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एडिटोरियल

  • 05 Jan, 2024
  • 24 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के आर्थिक विकास को दिशा देना

यह एडिटोरियल 04/01/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Reset the Growth Priority” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के विकास प्रक्षेपवक्र से संलग्न चुनौतियों की चर्चा की गई है और सुझाव दिया गया है कि बड़े पैमाने पर उच्च-मूल्य रोज़गार सृजन के लिये देश को विनिर्माण एवं सेवा, दोनों क्षेत्रों के संयुक्त सामर्थ्य की आवश्यकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), मेक इन इंडिया, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs), बजट 2022-23, फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स योजना, इंडस्ट्री 4.0, प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, PM गति शक्ति- नेशनल मास्टर प्लान, भारतमाला प्रोजेक्ट, सागरमाला प्रोजेक्ट

मेन्स के लिये:

भारत में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के संवृद्धि चालक, इन क्षेत्रों से संबंधित चुनौतियाँ, सरकारी पहल और भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास हेतु आवश्यक सुधार।

भारत अपने आर्थिक प्रक्षेपवक्र और अपने विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये आवश्यक रणनीतियों के बारे में गंभीर चर्चा में रत है। इन चर्चाओं के बीच एक उल्लेखनीय विकर्षण इस रूप में उत्पन्न हो रहा है कि विश्लेषक वर्ष 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हालाँकि, यह लक्ष्य, जो मुख्य रूप से समग्र सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आसपास केंद्रित है, एक सामान्य नागरिक के हित या कल्याण के महत्त्वपूर्ण विषय की अनदेखी करता है और मुख्यतः प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर अधिक बल देता है।

भारत के विकास प्रक्षेपवक्र से संलग्न वर्तमान चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • भारत के आर्थिक भविष्य की पुनर्कल्पना:
    • रघुराम राजन और रोहित लांबा की किताब ‘ब्रेकिंग द मोल्ड: रीइमेजिनिंग इंडियाज़ इकोनॉमिक फ़्यूचर’ (Breaking the Mould: Reimagining India’s Economic Future) भारत के विकास मॉडल के समालोचनात्मक परीक्षण का प्रयास करती है।
    • यह सवाल उठाती है कि क्या औद्योगिक विकास पर सेवा क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देने से सतत् विकास की राह पाई जा सकती है, जबकि यह विकसित एवं औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं में देखे गए ऐतिहासिक पैटर्न से एक भटकाव को प्रकट करता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ:
    • भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में अपने विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जहाँ विकास दर 20% या उससे कम रही है।
    • इससे भारत के विकास में एक विशिष्ट चरण को दरकिनार करने, कृषि अर्थव्यवस्था से एक प्रबल सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर आगे बढ़ने और इस तरह के संक्रमण की संवहनीयता के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं।
  • वैश्विक व्यापार सेवा विकास का अवसर:
    • राजन और लांबा सूचना प्रौद्योगिकी के परिष्करण द्वारा विश्व व्यापार सेवा विकास में भारत के लिये एक अवसर की पहचान करते हैं।
    • चूँकि वैश्विक कंपनियाँ व्यावसायिक सेवाओं को अधिकाधिक आउटसोर्स कर रही हैं, भारत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, बशर्ते वह ‘स्केलेबिलिटी’ (scalability) की चुनौती को संबोधित कर सके।
  • रोज़गार संकट और युवा आकांक्षाएँ:
    • भारत एक रोज़गार संकट का सामना कर रहा है, विशेषकर युवाओं (15-24 आयु वर्ग) के बीच, जहाँ बेरोज़गारी दर 40% से अधिक है।
    • युवा कामगार उच्च आकांक्षाएँ रखते हैं और देश को निजी नियोक्ताओं द्वारा पर्याप्त रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिये त्वरित उपायों की आवश्यकता है।
  • सेवा क्षेत्र मॉडल से संलग्न चुनौतियाँ:
    • भारत में वर्तमान सेवा क्षेत्र हाई-टेक सेवाओं में वृद्धि का अनुभव करते हुए भी रोज़गार सृजन के मामले में, विशेष रूप से निम्न मूल्य-वर्द्धित एवं निम्न-कौशल सेवाओं में, चुनौती का सामना कर रहा है।
    • सेवा क्षेत्र का विभाजन (segmentation) युवाओं की आकांक्षाओं के अनुरूप आय स्रोत उत्पन्न करने की इसकी क्षमता पर सवाल उठाता है।
  • कौशल की कमी और उच्च शिक्षा गुणवत्ता:
    • भारत में कौशल की कमी सेवा क्षेत्र के नेतृत्व वाले मॉडल के लिये एक उल्लेखनीय चुनौती है। 2.2 मिलियन STEM स्नातक पैदा करने के बावजूद, अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण इनमें से अधिकांश को रोज़गार हेतु अयोग्य माना जाता है।
    • इस समस्या को संबोधित करने के लिये उच्च शिक्षा में निरंतर निवेश की आवश्यकता है ताकि उच्च मानव पूंजी क्षेत्रों के लिये कुशल कार्यबल तैयार किया जा सके।
  • PLI योजना और तत्काल रोज़गार सृजन:
    • प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना को भारत में उत्पादन केंद्र स्थापित करने के लिये व्यवसायों को आकर्षित करने के माध्यम से तत्काल रोज़गार चुनौती को संबोधित करने के एक प्रयास के रूप में देखा जाता है।
    • हालाँकि, इस योजना के रोज़गार से संबद्ध होने के बजाय उत्पादन से संबद्ध होने और प्रोत्साहन योजनाओं की समाप्ति के बाद व्यवसायों की सुदीर्घता के बारे में अनिश्चितताओं को लेकर विभिन्न चिंताएँ मौजूद हैं।
  • व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण की आवश्यकता:
    • भारत की रोज़गार समस्या के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो विनिर्माण क्षेत्र मॉडल और सेवा क्षेत्र मॉडल, दोनों को संयुक्त करे।
    • PLI योजनाओं से परे, निजी उद्योग को स्केल बढ़ाने के लिये प्रोत्साहन प्रदन करना भी महत्त्वपूर्ण है और इसके लिये भूमि एवं श्रम नियामक सुधारों की आवश्यकता है। ये सुधार, राजकोषीय रूप से लागतहीन होते हुए भी, राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
  • जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने में तत्परता:
    • 28 वर्ष की औसत जनसंख्या आयु के साथ भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश त्वरित एवं व्यापक कार्रवाई के अभाव में वरदान के बजाय अभिशाप में भी बदल सकता है।
    • सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिये उच्च मूल्य-वर्द्धित रोज़गार सृजन, नियामक सुधार और उच्च शिक्षा में निवेश की वृद्धि का संयोजन आवश्यक है।

भारत में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के विकास चालक कौन-से हैं?

  • विनिर्माण क्षेत्र:
    • सरकारी निवेश को बढ़ावा:
      • वर्ष 2022-23 के बजट में भारत सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी हार्डवेयर विनिर्माण के लिये 2403 करोड़ रुपए और फेम-इंडिया (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles- FAME-India) के लिये 757 करोड़ रुपए के आवंटन के रूप में पर्याप्त धन प्रदान किया। 
      • इस रणनीतिक निवेश का उद्देश्य विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना और इलेक्ट्रिक वाहन प्रौद्योगिकी में उन्नति को प्रेरित करना है।
    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना:
      • भारत के पास एक वृहत अर्द्ध-कुशल श्रम शक्ति, ‘मेक इन इंडिया’ जैसी सरकारी पहल, पर्याप्त निवेश और एक विशाल घरेलू बाज़ार के रूप में वे प्रमुख घटक मौजूद हैं जो औद्योगिक क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा दे सकते हैं।
      • सरकार प्रतिस्पर्द्धात्मकता को आगे और बढ़ावा देने के लिये आधार स्थापित करने हेतु मुफ्त भूमि और निर्बाध 24X7 बिजली आपूर्ति जैसे प्रोत्साहन प्रदान कर रही है ताकि भारत को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाया जा सके।
    • मज़बूत घरेलू मांग:
      • भारतीय मध्यम वर्ग के वर्ष 2030 तक वैश्विक उपभोग में 17% के योगदान के अनुमान के साथ घरेलू बाज़ार पर्याप्त वृद्धि के लिये तैयार है।
      • भारत में उपकरण और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (Appliances and Consumer Electronics- ACE) बाज़ार के वर्ष 2019 में 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2025 तक 21 बिलियन अमेरिकी डॉलर के होने का अनुमान है, जो विनिर्मित वस्तुओं की मज़बूत मांग का संकेत देता है।
    • इंडस्ट्री 4.0 में वैश्विक हब क्षमता:
      • भारत का विनिर्माण उद्योग तेज़ी से चतुर्थ औद्योगिक क्रांति (Industry 4.0) की ओर आगे बढ़ रहा है, जो परस्पर संबद्ध प्रक्रियाओं और डेटा विश्लेषण की विशेषता प्रदर्शित करता है।
      • कई भारतीय कंपनियाँ, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में, अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने के कारण पहले से ही वैश्विक अग्रणी बन चुकी हैं।
      • ऑटोमेशन और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों पर बल देने से भारत को उन्नत विनिर्माण के लिये वैश्विक केंद्र में बदलने की क्षमता प्राप्त हो रही है।
  • सेवा क्षेत्र:
    • एक संतुलनकारी कारक के रूप में सेवा व्यापार अधिशेष:
      • भारत के सेवा व्यापार में लगातार अधिशेष ने ऐतिहासिक रूप से माल शिपमेंट में पर्याप्त घाटे की भरपाई करने में मदद की है।
      • वित्तीय वर्ष 2020-21 में यह अधिशेष 89 बिलियन डॉलर तक के उल्लेखनीय स्तर पर पहुँच गया।
      • रणनीतिक सरकारी हस्तक्षेप और नए सिरे से बल देने से सेवा व्यापार अधिशेष में और वृद्धि की संभावना है, जिससे संभवतः माल निर्यात के कारण होने वाले घाटे को समाप्त किया जा सकता है।
    • ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण को बढ़ावा देना:
      • सेवा क्षेत्र भारत को ‘असेंबली अर्थव्यवस्था’ से ‘ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था’ में स्थानांतरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • यह संक्रमण देश के आर्थिक विकास एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • सेवा व्यापार अधिशेष इस रूपांतरण में एक महत्त्वपूर्ण चालक के रूप में कार्य करता है, जो ज्ञान-केंद्रित गतिविधियों के बढ़ते महत्त्व पर बल देता है।
    • कार्यबल विकास के लिये कौशल भारत कार्यक्रम:
      • विकास करते सेवा क्षेत्र का समर्थन करने और भारत की वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिये स्किल इंडिया कार्यक्रम (Skill India program) शुरू किया गया है।
      • इस कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2022 तक 40 करोड़ से अधिक युवाओं को बाज़ार-प्रासंगिक कौशल में व्यापक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
      • कौशल विकास में निवेश के माध्यम से सरकार का लक्ष्य एक ऐसा कार्यबल तैयार करना है जो उभरती सेवा-संचालित और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की मांगों के अनुरूप हो।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये हाल की प्रमुख सरकारी पहलें कौन-सी हैं?

विकास को अधिक समावेशी बनाने के लिये कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं?

  • कार्यबल विकास और भागीदारी:
    • भारत की वृहत और युवा आबादी विशाल कार्यबल क्षमता प्रस्तुत करती है। हालाँकि, इस क्षमता को साकार करने के लिये रोज़गार सृजन, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, कौशल उन्नयन और श्रम बल की भागीदारी को बढ़ावा देने (विशेष रूप से महिलाओं के बीच) जैसी चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है।
  • आर्थिक विकास के लिये निजी निवेश:
    • भारत सरकार ने निजी निवेश को आर्थिक विकास के एक महत्त्वपूर्ण चालक के रूप में चिह्नित करते हुए कारोबार सुगमता को बढ़ाने (Ease of Doing Business), कॉर्पोरेट करों को कम करने, क्रेडिट गारंटी की पेशकश करने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने के विभिन्न उपाय शुरू किये हैं। कारोबार संचालन को और सुगम बनाने के लिये विशेष रूप से भूमि, श्रम और लॉजिस्टिक्स में चल रहे सुधार आवश्यक हैं।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता की वृद्धि करना:
    • वैश्विक बाज़ार में अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये, भारत को निर्यात में विविधता लानी चाहिये, अवसंरचना को उन्नत बनाना चाहिये, नवाचार एवं डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना चाहिये और क्षेत्रीय एवं वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकृत होना चाहिये।
    • PLI, चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी सहायक योजनाओं के बावजूद, घरेलू एवं विदेशी उद्यमों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के लिये व्यापार उदारीकरण और नियामक सरलीकरण आवश्यक है।
  • पर्यावरणीय संवहनीयता और जलवायु लक्ष्य:
    • भारत जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये कार्बन तीव्रता को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • जबकि ‘ग्रीन बॉण्ड’ पर्यावरण-अनुकूल परियोजनाओं का समर्थन करते हैं, वायु प्रदूषण, जल की कमी, अपशिष्ट प्रबंधन और जैव विविधता हानि जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिये वृहत प्रयासों की आवश्यकता है ताकि भारत के विकास एवं कल्याण की सुरक्षा हो सके।
  • आर्थिक स्थिरता और वित्तीय विकास:
    • स्थिर और निम्न मुद्रास्फीति दर सुनिश्चित करने से भारत में भरोसे और निवेश को बढ़ावा मिलता है। विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये पर्याप्त तरलता और ऋण उपलब्धता को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है।
    • वित्तीय बाज़ारों और संस्थानों के और अधिक विकास से बचत एवं निवेश में मदद मिलेगी।
  • वैश्विक एकीकरण और व्यापार समझौते:
    • भारत व्यापार बाधाओं को कम कर, अपने निर्यात पोर्टफोलियो में विविधता लाकर और समग्र प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाकर अपने वैश्विक आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ कर सकता है।
    • क्षेत्रीय और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाने से बाज़ार विस्तार के अवसर मिलते हैं, जिससे भारतीय उत्पादों और सेवाओं को लाभ प्राप्त होता है।
  • क्षेत्रीय विकास और नवाचार:
    • विनिर्माण, सेवा, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विकास, रोज़गार एवं नवाचार को बढ़ावा देना भारत के निरंतर विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • अग्रसक्रिय नीतियों द्वारा समर्थित इन क्षेत्रों पर रणनीतिक फोकस आर्थिक प्रगति को आगे बढ़ा सकता है।
  • उच्च-विकास क्षेत्रों में अवसरों का विविधीकरण:
    • आर्थिक संभावनाओं को बढ़ाने के लिये प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी और आईटी-सक्षम सेवाओं से परे भी अवसरों की तलाश करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये, घरेलू विधिक सेवा क्षेत्र का खुलना भारतीय अधिवक्ताओं के लिये महत्त्वपूर्ण लाभ प्रस्तुत करता है, जहाँ उन्हें यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में आकर्षक अवसर प्राप्त होते हैं।
  • विकास के लिये आशाजनक सेवा क्षेत्रों को लक्षित करना:
    • विविधीकरण के महत्त्व पर बल देते हुए उच्च शिक्षा, आतिथ्य और चिकित्सा पर्यटन जैसे आशाजनक सेवा क्षेत्रों (Promising Service Sectors) पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया गया है।
    • इस रणनीतिक बदलाव का उद्देश्य पारंपरिक क्षेत्रों की सीमाओं से परे आर्थिक विकास के दायरे को व्यापक बनाना है।
  • सब्सिडी सुधार के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रोत्साहित करना:
    • सरकार सेवा उद्योग को सरकारी सब्सिडी पर निर्भरता छोड़ने की वकालत कर रही है और दावा करती है कि यह बदलाव कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगा।
    • इस सब्सिडी निधि को अधिक ज़रूरतमंद लोगों तक पुनर्निर्देशित कर समग्र आर्थिक परिदृश्य को निरंतर विकास के लिये इष्टतम बनाया जा सकता है।

निष्कर्ष

वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का आर्थिक दृष्टिकोण आशाजनक नज़र आता है क्योंकि सरकार की पहलों ने अर्थव्यवस्था को औपचारिक बना दिया है और पूर्व में वंचित रहे क्षेत्रों तक वित्तीय पहुँच का विस्तार किया है। इस सकारात्मक प्रक्षेपवक्र को बनाए रखने के लिये राजकोषीय, मौद्रिक, व्यापार, औद्योगिक और संस्थागत नीतियों को शामिल करते हुए एक रणनीतिक दृष्टिकोण को आकार देना आवश्यक है। इस व्यापक रणनीति को लागू करने से भारत की महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षमता का पता लगाया जा सकता है, निरंतर सुदृढ़ विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है और देश को समृद्धि की ओर आगे बढ़ाया जा सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के आर्थिक विकास के संदर्भ में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र की उभरती गतिशीलता से उत्पन्न चुनौतियों एवं अवसरों का विश्लेषण कीजिये। सतत् और समावेशी विकास हासिल करने में इन क्षेत्रों की भूमिका की भी चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? 

(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन

उत्तर: b 


मेन्स:

प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)


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