यवधान के दौरान ऊर्जा साझा करने की सुविधा मिलेगी।
  • कृषि और उद्योग का ऊर्ध्वाधर एकीकरण: ऊर्ध्वाधर रूप से एकीकृत (Vertical Integration) कृषि-औद्योगिक परिसरों के विकास को बढ़ावा दिया जाए।
    • इससे जलवायु-नियंत्रित ऊर्ध्वाधर खेती को खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के साथ जोड़ा जाएगा, जिससे परिवहन की आवश्यकताएँ कम होंगी और कृषि व्यवधानों के प्रति प्रत्यास्थता बढ़ेगी।
    • उदाहरण के लिये, एक ऐसा बहुमंज़िला परिसर बनाना जिसमें ऊपरी मंज़िलों पर टमाटर उगाए जाएँ और निचली मंज़िलों पर टोमैटो केचप का उत्पादन किया जाए, जबकि यह छत पर स्थापित सौर ऊर्जा पैनल से संचालित हो।
  • भूमिगत जल बैंकिंग प्रणाली: भूमिगत जलभृत पुनर्भरण और भंडारण सुविधाओं का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क विकसित किया जाए।
    • मानसून के दौरान अतिरिक्त जल को इन जलभृतों में पंप किया जा सकता है जिससे विशाल भूमिगत जलाशय का निर्माण होगा, जबकि शुष्क अवधि के दौरान उद्योग द्वारा इन भंडारों से जल निष्कर्षित किया जा सकता है।
      • यह प्रणाली विशेष रूप से गुजरात या तमिलनाडु जैसे जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में लाभकारी सिद्ध होगी।
    • जल ऋण (Water Credits) का प्रबंधन करने और औद्योगिक उपयोगकर्त्ताओं के बीच इसका उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिये स्मार्ट सेंसर एवं ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी को एकीकृत किया जाए।

अभ्यास प्रश्न: भारत में औद्योगिक गतिविधि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की चर्चा कीजिये और औद्योगिक क्षेत्र की प्रत्यास्थता एवं संवहनीयता के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? 

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: b 


मेन्स:

प्रश्न.1 "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न.2 आमतौर पर देश कृषि से उद्योग और फिर बाद में सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो गया। देश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)