सामाजिक न्याय
भारत के प्रवासी कार्यबल का सशक्तीकरण
यह एडिटोरियल 06/01/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित "Building a system that sees the migrant worker" पर आधारित है। यह लेख ई-श्रम पोर्टल की तस्वीर पेश करता है, जो विश्व का सबसे बड़ा असंगठित श्रमिक डेटाबेस है, जिसे कोविड विश्वमारी द्वारा उजागर प्रवासी कार्यबल चुनौतियों का समाधान करने के लिये वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया था। यद्यपि 'वन-स्टॉप सॉल्यूशन' जैसी पहल का उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को एकीकृत करना है, फिर दस्तावेज़ीकरण अंतराल, लैंगिक असमानता और नॉन-पोर्टेबल लाभ जैसे निरंतर मुद्दे समावेशी प्रगति में बाधा डालते हैं।
प्रिलिम्स के लिये:ई-श्रम पोर्टल, अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा की शर्त) अधिनियम, 1979, गरीबी, प्रच्छन्न बेरोज़गारी, न्यूनतम समर्थन मूल्य, शहरी साक्षरता दर, चक्रवात अम्फान, मणिपुर हिंसा, मेक इन इंडिया, PM गति शक्ति, स्मार्ट सिटीज़ मिशन, श्रम संहिता, राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति का प्रारूप, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2021-22 मेन्स के लिये:भारत में प्रवास के प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक, भारत में प्रवासी कल्याण के लिये कानूनी कार्यढाँचा |
वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया भारत का ई-श्रम पोर्टल, 300 मिलियन से अधिक पंजीकरणों— कोविड विश्वमारी द्वारा उजागर हुए प्रवासी संकट के लिये एक विलंबित प्रतिक्रिया के साथ असंगठित श्रमिकों का विश्व का सबसे बड़ा डेटाबेस है। हाल ही में शुरू की गई 'वन-स्टॉप सॉल्यूशन' पहल राशन कार्ड से लेकर पेंशन लाभ तक विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को एकीकृत करके महत्त्वपूर्ण अंतराल को समाप्त करने का वादा करती है। हालाँकि, बुनियादी चुनौतियाँ— दस्तावेज़ीकरण बाधाओं और लैंगिक असमानताओं से लेकर राज्यों में पोर्टेबल लाभों की कमी तक बनी हुई हैं। जैसा कि भारत 'विकसित भारत' की आकांक्षा रखता है, देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाले अपने प्रवासी कार्यबल का सार्थक समावेश एक महत्त्वपूर्ण चुनौती और एक तत्काल आवश्यकता दोनों बना हुआ है।
किन्हें प्रवासी श्रमिक माना जाता है?
"प्रवासी श्रमिक" शब्द की एक समान परिभाषा का अभाव है, लेकिन पारंपरिक और विधायी प्रावधान कुछ स्पष्टता प्रदान करते हैं:
- सभी प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों के अधिकारों के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन, 1990: प्रवासी श्रमिक को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो किसी ऐसे राज्य, जिसका वह नागरिक नहीं है, में पारिश्रमिक वाली गतिविधि में संलग्न हो, संलग्न रहा है, या संलग्न होने को है।
- अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा की शर्त) अधिनियम, 1979: "अंतर-राज्यीय प्रवासी कर्मकार" को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसे किसी राज्य में ठेकेदार के माध्यम से, मुख्य नियोक्ता के ज्ञान के साथ या उसके बिना दूसरे राज्य में रोज़गार के लिये एक अनुबंध के तहत भर्ती किया जाता है।
भारत में प्रवासन से संबंधित प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक क्या हैं?
- प्रतिकर्ष कारक (Push Factors):
- आर्थिक संकट और ग्रामीण बेरोज़गारी: भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर गरीबी, प्रच्छन्न बेरोज़गारी और स्थायी आजीविका तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
- CMIE के अनुसार अप्रैल 2024 में ग्रामीण बेरोज़गारी दर बढ़कर 7.8% हो गई।
- अनियमित मानसून के कारण कृषि आय में गिरावट आ रही है, जबकि 42% आबादी को रोज़गार मिलने के बावजूद कृषि सकल घरेलू उत्पाद में केवल 16% का योगदान दे रही है, जिससे पलायन को बढ़ावा मिल रहा है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर किसानों के हालिया विरोध प्रदर्शन ने कृषि अर्थव्यवस्था की कमज़ोरियों को उजागर किया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की कमी: ग्रामीण भारत में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की सीमित सुलभता के कारण कई ग्रामीण परिवार शहरी केंद्रों की ओर रुख कर रहे हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 79.9% विशेषज्ञों की कमी है।
- इसके अलावा, शहरी साक्षरता दर (87.7%) ग्रामीण दर (73.5%) से कहीं अधिक है।
- इससे बेहतर बुनियादी अवसंरचना की पेशकश करने वाले शहरों की ओर अत्यधिक आकर्षण उत्पन्न होता है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण: सूखा, बाढ़ और चक्रवात जैसी जलवायु-जनित आपदाओं में वृद्धि के कारण आंतरिक पलायन को बल मिलता है।
- उदाहरण के लिये, NDMA रिपोर्ट 2021-22 में कहा गया है कि भारत का 68% कृषि योग्य क्षेत्र सूखे की चपेट में है, जिससे आजीविका प्रभावित हो रही है।
- वर्ष 2020 में आए चक्रवात अम्फान ने 2.4 मिलियन से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया था। समुद्र का बढ़ता जलस्तर तटीय आबादी के लिये भी ख़तरा उत्पन्न कर रहा है, विशेष तौर पर सुंदरबन जैसे इलाकों में।
- सामाजिक असुरक्षा और जाति-आधारित भेदभाव: सीमांत समुदाय प्रायः सामाजिक अपवर्जन और अपने मूल स्थानों में समान अवसरों की कमी के कारण पलायन करते हैं।
- अनुसूचित जातियों और जनजातियों को उच्च बेरोज़गारी दर का सामना करना पड़ता है।
- यह असमानता ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है, जहाँ जाति आधारित हिंसा, जैसे हाथरस की घटना (वर्ष 2020), प्रवासन दबाव को और बढ़ा देती है।
- राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष क्षेत्र: पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद और मध्य भारत में नक्सली गतिविधियों ने परिवारों को सुरक्षा के लिये पलायन करने पर मज़बूर कर दिया है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में दक्षिण एशिया में होने वाले विस्थापन में मणिपुर हिंसा का योगदान 97% रहा है।
- संघर्ष-प्रेरित प्रवासन जम्मू और कश्मीर में भी देखा जाता है, जहाँ पुलवामा हमले ( वर्ष 2019) जैसी घटनाओं ने स्थानीय अर्थव्यवस्था एवं सुरक्षा को अस्थिर कर दिया।
- आर्थिक संकट और ग्रामीण बेरोज़गारी: भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर गरीबी, प्रच्छन्न बेरोज़गारी और स्थायी आजीविका तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।
- अपकर्ष कारक (Pull Factors):
- शहरी रोज़गार के अवसर और औद्योगीकरण: शहर निर्माण, सेवा और विनिर्माण क्षेत्रों में बेहतर वेतन वाली नौकरियों के साथ प्रवासियों को आकर्षित करते हैं।
- भारत की शहरी आबादी वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद में 75% तक का योगदान देगी (CMIE के अनुसार)।
- मेक इन इंडिया जैसी पहल और PM गति शक्ति जैसी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं ने कम कुशल श्रम की मांग बढ़ा दी है।
- बंगलुरू के तेज़ी से बढ़ते IT क्षेत्र ने पूरे भारत में उच्च-कुशल पेशेवरों को भी आकर्षित किया है।
- बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और शैक्षिक सुविधाएँ: दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरी केंद्र उन्नत चिकित्सा देखभाल एवं शीर्ष स्तरीय शैक्षिक संस्थान प्रदान करते हैं।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल- 2022 के अनुसार, ग्रामीण अस्पतालों में कुल बिस्तरों का केवल 36.5% हिस्सा है और शहरी अस्पतालों में 63.5% बिस्तर उपलब्ध हैं।
- इसके अलावा, IIT और AIIMS जैसे संस्थान उच्च शिक्षा तथा बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त करने के इच्छुक दूरदराज़ के क्षेत्रों की प्रतिभाओं को आकर्षित करने का काम करते हैं।
- सामाजिक गतिशीलता और विविध अवसर: शहरी स्थान गुमनामी और कम सामाजिक बाधाएँ प्रदान करते हैं, जिससे सीमांत समुदायों को बेहतर अवसरों की तलाश करने में मदद मिलती है।
- उदाहरण के लिये, मुंबई जैसे शहरों में कार्यबल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अधिक है, जिसका कारण IT और आतिथ्य जैसे सेवा क्षेत्र हैं।
- जनवरी-मार्च 2023 से जनवरी-मार्च 2024 के दौरान शहरी क्षेत्रों में महिला श्रम बल भागीदारी दर 22.7% से बढ़कर 25.6% हो गई।
- शहरी क्षेत्रों में बेहतर बुनियादी अवसंरचना और जीवन-यापन: शहरी क्षेत्र बेहतर परिवहन, आवास और डिजिटल कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं, जिससे प्रवासन को बढ़ावा मिलता है।
- भारत के स्मार्ट सिटीज़ मिशन ने 100 शहरों में बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाया है, जिससे कुशल और अकुशल श्रमिकों को आकर्षित किया गया है।
- वैश्वीकरण और बेहतर जीवन गुणवत्ता की आकांक्षाएँ: डिजिटल मीडिया के माध्यम से वैश्विक बाज़ारों और संस्कृति के संपर्क ने शहरी जीवन शैली के प्रति आकांक्षाएँ बढ़ा दी हैं।
- महानगरीय शहर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों और बेहतर सुविधाओं के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, तथा प्रवासियों को आकर्षित करते हैं।
- भारत में फ्रेशर्स की नियुक्ति में महानगरीय शहरों का प्रभाव है। फ्रेशर्स के लिये जॉब पोस्टिंग में दिल्ली/NCR का हिस्सा सबसे ज़्यादा 21% है, उसके बाद बंगलुरु का 14% हिस्सा है।
- इसके अलावा, मुंबई, चेन्नई, पुणे और हैदराबाद प्रत्येक ने कुल पोस्टिंग में 8% का योगदान दिया।
- शहरी रोज़गार के अवसर और औद्योगीकरण: शहर निर्माण, सेवा और विनिर्माण क्षेत्रों में बेहतर वेतन वाली नौकरियों के साथ प्रवासियों को आकर्षित करते हैं।
भारत में प्रवासी कल्याण के लिये कानूनी कार्यढाँचा क्या है?
- प्रमुख कानून
-
अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा की शर्त) अधिनियम, 1979:
- प्रवासी श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।
- ठेकेदारों को गृह एवं मेज़बान दोनों राज्यों से लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है।
- चुनौतियाँ: व्यवहार में निम्नस्तरीय कार्यान्वयन।
- श्रम संहिताएँ:
-
वेतन संहिता, 2018
-
औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
-
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
-
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020
-
-
-
प्रवासी कल्याण के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम
-
केंद्र सरकार की पहल:
-
प्रवासियों और प्रत्यावर्तित लोगों के लिये राहत एवं पुनर्वास योजना:
- केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित 7 उप-योजनाओं को जारी रखना।
- राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति का प्रारूप (वर्ष 2021):
- NITI आयोग द्वारा नागरिक समाज के सहयोग से तैयार किया गया।
- प्रमुख परियोजनाएँ और योजनाएँ:
- एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ONORC): प्रवासियों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- किफायती किराया आवास परिसर (AHRC): कम लागत वाले आवास विकल्प प्रदान करता है।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना: वित्तीय सहायता और खाद्य सुरक्षा प्रदान करती है।
- ई-श्रम पोर्टल: इसका उद्देश्य असंगठित श्रमिकों का एक व्यापक डेटाबेस तैयार करना है।
-
- राज्य सरकार की पहल:
-
केरल के सुविधा केंद्र:
- आने वाले प्रवासी श्रमिकों का डेटा रखना और उनकी शिकायतों का समाधान करना।
- झारखंड की सुरक्षित और जिम्मेदार प्रवास पहल (SRMI) (वर्ष 2021):
- स्रोत और गंतव्य ज़िलों में निगरानी के लिये प्रवासी श्रमिकों का व्यवस्थित पंजीकरण।
- सहायता के लिये विभिन्न राज्यों में 'श्रम वाणिज्य दूतावासों' की स्थापना।
-
-
भारत में प्रवासी श्रमिकों के समक्ष प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- सामाजिक सुरक्षा और कानूनी संरक्षण का अभाव: प्रवासी श्रमिक, जो ज्यादातर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं, अपंजीकृत रोज़गार और अंतर-राज्यिक आवागमन के कारण EPF, स्वास्थ्य बीमा या मातृत्व अवकाश जैसी औपचारिक सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों तक पहुँच नहीं पाते हैं।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2021-22 के अनुसार, भारत का 90% कार्यबल अनौपचारिक है।
- उनकी सुरक्षा के लिये बनाए गए अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा की शर्त) अधिनियम, 1979 का क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो रहा है।
- शोषण और मज़दूरी भेदभाव: श्रम कानूनों के लापरवाह प्रवर्तन के कारण प्रवासी श्रमिकों को प्रायः स्थानीय श्रमिकों की तुलना में कम भुगतान, मज़दूरी चोरी और अधिक कार्य घंटों का सामना करना पड़ता है।
- एक सर्वेक्षण से पता चला है कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान 64% प्रवासी श्रमिकों को पूरा वेतन नहीं मिला।
- निम्नस्तरीय निर्वहन स्थिति और आवास अपवर्जन: शहरों में किफायती आवास की अनुपलब्धता के कारण प्रवासियों को स्वच्छता, जल और बिजली की अपर्याप्तता के साथ भीड़भाड़ वाले स्थानों में रहना पड़ता है।
- वर्ष 2020 में भारत की झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी 236 मिलियन होने का अनुमान लगाया गया, जिससे पता चलता है कि इसकी लगभग आधी शहरी आबादी झुग्गियों में रहती है (UN-हैबिटेट 2021)।
- दस्तावेज़ीकरण संबंधी समस्याओं के कारण अधिकारों की हानि: राज्यों के बीच दस्तावेज़ों की पोर्टेबिलिटी की कमी के कारण प्रवासी श्रमिकों को PDS और आवास जैसी कल्याणकारी योजनाओं तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ONORC) योजना का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है, लेकिन इसकी पहुँच अभी भी न्यून है।
- इसी प्रकार, मतदाता पहचान-पत्र की पोर्टेबिलिटी की कमी के कारण चुनावों के दौरान लाखों लोग मताधिकार से वंचित हो जाते हैं।
- प्रवासी परिवारों को दस्तावेज़ीकरण संबंधी समस्याओं, स्थानीय सेवाओं से अपवर्जन और मेज़बान राज्यों में भाषा संबंधी बाधाओं के कारण स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा तक पहुँच में संघर्ष करना पड़ता है।
- लिंग-विशिष्ट चुनौतियाँ: महिला प्रवासी श्रमिकों को यौन उत्पीड़न, कम वेतन, तथा बाल देखभाल या जनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच की कमी सहित अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- वर्ष 2018 और 2022 के दौरान 10,000 से अधिक तस्करी के मामले दर्ज किये गए, जिनमें से कई प्रवासी श्रमिक थे, लेकिन 26,849 गिरफ्तारियों में से केवल 4.8% मामलों में ही दोषसिद्धि हुई।
- इसके अलावा, महिला घरेलू कर्मकार, जो प्रायः प्रवासी होती हैं, अनौपचारिक नौकरियों में काम करने वाले अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में बहुत कम अर्जित कर पाती हैं।
- सामाजिक अलगाव और भेदभाव: प्रवासी श्रमिकों को प्रायः भाषाई, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों के कारण मेज़बान राज्यों में विदेशी-द्वेष, अपवर्जन और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- कोविड-19 विश्वमारी के दौरान, कई राज्यों ने प्रवासियों पर "वायरस वाहक" का लेबल लगाते हुए सख्त आवागमन प्रतिबंध लगा दिये, जिससे उनका हाशिये पर जाना और भी बढ़ गया।
- बाल देखभाल सहायता का अभाव: प्रवासी परिवारों को बाल देखभाल सुनिश्चित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे या तो अपने मूल स्थानों पर ही रह जाते हैं या कार्यस्थलों पर असुरक्षित परिस्थितियों का सामना करते हैं।
- वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट- 2019 से पता चलता है कि भारत के सात शहरों में लगभग 80% मौसमी प्रवासी बच्चों को कार्य स्थलों के निकट शिक्षा तक पहुँच नहीं है।
- कंस्ट्रक्शन स्थलों या खेतों पर माता-पिता के साथ जाने वाले बच्चों को दुर्घटनाओं, कुपोषण और उपेक्षा का खतरा रहता है।
- राज्यों के बीच असंगत नीतियाँ: राज्यों के बीच नीतिगत सामंजस्य की कमी के कारण प्रवासियों के साथ असमान व्यवहार होता है, विशेष रूप से राज्य की सीमाओं को पार करने वाले प्रवासियों के साथ।
- उदाहरण के लिये, गुजरात या महाराष्ट्र में काम करने वाले बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासियों को प्रायः निवास-आधारित प्रतिबंधों के कारण स्थानीय कल्याणकारी योजनाओं की सुलभता में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
प्रवासी श्रमिकों के कल्याण और एकीकरण को सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ: अंतर-राज्यिक गतिशीलता चुनौतियों का समाधान करने के लिये EPF, ESIC और अन्य कल्याणकारी अधिकारों जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभों की पोर्टेबिलिटी के लिये एक राष्ट्रव्यापी मंच विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड (ONORC) योजना को आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY) जैसी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के साथ एकीकृत करने से राज्यों में प्रवासी परिवारों के लिये भोजन और स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है।
- ई-श्रम को PM-स्वनिधि और विश्वकर्मा योजना जैसी योजनाओं के साथ एकीकृत किया जा सकता है, जिससे निर्बाध डेटा कनेक्टिविटी संभव हो सकेगी।
- इस एकीकरण से श्रमिकों के अधिकारों पर नज़र रखने में सुविधा होगी तथा सूचना तक आसान पहुँच सुनिश्चित होगी।
- रोज़गार और कौशल प्रमाणन का औपचारिकीकरण: प्रवासियों को संगठित क्षेत्रों में एकीकृत करने के लिये औपचारिक रोज़गार अनुबंधों और स्किल मैपिंग को प्रोत्साहित किये जाने, उचित मज़दूरी तथा कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।
- कौशल भारत मिशन और प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे कार्यक्रम प्रवासियों को प्रमाणित प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं, जिससे उनकी रोज़गार क्षमता बढ़ सकती है।
- औपचारिकीकरण से उत्पादकता में सुधार हो सकता है तथा मजदूरी शोषण कम हो सकता है, जिससे श्रमिकों एवं नियोक्ताओं दोनों को लाभ होगा।
- किफायती आवास और आजीविका क्लस्टर: किफायती किराया आवास परिसर (ARHC) पहल के तहत प्रवासियों के लिये किफायती किराया आवास योजनाएँ विकसित किये जाने की आवश्यकता है, जिसे स्मार्ट सिटी मिशन जैसी शहरी विकास नीतियों के साथ एकीकृत किया जाए।
- इन आवास परिसरों के निकट आजीविका क्लस्टर बनाने से यात्रा लागत कम हो सकती है और कार्य-जीवन संतुलन बढ़ सकता है।
- उदाहरण के लिये, मेक इन इंडिया के तहत विनिर्माण केंद्रों के साथ AHRC को जोड़ने से रोज़गार के अवसरों की निकटता सुनिश्चित हो सकती है, तथा जीवन स्तर में सुधार हो सकता है।
- कल्याणकारी वितरण और मोबाइल कनेक्टिविटी का डिजिटलीकरण: राशन, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय सेवाओं सहित अधिकारों तक डिजिटल पहुँच प्रदान करने के लिये प्रवासी-अनुकूल मोबाइल ऐप्लीकेशन विकसित किये जाने की आवश्यकता है।
- आधार से जुड़े लाभों के कार्यान्वयन को सुदृढ़ किया जाना चाहिये तथा निर्बाध वितरण सुनिश्चित करने के लिये उन्हें राज्य-विशिष्ट कल्याणकारी योजनाओं के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
- महिला प्रवासियों के लिये लिंग-संवेदनशील नीतियाँ: महिला प्रवासियों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली लक्षित नीतियाँ विकसित की जानी चाहिये, जिनमें सुरक्षा उपाय, वेतन समानता एवं बाल देखभाल सुविधाओं तक पहुँच शामिल हो।
- उदाहरण के लिये, आँगनवाड़ी सेवाओं को शहरी आवास नीतियों के साथ एकीकृत करने से अनौपचारिक क्षेत्रों में कार्यरत माताओं को बाल देखभाल सहायता प्रदान की जा सकती है।
- कार्यस्थल पर सुरक्षा और लैंगिक समानता को सक्षम बनाने से प्रवासियों के बीच महिला श्रम बल भागीदारी में उल्लेखनीय सुधार संभव हो सकता है।
- स्वास्थ्य देखभाल समावेशन और व्यावसायिक सुरक्षा: प्रवासियों, विशेष रूप से निर्माण और खनन जैसे जोखिम भरे उद्योगों में काम करने वालों के लिये मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक एवं व्यावसायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किये जाने की आवश्यकता है।
- असंगठित क्षेत्र के नियोक्ताओं के साथ इसे जोड़कर आयुष्मान भारत की पहुँच को सुदृढ़ करने से श्रमिकों और उनके परिवारों के लिये स्वास्थ्य बीमा कवरेज सुनिश्चित हो सकता है।
- कार्यस्थलों पर निवारक देखभाल से स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम हो सकती है और उत्पादकता में सुधार हो सकता है।
- एकीकृत नीतियों के लिये राज्य सहयोग: अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकारों के लिये राष्ट्रीय कार्यढाँचे के माध्यम से श्रम नीतियों में सामंजस्य स्थापित करने के लिये राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- शिकायत निवारण के लिये स्रोत और गंतव्य राज्यों के बीच समन्वय सुनिश्चित करने के लिये अंतर-राज्यिक प्रवासी कर्मकार अधिनियम के कार्यान्वयन में सुधार किया जाना चाहिये।
- NITI आयोग का "राष्ट्रीय प्रवासी नीति" का सुझाव राज्यों में कल्याणकारी योजनाओं के बेहतर एकीकरण के लिये एक रूपरेखा प्रदान कर सकता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका क्षेत्रों का निर्माण: संकटकालीन प्रवास को कम करने के लिये MGNREGA (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम) और SFURTI (पारंपरिक उद्योगों के पुनरुद्धार के लिये निधि की योजना) के तहत कृषि-औद्योगिक केंद्रों एवं ग्रामीण आजीविका क्षेत्रों का विकास किये जाने की आवश्यकता है।
- इन कार्यक्रमों को दीनदयाल अंत्योदय योजना (DAY-NRLM) के तहत स्वयं सहायता समूहों के साथ जोड़ने से स्थानीय स्तर पर स्थायी रोज़गार उत्पन्न हो सकता है।
- इससे ग्रामीण समुदाय सशक्त होंगे तथा शहरी क्षेत्रों पर प्रवास का दबाव कम होगा।
- प्रवासी बच्चों के लिये शैक्षिक और कौशल सहायता: प्रवासी बच्चों के लिये निर्बाध शिक्षा सुनिश्चित करने के लिये मुक्त स्कूली शिक्षा और मध्याह्न भोजन पोर्टेबिलिटी के साथ पोर्टेबल शिक्षा प्रणाली स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।
- प्रवासी बच्चों के लिये स्कूलों में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये समग्र शिक्षा अभियान को राज्य स्तरीय कार्यक्रमों से जोड़े जाने चाहिये।
- वित्तीय समावेशन और ऋण अभिगम: वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने तथा सरलीकृत KYC मानदंडों एवं मोबाइल बैंकिंग के माध्यम से प्रवासियों के लिये बैंकिंग सेवाओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित किये जाने की आवश्यकता है।
- जन धन योजना जैसे कार्यक्रमों की पहुँच को सुदृढ़ कर अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम करने के लिये आधार-सक्षम प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (JAM ट्रिनिटी) के साथ जुड़ाव को लोकतांत्रिक बनाया जाना चाहिये।
- कल्याणकारी वितरण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी: प्रवासियों के लिये कौशल प्रशिक्षण, किफायती आवास और स्वास्थ्य देखभाल जैसे कल्याणकारी उपायों को लागू करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी का लाभ उठाए जाने की आवश्यकता है।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) पहल, प्रवासी समुदायों के लिये सामाजिक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं को वित्तपोषित करके सरकारी प्रयासों को पूरक बना सकती है।
निष्कर्ष:
प्रवासी श्रमिकों का कल्याण भारत के समावेशी विकास और आर्थिक समुत्थानशक्ति के लिये महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि ई-श्रम पोर्टल जैसे मौजूदा कार्यढाँचे और ONORC एवं ARHC जैसी पहलों से उम्मीदें जगी हैं, फिर भी कार्यान्वयन, लाभों की पोर्टेबिलिटी एवं लिंग-संवेदनशील नीतियों में खामियाँ बनी हुई हैं। इस महत्त्वपूर्ण कार्यबल के लिये समान अवसर और सम्मान सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक एवं समावेशी राष्ट्रीय प्रवासी नीति आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में प्रवासी श्रमिकों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये, चाहे वे अंतर-राज्यिक हों या राज्य के अंदर, सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने और समान कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करने में। समावेशी विकास के लिये भारत की आकांक्षा के संदर्भ में इन मुद्दों को हल करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न 1. भारत के प्रमुख शहरों में आई.टी. उद्योगों के विकास से उत्पन्न होने वाले मुख्य सामाजिक-आर्थिक प्रभाव क्या हैं ? (2021) प्रश्न 2. पिछले चार दशकों में, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रवसन की प्रवृत्तियों में परिवर्तनों पर चर्चा कीजिये। (2015) |